tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post1884057189101306067..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: बाउ और मरा हुआ सिध्धर -1 : लंठ महाचर्चागिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger22125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-79621415485872859072010-01-05T20:35:56.970+05:302010-01-05T20:35:56.970+05:30शानदार । बहुत दिनों बाद नेट पर आया और सीधे यहीं पर...शानदार । बहुत दिनों बाद नेट पर आया और सीधे यहीं पर आया । मालूम था खाली हाथ नहीं लौटूंगा । लंठाधिराज की जय हो ।K M Mishrahttp://kmmishra.tknoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-13526432993522309722010-01-04T15:46:15.096+05:302010-01-04T15:46:15.096+05:30एक ठो पीडीऍफ़ बनाया जाए कहिये तो हम बना दें ? पूरा ...एक ठो पीडीऍफ़ बनाया जाए कहिये तो हम बना दें ? पूरा होने का इंतजार तो करते ही रह जायेंगे... जैसे-जैसे बढ़ता रहेगा जोड़ते जायेंगे. आप छपवायेंगे नहीं तो कम से कम इबुक तो रहेगा.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-5725032136539223472010-01-04T09:12:08.171+05:302010-01-04T09:12:08.171+05:30बहुत बढ़िया। लंठ महाचर्चा की शुरुआती कड़ियों को पढ...बहुत बढ़िया। लंठ महाचर्चा की शुरुआती कड़ियों को पढ़ने के बाद हमारी कही बातें ही देखिये अब अन्य लोग भी दोहरा रहे हैं। <br />समझ गए होंगे। जमे रहिए और जल्दबाजी न करें।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-33493726388116681742010-01-01T16:32:02.658+05:302010-01-01T16:32:02.658+05:30अपनी बोली , भाषा , माटी , सभी की सुगंध ,सौंधापन एक...अपनी बोली , भाषा , माटी , सभी की सुगंध ,सौंधापन एक साथ. <br />बस ऐसह्हीं पढ़वावत रहा गिरिजेश भैय्या !RAJ SINHhttps://www.blogger.com/profile/01159692936125427653noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-72246336360971482072009-12-31T18:05:09.354+05:302009-12-31T18:05:09.354+05:30अरे बाप रे, इत्त समय कहां से मिल जाता है?
नव वर्ष...अरे बाप रे, इत्त समय कहां से मिल जाता है?<br /><br />नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।<br />--------<br /><a href="http://ts.samwaad.com/" rel="nofollow">पुरूषों के श्रेष्ठता के जींस-शंकाएं और जवाब।</a><br /><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्कार घोषित।</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-27492337964729624872009-12-30T21:33:31.305+05:302009-12-30T21:33:31.305+05:30हमेशा की तरह रोचक. अपनी पुरानी प्रार्थना दोहरा रहा...हमेशा की तरह रोचक. अपनी पुरानी प्रार्थना दोहरा रहा हूँ, इस कथा को एक क्रम में उपलब्ध करायें तो आनंद आ जाये.पंकजhttps://www.blogger.com/profile/05230648047026512339noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-23703429986202095492009-12-30T12:42:22.409+05:302009-12-30T12:42:22.409+05:30bahut hi sundar prvahmyi bandhkar rkhne vali atynt...bahut hi sundar prvahmyi bandhkar rkhne vali atynt sshkt katha .desh ka koi bhi grameen anchal ho mn to udvelit ho ho jata hai fir ganv se jude logo ko to trpti hi deti hai vha ki gathaye .agli kdi ka intjar.शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-76838414862289885902009-12-29T20:42:01.621+05:302009-12-29T20:42:01.621+05:30सुनाते रहिये सुन रहे हैं लंठचर्चा अच्छी लगीसुनाते रहिये सुन रहे हैं लंठचर्चा अच्छी लगीनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-69873825928730462962009-12-29T18:10:42.465+05:302009-12-29T18:10:42.465+05:30अभी हम भी ऐसी महागाथाओं को कागज पर पढ़ने वाले पोंगा...अभी हम भी ऐसी महागाथाओं को कागज पर पढ़ने वाले पोंगा इंसान हैं । इसे प्रिंट करके ही पढ़ते हैं/रहे हैं/पढ़ते रहेंगे । इसलिये टिप्पणी की कोई भलमनसाहत नहीं दिखानी ! <br />कार्तिकेय भाई की बात मान लिये - बहुत किये ! लिंक ठीक से लगाया करिये ! <b>"लंठ महाचर्चा : बाउ मंडली और बारात एक हजार : दूसरा दिन - पूर्वपीठिका":</b> का लिंक गलत लगा है ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-65411659022028495312009-12-29T01:41:11.077+05:302009-12-29T01:41:11.077+05:30भारतीय साहित्य के प्राण हैं ऐसी देशज कथाएँ
नगीन...भारतीय साहित्य के प्राण हैं ऐसी देशज कथाएँ <br /> नगीनों सी चमक लिए ..<br /> आप ने एक ऐसी ही श्रुंखला यहां रखी है ... क्या बात है !!<br />सब बढ़िया ! आभार !! <br />नव - वर्ष की अनेक शुबकामनाएं <br />स्नेह, <br />- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-80945232719025666932009-12-28T22:20:34.016+05:302009-12-28T22:20:34.016+05:30lage rahiye........
