tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post5288849816766740705..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: बाउ मंडली और बारात एक हजार- पहला दिन -2 (लंठ महाचर्चा)गिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-20534377227843189602009-07-29T17:21:57.967+05:302009-07-29T17:21:57.967+05:30शानदार लेखन । वाकई में ब्लाग पर साहित्य रचा जा रहा...शानदार लेखन । वाकई में ब्लाग पर साहित्य रचा जा रहा है । अगले अंक का बेसब्री से इंजतार है ।K M Mishrahttp://kmmishra.tknoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-75742101506385149432009-07-24T12:42:39.684+05:302009-07-24T12:42:39.684+05:30आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
सचमुच म...आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला। <br />सचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। बहुत सुन्दरता पूर्ण ढंग से भावनाओं का सजीव चित्रण... आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे, बधाई स्वीकारें।<br />…लेकिन मुझे भी माफ करिएगा… “…प्यार और खता वगैरह बहुत पुराने हो चुके हैं और घिस चुके हैं…” मैं आप के इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं हूँ. क्योकि चाहे भले ही अब तक लाखों, करोडों लोगों ने प्यार किया हो, तो भी प्यार कभी पुराना नहीं हुआ है. वह तो आज भी उतना ही तरोताजा और जिंदादिल है..... ज़रुरत है तो बस उसे महसूस करने की. और यदि अगर प्यार में नयापन अब भी मौजूद है तो फिर उससे सम्बंधित विचार, साहित्य और रचनाएं कैसे पुरानी हो गयीं.<br /><br />आप मेरे ब्लॉग पर आये और एक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया दिया…. शुक्रिया. <br />आशा है आप इसी तरह सदैव स्नेह बनाएं रखेगें…. <br /><br />आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...Dr. Ravi Srivastavahttps://www.blogger.com/profile/01554958844857557918noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-84593527530154622762009-07-23T12:25:36.936+05:302009-07-23T12:25:36.936+05:30अपनी उम्र ज्यादा तो नहीं हुई पर जांता चलते हुए देख...अपनी उम्र ज्यादा तो नहीं हुई पर जांता चलते हुए देखा है अभी भी एक भारी सा पड़ा हुआ है घर के पिछुवारी. गंगेश जी को अठारहवी शताब्दी का लग रहा है हमें १०-१५ साल पहले की... यूँ तो आज भी परिवेश कुछ ज्यादा बदला नहीं है. ऐसा जीवंत है की पूछिए मत. झूठी प्रसंशा नहीं है. और एक अनुरोध है कम टिपण्णी आये तो इस श्रृंखला को बंद मत कीजियेगा... कुछ पोस्ट का महत्तव टिपण्णी गणना से ऊपर होना चाहिए. वैसे ये छप कब रहा है?Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-18176537893659723742009-07-22T12:51:04.910+05:302009-07-22T12:51:04.910+05:30पढने के बाद कुछ यूँ लग रहा है जैसे कि १८ वीं शताब्...पढने के बाद कुछ यूँ लग रहा है जैसे कि १८ वीं शताब्दी के उपन्यासों के चरित्र सामने आ गए हों. और लंठ महाधिराज बाऊ का चरित्र तो हेनरी फील्डिंग के उपन्यासों के पिकारो चरित्रों की याद दिलाता है. जारी रखें. वनस्पति शास्त्र पर लगाव कुछ कम होता लग रहा है क्यूँ की प्रोफाइल पर नयी वनस्पतियों के चित्र कम आ रहे हैं. इसे भी जारी रखें क्यूँ की इस से बहुत कुछ सीखने को मिलता है.गंगेश रावhttps://www.blogger.com/profile/10791109109633152718noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-47167109531564063352009-07-22T07:28:54.275+05:302009-07-22T07:28:54.275+05:30एक सांस में पढ़ गए। अगली खेप का इंतजार है।एक सांस में पढ़ गए। अगली खेप का इंतजार है।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttps://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com