tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post4787276161708414744..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: बंगलुरू में गीतांजलिगिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-9629266934280670722012-05-05T00:31:28.219+05:302012-05-05T00:31:28.219+05:30जो कुछ भी ह्रदय तक सात्विकता पहुंचाए , पवित्र, वन्...जो कुछ भी ह्रदय तक सात्विकता पहुंचाए , पवित्र, वन्दनीय, ग्रहणीय है..<br /><br />कला का महत उद्देश्य यह प्राप्त करा पूर्ण होता है...फिर कुछ कहने सुनने की स्थिति नहीं बचती...स्थान नहीं बचता...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-72756288260380738952012-05-04T23:21:37.487+05:302012-05-04T23:21:37.487+05:30वाह!वाह!Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-60439574004438927962012-05-03T14:34:26.894+05:302012-05-03T14:34:26.894+05:30टीप और प्रतिटीपो ने पोस्ट की सर्थिकता सिद्ध कर दी....टीप और प्रतिटीपो ने पोस्ट की सर्थिकता सिद्ध कर दी... सभी का आभार.दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-27252613950512644122012-05-02T16:01:56.858+05:302012-05-02T16:01:56.858+05:30रंजना जी को दिए प्रत्युत्तर से बाग-बाग हूँ!
"...रंजना जी को दिए प्रत्युत्तर से बाग-बाग हूँ! <br />"तन निर्मलता का यत्न सदा सर्वदा करूँगा जीवन धन<br />जानता हमारे अंगो पर प्रियतम तेरा जीवित स्पंदन।"<br /><a href="http://ramyantar.blogspot.in/2009/02/blog-post_13.html" rel="nofollow">तेरा जीवित स्पंदन...</a>Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-72951537993581130382012-05-01T23:26:24.363+05:302012-05-01T23:26:24.363+05:30अबूझ ही है रंजना जी! लालबाग में फुलाये वृक्ष के सा...अबूझ ही है रंजना जी! लालबाग में फुलाये वृक्ष के सामने जिन अनुभूतियों को कुछ क्षण जिया, बयाँ नहीं कर सकता। किसी को आज लिखा कि बहुत लम्बा लिखने चला था और रवि बाबू से दो पंक्तियाँ उधार ले काम चलाना पड़ा! <br />बीस वर्ष पहले यह कलाकृति देखी थी - लाइब्रेरी में एक अकेले का अकेला दिन। उस दौरान गीतांजलि पहली बार पढ़ रहा था। देखा और कुछ हुआ। उसी दिन कवि गोपाल की यह पंक्ति भी पढ़ी थी - मनुष्य ईश्वर का विधाता है। सब अबूझ! अस्पष्ट किंतु आनन्दमयी पवित्र सी अनुभूतियाँ... इतने दिनों बाद इन फूलों के आगे बहुत कुछ समझ में आया। नेट पर पैस्टोरल सिम्फनी ढूँढ़ते लिंक दर लिंक इस कलाकृति पर पहुँचा, वह भी पोस्ट लिखने के पाँच मिनट पहले!... ऐसे जाने कितने क्षण अभी भी जीवित हैं। ये कुछ अभिव्यक्त हो गये या सम्भवत: अभी भी नहीं!...पता नहीं क्या क्या बके जा रहा हूँ।...इतना कहूँगा कि ऐसी कला मेरी सूझ से बहुत आगे जाती है। एक क्षण को थिर किया है चित्रकार ने! पानी में पैर की परछाई देखिए, पवित्रता स्नान को चली है - अनिल के साथ उछ्लते कूदते, त्रिभंगी हो एक पुहुप का गन्धस्पर्श करते - सुबह की पहली किरण!गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-11816789231377910572012-05-01T23:04:42.755+05:302012-05-01T23:04:42.755+05:30चित्रकार - अडल्फ विलियम वूगो
वर्ष - 1881
शीर्षक - ...चित्रकार - अडल्फ विलियम वूगो<br />वर्ष - 1881<br />शीर्षक - पहली किरणगिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-37012128269283292562012-05-01T20:34:08.717+05:302012-05-01T20:34:08.717+05:30अद्भुत!अद्भुत!देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-49012584155701594312012-05-01T20:10:36.812+05:302012-05-01T20:10:36.812+05:30एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ जिगर
एक शीशा है कि...एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ जिगर <br />एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूं मैं !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-11248753803448864892012-05-01T17:18:01.828+05:302012-05-01T17:18:01.828+05:30अद्भुत साम्य!!अद्भुत साम्य!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-34398000236517683192012-05-01T12:53:09.902+05:302012-05-01T12:53:09.902+05:30श्रृष्टि को जो अनावृत हो प्राण देती है और आवरण में...श्रृष्टि को जो अनावृत हो प्राण देती है और आवरण में स्वयं को ढांप लेने को आतुर हो जाती है, उसे वही वैसे ही स्थिर हो रस विस्तार को लोग बाध्य करते हैं..<br /><br />कला का यह अभीष्ट अबूझ है...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-73348655464954795782012-05-01T12:28:42.606+05:302012-05-01T12:28:42.606+05:30आलौकिक सौंदर्य ......आलौकिक सौंदर्य ......दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-62866358579367818732012-05-01T11:34:32.199+05:302012-05-01T11:34:32.199+05:30उस धन्य चित्रकार का नाम भी तो बताते! गीतांजलि और य...उस धन्य चित्रकार का नाम भी तो बताते! गीतांजलि और यह सौंदर्य -दुगुन सिनर्जी रस है भाई! निष्कलंकित स्निग्ध सौन्दर्य!Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-50177365638373253232012-05-01T09:13:18.823+05:302012-05-01T09:13:18.823+05:30प्रकृति अंग सब मिल कर अपना अर्थ दिखाते हैं,
खिल जा...प्रकृति अंग सब मिल कर अपना अर्थ दिखाते हैं,<br />खिल जाने की इच्छा, रह रह, छिप छिप जाते हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com