मंगलवार, 26 मई 2009

वह गढ्ढा


(अ) भूमिका:

भारतीय नगरीय परिप्रेक्ष्य में गढ्ढे कइ प्रकार के होते हैं:

नई कॉलोनियों में कूडा फेंकने वाली जगह (नगर निगम का कचरा डिब्बा तो बहुत बाद में आता है) के पास का उथला गढ्ढा जिसमें सूअर लोटते हैं;

टेलीफोन/बिजली विभाग द्वारा खोदा गया सँकरा लेकिन लम्बोतरा गढ्ढा जो सड़क के बीचो बीच विराजमान होता है;

नगर निगम द्वारा पानी सप्लाई और सीवर को ठीक करने और उस प्रक्रिया में दोनों को मिलाने के लिए किया गया गढ्ढा जिसे मैनहोल भी कहा जा सकता है (मैं अपनी इंजीनियरिंग की पढाई को थोड़ी देर कि लिए ताक पर रख देता हूँ) ।

गढ्ढे का यह प्रकार जनता के स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी होता है। यह शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है साथ ही आवश्यक मिनरल, लवण वगैरह की पूर्ति करता है। आप ने देखा होगा कि झुग्गियों वाले जो इस प्रकार से एनरिच किए पानी को वैसे ही पीते हैं, बँगलों में रहने वालों की तुलना में कम बीमार होते हैं। असल में अक्वा गॉर्ड वगैरह के कारण पानी से सारे पोषक तत्त्व निकल जाते हैं.।

इस तरह के गढ्ढे की एक और खासियत होती है। इसमें शराबी कभी नहीं गिरते। इसमें केवल शरीफ किस्म के कम या बिल्कुल दारू नहीं पीने वाले इंसान या जानवर ही गिरते हैं। दारू पीकर टल्ली हुआ इंसान हमेशा सड़क के किनारे सुरक्षित रूप से उथली नाली में ही गिरता है। यह रहस्य आज तक मुझे समझ में नहीं आया। बहुत विद्वान लोगों से पूछने पर भी जब इससे पर्दा नहीं उठा तो मैंने एक शराबी से ही इसका राज उस समय पूछा जब वह सुबह सुबह ठर्रे से कुल्ली कर रहा था। उसने हमारे चिठ्ठाकार बाला (बालसुब्रमण्यम जी) की सरल शैली में बताया कि जो इंसान दारू नहीं पीता वह जानवर ही होता है. उसकी बुद्धि और चेतना बहुत सीमित होते हैं इसीलिए जानवर और गैरदारूबाज इंसान दोनों इस तरह के गढ्ढे में गिरते हैं। मैं उसका कायल हो गया।

(आ) कथा:

इस रिपोर्ट का नायक ऐसा ही एक गढ्ढा है जो ऑफिस आते जाते मेरे रास्ते में पड़ता है।

लखनऊ की एक कॉलोनी है गोमती नगर। यहाँ के विकास प्राधिकरण में चूँकि कुछ साहित्यकार किस्म के अधिकारी पाए जाते हैं, इसलिए इस कॉलोनी के विभिन्न खण्डों के नाम बड़े ही साहित्यिक रखे गए हैं और सभी ‘वि‘ से प्रारम्भ होते हैं जैसे, विशेष, विराम, विपुल, विनम्र, विराट, विभव..आदि आदि। आप ‘वि‘ से प्रारम्भ होने वाले किसी शब्द को लें, उस नाम से एक खण्ड गोमती नगर में अवश्य होगा (बस विप्लव को छोड़ दें। वैसे मायामति की सरकार पूरे पाँच साल चल गई तो ऐसे एक खण्ड के पैदा हो जाने की पूरी सम्भावना है।).

हमारे इस गढ्ढे ने विशाल और विकास खण्ड के बीच वाली सड़क से निकलती कॉलोनी वाली सड़क पर चार महीने पहले जन्म लिया। इसे बिना किसी चेतावनी चिह्न के नगर निगम ने ठीक टी-प्वाइण्ट पर सड़क का चौथाई हिस्सा लेते हुए उत्पन्न किया।

वह गढ्ढा

फिलहाल आप गढ्ढे का विहंगम दृश्य देखते हुए आगे के वृतांत पर अनुमान लगाएँ। मैं चला गढ्ढे की तरफ़, रहस्यों पर से पर्दा कुछ और उठाने की कोशिश करने के लिए। कल बाकी की बताऊँगा।

(अगले भाग का लिंक) 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ा खतरनाक टाईप गढ़ढ़ा दिख रहा है..आगे जानकारी दिजिये.

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  2. गड्ढे का बड़ा ही विशद वर्णन किया है किन्तु इनकी उत्पत्ति पर नियंत्रण कैसे किया जाए???/// आगे के वर्णन कि प्रतीक्षा में

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  3. मजा आया आपका यह गड्ढा पुराण पढ कर के ।

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