tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post5528844167648503665..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: पुरानी डायरी से - 5 : धूप बहुत तेज है।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-78981200405876118642009-10-31T19:42:05.232+05:302009-10-31T19:42:05.232+05:30अगर सोलर एनेर्जी से एसी का काम करने वाले कपडे और ट...अगर सोलर एनेर्जी से एसी का काम करने वाले कपडे और टोपी बना दिए जाएँ तो अपने उत्तर भारत की गर्मी का सदुपयोग हो नहीं? पता नहीं कहाँ से ये दिमाग में आया :) एक पकाऊ सोच वाला इंसान ही कहेंगे अगर ऐसी बातें दिमाग में आई हो तो?Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-91429033007354965542009-10-30T22:18:55.191+05:302009-10-30T22:18:55.191+05:30Kya ab bhi aap ko dhoop tej lagati hai? Pata nahi ...Kya ab bhi aap ko dhoop tej lagati hai? Pata nahi ya fir pata ho ki jiske liye ye lines likhi gayee voo ise ab padhegi yaa nahi?rajivhttps://www.blogger.com/profile/10917588871855963207noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-38985085406168769812009-10-30T21:17:44.273+05:302009-10-30T21:17:44.273+05:30कहां यह और कहां वह बहुत पहले सुना टिटिलेटिंग गाना ...कहां यह और कहां वह बहुत पहले सुना टिटिलेटिंग गाना - धूप में न निकला करो ओ गोरिये; कि गोरा रंग काला पड़ जायेगा। पांवों में छाला पड़ जायेगा।<br />स्मृति कहां से कहां ले जाती है?Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-10378320389719635152009-10-30T08:38:29.626+05:302009-10-30T08:38:29.626+05:30वर्डप्रेस से आयातित
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पुरानी डायरी...वर्डप्रेस से आयातित<br />________________<br /><br />पुरानी डायरी ने चुरा ली धूप की गर्मिया ...या ...नर्मियां ...!!vani geethttp://vanigyan.blogspot.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-26782718940887577462009-10-30T06:34:12.645+05:302009-10-30T06:34:12.645+05:30इतने विमर्श के बाद भी 'जल जायेगा' नही हुआ ...इतने विमर्श के बाद भी 'जल जायेगा' नही हुआ जाने दो जब जल जायेगा तब देखेंगे । भैया इस रचना के लिये जून तक नही रुक सकते थे । अभी रुको हम अपनी किताब " गुनगुनी धूप मे बैठकर" से कविता सुनाते है। डायरी मे तो खैर..... ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-85872001699084163432009-10-29T21:52:09.751+05:302009-10-29T21:52:09.751+05:30@गिरिजेश जी - आप असंतुष्ट हैं, तब किसने कहा की हम ...@गिरिजेश जी - आप असंतुष्ट हैं, तब किसने कहा की हम संतुष्ट हैं बंधू? हमारे जैसे कई और असंतुष्ट होंगे धरा पर. सच कहूँ तब असंतुष्टों की संख्या बढ़ती देख कर संतुष्टि हो रही है.<br />...एक बात और<i><b> समय</b></i> से आपके संवाद अच्छे लगते हैं :-)L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-54056116328519943902009-10-29T20:16:08.023+05:302009-10-29T20:16:08.023+05:30@ सिद्धार्थ जी - बीस साल पहले भी कभी कभी मैं पुरनि...@ सिद्धार्थ जी - बीस साल पहले भी कभी कभी मैं पुरनियों की तरह सोचता था ...<br /><br />सख़्त एतराज दर्ज करें भइया...! ये ‘जी’ अच्छा नहीं लगा। ...वैसे बहकने में कोई हर्ज नहीं है। वो भी आप अच्छा ही करेंगे। कितने तो बहुत बुरा बहक रहे हैं।