शनिवार, 8 सितंबर 2012

मनधुन/प्रश्न एक, दो, तीन ....ऐंवे, गैंवे, सैंवे :)

(1)  खंडवा जिले में नर्मदा नदी पर बने ओंकारेश्वर बांध के जलाशय के पानी में डूबने के खतरे को भाँप कर ग्रामीणों का अनूठा विरोध आन्दोलन कितने ही सप्ताहों से जारी है और मीडिया या अखबारों की चुप्पी/चलताऊ उल्लेख भी जारी हैं। मुझे यह स्वीकारने में झिझक नहीं कि मेरा विश्वास उठ चुका है और धीरे धीरे मैं किसी निहायत ही नकारात्मक परम सत्ता के अस्तित्त्व में विश्वास करने लगा हूँ। 
लिखने को बहुत कुछ लिखा जा सकता है लेकिन क्या होना उससे? अब तो अपने आप पर भी शक़ होने लगा है। किसानों और ग्रामीणों की पीड़ा को मेरा समर्थन है। शायद किसी कोने कहीं सत् शक्ति कुछ कर दे! 
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(2) ये फालतू का गाना और फोटो सोटो देखना छोड़ दो। अब अधेड़ हो गये हो। थोड़े गम्भीर बनो। ...गम्भीर कैसे बना जाता है?

(3) साँभर, उपमा आदि दक्षिण भारतीय व्यंजनों में पड़ने वाले कड़ी पत्तों को खा लेना चाहिये या थाली प्लेट में किनारे टरका देना चाहिये? अधेड़ हो गये लेकिन अभी तक किसी से पूछने का साहस नहीं कर पाये।

(4) वाश बेसिन होते हुये भी फिंगर बाउल यानि गरम पानी में निचोड़े नींबू में हाथ डाल धोने का क्या मतलब? गुद्दी चिरई गरम धूल में लोटती हो...कुछ वैसा! अगर उस पानी को पी लें तो पाचन और मुख शुद्धि की दृष्टि से कैसा रहेगा? ... आज पूछ ही लेता हूँ। 

(5) गंजा पुरुष आईने में इतनी देर क्या निहारता है? वह सिर पर हाथ क्यों फेरता रहता है? ... अपन भी उस श्रेणी में आ चुकने वाले यानि आसन्न हैं। जानना और सीखना आवश्यक है। 

(6) नाक में उंगली करने के बाद लोग बिना हाथ धोये किसी से हाथ कैसे मिला लेते हैं? हाथ जोड़ कर बिना स्पर्श किये नमस्कार की प्रथा का व्यक्तिगत सफाई से कोई सम्बन्ध है क्या?  

(7) किसी विषय में किस स्तर तक डूबना उचित है? स्तर के कितने स्तर होते हैं? नाक के ऊपर कौन सा स्तर आता है?
किस स्तर तक पहुँचने के पश्चात मनुष्य पागल घोषित कर दिया जाता है?

(8) क्या सुरूप नहीं होने का दुष्टता से कोई सम्बन्ध है? अब तक के अनुभवों से मुझे लगता है कि कोई सम्बन्ध नहीं है। फिर अक्सर फिलम सिलम में खलनायक अमूमन कुरूप अजीब सजीब टाइप के ही क्यों होते हैं? अगर ठीक ठाक होते हैं तो हरकतें अजीब सी क्यों करते दिखाये जाते हैं?

(9) अपनी बड़ाई सुन कर मनुष्य लजाने क्यों लगता है? इसमें लजाने की क्या बात होती है - बड़ाई या सुनना या कहने वाले की निर्लज्जता?
कुछ लोग लजाते हैं, कुछ फूल कर कुप्पा हो जाते हैं लेकिन असहजता सभी दर्शाते हैं। यह सीखा हुआ व्यवहार है या नैसर्गिक? 

(10) सुन्दर व्यक्ति को देखने और सराहने के बीच जाने कब 'घूरना' घटित हो जाता है! क्यों होता है? वह व्यक्ति मन ही मन सराहे जाने की सराहना करने के बजाय असहज क्यों अनुभव करने लगता है?
साथी संगी टोकने क्यों लगते हैं?

