गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

महाशिवरात्रि - गृहस्थ महिमा

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आज महाशिवरात्रि है – फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी या तेरस। हर महीने यह तेरस शिवरात्रि कहलाता है किंतु कामऋतु वसंत में कामदहनी शिव के विवाह वाला तेरस महती अर्थ धारण कर लेता है। शिव का विवाह गृहस्थ जीवन की प्रतिष्ठा है। गिरि वन प्रांतर में अनेक प्रकार के जीव जंतुओं से उलझते सुलझते, उन्हें पालतू बनाते यायावर मनुष्य का ‘गृह प्रवेश’ है। इस दिन समाज से दूर रहने वाला विनाशी औघड़ घुमंतू फक्कड़ी संन्यासी गृहस्थ बनता है। शक्ति से जुड़ शव शिव हो जाता है। उससे जुड़ गिरि वन प्रांतर की बाला मैदानों की गोरी गउरा हो जाती है।

संहार से जुड़े होने के कारण शिव की दिशा दक्षिण मानी जाती है। दक्षिण में यमपुरी है। वर्ष का वह आधा भाग जब सूर्य दक्षिणायन होते हैं, पितृयान यानि पितरों का समय माना जाता है। पितर देवतुल्य हैं। उनका तर्पण आगामी पीढ़ी करती है। मृत्यु की कठोर सचाई के बीच इस तरह की व्यवस्था, जीवन की प्रतिष्ठा है कि चाहे जो हो, जीवन जयी रहेगा। जीवन जयी हो इसलिये शिव का विवाह आवश्यक है। वह घर परिवारी हो, यम को निर्देशित करते हुये भी संतति को जन्म दे तो संतुलन हो, विरुद्धों का सामंजस्य हो। बिना सामंजस्य के कैसा जन, कैसा समाज, कैसी पूजा, कैसी व्यवस्था? थोड़ा गहरे उतरें तो यह ऋत की प्राचीन अवधारणा का लौकिक रूप है।

शिव का विवाह वसंत की काम ऋतु में होता है। जोगी महाभोगी हो उद्दाम वासना में लिप्त होने से पहले समाधिस्थ होता है, काम द्वारा जगाया जाता है। शिव क्रोध से ग्रस्त होता है। त्रिनेत्र द्वारा काम का दहन होता है तब शिवा और शिव युगनद्ध होते हैं। सृष्टि नर्तन का रूपक है यह जिसमें शिव का तांडव है तो शिवा का लास्य भी!

भले कैलास के खोह में रहते हों, शिवयुगल आदि दम्पति हैं। ब्रह्मा सरस्वती तो शापित हो कलंकी हो गये। विष्णु युगल भी आदर्श नहीं, लक्ष्मी चंचला हैं तो उनके स्वामी बला के सुतक्कड़। बच गये गौरी महेश। सारी सीमाओं के बावजूद वे घर घर के हैं। वे लोक दम्पति हैं। सुख, दुख, कलह, मिलाप, कथा, व्यथा, उपासना, वासना आदि आदि सब धारण किये गाँव गाँव घूमते रहते हैं। गृहस्थ के प्रिय देव महादेव हैं। घरनी की प्रिय देवी गउरा पार्वती हैं।

गृहस्थ सबका भार वहन करता है। गृहस्थ धर्म का निबाह निर्बल के वश का नहीं, इसके लिये महादेव सा पौरुष और गिरिजा सा धैर्य ममत्त्व चाहिये। मनु कहते हैं:

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जिस प्रकार वायु का आश्रय सभी जीवित प्राणी करते हैं, वैसे ही गृहस्थ का अन्य तीन आश्रम। इसलिये गृहस्थ सर्वोत्तम आश्रम है। ऋषि, पितर, देव, भूत और अतिथि इन सबका पोषण गृहस्थ को ही करना है। यह आश्रम दुर्बल इन्द्रियों वाले के लिये नहीं है। तो इस आश्रम का आदर्श महादेव का दाम्पत्य ही होगा न!

बोलिये भवम भवानी की जय!

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रविवार, 9 फ़रवरी 2014

सिगरा मंडी का एक तरकारी विक्रेता

बनारस में साजन सिनेमा चौराहे पर नवनिर्मित फव्वारे से थोड़ा आगे सिगरा तरकारी मंडी की ओर बढ़ने पर बायीं ओर तमाम पणियों, गाली गलौज करते चिल्लाते दलालों, लोगों, पशुओं और गन्दगी की भीड़ के बीच भूमि पर छोटी सी टोकरी में तरकारी रख कर बेचता यह व्यक्ति मुझे जँचता है।


साधारण वस्त्र, सँवारे केश और हल्की बढ़ी दाढ़ी लिये इस मानुष का उत्साह नख नख से फूटता है। करीने से सजी सब्जियों में कोई असुन्दर नहीं होतीं और उनकी सजावट में एक ज्यामितीय प्रारूप दिखता है। 

इनकी तरकारियों के भाव में सामने वाले को देख कर उतार चढ़ाव होता रहता है। ग्राहकों की कमाल की परख है इन्हें और उन पर पकड़ भी। किस को क्या दिखाना है, कैसे घेरना है और कैसे भाग कर माँग पूरी करनी है, सब का कौशल इनमें है। निराशा का प्रदर्शन करते हुये कभी कभी मैंने असम्भव माँगें भी की हैं। उस समय फुर्ती के साथ कहीं और से ले आकर भी इस व्यक्ति ने पूरी की है। 
  
