tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post1642033497892046386..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: समझगिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger27125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-15402842196757184892010-12-30T23:07:03.375+05:302010-12-30T23:07:03.375+05:30अंतिम वाक्य एक डिस्क्लैमेर जैसा लगा.... और फिर मै...अंतिम वाक्य एक डिस्क्लैमेर जैसा लगा.... और फिर मैंने सोंचा ' सही तो है, नहीं तो शंकराचार्य महोदय मंडन मिश्र की पत्नी से शास्त्रार्थ नहीं हारे होते'<br />" वह 'मौलिकता' पर अटक गया। क्या पता वह उसी की तरह हो? वह फिर अटक गया - वह उसे क्यों नहीं मिली?"<br /><br />हम लोगों की तरफ शादी से पहले कुंडली के साथ गुण मिलान भी किया जाता है और हद्द तो तब होती है कि ३६ में से ३२ गुण मिलने के बाद भी पति को लगता है कि यार कैसे ३२ गुण मिल गए? रिअलिटी में तो ससुरा कुच्छो नहीं मिलता है हम दोनों में. <br /><br />वैसे एक जगह मैं सहमत नहीं हूँ इस कहानी से- " ...पुरुष ने यह आह भरना छोड़ दिया है कि काश! उसे कोई लड़की अपनी जैसी मिली होती तो पूरे संसार को आसमान पर टाँग आता और धरा पर सब कुछ फिर से शुरू करता - मनु और श्रद्धा की तरह।"<br /><br />पुरुष ना तो आह भरना छोड़ सकता है ना ह़ी यह कल्पना करना कि उसे कोई और लड़की, अपने टाइप की काहें नहीं मिली.<br /><br />स्कूल के जमाने कि पढी हुई एक कविता कि अंतिम पंक्ति याद आ गयी <br />' है अनंत का तत्व प्रश्न यह, फिर क्या होगा उसके बाद....'Lalithttps://www.blogger.com/profile/07381473297376142200noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-60895780049489136012010-12-28T13:55:18.148+05:302010-12-28T13:55:18.148+05:30बस इतना समझ नहीं आया कि आपने अंत में स्पष्टीकरण क्...बस इतना समझ नहीं आया कि आपने अंत में स्पष्टीकरण क्यों दिया....<br /><br />बाकी तो क्या कहूँ....<br /><br />बेजोड़ !!!!रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-24767086105006128182010-12-28T07:23:37.846+05:302010-12-28T07:23:37.846+05:30स्त्रियों के मन और समझ पर आपकी पकड़ काफी तगड़ी लगी...स्त्रियों के मन और समझ पर आपकी पकड़ काफी तगड़ी लगी :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-89200950377782334712010-12-27T20:54:27.664+05:302010-12-27T20:54:27.664+05:30"जब वह लिखता तो लड़के की तरह ही लिखता था - अपन..."जब वह लिखता तो लड़के की तरह ही लिखता था - अपनी देखी हर खूबसूरत समझदार लड़की से कुछ कुछ चुरा कर.....<br />....... मुस्कुराये जा रहे हो, कोई फिर याद आई क्या?"<br />ये तो गजब लिख डाले हैं महाराज. भेजता हूँ किसी को ये कहते हुए कि मेरी जीवनी लिख रहा है कोई :) पांच-सात साल बाद का सीन अभी से लिख दिया गया है.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-46447772334986658492010-12-27T20:20:52.178+05:302010-12-27T20:20:52.178+05:30चिट्ठा पढ़ने नही, चिट्ठे का लिंक लेने आई थी और पोस्...चिट्ठा पढ़ने नही, चिट्ठे का लिंक लेने आई थी और पोस्ट पढ़ कर एक स्माईली दे कर चले जाने का मन था, जो कि सच्ची टिप्पणी थी। मगर टिप्पणी पढ़ते पढ़ते लगा कि अच्छी खासी हलके फुलके मूड में लिखी गई पोस्ट फिर से नारी पुरुष के चक्कर में पड़ गई।<br /><br />खैर...!! फिलहाल पोस्ट अच्छी लगी, इसलिये नही क्योंकि कहानी में महिला पुरुषों को समझती थी, पुरुष महिलाओं को नही समझता। बल्कि इसलिये क्योंकि बुनावट अच्छी थी। वैसे महिलाएं लिखती ही कितना हैं, महिलाओं के विषय में ? पुरुष ही तो अधिकांशतः उनकी संवेदनाओं को आवाज़ देते हैं। जो भी लेखक होगा, उसमें ये सूक्ष्म दृष्टि स्वयं आ जायेगी।