tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post2294011538981553875..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: अंतिम भाग - नरक ही है, तुम्हारे लिए किताबी, उनके लिए जवाबी(?)गिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-91071834278024567442011-01-10T07:39:44.422+05:302011-01-10T07:39:44.422+05:30क्या आपको नहीं लगता कि इंसानों ने पूरी दुनिया के ज...क्या आपको नहीं लगता कि इंसानों ने पूरी दुनिया के ज्यादातर हिस्से कैम्पों में तब्दील कर दिए हैं ?उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-3104976652606985852011-01-09T16:36:40.796+05:302011-01-09T16:36:40.796+05:30.
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क्या कहूँ ?
कहने से होगा क्या ?
शब्द कभी-कभ....<br />.<br />.<br />क्या कहूँ ?<br />कहने से होगा क्या ?<br /><br />शब्द कभी-कभी किसी काम के नहीं रहते...<br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-16757491037590390632011-01-08T19:30:18.871+05:302011-01-08T19:30:18.871+05:30बहुत सही कहा आपने गिरिजेश जी...
कीड़े मकौडों से बच...बहुत सही कहा आपने गिरिजेश जी...<br /><br />कीड़े मकौडों से बचे हुए साफ़ सुथरे घरों में रह रहे हम लोग इस दृष्टि से तथ्यों को सोच समझ सकते हैं. घृणा को भी सृजनात्मक बना सकते हैं...लेकिन जो रोज नरक में जीने को बाध्य हैं और जिनका विश्वास न्याय पर से उठ गया है,उनका आक्रोश यदि ध्वंसात्मक रूप से निकले तो इसमें आश्चर्य वाली कोई बात नहीं होगी...और यदि ऐसा होता है तो गुनाहगार कौन है ????<br /><br />आज हमारी सरकारें आक्रोशित भीड़ को स्वयं ही रास्ता दिखा रही हैं...<br />हिंसा कभी सही नहीं हो सकता...पर हिंसक के सामने कोई कब तक आत्मसमर्पण करता रहेगा,यह हिंसक वर्ग नहीं सोच पाता..<br /><br />क्रिया प्रतिक्रिया का यह दौर शायद तब तक चलता रहेगा,जबतक हिंसक समूह हिंसा में ही आनंद पाता रहेगा...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-78673467441798543722011-01-08T06:59:45.371+05:302011-01-08T06:59:45.371+05:30@ strong emotion - इसी की आवश्यकता है। & छीजन...@ strong emotion - इसी की आवश्यकता है। & छीजना - सात्विक और शांत घृणा करने वाले को नहीं, जिन गुनहगारों से है उन्हें छीजेगी।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-32467353555690563292011-01-07T23:57:26.195+05:302011-01-07T23:57:26.195+05:30गिरजेश जी ,दोनों भाग पढ़ा. काफी दयनीय स्थिति है. पढ...गिरजेश जी ,दोनों भाग पढ़ा. काफी दयनीय स्थिति है. पढ़कर मन विचलित हो उठा. बस पम्पोश की जगह अपने को रखकर सोंचना भी रोंगटे खड़े कर जा रहा है... आगे लिखने के लिये कुछ शब्द भी नहीं मेरे पास.उपेन्द्र नाथhttps://www.blogger.com/profile/07603216151835286501noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-89356670790247242152011-01-07T20:19:52.488+05:302011-01-07T20:19:52.488+05:30घृणा एक बहुत ही strong emotion है. अगर वह अंदर ह...घृणा एक बहुत ही strong emotion है. अगर वह अंदर ही अंदर सीझती रहेगी तो भीतर ही भीतर इसे पालने वाले को छीजती भी रहेगी.<br /><br />'पाश' की कविता बेहतरीन लगी.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-22588262160892243742011-01-07T12:54:20.619+05:302011-01-07T12:54:20.619+05:30---
आप की लिखाई बहुत सुन्दर है.
