tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post2439681823879203787..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: स्त्री पाठ और बन्द द्वार गिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-17320159034479571092013-07-04T09:15:16.941+05:302013-07-04T09:15:16.941+05:30मृत्युसर्वहरश्चाहम ...
साहस, त्याग और ... और बोध...मृत्युसर्वहरश्चाहम ... <br />साहस, त्याग और ... और बोध! सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं ... नाहीं शूरजो नाहीं ज्योति ... <br />Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-68968685334192760582012-12-24T23:49:39.914+05:302012-12-24T23:49:39.914+05:30@"उस दृश्य की कल्पना से ही सिहर उठता हूँ जब ब...@"उस दृश्य की कल्पना से ही सिहर उठता हूँ जब बुद्ध जैसे व्यक्ति ने संघ के ऐसे नियम बनाये होंगे - स्त्री कितनी भी वरिष्ठ क्यों न हो, पुरुष भिक्षु से दोयम होगी। वह उसके स्वागत में उठेगी, उसे नमस्कार करेगी।"............यह तो बड़े विशद अध्ययन और चिन्तन का विषय है. बुद्ध ही क्यों ! कबीर जैसे लोगों ने भी वही बात दुहरायी है. <br /><br />हो सकता है कि कुछ आध्यात्मिक उपलब्धियों के परिपेक्ष्य में व्यक्तिगत स्तर पर कोई अनुभूति/विचार/व्यवहार/ज्ञान बिम्ब/संवेदना बिम्ब यदि सहज स्फूर्त , स्वभाविक होता हो तो वही समूह के स्तर पर जाकर बाहर से थोपा हुआ , आरोपित हो जाता हो ! चूकि समूह को भी उसी प्रकार की आध्यात्मिक उपलब्धि पाना है जिसे व्यक्ति विशेष ने पाया है ,ऐसी स्थिति में व्यक्ति विशेष की मौलिक और नित्तान्त अद्वितिय विचार /अनुभूति/ प्रवृत्ति क्रमों को एक सूखे हुये नियम के स्वरूप में समूह पर फेंक दिया जाता है या यूं कहें कि फेंकना पड़ता है , कोई उपाय नहीं है . और शायद यहीं समस्या खड़ी होती है. <br /><br />अभिषेक आर्जवhttps://www.blogger.com/profile/12169006209532181466noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-45506006054499532002012-12-01T08:51:25.634+05:302012-12-01T08:51:25.634+05:30पाथेयपाथेयसिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-36565306984348796772012-11-26T20:07:29.098+05:302012-11-26T20:07:29.098+05:30कविता आज पढ़ी और उत्तर भी...सच.....कैसा ईश्वर है य...कविता आज पढ़ी और उत्तर भी...सच.....कैसा ईश्वर है यह?...पुरुष ही होगा ईश्वर भी.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-29877706878293896652012-11-24T22:05:43.301+05:302012-11-24T22:05:43.301+05:30हाँ अनुभव के साथ विवाद तो आते ही हैं!
कहानी वाद व...हाँ अनुभव के साथ विवाद तो आते ही हैं! <br />कहानी वाद विवाद के लिये है भी नहीं, एक अंतर्दृष्टि की लहरों को कथा के माध्यम में संघनित करने के लिये है। <br />गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-78642181431940480022012-11-24T21:10:31.424+05:302012-11-24T21:10:31.424+05:30.
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आप स्त्री के सृजन कह रहे हैं और मैं 'स्त....<br />.<br />.<br />आप स्त्री के सृजन कह रहे हैं और मैं 'स्त्री की बुद्धि के'... वह 'हर हाल में' अपने मृत पुत्र को जीवित चाहती है... महात्मा का भयभीत होना लाजिमी है... बुद्ध ने संघ के नियम बनाते समय अगर यह नियम दिया कि 'स्त्री कितनी भी वरिष्ठ क्यों न हो, पुरुष भिक्षु से दोयम होगी। वह उसके स्वागत में उठेगी, उसे नमस्कार करेगी। सिर नीचे कर उससे बात करेगी...' तो कुछ वजह जरूर रही होगी, आखिर 'बुद्ध' थे वह... संतान मोह, घर-परिवार मोह और भी जाने कितने मोह ज्यादातर मामलों में ज्यादातर स्त्रियों की वस्तुनिष्ठ निर्णय व व्यवहार करने की क्षमता खत्म कर देते हैं, अभी तक की बयालीस साला जिंदगी का यह तजुर्बा है मेरा... जाने दीजिये, अब मैं विवादास्पद टेरिटरी में जा रहा हूँ...<br /><br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-26170687514052355552012-11-24T20:58:54.357+05:302012-11-24T20:58:54.357+05:30:) नहीं, वह नया गृह और गृही दोनों उस स्त्री के सृज...:) नहीं, वह नया गृह और गृही दोनों उस स्त्री के सृजन हैं। बोधकथा सी कहानी में एक अदृश्य लहरी वाक्यों के साथ है। ऐसा कतिपय पुरानी गल्प/लोक कथाओं में भी पाया जाता है - अमूर्त से मूर्त की ओर। थोड़ी सूक्ष्म पहचान चाहिये- निरी बुद्धि से परे!<br />स्त्री से महात्मा यूँ ही भयभीत नहीं! <br /><br /> <br /> गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-20795592540825611562012-11-24T20:34:28.977+05:302012-11-24T20:34:28.977+05:30.
