शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

छीन लो पुस्तकें उनसे!

छीन लो पुस्तकें उनसे
उन्हें पढ़ने के पश्चात
वे करते हैं विचित्र बातें
समझदार से लगते हैं
छीन लो पुस्तकें उनसे!
उनमें कोई असंतोष नहीं
न आपा धापी,
चुपचाप तेजी से काम कर
बचाते हैं समय, पढ़ने को पुस्तकें
अर्थव्यवस्था ठहरी है उनसे
(सोचो वह समय जो काम में लगता!)  
उन कामचोरों को काम पर लगाओ
उनकी देह में पसीना उगाओ  
छीन लो पुस्तकें उनसे!
उनके भीतर होती है विचित्र सी शांति
वे सुनते हैं उतनी ही शांति से
आक्रोश की बातें
असंतोष की बातें
विद्रोह की बातें
और जब अपनी कहते हैं तो हिम बरसते हैं
क्रांतियाँ नहीं हो पा रहीं उनके कारण
क्यों कि उनके पास हैं समाधान
सौ में निन्याबे के घनीभूत मेधायें पन्नों में
और सौवें के बारे में वे बुलाते हैं - आओ! ढूँढ़ते हैं,
कहीं न कहीं होगा कुछ अनदेखा रह गया
न कुछ करते हैं और न करने देते हैं
वे हमें बहकाते हैं
संकटों में मुस्कुराते हैं
छीन लो पुस्तकें उनसे!
संतुष्ट हैं वे दरिद्र
उनके बच्चों को न दाग अच्छे लगते हैं
न नमक वाले पेस्ट से उनके दाँत चमकते हैं
उनकी टी वी में स्मार्ट नेट नहीं
उनके घर में एंटीना डिश नहीं
उनके पर्स में संतोषी सिक्के खनकते हैं
आँखों पर चढ़ाये चश्मे
वे सबसे बड़े हैं शत्रु अन्धता के
बहुत चुप से रहते हैं
जब देखो पढ़ते रहते हैं  
छीन लो पुस्तकें उनसे!

6 टिप्‍पणियां:

  1. उन कामचोरों को काम पर लगाओ
    उनकी देह में पसीना उगाओ


    मुश्किल काम है भाई ये तो।

    जवाब देंहटाएं
  2. कहो उनको पढ़ें पुस्तक,
    तभी पहुँचे लौट घर तक।

    जवाब देंहटाएं
  3. अक्सर आपकी कहानियाँ पढ़ती हूँ - कवितायेँ नहीं ।

    लेकिन आपकी यह कविता और इससे पहले वहां "कवितायें और कवि भी.." पर "स्त्री" वाली _विता बहुत अच्छी लगी ।

    सौभाग्यशाली हैं वे जिन्हें यह गिफ्ट प्राप्त है इश्वर से - जो शांत हैं, जो पढ़ते हैं .....

    जवाब देंहटाएं
  4. उल्टी वाणी बोलिए मन चंगा-चंगा होय।
    औरों को नंगा करे आपहूँ नंगा होय।।

    जवाब देंहटाएं
  5. ये पढ़ें वही जो और कोई न पढ़ पाए...
    पुस्तक को उनकी छिनना तो दूर कोई छेड़ भी न पाए ..

    जवाब देंहटाएं

कृपया विषय से सम्बन्धित टिप्पणी करें और सभ्याचरण बनाये रखें। प्रचार के उद्देश्य से की गयी या व्यापार सम्बन्धित टिप्पणियाँ स्वत: स्पैम में चली जाती हैं, जिनका उद्धार सम्भव नहीं। अग्रिम धन्यवाद।