इसे देख कर ऐसा लगत...---<br />आप की लिखाई बहुत सुन्दर है.<br />इसे देख कर ऐसा लगता है आप ने तख्ती पर लिखना सीखा होगा ..Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-8164778963384330202011-01-07T07:01:09.158+05:302011-01-07T07:01:09.158+05:30@सत्यार्थी जी,
प्रयास करता हूँ कि पूरी पुस्तक के ...@सत्यार्थी जी, <br />प्रयास करता हूँ कि पूरी पुस्तक के अनुवाद की अनुमति मिल जाय। अंश तक तो ठीक है लेकिन पूरी पुस्तक के अनुवाद और उसे ब्लॉग पर प्रस्तुत करने के लिए मूल लेखक से अनुमति लेनी ही होगी। <br /><br />वैसे अपने ही कई काम अधूरे पड़े हैं। लेकिन 'लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजै?'<br />संवेदनशीलता है और क्या कहा जा सकता है? इसके आगे की राह क्या हो, ढूँढ़ता रहता हूँ और लिखता जाता हूँ...गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-46475072215590311522011-01-07T04:24:24.682+05:302011-01-07T04:24:24.682+05:30दो बार पढ़ चुकी हूँ -जिन्हें इस विभीषिका को जीना प...दो बार पढ़ चुकी हूँ -जिन्हें इस विभीषिका को जीना पड़ रहा है उन्हे कैसा लगता होगा सोचकर ही मन दहल जता है ,इस धरती के साथ जिन लोगों ने द्रोह किया है और निर्दोषों की यातना का कारण बने हैं आज भी उन्हें सिर पर बैठानेवाले अपने यहाँ पले विभीषणों के प्रति नफ़रत और तीखी हो जाती है -यह सब आखिर कब तक ?प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-16039037276717623182011-01-07T01:52:20.622+05:302011-01-07T01:52:20.622+05:30सुबह से नैट खराबी और बिजली की आंख-मिचौनी से जूझ रह...सुबह से नैट खराबी और बिजली की आंख-मिचौनी से जूझ रहा था। अब पढ़ी है पोस्ट।<br />और अभी आधा घंटा पहले ही अखबार में पढ़ी यासीन मलिक की चेतावनी और उमर अब्दुल्ला का ताल से ताल मिलाना।<br />शायद नीरज की बात सच ही होगी, फ़िर ये भी प्रकृति ही है। <br />गर्व करिये आप भी, हम भी कोशिश करेंगे जब हुनर आ जायेगा। फ़िलहाल तो धिक्कारना ही ठीक लग रहा है।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-60551368202710000152011-01-06T22:54:01.723+05:302011-01-06T22:54:01.723+05:30लगता है Trendmicro को आपके ब्लॉग से एलर्जी है। कम्...लगता है Trendmicro को आपके ब्लॉग से एलर्जी है। कम्बख्त पेज खुलते ही वार्निंग देने लगता है। <br /><br /> किताब के अंश का अनुवाद बेहतरीन रहा। पाश को पढ़वाने का शुक्रिया।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-2281605387417519552011-01-06T21:43:03.053+05:302011-01-06T21:43:03.053+05:30इस तरह पाश की कवितायें मैं भी अपनी डायरी में उतारत...इस तरह पाश की कवितायें मैं भी अपनी डायरी में उतारता रहा हूँ और कभी कभी तो उनके पोस्टर बनाकर घर में टाँगे भी है .. हताशा की स्थिति में पाश की वह कविता ... हम लडेंगे साथी ..बहुत प्रेरित करती थी उस चक्र से बाहर निकलने के लिये ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-3733681401931511882011-01-06T21:41:24.277+05:302011-01-06T21:41:24.277+05:30इसकी कई एक लाइनें अविस्मरनीय बन गईं हैं,आभार.इसकी कई एक लाइनें अविस्मरनीय बन गईं हैं,आभार.डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-12991928329974217902011-01-06T20:47:29.149+05:302011-01-06T20:47:29.149+05:30अंतिम भाग????अंतिम भाग????Satish Chandra Satyarthihttps://www.blogger.com/profile/09469779125852740541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-42108533061149475262011-01-06T19:54:03.554+05:302011-01-06T19:54:03.554+05:30मूल कृति कहाँ से मिलगी ?मूल कृति कहाँ से मिलगी ?Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-40532798400846534282011-01-06T19:50:17.694+05:302011-01-06T19:50:17.694+05:30@ प्रवीण जी,