<br /><br />बधाईकंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-855995396868851552010-12-27T16:51:47.944+05:302010-12-27T16:51:47.944+05:30स्त्री मन की समझ होती नहीं, लोगो को?...या फिर लोग ...स्त्री मन की समझ होती नहीं, लोगो को?...या फिर लोग कोशिश नहीं करते??...क्रिकेट,ऑफिस की बातें खुली किताब सी हैं....कोशिश नहीं करनी पड़ती ,ना वहाँ :)rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-2822851728634135522010-12-27T16:23:39.679+05:302010-12-27T16:23:39.679+05:30स्त्रियों को ही कहां आपके मन की समझ होगी !स्त्रियों को ही कहां आपके मन की समझ होगी !Sanjay Groverhttps://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-25119579135514186392010-12-27T10:42:32.867+05:302010-12-27T10:42:32.867+05:30aapki post padhte hain...phir tippani
.....phir po...aapki post padhte hain...phir tippani<br />.....phir post .....hamare liye kahne<br />ko kuch hota nahi .... but itna achha<br />lagta hai ki 'kuch bhi tip dete hain'<br />take aapko pata chale hamne bhi padha<br />hai ..... <br /><br /><br />pranam.सञ्जय झाhttps://www.blogger.com/profile/08104105712932320719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-59959404418557973382010-12-27T09:10:53.824+05:302010-12-27T09:10:53.824+05:30गिरिजेश जी आज पहली बार आपके चिठ्ठे पर आया हूँ। अभी...गिरिजेश जी आज पहली बार आपके चिठ्ठे पर आया हूँ। अभी तक तो ज्यादातर 'लोकप्रिय' किसम के ब्लॉग्स पर ही भटकता रहा हूँ। अब धीरे धीरे उन ब्लॉग्स तक भी पहुँचने की कोशिश कर रहा हूँ जो वास्तव में पठनीय हैं और जो 'अत्यल्प स्तरीय' में शामिल हैं। बहुत से मिले भी हैं पर अधिकांश की खोज जारी है। आप का चिठ्ठा भी बेशक इनमें से एक है।<br />ये रचना आपकी चाहे कहानी हो या आपबीती, है बड़ी मनोवैज्ञानिक। अच्छी है।सोमेश सक्सेना https://www.blogger.com/profile/02334498143436997924noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-24329388443655405412010-12-27T08:30:20.862+05:302010-12-27T08:30:20.862+05:30@ अरविन्द जी,
'प्रकृति और पुरुष' और एक मै...@ अरविन्द जी, <br />'प्रकृति और पुरुष' और एक मैट्रिक्स:<br /><br />पुरुष+पुरुष तत्व<br /><br />स्त्री+स्त्री तत्व<br /><br />पुरुष+स्त्री तत्व<br /><br />स्त्री+पुरुष तत्व <br /><br />अपने आप में एक बहुत बड़ा विषय है। जीवन के और अनुभव ले लेने के बाद, रिटायर हो जाने के बाद साइंस फिक्शन और इस विषय पर लिखने की मेरी योजना है जिसमें नारीवाद भी आएगा - अगर लिखने लायक बचे रहे तो, वरना आजकल बीमारियाँ इतनी कम उम्र में पकड़ ले रही हैं कि रिटायर होने से पहले ही रिटायर हो जाने की आशंका है :) <br />कविताएँ तो बस आ जाती हैं, मन की सोच की ओर संकेत करती हुई। उन्हें मैं प्रवाही शब्द कहने लगा हूँ।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-51324198321148892782010-12-27T07:59:07.759+05:302010-12-27T07:59:07.759+05:30यह सब प्रकृति का प्रपंच है -श्रेष्ठ पुरुषों को भी ...यह सब प्रकृति का प्रपंच है -श्रेष्ठ पुरुषों को भी इन वाहियात बातों में समय जाया कराने का उपक्रम ! कुदरत के खेल निराले !<br />मैं दावे के साथ कहता हूँ की नारी को श्रेष्ठ पुरुष की समझ नहीं है ,वह मूलतः खिलंदड़ों ,दिखावा करने ,चमकदार कपडे पहनने वालों और आँख के अंधे (खुल कर रूप सौन्दर्य की बात भी तभी हो पाती है ) तथा गाँठ के पूरों (ताकि उसकी और संतति को जीने के लाले न पड़ें ) को पसंद करती है ....बहुत सी बातें मेरे मन में भी -यह कहानी उनका अंशतः प्रगटन है !<br />कहानी आप और भी अच्छी लिखते हैं तो फिर कविता को क्यों थोडा विराम न दिया जाय !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-18085164322026588802010-12-27T05:22:13.894+05:302010-12-27T05:22:13.894+05:30राजीवजी ने सही नस पकड़ ली है ...