upanyas jeevant hone ki or a...lage rahiye........<br /><br /><br />upanyas jeevant hone ki or agrasarit haiगंगेश रावhttps://www.blogger.com/profile/10791109109633152718noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-91116936381276265812009-12-28T22:17:31.545+05:302009-12-28T22:17:31.545+05:30मुदा हम कहि रहे हैं कि यदि ब्लॉग साहित्य का नोबल ...<b> मुदा हम कहि रहे हैं कि यदि ब्लॉग साहित्य का नोबल प्राईज होता तो डोर 'बाउ' की ओर ही खिंचती.....'सांवली' लिखने पर पुलित्जर तो है ही :)</b><br /> <br /> वैसे, कल आपसे फोन पर बात हुई औऱ आज जाकर मौका लगा है इस पोस्ट को पढने का। लेकिन जब पढा तो बस पढता चला गया। देशज भाषा को तो मैं भी बहुत पसंद करता हूँ..... भोजपुरी भाषी होते हुए भी यहां कुछ बातें तो मैं भी नहीं समझ पा रहा था (शायद शहर ने मुझ पर भी पोरसा भर भूसा लाद दिया है :)......लेकिन नीचे उन शब्दों का तर्जुमा देख कुछ शब्दों को और सीखने को मिला है।<br /> <br /> पोस्ट तो बढिया है। मुझे तो लगता है कि किताब अब जल्दी ही छपनी चाहिये इससे पहले कि आपके दिमाग में <b>'सांवली'</b> चकर पकर करे :) <br /> <br /><br /> बहुत बढिया लिखा । बहूत खूब।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-27682704503256480202009-12-27T23:04:20.345+05:302009-12-27T23:04:20.345+05:30ईल्लेव, मलिकाइन पहिले से जगह छेंकाए बइठी हैं...। ...ईल्लेव, मलिकाइन पहिले से जगह छेंकाए बइठी हैं...। अब हम का बताईं। गुम्मे निकरि जा रहे हैं।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-2604009076853130842009-12-27T18:05:56.385+05:302009-12-27T18:05:56.385+05:30क्या लिखूँ! आप एक अच्छे उपन्यास की तैयारी में जुट ...क्या लिखूँ! आप एक अच्छे उपन्यास की तैयारी में जुट गये हैं। इन्तजार रहेगा। अग्रिम बधाई।रचना त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/12447137636169421362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-9943112307295283642009-12-27T15:17:05.260+05:302009-12-27T15:17:05.260+05:30ऐ हो महराज..सौंसे बिलाग घूम अइनी हम ..बाकी अइसन नी...ऐ हो महराज..सौंसे बिलाग घूम अइनी हम ..बाकी अइसन नीमन कथा बंचवईया कोई नइखे..!!!स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-34178499649099532002009-12-27T11:26:01.522+05:302009-12-27T11:26:01.522+05:30अतिविशिष्ठ पोस्ट की श्रेणी मे है आपकी यह पोस्ट. पर...अतिविशिष्ठ पोस्ट की श्रेणी मे है आपकी यह पोस्ट. परबतिया के माई की कथा का आगे इंतजार है.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-38381762755110442422009-12-27T07:13:37.707+05:302009-12-27T07:13:37.707+05:30देशज शब्दों का विस्तृत प्रयोग आपकी प्रविष्टियों को...देशज शब्दों का विस्तृत प्रयोग आपकी प्रविष्टियों को एक अर्थ प्रदान करता है ..आपकी कथा कहने का तरीका ही कुछ इस तरह का है कि इसे पढ़ते हुए एक गाँव का रेखाचित्र सामने नजर आने लगता है ....खेत खलिहान , चौबारे ...चौपाल पर इकट्ठा लट्ठ लिए कई सारे लोग ...