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-91585363695911735832009-10-29T19:23:15.858+05:302009-10-29T19:23:15.858+05:30AAPKI DAIRI KE PANNE AAJ BHI UTNE HI CHAMAKDAAR HA...AAPKI DAIRI KE PANNE AAJ BHI UTNE HI CHAMAKDAAR HAIN JITNA BEES SAAL PAHLE THE ... VO DHOOP AAJ BHI KHILI HUYEE HAI JO PAHLE THEE ... BAS AB YE JALAANE LAGI HAI ... BAHOOT HI KHOOBSOORAT RACHNA ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-45473215950959940592009-10-29T14:42:50.771+05:302009-10-29T14:42:50.771+05:30"तेरी शरीर जल जाएगी इन सड़कों पर । "
ठीक..."तेरी शरीर जल जाएगी इन सड़कों पर । "<br />ठीक तो है यह फिर भी इतना विनम्र और पांडित्यपूर्ण जवाब ? <br />मैंने कहा होता तो चिकोटी काट लिए होते और भोजपुरिया बतियाते ! <br />जेंडर मानसिकता हाय हाय !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-4245284014859062142009-10-29T14:37:37.613+05:302009-10-29T14:37:37.613+05:30तो अब जायं फिर कहाँ आखिर -अब तो कोई भी नहीं रहा हा...तो अब जायं फिर कहाँ आखिर -अब तो कोई भी नहीं रहा हाथ सर पर फेरने को !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-78639608783307235432009-10-29T14:21:18.562+05:302009-10-29T14:21:18.562+05:30अद्भुत कविता है ...शीर्षक पढ़कर खीचा चला आया ....न...अद्भुत कविता है ...शीर्षक पढ़कर खीचा चला आया ....निराश नहीं हुआ ..डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-69818281130222179362009-10-29T08:08:28.549+05:302009-10-29T08:08:28.549+05:30धूप और निर्जन गलियों की कविताएं मुझे हमेशा आकर्षित...धूप और निर्जन गलियों की कविताएं मुझे हमेशा आकर्षित करती हैं, ये भी एक सुंदर कविता है. आपने इतनी बड़ी सोच उस समय पा ली जब मैं स्नातक हो कर दुनिया बदलने का ख्वाब देख करता था इसी धूप के साथ और कभी इस स्तर की कविता नहीं कह पाया फिर जब बादशाह से नौकर हुआ तब एक शेर सुना था अभी भी याद है टूटा फूटा ...<br />इतनी कड़ी है धूप, पत्तों पे आज कल<br />चढ़ता नहीं है रंग ज़र्द के सिवा<br />आपका आभार.के सी https://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-77143525563160657482009-10-29T07:13:06.557+05:302009-10-29T07:13:06.557+05:30बहुत खूब! आपकी बात सुनकर अपनी डायरी से दो पंक्तिया...बहुत खूब! आपकी बात सुनकर अपनी डायरी से दो पंक्तियाँ याद आ गयीं. मुझे पूरक सी लगीं, शायद न भी हों:<br /><b>तू मेरे प्यार के सूरज की तपिश से मत डर<br />मैं तेरे साथ हूँ जानम भरा बादल बन कर</b>Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-66671955228669186102009-10-29T06:47:12.103+05:302009-10-29T06:47:12.103+05:30@ गौर जी - क्या बात कह दी ! आगे के वर्षों में जब द...@ गौर जी - क्या बात कह दी ! आगे के वर्षों में जब दृष्टि साफ होती चली गई तो पाया कि समस्याएँ तो सनातन हैं - मनुष्य जैसी ही। मिश्र के पिरामिडों से मिले आलेखों में भी खराब होते ज़माने का जिक्र है। ..कल इसे प्रकाशित करते बहुत सी बातें मन में घूम रही थीं . . सोचा कर ही देते हैं। <br /><br />@ लवली जी - धन्यवाद टोकारी के लिए। मुझे भी खटका था लेकिन एक ऐतिहासिक[दिल को बहलाने का अच्छा ख्याल, ;) हम भी विशिष्ट जन हैं] द्स्तावेज से छेड़खानी करना ठीक नहीं समझा। <br /><br />मैंने लिखा है कि कुछ पंक्तियाँ दूसरी कविता से ली गई थीं। वास्तव में यह एकदम भी सच नहीं है - शब्द और भावों की साम्यता तो थी लेकिन परिवेश और प्रयोग एकदम जुदा - कुछ कुछ ऐसा जैसे कि रवि कुमार रावतभाटा की कविता पर टिप्पणी से कविता उपजे, वर्तिका नन्दा की कविता के शब्द ले नई कविता रच जाय या किसी और कविता की भावभूमि से प्रार्थना फूट पड़े। आदत उस समय भी खराब थी :)<br />संतुष्टि की अच्छी कही। एक असंतुष्ट व्यक्ति की पंक्तियाँ इतनी कारगर हैं! भई वाह, कहते हैं कि रचना प्रकाशित हो जाने पर रचयिता की नहीं रह जाती - जाने कितने आयाम हैं इस कथन में!