शनिवार, 4 मई 2013

बनारस और आसपास

945490_10201053339883859_228042514_nघंटेश्वर महादेव? वाराणसी से मुगलसराय राह में।

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अज्ञात हुतात्माओं के नाम - कोई तो है जिसने अपने व्यवसायिक स्थान को उनकी स्मृति में नाम दिया।

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ब्रांड और जाति दोनो महत्त्वपूर्ण हैं। कैंट स्टेशन के सामने गोकुल का 'मारवाड़ी यादव' 
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'बुढ़ापे की लाठी' न सही, हम साथ साथ हैं!
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विश्वेश्वर गली के बाहर

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गेरुआ टी शर्ट, खाकी घुट्टना, हवाई चप्पल और माथे पर गमछा बाँधे जब मैं काशी के कोतवाल के यहाँ से गली गली होते काशी के राजा के अभिषेक के लिये निकला तो रास्ते में मिल गये गलमुच्छे वाले अभयराज यादव, सुल्तानपुर वासी।
गरहन के बाद नहाने आये थे। बेटवा बेटवा कहते मुझसे खूब घुल मिल गये। उनकी मानें तो गान्धी बाबा अपने जमाने के जियता मनई थे और उनके बाद यह देश मुर्दार हो गया। अपनी मूँछों पर उनको बहुत नाज था और एक राज की बात बताये कि किसी घर चले जायें तो ठकुरानियाँ भले सिर पर पल्लू न करें लेकिन स्थान छोड़ कर आदर से खड़ी हो जाती हैं!

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मलिनिया कुल
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दशाश्वमेध घाट से बाहर आने के रास्ते पर

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नोट बिकते भी हैं!
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ऐसे स्थान देख कर मुझे उन विद्वानों पर तरस आता है जो पुरातात्विक खुदाइयों के सहारे भारत का इतिहास गढ़ने के प्रयास करते हैं।
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बनारस का एक घाट - सम्भवत: राजेन्द्र घाट

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वाराणसी नगर बस सेवा - सेंट परसेंट सही बात
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चालक के ऊपर गाड़ी तेज चलाने का दबाव न डालें।
लेट आप हैं, हम नहीं।
जियो और जीने दो।