बुधवार, 29 जून 2011

प्रलाप

बाहर बादलों की दबिश से झँवराया प्रकाश है और कमरे में 6500 केल्विन ताप का आभास देता फेयर ऐंड लवली प्रकाश। खिड़की के सलेटी काँच और जाली के भूरेपन में फँसा प्रकाश इन दोनों से दो दो हाथ करता उन्हें अलग अलग किये हुये है जब कि खुली छत पर तनी पारदर्शी छतरी से छन कर आता प्रकाश भीगा ठिठुरा सा है। 
...इतने सारे प्रकाश हैं और सामने अन्धेरी दीवार है - आँखों के आगे नहीं, मन के आगे। चल नहीं पाता। मन का चलना कभी बन्द हुआ है भला? 
ऐसा चलना भी क्या जब पाँवों में पुनरावृत्ति की चप्पलें पड़ी हों। घुटनों का जीवन द्रव सूख रहा है - मन, मस्तिष्क और पाँव गतियों में कोई तालमेल नहीं। 
...अभी कुछ पन्ने लिखे हैं, जिनसे अक्षर पिघल पिघल गिर रहे हैं। मुझे यह प्रकाशों का षड़यंत्र सा लगता है। हथेली पसीजती रहती है। बारिश की ऋतु में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।  गर्मियों की उन साँझों में ऐसा होता है जब सारे प्रकाश एक जैसे जोगिया हो जाते हैं। किसी ने इसे रसायनों की गड़बड़ी बताया। मैं उससे यह पूछ्ना भूल गया कि वह वातावरण की बात कर रहा था या मेरी? वह दुबारा नहीं आने वाला।  
प्रकाश की केमिस्ट्री क्या होती है? नहीं, मुझे यह पूछना चाहिये कि मिस्ट्री क्या होती है? वह बुढ़िया माई काले बादलों के पीछे छिपे अधजगे सूरज को अनुमान से ही जब अर्घ्य दे रही होती है तो वह निरी यांत्रिकता होती है या कृष्ण वितान के ऊपर अँखुआते प्रकाश से नीचे आने का आह्वान? उसने कभी प्रकाश को ऐसे देखा होगा क्या? 
कितने ही लोग हैं जिन्हें इसका आभास ही नहीं होता। होना या न होना मायने नहीं रखता। उनके लिये यह सहज स्वाभाविक सा होता है - साँस की तरह लेकिन जिनकी साँसें ही जटिल हों, वे क्या करें?
...कमरे में क्लोज सर्किट टी वी कैमरे लगा कर वीडियो बनाया जाय तो क्या प्रकाशों पर कुछ और प्रकाश पड़ेगा?  अगर फ्रेमों को तेजी से भगाया जाय तो कुछ नया पता चलेगा क्या? मुझे नहीं लगता। वह बस आँखों का मनोरंजन होगा जिसे देखते साँसें टँगी रहेंगी जब कि संसार ऐसे ही चलता रहेगा। 
...मैं कुछ अधिक ही संवेदनशील हूँ। यह कहना मनोविकारी के लिये एक सम्मानजनक सम्बोधन भर है - अन्धे के लिये सूरदास जैसा? सम्वेदनशील कौन नहीं होता? बस इसलिये कि मैं उसे बड़ा सा अनुभव कर पाता हूँ जो सभी करते हैं लेकिन सिर झटकने इतना - दाल में नमक की डली टप्प!फिर स्वाद का फैलाव; मुझे विशिष्ट नहीं बनाता। बात बस इतनी है कि मैं औरों से अधिक आलसी और गैतल हूँ। जो औरों के लिये बस यूँ ही होता है मेरे लिये विशिष्ट हो जाता है। ऐसे लोग टाइमपास टाइप होते हैं। खाली समय में उनके आलस में भागीदार बनो और काम आने पर चलते बनो! 
...प्रकाश में भी भेद देखने वाले अ-व्यवहारिक होते हैं - हानिहीन प्रकार के। उन्हें बस यूँ ही उपेक्षित कर देना होता है जैसे सड़क चलते चुप पागल को। 
...कहाँ से और किस तरह से शुरू किया था और अब कहाँ हूँ! भीतर गहरे, बहुत गहरे अन्धकार का एक ट्यूमर है। ऊपर उठती उदात्ततायें वहाँ गोता क्यों लगायें? ऋषियों और नीतिकारों की बातें तो साँकल में ही झूलती रह जाती हैं। जब भी उस तक पहुँचता हूँ तो उसका शल्य करने को अस्त्र ढूँढ़ता हूँ और अजाने ही प्रकाश को टुकड़ों में बाँटने लगता हूँ कि कोई टुकड़ा तो सही कोण और घुमाव का हो जिससे ट्यूमर को काट-निकाल-फेंक सकूँ। 
अपने आप पर हँसता हूँ - प्रकाश सीधी रेखा में चलता है, घूमता भी है तो बहुत कम और मेरे मन में फाइबर ऑप्टिक्स वाले केबल नहीं हैं। 
...अब तक तो समझ ही गये होगे कि मुझमें 'बुरा मानने' या 'अच्छा लगने', 'महान होने' या 'नीचता की पराकाष्ठता तक पहुँचने' आदि आदि लायक कुछ भी नहीं? कुछ भी नहीं। 
बिजली चली गई है। कमरे में 6500 केल्विन का प्रकाश नहीं है और साँवरे, सलेटी, भूरे सब गायब हो गये हैं। इतना क्षणजीवी होना स्वस्थ होना है कि रोटी, बच्चों और समाज की परवाह बची रहती है लेकिन उस ट्यूमर का क्या करूँ मित्र?                

5 टिप्‍पणियां:

  1. दोनों ही ओर जाने में प्रयास बहुत है, मध्य में ही दो किनारे निर्मित कर के मस्त रहा जाये।

    जवाब देंहटाएं
  2. @@ऐसा चलना भी क्या जब पाँवों में पुनरावृत्ति की चप्पलें पड़ी हों। घुटनों का जीवन द्रव सूख रहा है - मन, मस्तिष्क और पाँव गतियों में कोई तालमेल नहीं। ..

    शब्दों में कितना वजन है भाई जी,वाह.

    जवाब देंहटाएं
  3. यह प्रलाप नहीं आत्मालाप लगता है मुझे तो ...

    जवाब देंहटाएं
  4. अजी थोडा हमारी समझ के मुताबिक लिखे, इतने गहरे गयाण से भरे लेख इस बंदे की समझ मे देर से आते हे,

    जवाब देंहटाएं
  5. इस लेख को सही अर्थों में समझने में तो मुझे समय लगेगा :)

    जवाब देंहटाएं

कृपया विषय से सम्बन्धित टिप्पणी करें और सभ्याचरण बनाये रखें। प्रचार के उद्देश्य से की गयी या व्यापार सम्बन्धित टिप्पणियाँ स्वत: स्पैम में चली जाती हैं, जिनका उद्धार सम्भव नहीं। अग्रिम धन्यवाद।