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बुद्धि की सीमा होती है चाहे वह बोधि प्राप्त ....<br />.<br />.<br /><b>बुद्धि की सीमा होती है चाहे वह बोधि प्राप्त जन की ही क्यों न हो!</b><br /><br />नहीं, बुद्धि की कोई सीमा नहीं होती, तभी तो वह वह नया कपाटविहीन कुटीर और वह गृही बना देती है जहाँ मृत्यु का कोई काम नहीं... महात्मा को तो हारना ही पड़ेगा बुद्धि के आगे... वह मृत्यु को भी हरा सकती है...<br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-85922023080445750532012-11-24T18:49:05.135+05:302012-11-24T18:49:05.135+05:30हाँ, शिष्य अधिक 'मनुष्य' है।हाँ, शिष्य अधिक 'मनुष्य' है। <br />गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-2224516279220352482012-11-24T18:40:24.140+05:302012-11-24T18:40:24.140+05:30नहीं, बन्द नहीं हैं।
ऐसा तो वह महात्मा कह रहा है।...नहीं, बन्द नहीं हैं। <br />ऐसा तो वह महात्मा कह रहा है। कथा द्वारा इस तथ्य को रेखांकित बस किया गया है कि तमाम ज्ञान के होते हुये भी गहरे अंतर्मन में दबे भय और असुरक्षा भाव कैसे व्यक्ति को अनजाने ही धूर्तता पर उतारू कर देते हैं।<br /> स्त्री माँ है। प्रकृति ने उसे विशिष्ट अवदानों से जन्मना अलंकृत कर रखा है जो उसके व्यक्तित्त्व और व्यवहार दोनों में परिलक्षित होते हैं। उन्हें समझने के बजाय सभी पुराने पंथों में उसे न्यूनाधिक दोषी करार दे एक आसान राह चुन ली गयी। हजारो वर्षों तक इस राह चलते समाज का जो रूप बना उसमें कई बहुत ही स्पष्ट विकार हैं। उनकी पहचान के लिये मैं प्राय: व्यवस्था के मूल तक जाता हूँ जो कि पुरुष द्वारा पुरुष के लिये सृजित है। <br /> आश्चर्य होता है कि स्त्री ने अपने लिये ऐसा कुछ नहीं गढ़ा। एक भी स्त्री दूत या पैगम्बर नहीं! देवियाँ भी पुरुष व्यवस्था की सर्जना!! स्त्री विभूतियाँ भी व्यवस्था के भीतर रहते हुये ही विद्रोह के स्वर फूँकती - फिस्स! कहीं ऐसा तो नहीं कि 'माँ' इतनी स्वार्थी हो ही नहीं सकती कि अपने लिये अपना ईश्वर गढ़े? लेकिन हजारो वर्षों से व्यवस्था की शिकार स्त्री द्वारा अपने लिये कुछ न करना भी तो अप्राकृतिक लगता है! <br /> समझने की मेरी यह यात्रा पता नहीं कहाँ समाप्त होगी, कब समाप्त होगी? स्थापित विचारों या वादों से मैं संतुष्ट नहीं। कुछ है जो छूटता गया है, जा रहा है| स्त्रीवाद या ऐसा कोई प्रतिरोध मुझे प्रतिक्रियावादी दिखता है, उतना ही हिंसक। परिवर्तन बहुत धीमे हैं। हर बीस वर्ष में संसार नया होता जा रहा है जब कि ... <br />...इस पर जाने कितना लिख सकता हूँ लेकिन उससे भी क्या हासिल? मैं तो उस दृश्य की कल्पना से ही सिहर उठता हूँ जब बुद्ध जैसे व्यक्ति ने संघ के ऐसे नियम बनाये होंगे - स्त्री कितनी भी वरिष्ठ क्यों न हो, पुरुष भिक्षु से दोयम होगी। वह उसके स्वागत में उठेगी, उसे नमस्कार करेगी। सिर नीचे कर उससे बात करेगी...क्या है यह सब? पुरुष अपने से इतना डरा हुआ क्यों है? कैसी मुक्ति की अभिलाषा है यह? कैसा ईश्वर है यह? ... <br />सम्भवत: आप ने मेरी यह कविता नहीं पढ़ी! <br />http://kavita-vihangam.blogspot.in/2012/11/blog-post_8800.htmlगिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-69413378190063350432012-11-24T17:19:31.874+05:302012-11-24T17:19:31.874+05:30बुद्धि और समझ की ही सीमा हो सकती है।