(11) मेरे WOW! और बाकियों के WOW!  में इतना अंतर क्यों होता है? माने ये कि जिस पर मैं करूँ उस पर सब सन्नाटा और जिस पर बाकी करें उस पर मैं सन्नाटा! सबके लिये समान WOW कितने होंगे? अनुमान भर? 

(12) जिसका आना पसन्द न हो या किसी समय उससे बात करना भी न पसन्द हो तब भी कोई हँसते, मुस्कुराते, आत्मीयता दिखाते कैसे बतिया लेता है? अगर कर भी लेता है तो छूटते ही नाक भौं सिकोड़ गरियाता क्यों है?

(13) हमेशा विस्मयबोधी और जोरदार प्रशंसा को ही क्यों सम्मान दिया जाता है? ऐसी छोटी छोटी बातें चोटिल सी क्यों लगती हैं?

(14) रंगों को कूटबद्ध किया जा चुका है। कोड लिख कर कोई रंगविशेष सृजित किया जा सकता है। स्वाद के भी कमोबेश कामचलाऊ भेद उपलब्ध हैं लेकिन गन्ध के मामले में मामला आदिम सा क्यों है?
कोई गन्ध किसी को सुगन्ध लगती है तो दूसरे को दुर्गन्ध या असहनीय। और तो और मैंने लोगों को नाभि में अंगुल कर उसे सूँघते देखा है।
 क्या दुर्गन्ध भी प्रिय हो सकती है या किसी को अच्छी लग सकती है?
या इस व्यवहार के पीछे गन्ध की उस नैसर्गिक समझ के अवशेष हैं जो कुछ पशु प्रजातियों में अभी भी  पाई जाती है?
Aroma का हिन्दी समानार्थी शब्द क्या है? 
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कई दिनों से इस मन्दिर ने उलझा रखा है। 
सौर और शाक्त परम्पराओं का सम्बन्ध बड़ा ही रहस्यमय है। शाक्त मत के मन्दिर पुरुष प्रधान मन्दिर वास्तु और शैली से एकदम भिन्न बनाये जाते थे। उनके प्रतीक और अर्थ भी भिन्न होते थे। प्राय: ऊँचे निर्जन स्थानों पर बने ये मन्दिर खगोलीय प्रेक्षणों और शिक्षण के लिये भी प्रयुक्त होते थे। आश्चर्य होता है कि एक ही स्थान पर निषिद्ध वाममार्गी साधना और ज्योतिर्विद्या साथ साथ सधते थे। आश्चर्य नहीं कि खगोल विद्या के साधकों को भी निकृष्ट कोटि में रख दिया गया। 
मितावली के इस चौसठ योगिनी मन्दिर को देखिये। भारतीय संसद का भवन इससे प्रेरित लगता है कि नहीं? यह बात अलग है कि संसद ज्योतिर्विद नहीं स्वार्थ में अन्धों से भरी है जिनकी एकमात्र साधना स्वार्थ साधना है। 

और अंत में उलूकता: 

सीताराम, सीताराम।

14 टिप्‍पणियां:

  1. मितावली का चौसठ योगिनी मन्दिर, भेड़ाघाट, जबलपुर के मंदिर की तरह.

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  2. मैं तो नर्मदा बाँध पर खड़े हो कर इन किसानो के हित की बात करना चाहता हूं। बट एज यू नो, आई काण्ट मार्शल माई थॉट्स सो वेल! :-(

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  3. अत्युत्तम प्रश्न। वास भी पहचानी गई हैं और उनके न केवल नाम हैं, रासायनिक संघटन/प्रकृति भी बाक़ायदा पहचानी गई हैं। ज्योतिर्विद्या को तो अपनाना ही पड़ता है - 2006 में बसरा में बदायूँ से ज़्यादा ज्योतिषी थे जबकि सुना ऐसा जाता है कि इस्लाम में ज्योतिष प्रतिबन्धित है। 12-13 पे बात नहीं, बाकी की ज़रूरत नहीं।
    शुभमस्तु!

