रविवार, 8 नवंबर 2009

पुरानी डायरी से - 7 : तलाश

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इस कविता पर कोई समय चिह्न न होना इसे सन्दिग्ध बनाता है। 
यह उस समय की लगती है जब बेवकूफी भरे प्रेम से मोहभंग हो गया था।
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_________, ____________                                                                                             तलाश 



तुम पास आती हो तो मैं डर जाता हूँ
कहीं मेरी तनहाइयाँ तुम्हारे वज़ूद को सोख न लें !


मैं जानता हूँ 
तुम अभी कहोगी
"कुछ सुनाओ।"
जो कुछ मैं तुम्हें सुनाता रहा आज तक
वह सब कुछ मेरा नहीं था
मेरे शब्दों में दूसरे लोग बोल रहे थे - 
तुम्हें शायद पता न हो 
मैं तो अभी भी ढूँढ़ रहा हूँ उसे
जिसे 'अपनी कविताएँ' सुना सकूँ।

(कल चुपके से एक सरसराहट हुई मस्तिष्क में
तुम्हारी कविताएँ सिर्फ तुम्हारे लिए हैं-
कमरा बन्द कर लो
और जोर जोर से अपनी कविताएँ पढ़ो
जब तक उनके शब्दों का शून्य 
भर न दे पूरे कमरे को
और विवश न कर दे तुम्हें
चिल्लाते हुए बाहर आने को।) - शायद ये पंक्तियाँ भी दूसरे की हैं।


मैं जानता हूँ - अभी तुम ऐसा कहोगी
"कमाल है कि इतने बड़े संसार में
आज तक कोई नहीं मिला तुम्हें 
जिसे तुम अपनी सुना सको?"


मैं भयभीत हूँ 
अपने ही शब्दों से -
वे बिखरे शब्द
मेरे वाक्यों में बिंध कर
(बँध कर नहीं)
कितने शक्तिशाली हो गए हैं !


मैं पराजित हूँ उनके आगे
कभी कभी मैं भ्रमित हो उठता हूँ
कहीं ऐसा तो नहीं कि ....
छोड़ो 
मगर आज के बाद फिर मत कहना
"कुछ सुनाओ"
'दूसरों की' 'दूसरों को' सुनाते-सुनाते
मैं खुद दूसरा हो गया हूँ -
मुझे अपने आप को तलाशना है
अपनी ही कविताओं में।


तब तक 'फरमाइश' न करना
कुछ मत कहना 
जब तक कि यह तलाश पूरी न हो जाय।

15 टिप्‍पणियां:

  1. गिरिजेश भाई
    तमाम उम्र हथेलियों में सनसनाता है
    जब हाथ किसी का हाथ में आकर छूट जाता है।

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  2. @अब तक भी तलाश पूरी तरह से पूरी नहीं हो पायी न ? हो गयी होती तो फिर यह कैसे यहाँ दिखती ?

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  3. तब तक 'फरमाइश' न करना
    कुछ मत कहना
    जब तक कि यह तलाश पूरी न हो जाय।

    तलाश पूरी hone tak mein intzaar karoonga.

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  4. आपकी तलाश जल्द पूरी हो यही कामना है।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  5. 'दूसरों की' 'दूसरों को' सुनाते-सुनाते
    मैं खुद दूसरा हो गया हूँ -
    हर तलाश पूरी होती है एक नये तलाश के आगाज़ पर --- जारी है तलाश

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  6. अद्भुत कविता !
    बाँच कर मन प्रसन्न हो गया

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  7. अभी ओम आर्य जी की एक बेमिसाल कविता पर आपकी बेमिसाल टिप्पणी पढ़ रहा था...एक सशक्त कविता लिखने की कसक के बाबत....
    हम्म्म्म, यकीन मानिये, करीब है ये वाली...

    "'दूसरों की' 'दूसरों को' सुनाते-सुनाते मैं खुद दूसरा हो गया हूँ -मुझे अपने आप को तलाशना है
    अपनी ही कविताओं में..."
    काश कि ये पंक्तियां मैंने रची होती...!!! बात तो मेरी भी है ये।

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  8. मैं जानता हूँ - अभी तुम ऐसा कहोगी
    "कमाल है कि इतने बड़े संसार में
    आज तक कोई नहीं मिला तुम्हें
    जिसे तुम अपनी सुना सको?
    yhi talash moh bhang nhi hone deti .

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  9. अति सुन्दर.
    तलाश भी कभी कहीं पूरी हुई है?
    अगर हो जाये तो जीने की प्रेरणा क्या बचेगी

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  10. जब तक तलाश है
    तभी तक बन्धन है इस जीवन का
    एक बार पूरी हो जाय
    तो
    मोक्ष...

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  11. 'बेवकूफी भरा प्रेम" कहने की क्या ज़रूरत है ?

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  12. सफ़र सी सुविधा और आराम मंजिल पाने पर कहाँ ...इन्तजार में चलते जाये ...कम से कम कविता तो लिखी जाती रहेगी ...!!

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  13. अपने आपकी सतत तलाश तो जारी ही रहनी चाहिए प्रभु ! चाहे जिस भी बहाने हो !

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