बुद्धि और समझ की ही सीमा हो सकती है।<br />संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-62383615472046366692012-11-24T16:42:17.857+05:302012-11-24T16:42:17.857+05:30स्त्री के लिए स्वर्ग का द्वार क्यूँ बंद है?क्या उस...स्त्री के लिए स्वर्ग का द्वार क्यूँ बंद है?क्या उस विधवा ने पुनर्विवाह किया इसलिए?Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-82117418964365228662012-11-24T14:31:28.855+05:302012-11-24T14:31:28.855+05:30jeevan satya ke darshan karati khoobsurat rachna.....jeevan satya ke darshan karati khoobsurat rachna..<br />kavita vermahttps://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-87776167818603974682012-11-24T11:32:35.108+05:302012-11-24T11:32:35.108+05:30:) :):) :)Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-84050453240674995162012-11-24T10:28:59.594+05:302012-11-24T10:28:59.594+05:30 बढिया रचना बढिया रचनाtravel ufohttps://www.blogger.com/profile/15497528924349586702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-88666634212536477332012-11-24T10:05:03.596+05:302012-11-24T10:05:03.596+05:30हम्म!
हम्म!<br />गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-49193036325185838752012-11-24T10:04:19.012+05:302012-11-24T10:04:19.012+05:30आप धन्य हैं!
आप धन्य हैं! <br />गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-90720113567994138862012-11-24T09:47:32.732+05:302012-11-24T09:47:32.732+05:30शाश्वत सत्यों से क्यों जूझना..विजय तो जीवन पर हो, ...शाश्वत सत्यों से क्यों जूझना..विजय तो जीवन पर हो, मृत्यु पर नहीं..प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-35204398520782856932012-11-24T09:34:03.345+05:302012-11-24T09:34:03.345+05:30vaise - yadi ve sach hi ve rahe hote jinhone asal ...vaise - yadi ve sach hi ve rahe hote jinhone asal me yah kahaa thaa - to jila bhi dete , unme shakti thee shayad ...<br /><br />- jinhone kahaa thaa - ve jaante the ki koi kapat nahi hai aisaa.....Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-63996807480944461632012-11-24T09:31:53.606+05:302012-11-24T09:31:53.606+05:30abhaar abhaar Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-21341262887811415802012-11-24T09:25:04.741+05:302012-11-24T09:25:04.741+05:30हाँ, सौगात यहाँ सटीक बैठता है...
:)
धन्यवादहाँ, सौगात यहाँ सटीक बैठता है...<br /><br />:)<br /><br />धन्यवादLalithttps://www.blogger.com/profile/07381473297376142200noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-24746371804144595182012-11-24T09:22:53.456+05:302012-11-24T09:22:53.456+05:30"बुद्धि की सीमा होती है चाहे वह बोधि प्राप्त ..."बुद्धि की सीमा होती है चाहे वह बोधि प्राप्त जन की ही क्यों न हो?"<br /><br />...सत्य कथन।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-34597599987436424152012-11-24T08:38:37.437+05:302012-11-24T08:38:37.437+05:30(1) ले जा ले जा। लेजा
:)
(2) सौगात (1) ले जा ले जा। लेजा<br /> :)<br />(2) सौगात गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-68391656039230480482012-11-24T07:39:13.493+05:302012-11-24T07:39:13.493+05:30बोध कथा एक नये दृष्टिकोण के साथ... आज का टेक अवे-&...बोध कथा एक नये दृष्टिकोण के साथ... आज का टेक अवे-"बुद्धि की सीमा होती है चाहे वह बोधि प्राप्त जन की ही क्यों न हो?"<br /><br /><br />सादर<br /><br />ललित.<br /><br />टेक अवे का हिन्दी रूपांतर क्या होगा भैया जी...Lalithttps://www.blogger.com/profile/07381473297376142200noreply@blogger.com