<br /><br />@ सिद्धार्थ जी - बीस साल पहले भी कभी कभी मैं पुरनियों की तरह सोचता था ;) पिताजी ज्ञानवृद्ध कह दिया करते थे। ..बाद में मैं बहुत खामोश होता चला गया - चिंतन और कथन दोनों के स्तर पर। अपनी क्षुद्रता और लघुता के अनुभव ने चुप रह कर सीखना सिखा दिया। आज भी यात्रा जारी है। .... कभी कभी अपने को बहुत अकेला पाता हूँ - असामाजिक सा। बहक रहा हूँ!..छोड़ो <br /><br />@मनोज जी - महोदय दो पंक्तियों में ही कितना कुछ कह दिया ! <br /><br />आभार सबको। इस कविता को पोस्ट करना सोद्देश्य था, हाँ बस अपने लिए।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-75209354944798656732009-10-29T01:33:07.332+05:302009-10-29T01:33:07.332+05:30ज़रा सी देर ठहर कर गुज़र गया सूरज
वह धूप है कि सुल...ज़रा सी देर ठहर कर गुज़र गया सूरज<br />वह धूप है कि सुलगता है सायबान मेरामनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-40360428886160582102009-10-28T22:44:42.697+05:302009-10-28T22:44:42.697+05:30......और हाँ यह कहना भूल गई आपकी कविताएँ पढ़कर अजी.........और हाँ यह कहना भूल गई आपकी कविताएँ पढ़कर अजीब सी संतुष्टि होती है.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-68170357215565419962009-10-28T22:43:11.378+05:302009-10-28T22:43:11.378+05:30सच में धूप बहुत तेज है। लेकिन हम फिर भी बाहर निकले...सच में धूप बहुत तेज है। लेकिन हम फिर भी बाहर निकलेंगे। इस धूप की तेजी में असीम ऊर्जा जो छिपी है। वह ऊर्जा ही इस सृष्टि को चला रही है। <br /><br />फिर थोड़ी गर्मी से परहेज कैसा?सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-56369477908501604692009-10-28T22:41:18.445+05:302009-10-28T22:41:18.445+05:30तेरी शरीर जल जाएगी
वाक्य सही है न?<b>तेरी शरीर जल जाएगी</b><br /><br />वाक्य सही है न?L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-44107183656248280002009-10-28T22:00:21.101+05:302009-10-28T22:00:21.101+05:30पुरानी नहीं है ये डायरी. बीस साल बाद भी धूप जलाती ...पुरानी नहीं है ये डायरी. बीस साल बाद भी धूप जलाती है और रोकती हमें धूमने से शहर में.Gaurhttps://www.blogger.com/profile/04715745266145575862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-3632328198764142712009-10-28T21:56:26.797+05:302009-10-28T21:56:26.797+05:30गुलाबी ठंड के इन दिनों में तेज धूप
दिखा गयी मौसम ...गुलाबी ठंड के इन दिनों में तेज धूप <br />दिखा गयी मौसम के बदलते रूप <br />बहुत खूब बहुत खूबपंकजhttps://www.blogger.com/profile/05230648047026512339noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-26421806091490551452009-10-28T20:46:34.770+05:302009-10-28T20:46:34.770+05:30हमने पढा सुना था कि ..जतने महान लेखक लोग होते हैं ...हमने पढा सुना था कि ..जतने महान लेखक लोग होते हैं ..बहुते कमाल की डायरी रखते हैं..आज पता चला कि ठीके कहते थे...धूप की गर्माईश तो मन मोह गयी ....अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.com