राजीवजी ने सही नस पकड़ ली है ...वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-4913714070798206572010-12-27T00:37:22.982+05:302010-12-27T00:37:22.982+05:30mujhe lagta hai ki samajha sirf manojmishra ne hai...mujhe lagta hai ki samajha sirf manojmishra ne hai aur maza liya hai rajiv ne .ardhnarishwar ki kalpana kaise huee hogi.....aap bahut kuchh samajhte hain.bau ko layen ...intezaar bhari pad raha hai.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-80855571067588399622010-12-26T23:42:35.042+05:302010-12-26T23:42:35.042+05:30kabhi kabhi to aap per bhi shak hota hai seriously...kabhi kabhi to aap per bhi shak hota hai seriously .....!!!rajivhttps://www.blogger.com/profile/10917588871855963207noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-41353812928592775622010-12-26T22:43:03.026+05:302010-12-26T22:43:03.026+05:30बहुत सारे पहलू हैं , या तो या मान लूँ कि नारी मनोव...बहुत सारे पहलू हैं , या तो या मान लूँ कि नारी मनोविज्ञान न शरद से पहले किसी को समझ आया था, न उसके बाद , या फिर यह मान लूँ कि शरद ने उनके बारे में सिर्फ अच्छा ही लिखा है | <br /><br />जो भी हो स्त्री के मन को समझकर लिखना फिर भी ठीक है, लेकिन अन्दर घुसकर उसी हिसाब से सोचकर लिखना अपने बस का नहीं रे बाबा !!!Neerajhttps://www.blogger.com/profile/11989753569572980410noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-26172665376570378012010-12-26T22:23:12.808+05:302010-12-26T22:23:12.808+05:30शायद मैं एक नयी आइडेण्टिटी बना कर सुबुकसुबुकवादी ठ...शायद मैं एक नयी आइडेण्टिटी बना कर सुबुकसुबुकवादी ठेलने लगूं यह पढ़ कर! <br /><br /><b><a href="http://www.google.com/reader/view/" rel="nofollow">-- भीगी पलकें, सुलगते आंसू</a> </b>Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-38409823866046547492010-12-26T22:03:42.090+05:302010-12-26T22:03:42.090+05:30दोनो पक्ष महत्वपूर्ण हैं, टीस बराबर की होती है।दोनो पक्ष महत्वपूर्ण हैं, टीस बराबर की होती है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-52655918750473679122010-12-26T21:59:28.541+05:302010-12-26T21:59:28.541+05:30बेशक यह कहानी ही है ।बेशक यह कहानी ही है ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-4158078922348491872010-12-26T21:56:00.799+05:302010-12-26T21:56:00.799+05:30...यह कहानी ही है, कुछ और नहीं, इसे पुरुष की तरह ल......यह कहानी ही है, कुछ और नहीं, इसे पुरुष की तरह लिखा है और मुझे स्त्री मन की कोई समझ नहीं है। <br /><br /> स्त्री मन की समझ नहीं है तो ऐसे कैसे लिख बैठे यार कि - बहुधा दर्पण के पास जाकर स्वयं से पूछता - यार! तुम इतने हैंडसम तो न थे जो उन्हों ने तुम्हें इतना भाव दिया और फिर हौले से मुस्कुरा देता। उस पर जान छिड़कने वाली पत्नी पीछे से आकर कोंच जाती - अकेले अकेले मुस्कुराये जा रहे हो, कोई फिर याद आई क्या? <br /><br /> ये स्त्रीमन के बारे में निर्मला में प्रेमचंद ने कहा है कि - इंसान बूढ़ा हो जाता है लेकिन कभी स्त्री को समझ नहीं पाता।<br /><br />(प्रसंग....जब निर्मला के विवाह की तैयारी के दौरान निर्मला की मां अपने पतिदेव से कहती है कि खर्चा तनिक सोच समझकर किजिए...अभी दूसरी भी है....लेकिन किसी बात को लेकर खुद अड़ जाती है कि नहीं, निर्मला की शादी में तो यह होना ही चाहिये )<br /><br /> मस्त राप्चिक पोस्ट। थोड़ा कन्फूजन हुआ लेकिन मजेदार लगा।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-5438874127512022232010-12-26T21:47:54.985+05:302010-12-26T21:47:54.985+05:30मानसिकता का सही चित्रण!!
