tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post2719006894397679143..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: दूसरा दिन : बाउ मण्डली और बारात एक हजारगिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-46179248942217646372010-12-03T20:36:54.901+05:302010-12-03T20:36:54.901+05:30भगवान आपकी लेखनी को अपार शक्ति देभगवान आपकी लेखनी को अपार शक्ति देदीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-74219315488436842802009-08-02T16:56:20.859+05:302009-08-02T16:56:20.859+05:30फुरसत से पढने का आनंद ले रहा हूँ। परबतिया वाले पोस...फुरसत से पढने का आनंद ले रहा हूँ। परबतिया वाले पोस्ट के बाद आज पिछले सभी पोस्टें पढी और हर पोस्ट अद्भुत लेखन को प्रस्तुत कर रही है। कहीं कहीं फणीश्वरनाथ रेणु जी का मैला आंचल भी झलक आया है। <br /><br /> सशक्त लेखन और उम्दा शैली। <br /><br />बहुत खूब। इंतजार है, अगली कडी का।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-66897238135216831122009-08-02T08:59:09.981+05:302009-08-02T08:59:09.981+05:30यह किश्त भी आशा के अनरूप बेहतरीन रही। सुद्धन क्या ...यह किश्त भी आशा के अनरूप बेहतरीन रही। सुद्धन क्या करता है, यह जानने की उत्कंठा बनी हुई है।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttps://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-15433972677908573872009-08-01T22:45:01.967+05:302009-08-01T22:45:01.967+05:30अद्भुत लेखन । शानदार किस्सागोई । अगली कड़ी का बेसब्...अद्भुत लेखन । शानदार किस्सागोई । अगली कड़ी का बेसब्री से इंतजार है ।K M Mishrahttp://kmmishra.tknoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-68752549160849336352009-07-31T07:45:05.813+05:302009-07-31T07:45:05.813+05:30"ऐसे माहौल में विरुद्ध वीणा वादन! सुद्धन का क..."<b>ऐसे माहौल में विरुद्ध वीणा वादन! सुद्धन का काम अति कठिन था।</b>" <br />शिव तांडव स्तोत्र का जवाब क्या था यह जानने का बेसब्री से इंतज़ार है. लिखते रहिये! आपका लिखा पढने के बाद कौन कहेगा की टाइम मशीन नहीं होती है.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-65460995979335889372009-07-31T03:38:17.491+05:302009-07-31T03:38:17.491+05:30जितने स्पष्ट शब्दों में जितना चिल्ला के मन्त्र पढ़े...जितने स्पष्ट शब्दों में जितना चिल्ला के मन्त्र पढ़े उतना ही विद्वान् पंडित ! 'क्या पंडित था फलाने के बियाह में.' आगे देखते हैं बड़े रोचक मोड़ मप्र विराम लिया है आपने इस बार. अभी-अभी ध्यान आया सुरसतिया को परबतिया लिख गया :) पिछली टिपण्णी में !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-85319650867213965052009-07-30T18:09:35.132+05:302009-07-30T18:09:35.132+05:30बहुत ही उम्दा लिखा है .बहुत ही उम्दा लिखा है .डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-38735316306230461982009-07-30T16:38:35.237+05:302009-07-30T16:38:35.237+05:30कमाल है! और क्या कहें। कुछ और बन ही न रहा कहते!कमाल है! और क्या कहें। कुछ और बन ही न रहा कहते!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-86506168040105190522009-07-30T09:15:40.208+05:302009-07-30T09:15:40.208+05:30एकदम से विस्मय विमुग्ध । इस ललित लेखन पर अपनी सारा...एकदम से विस्मय विमुग्ध । इस ललित लेखन पर अपनी सारा लिखा-पढ़ा न्यौछावर । <br /><br />लोक का छिपा लालित्य सामने आ रहा है, और घात-प्रतिघात में अन्तर्भूत जीवन्त चेतना भी । <br />जोह रहा हूँ अगली कड़ी की बाट.....Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-52405058168619069162009-07-30T08:09:10.363+05:302009-07-30T08:09:10.363+05:30आप मेरी उम्मीदों पर खरे ही नहीं उतर रहे हैं, बल्कि...आप मेरी उम्मीदों पर खरे ही नहीं उतर रहे हैं, बल्कि उससे बहुत-बहुत आगे भी निकल रहे हैं। बचपन में अपने क्षेत्र की बारातों में आयोजित शिष्टाचार कार्यक्रम में मै भी बहुत से श्लोक रटकर अर्थ सहित सुनाया कराता था। वाह-वाही के साथ कुछ रुपये भी ईनाम मिल जाते थे। एक तो आज भी याद है-<br /><br />कोयम् द्वारिः हरिः प्रयाह्युपवनम् शाखामृगस्यात्रकिम्।<br />कृष्णोऽहम् दयिते विभेमिसुतराम् कृष्णादयात् वानरात्॥<br />राधेऽहं मधुसूदनो, ब्रजलताम् तामेव पुष्पान्वितान्।<br />इत्थं निर्वचनीकृतो दयितये, हृणो हरिः पातु वः॥सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-8108421284592494292009-07-30T06:52:35.753+05:302009-07-30T06:52:35.753+05:30अद्भुत ! और यह है ब्लॉग साहित्य !अद्भुत ! और यह है ब्लॉग साहित्य !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com