<br /><br />इसी बहाने कुछ भूले बिसरे शब्दों से फिर से जान पहचान हो गयी ...!!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-30081981660403810452009-12-27T02:33:14.854+05:302009-12-27T02:33:14.854+05:30चलाये रहिये लंठ महाचर्चा!!चलाये रहिये लंठ महाचर्चा!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-6822385877969304502009-12-26T22:46:54.746+05:302009-12-26T22:46:54.746+05:30लंठ महाचर्चा विराट होते होते महाकाव्याकार होती जा ...लंठ महाचर्चा विराट होते होते महाकाव्याकार होती जा रही है..<br /><br />एक अनुरोध है, बल्कि जिद समझिये तो बेहतर होगा ..इस महागाथा के समस्त प्रसंग क्रमबद्ध रूप से आप अपने साइडबार में सबसे ऊपर लगा दीजिये.. <br /><br />वैसे ये प्रसंग इतनी जिजीविषा से आप्यायित हैं, कि भाषा में हैंडिकैप्ड, तथा ब्राउजिंग से नफरत करने वाले लोग भी आर्काइव से ढूंढ-ढांढ कर इसके सारे प्रसंग पढ़ने का लोभ संवरण नहीं कर पायेंगे.. मेरा दावा है।<br /><br />ग्राम्य जीवन पर सबसे पहले रेणु के ’मैला आँचल’ की बात होती है.. मेरे पर्सनल फेवरिट रामदेव शुक्ल की ‘ग्रामदेवता’ और वीरेन्द्र जैन की ‘डूब’ और ‘पार’ हैं..<br /><br />लेकिन अतिशयोक्ति या वाह-वाह न समझा जाय तो यहाँ सार्वजनिक स्वीकारोक्ति दर्ज कराना चाहूँगा कि रेणु जैसे महाप्राण या वीरेन्द्र जैन के भुगते हुए यथार्थ के चित्रण के अलावा अगर ग्राम्य जीवन का इतना भदेस और सोंधा चित्रण अगर अंतर्जाल पर कहीं देखा तो यहीं देखा.. निश्चित रूप से अंतर्जाल पर रची कुछ उत्कृष्ट कोटि की रचनाओं में से एक..<br /><br />सारे लिंक इकट्ठा दीजिये.. कल फिर देखने आऊंगा। आपकी सारी फीड रीड मोर फॉरमैट की होती हैं, इसलिये IE में उनका संचयन नहीं हो सकता.. लिंक से मैनुअली इसकी ई-बुक बनाउंगा, फिर प्रिंट-आउट से सहेज लूँगा।कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra)https://www.blogger.com/profile/03965888144554423390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-89416186191107862842009-12-26T20:34:38.796+05:302009-12-26T20:34:38.796+05:30देशज और सहज शैली में बढ़िया चल रही है ......लंठ महा...देशज और सहज शैली में बढ़िया चल रही है ......लंठ महाचर्चा !!<br /><br />लगता है कि छूटी हुई ट्रेन फिर से पकडनी पड़ेगी ?प्रवीण त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-75374417815709536822009-12-26T20:12:20.754+05:302009-12-26T20:12:20.754+05:30देसज भाषा में बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....देसज भाषा में बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-25347578009882664692009-12-26T20:01:55.769+05:302009-12-26T20:01:55.769+05:30अरे हम तो देखते ही पहचान गए थे परबतिया के माई को. ...अरे हम तो देखते ही पहचान गए थे परबतिया के माई को. कहानी इसी प्रकार चलती रहेगी तो पीछे छूती कुछ और गुत्थियों के सुलटने की भी उम्मीद है. (वैसे कुछ रहस्य रह भी जाने चाहिए. )Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.com