सही"समझ"मानसिकता का सही चित्रण!!<br /><br />सही"समझ"सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-32494857179021551822010-12-26T21:03:59.595+05:302010-12-26T21:03:59.595+05:30चलिए साहब मान लिया की कहानी ही है. कहानी को पढना ...चलिए साहब मान लिया की कहानी ही है. कहानी को पढना और उसका मजा लेना ही अपना स्वभाव है. कोई टीका टिप्पणी नहीं.VICHAAR SHOONYAhttps://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-22949993565262322612010-12-26T20:59:36.865+05:302010-12-26T20:59:36.865+05:30यह कहानी हृदय फलक पर गहरी छाप छोड़ती है। एक स्त्र...यह कहानी हृदय फलक पर गहरी छाप छोड़ती है। एक स्त्री का अस्तित्व अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य से जूझता हुआ खुद को ढूंढता रहता है। स्मृतियों और वर्तमान के अनुभव एक-दूसरे के सामने आ खड़े होते हैं तो लिखना रोक कर आईने में खुद को निहारती। चेहरे की लकीरों को निगाहों से मसल कर सलवटों को भूल जाती। उसे अपने बच्चे की सुध भी आती। <br /><br />इस कहानी पर मुझे तो बस इतना कहना है,<br /><br />क़तरे में दरिया होता है<br /><br />दरिया भी प्यासा होता है<br /><br />मैं होता हूं वो होता है<br /><br />बाक़ी सब धोखा होता है<br /><br /><b>बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!</b><br /><a href="http://testmanojiofs.blogspot.com/2010/12/91-10.html" rel="nofollow"> विलायत क़ानून की पढाई के लिए </a>मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-30158950907026812272010-12-26T20:56:43.562+05:302010-12-26T20:56:43.562+05:30@यह कहानी ही है, कुछ और नहीं, इसे पुरुष की तरह लिख...@यह कहानी ही है, कुछ और नहीं, इसे पुरुष की तरह लिखा है और मुझे स्त्री मन की कोई समझ नहीं है।....<br /> ऊधो की तरह ?----सब कुछ लिख लेने के बाद यह लिखना कि समझ नहीं -समझ नहीं आया. बेहतरीन पोस्ट.डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-43510143609378500702010-12-26T20:48:13.879+05:302010-12-26T20:48:13.879+05:30कहानी के नायक को चैलेंज स्वीकार कर लेना चाहिये था।...कहानी के नायक को चैलेंज स्वीकार कर लेना चाहिये था। ज्यादा से ज्यादा हार ही तो जाता, कभी कभी हार में भी सुख मिलता है।<br />आचार्य, आप ही कभी लड़की की तरह लिखकर दिखा दीजिये:)संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-60454327265254556972010-12-26T20:41:53.091+05:302010-12-26T20:41:53.091+05:30ये तो बहुत ही खतरनाक स्थिति है .........
सब में क...ये तो बहुत ही खतरनाक स्थिति है .........<br /><br />सब में कहीं न कहीं असुरक्षा की भावना जरूर रहती है, जो इसको छिपा ले जाय वही सिकंदर !<br /><br /><br /> मनोविज्ञान से परिपूर्ण कहानी थी ...... <br />बहुत ही अच्छी हैगंगेश रावhttps://www.blogger.com/profile/10791109109633152718noreply@blogger.com