अपनी बात ऊपर कह चुका हूँ।
@ रंजना ...@ प्रवीण जी, <br />अपनी बात ऊपर कह चुका हूँ। <br /><br />@ रंजना जी, <br />आभार। जब हम आतंकवाद के पहले हिन्दू जोड़ते हैं तो अनजाने ही 'प्रतिक्रियात्मक' बात कर रहे होते हैं। आप ने जड़ को सही पकड़ा। इस्लाम की चन्द मान्यतायें ही कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा की कारण हैं। प्रतीक्षा है किसी की जो सकारात्मक मान्यताओं को आगे बढ़ायेगा ताकि पूरे संसार से आतंक का सफाया अपने आप हो जाय। प्रतीक्षा की जा सकती है। <br />हाँ, 'हिन्दू आतंकवाद' जैसा कुछ हो ही नहीं सकता। प्रतिक्रिया कह सकती हैं। प्रतिक्रिया सीमाओं की जकड़न में स्वभावत: ही रहती है। उससे कुछ भी सकारात्मक हासिल नहीं होता। आवश्यकता है 'शांत घृणा' को सजोने की और सार्थक कामों की जैसे प्रताड़ित यहूदियों ने इजरायल में किया और किये जा रहे हैं।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-57794699715540576862011-01-06T19:38:41.523+05:302011-01-06T19:38:41.523+05:30@ दीपक बाबा
हाँ, घृणा क्रोध को सुसुप्त जीवित रखती ...@ दीपक बाबा<br />हाँ, घृणा क्रोध को सुसुप्त जीवित रखती है - समय पर भड़कने के लिए।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-44920410498688638162011-01-06T19:36:47.175+05:302011-01-06T19:36:47.175+05:30@ सोमेश जी,
इसे ही सात्विक क्रोध कहते हैं।
@ नी...@ सोमेश जी, <br />इसे ही सात्विक क्रोध कहते हैं। <br /><br />@ नीरज जी, <br />आप की बातों से 100 फीसदी सहमत। अनुवाद का चयन इसलिए कि श्वेत के लिए श्याम को दिखाना कभी कभी अनिवार्य हो जाता है और प्रक्रिया में संवेदनाओं को जीवन मिल जाता है। <br />पहली बार 'सात्विक क्रोध' प्रयोग को जब 'मानस का हंस' में पढ़ा तो बैचैन हुआ था। विषय ध्यान-आसक्ति-काम-क्रोध-सम्मोहन-स्मृति विभ्रम-बुद्धि नाश-सब स्वाहा वाली गीतात्मक समझ के लिए क्रोध को सात्विक मानना अजीब लगा लेकिन धीरे धीरे समझता गया।<br />यहाँ घृणा वह 'सात्विक' 'शांत' घृणा है जो आप के भीतर सीझती रहती है, आप के भीतर उसे जिलाये रखती है जो जरूरी है। अच्छाई के भी साइड इफेक्ट होते हैं। सष्टि का यिंग यांग संतुलन। <br />क्रोध में स्थायित्त्व नहीं होता। घृणा के साथ ऐसा नहीं है। मुझे चाणक्य़ क्रोधी नहीं, सात्विक कुटिलता और घृणा वाला व्यक्ति लगता है। ...और हमारे कई राष्ट्रनायक भी।... <br />हुनर का घमंड काम करता रहेगा। दुनिया को बताता रहूँगा कि दुनिया अभी भी बेहद खूबसूरत है। सात्विक घृणा भी सीझती रहेगी। इतनी विचारवान टिप्पणी के लिए आभार। बहुत अच्छा लगा जो आप ने विचार स्फुल्लिंग उपजा गए।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-67496523997904643102011-01-06T19:31:31.621+05:302011-01-06T19:31:31.621+05:30क्या मानव जाति फिर से असभ्य होने जा रही है..... जि...क्या मानव जाति फिर से असभ्य होने जा रही है..... जिसके बन्दूक में जोर होगा वही जी पायेगा.........?????????दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-74105555362824840802011-01-06T16:57:19.541+05:302011-01-06T16:57:19.541+05:30"दुनिया हसीन रहे,