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  4. @खंडवा जिले में नर्मदा नदी पर बने ओंकारेश्वर बांध के जलाशय के पानी में डूबने के खतरे को भाँप कर ग्रामीणों का अनूठा विरोध आन्दोलन कितने ही सप्ताहों से जारी है

    - आधुनिक मदहोश सत्ताधीशों की हरकतें किसी भी आसुरी सत्ता को मात देने वाली हैं।

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  5. १. 'किंकर्तव्यमूढ़ता' शब्द ताजा हालत में शायद सर्वाधिक उपयुक्त स्थिति है|

    २. ? खुद को अधेड़ समझकर|

    ३. किनारे टरका देना चाहिए(बूँद बूँद और कतरा कतरा नोच खसोटने के बाद)|

    ४. जवाब बताइएगा हमें भी|

    ५. ? ? शायद यह दृष्टिभ्रम ही हो, इस आशा में|

    ६. हमारे एक कुलीग को यह आदत थी, मैं टोक देता था| हाथ जोड़कर नमस्कार वाला प्रयोग किया था, फिर छुआछात का पक्षधर होने का आरोप सुनकर प्रयोग को हाथ जोड़ दिए|

    ७. 'विषय' पर निर्भर है| स्तर प्रायः दो ही तरह का होता है, 'टुच्चा' और 'अत्यंत-टुच्चा' स्तर| शेष सभी दिल के बहलाने के ख्याल हैं|

    ८. नफ़रत, घृणा का ग्राफ गिराने (उठाने) के लिए फिलम सीलम ...|

    ९. क्योंकि अपनी असलियत हर कोई जानता है| नैसर्गिक है लेकिन कुछ लोग बहुत अच्छे से कंट्रोल का बटन दबाये रखना जानते हैं|

    १०. अगर कोइ न घूरे तो शायद ज्यादा असहजता होगी( सन्दर्भ - खलील जिब्रान की एक कहानी, लिंक मिला तो मुहैया करवा देंगे| अभी सन्दर्भ इसलिए बताया है ताकि गालिया मुझ अकेले को न पड़ें)

    ११. common between us.

    १२. मुझे लगता है, संवेदनाओं के स्विच बोर्ड होते हैं और कुछ लोग इस स्विच बोर्ड के अलग अलग स्विचेस को बहुत जल्दी जल्दी ऑन- ऑफ़ करना जानते हैं जैसाकि कहीं कहीं सड़क की पटरी पर एक ताश का खेल दिखाने वाले पत्ते दिखाते ढंकते हैं|

    १३. अंगरेजी में कोई कहावत भी है न ऐसी, जिसमें बताया गया है कि तेल किसे दिया जाता है, जो आवाज ज्यादा करता है, वही बात हो सकती है|

    १४. इस्मारट भैया की पहली टिप्पणी की पहली पंक्ति|
    दुर्गन्ध बहुतों को अच्छी लगती होगी| सन्दर्भ - वायस शृगाल सुख लूटेंगे|




    दिमाग की लस्सी कर देते हो यार आप भी|

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    1. है कोई जवाब किसी के पास संजय जी का? आज उन्होने फिर साबित कर दिया... "मो सम कौन..." मतलब कि " संजय जी सम कौन???"

      भैया जी, दिमाग़ की तो वैसे ही दही हुई पड़ी है... क्या कहें...बस आता हूँ वापस अगले रविवार को तो आप से बात करता हूँ. बहुत लंबा समय हो गया है. मुआफ़ कीजिएगा, आपके किसी भी सवाल का जवाब नही है...

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    2. तुस्सी ग्रेट हो जी। आप सम कोई नहीं।

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  6. एक साथ इतना कुछ सोचने को दे दिया, उलझ जाने की बारी अब हमारी है।

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  7. मति भ्रष्ट हो गयी यह तो मैं भी कह रहा हूँ. और भी बहुतोंने कहा है. इससे क्या आप हर्षित नहीं हुए?

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