इनके स्वभाव में एक खास तरह का आक्रामक माधुर्य है जिसके कारण कोई भी ग्राहक आ जाने पर खाली हाथ नहीं जाता। इनके यहाँ रुकने वाले भी खास ही होते हैं जिन्हें मैं मन ही मन ‘गुण ग्राहक’ कहता हूँ। गुण ग्राहक वह होता है जो भाव ताव में उन्नीस बीस की परवाह न करते हुये ‘सम्पूर्ण क्रय अनुभव’ पर केन्द्रित रहता हो। उसके लिये पण से ले कर थाली तक तरकारी के आने की पूरी प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है ताकि स्वाद का सम्पूर्ण परिपाक हो। गुण ग्राहक रुपये व्यय कर आनन्द का अनुभव करता है और इस हेतु वह आनन्ददायी विक्रेता पा ही लेता है। आप के आसपास भी ऐसे आनन्ददायी विक्रेता हों तो अवश्य बताइये!

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

आर टी भाई का मफलर

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बचपन से ही मुझे मफलर बाँधना नहीं आता। स्टाइलिश कूल हॉट देसी बिलायती आदि विधियों वाले मफलर बन्धुओं को देख देख जलन होती रहती है। अब तो मफलर प्रगतिशीलता और क्रांति का प्रतीक भी बन गया है।
वसंत आगमन निकट है लेकिन कोहरा और ठंड दोनों जाने का नाम नहीं ले रहे। चूँकि मफलर बाँधे बिना प्रगतिफीलता का भाव नहीं आता और बिना मफलर अराजक क्रांति हो नहीं सकती और चूँकि मैं यह सब चाहता हूँ इसलिये हर पल मफलर बाँधे रहना चाहता हूँ और इसीलिये मेरी माँग है कि हर मौसम सदाबहार मफलर बनाया जाना चाहिये। मफलर बाँधने की विधि सबको आनी चाहिये। विद्यालयों के पाठ्यक्रम में इसे सम्मिलित किया जाना चाहिये।  साथ ही फैब्रिक भी ऋतु के अनुकूल होना चाहिये। लेकिन समस्या यह है कि जैसे ही इस क्रांतिकारी सुझाव को किसी को सुनाता हूँ, वह विचार करने के बजाय मुझ पर ही हँसने लगता है जैसे कह रहा हो कि तेरा भेजा खिसकेला है!
इसके लिये आर टी भाई से सम्पर्क करना पड़ेगा। सुना है कि धरना, प्रदर्शन और नौटंकी की कला में वे इतने पारंगत हैं कि आर टी के आगे आई लगा कर इंडियन स्टेट की ऐसी तैसी कर देते हैं।
 
इंटरनेट पर ढूँढ़ा तो बता चला कि यह आम के बजाय अमरूद आदमी के लिये बनी एलीट टाइप की चीज है और इसे बाँधने की तमाम आसुरी और पश्चिमी विधियाँ हैं। अमेरिकन लिखना चाह रहा था लेकिन आसुरी शब्द कूल और एंटीक लगा सो लिख दिया। विश्वास है कि इससे मेरी प्रगतिफीलता पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
आर टी भाई ने मफलर बाँधने की एक देसी तकनीक का आविष्कार किया है। यूँ तो यह विधि बैगन देहात में बहुत पहले से ग़रीब गुरबा अमीर उमराँ द्वारा प्रयुक्त होती रही है लेकिन जब तक आर टी भाई ने इसे नहीं नकलियाया था तब तक यह बहुत ही उपेक्षित टाइप थी जिससे चेहरे की बैकवर्डनेस झाँई की तरह झाँकती थी। उनके नकलियाते ही इसमें कूलनेस तो आई ही, इस भयानक सर्दी में यह हॉट आइटम हो गयी। जिसे देखो वही इसे बाँधे जब चाहे तब रात बिरात सड़क मुहल्ला गली राजपथ आइटम सांग करता नज़र आने लगा। सही पूछिये तो आर टी भाई इस मामले में युग पुरुष निकले!  
इस विधि में कान को कस कर बाँधते हुये गले में लपेट लिया जाता है। चूँकि एक ही हॉट स्थान पर दो भयानक कूलें एक साथ एक ही समय नहीं विराज सकतीं इसलिये टोपी को किनारे रख दिया जाता है। इस विधि में सहूलियत यह रहती है कि आप को दूसरों की बातों पर कान नहीं देना होता और अपने गले की खाँसी भी कंट्रोल में रहती है। उस समय आप अक बक कुछ भी कह दें कैसी भी हरकत कर दें, उसमें क्रांति ही क्रांति पाई जाती है।
hind_timesमैं आर टी भाई से सीखने जा रहा हूँ लेकिन मुझे बगल के भीखन काका का एक प्रश्न परेशाँ किये हुये है - कान बन्द कर और गला बाँध कर नौटंकी हो रही है बेटा! नौटंकी देखते देखते मरण सेज पर आ गये हम लेकिन नौटंकी की काट ऐसी नौटंकी होगी, सोच नहीं पाये थे। अपने आर टी भाई से पूछना दूसरों को मूर्ख बनाने और समझने की तकनीक का इतना ह्रास कब कैसे क्यों कर हुआ?
आप को इसका उत्तर पता हो तो बताइयेगा। साथ ही वसंत में मफलर कैसा हो, इसकी जुगत भी सोचियेगा। राम राम!
 

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चित्राभार: hindustantimeṣ.com, bbc.co.uk