इसके लिए घृणा भी उतनी ही आ..."दुनिया हसीन रहे, <br />इसके लिए घृणा भी उतनी ही आवश्यक है, जितना प्रेम। <br />गुनहगारों! <br />मैंने तुम्हारे लिए सहेज रखा है। भूलना मेरी फितरत नहीं। "<br /><br />ये पंक्तियाँ कभी न भूल पाउंगी...शायद अभी जो मन में घुमड़ रहा है,उसे अभिव्यक्त करने का इससे सटीक वाक्य और कुछ नहीं हो सकता...<br /><br />हिन्दू आतंकवाद !!!!<br /><br />शायद यही चाहते हैं हमारे आज के निति नियंता...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-66869649831509760312011-01-06T15:19:39.416+05:302011-01-06T15:19:39.416+05:30घृणा व क्रोध में यही अन्तर है, क्रोध में उसे ठीक क...घृणा व क्रोध में यही अन्तर है, क्रोध में उसे ठीक करने की उत्कण्ठा रहती है, घृणा में नहीं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-17437539735113703952011-01-06T13:46:28.182+05:302011-01-06T13:46:28.182+05:30@इसके लिए घृणा भी उतनी ही आवश्यक है, जितना प्रेम। ...@इसके लिए घृणा भी उतनी ही आवश्यक है, जितना प्रेम। <br /><br />नीरज, तुमसे कहीं न कहीं सहमत हूँ कि घृणा बेचारगी से उपजती है ........... <br />लेकिन घृणा ही क्रोध को अग्नि भी प्रदान करती है..... और अंतर में उपजा क्रोध ही किसी दिन विस्फोट बनता है.दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-82296509807790867232011-01-06T12:49:51.558+05:302011-01-06T12:49:51.558+05:30मेरे बारे में मैंने लिखा है कि 'I hate miserie...मेरे बारे में मैंने लिखा है कि 'I hate miseries, and miserable people.' <br />ये घृणा दरअसल अपनी बेचारगी से उपजती है | जब सब कुछ जानने के बावजूद कुछ नहीं कर पाते हैं तो क्रोध भी खो जाता है | तब घृणा अस्तित्व में आती हैं | कल बहुत कुछ लिखना चाहता था , लेकिन सिर्फ भाड़ में जाओ भगवान् लिखकर बैठ गया | आज भी वही वितृष्णा है | नफरत मेरे पास भी बहुत है , और समाज को लेकर गुस्सा आख़िरकार खुद पर सिमट जाता है | बहुत सारे सेलेक्टिव हल्लाबोल वालों को जवाब देने का भी बहुत मन करता है, लेकिन उनमे अपना ही अक्स दिखने लगता है इसलिए पोस्ट अ कमेन्ट के बाद बिना कुछ लिखे विंडो बंद कर देता हूँ | <br /><br />गिरिजेश , इसे तुम एक घमंड की तरह लो | गर्व करो, हम लोगों को भगवान् ने लिखने का हुनर दिया है | साथ ही एक जिम्मेदारी भी है , ये बताने की कि दुनिया अभी भी बेहद खूबसूरत है | सरकार को, समाज को, खुद को गाली देने के लिए बहुत सारे लोग हैं | लेकिन सच बताऊँ , इन्सान बदल जाए, सरकार बदल जाए, समाज बदल जाए , प्रकृति नहीं बदलती | हाथ काटोगे तो खून निकलेगा ही | बुद्धिजीवियों को विचारों से संसर्ग करने दो , जनता को अत्याचार सहने और करने दो , सेलेक्टिव आक्रोश को घुमड़ने दो , आखिर में जीतेगा वही जो प्रकृति है, जो सत्य है |Neerajhttps://www.blogger.com/profile/11989753569572980410noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-52153164959952888192011-01-06T11:54:16.734+05:302011-01-06T11:54:16.734+05:30एक कवि की पंक्तियाँ याद आ रही हैं-
लपक चाटते जूठन...एक कवि की पंक्तियाँ याद आ रही हैं-<br /><br />लपक चाटते जूठन देखा जिस दिन मैने नर को<br />सोचा उस दिन आग लगा दूँ क्यों न इस दुनिया भर को...सोमेश सक्सेना https://www.blogger.com/profile/02334498143436997924noreply@blogger.com