tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post6198446549817006153..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: दूसरे दिन की पूर्वपीठिका- बाउ मण्डली और बारात एक हजारगिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-29556143507176972442010-12-03T19:32:52.696+05:302010-12-03T19:32:52.696+05:30फिर तो दुर्बी दुलाम दुलक्षणम् भैंस चरे मसल्लमम्.
...फिर तो दुर्बी दुलाम दुलक्षणम् भैंस चरे मसल्लमम्. <br /><br />दरिद्रता का वैभव ???<br /><br />शत शत नमन आपकी लेखनी को ..........<br /><br />साथ हे पूर्वांचल की संस्कृति का ज्ञान करवा रहे हैं.दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-70023691399159333062009-07-31T02:46:33.763+05:302009-07-31T02:46:33.763+05:30शब्दों का ब्रैकेट में मतलब देकर आप हम जैसों को तो ...शब्दों का ब्रैकेट में मतलब देकर आप हम जैसों को तो और कन्फ्फ्युज कर देते हैं. फ्लो ही बिगड़ जाता है, वैसे जरूरी है यहाँ देना तो. पर बेहतर होगा फूटनोट दे दिया कीजिये. अब गुरहथी और खिरकी... हम तो सब समझते हैं जी. आपसे तो भोजपुरी में ही बात हुआ करेगी. बचपन में सुना था 'लिलवतिया के बियाह में पत्तल धोए के परी गइल रहे' आज परबतिया के बियाह में भी... हमें तो वास्तविक लगता है जी.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-9278272820902461292009-07-29T22:12:31.321+05:302009-07-29T22:12:31.321+05:30बारात के आने और जमने में ही इतना कहानी बना दिए तो ...बारात के आने और जमने में ही इतना कहानी बना दिए तो अभी दूसरे दिन की रस्में बताते-बताते तो आप एक किताब पूरी कर देंगे। जनवासे में कलेवा ले जाने का आइटम शायद छूट गया। अभी कन्यादान भी बाकी है। और कोहबर का पासा भी। सबेरे दतुअन-कुल्ला और नस्ता के बाद भोजन, दोपहर की नाच, शाम की सभा-शिष्टाचार, दूल्हे की बसियाउर व खिर-खवाइ, नचदेखवों का झगड़ा और गोलबन्दी। सुकुरिया आदा धकाधक के चक्कर में सिर-फुटौअल की नौबत और तीसरे दिन की भतवान और समधो की कहानी प्रतीक्षित है। साथ में बाऊ की लंठ मण्डली की अपनी विशेष कहानी तो प्रतीक्षित है ही। <br /><br />जारी रखिए और सहेज कर रखिए। ब्लॉग साहित्य से जब कुछ चीजें प्रिन्ट साहित्य में आयातित होंगी तो उसमें आपकी बाऊमन्डली जबरदस्त रिटर्न देगी। आञ्चलिक शब्दों का परिचय बेजोड़ है।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-70631602656726689782009-07-27T09:44:20.692+05:302009-07-27T09:44:20.692+05:30मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा ह...मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! अब तो मैं आपका फोल्लोवेर बन गई हूँ इसलिए आपके ब्लॉग पर आती रहूंगी! मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है !Urmihttps://www.blogger.com/profile/11444733179920713322noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-52301796884776098222009-07-26T14:52:51.835+05:302009-07-26T14:52:51.835+05:30अद्वितिय ! अन्य कोई शब्द उपयुक्त नहीँ है.अद्वितिय ! अन्य कोई शब्द उपयुक्त नहीँ है.गंगेश रावhttps://www.blogger.com/profile/10791109109633152718noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-66056137731147372252009-07-26T12:55:32.331+05:302009-07-26T12:55:32.331+05:30मस्त लिखते हैं जनाब, जारी रहेमस्त लिखते हैं जनाब, जारी रहेManjit Thakurhttps://www.blogger.com/profile/09765421125256479319noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-49287784136628305892009-07-26T11:24:15.535+05:302009-07-26T11:24:15.535+05:30कौन कहेगा यह किसी आलसी का चिठ्ठा है :-)
संजो कर रख...कौन कहेगा यह किसी आलसी का चिठ्ठा है :-)<br />संजो कर रखूंगी इस पोस्ट का लिंक, धन्यवाद.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-45587843853435332682009-07-26T10:38:17.617+05:302009-07-26T10:38:17.617+05:30गिरिजेश जी,
पिछले दिनों एक बहस चली हुई थी ब्लॉगजग...गिरिजेश जी, <br />पिछले दिनों एक बहस चली हुई थी ब्लॉगजगत में की ब्लॉग को साहित्य नहीं कहा जा सकता..मुझे नहीं मालूम की यदि इस लेखनी को ..इस शैली को ..साहित्य नहीं कहूँ तो क्या कहूँ...मैंने खुद हिंदी साहित्य को बहुत पढ़ा है..और अभी भी पढता हूँ..और सच कहूँ तो अभी तक ये शब्द, ये शैली मुझे तो कहीं भी देखने को नहीं मिली..यकीन माने मुझे जब भी ब्लॉग्गिंग में कालजयी पोस्टों के बारे में पूछा जाएगा..बाउजी की लंठ चर्चा का उसमें अग्रिम स्थान होगा..अद्भुत है सब कुछ ..संग्रहनीय..मैं चाहूँगा की ये कथा ..ग्रन्थ के रूप में सामने आये ..मेरा आग्रह भी यही है..अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-18404449175428228142009-07-26T10:05:16.597+05:302009-07-26T10:05:16.597+05:30आजतक कई विचित्र किस्से सुने हैं , परन्तु ये बारात...आजतक कई विचित्र किस्से सुने हैं , परन्तु ये बारात यादगार रहेगी ...सनकर पारबती की बारात , सा द्रश्य उपस्थित हो गया <br />ख़ास , ये पढ़कर , कईयों के कपडे इत्ते लम्बे चौडे थे के वो डूब रहे थे उनमे .;-))<br /><br />....कितने भोले लोग थे, <br />और कितने चतुर भी ! <br />परिहास और व्यवहार का अद`भुत सम्मिश्रण ..आगे पढने का इंतज़ार रहेगा गिरिजेश भाई ...आप गजब लिख रहे हैं <br />- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-58033213452340160112009-07-25T09:01:56.234+05:302009-07-25T09:01:56.234+05:30@बालसुब्रमण्यम
अन्ने, उस जमाने में नारी समाज बारा...@बालसुब्रमण्यम<br /><br />अन्ने, उस जमाने में नारी समाज बारात में नहीं जाता था। इधर यह प्रथा मेरे होश में शुरू हुई है। अभी भी शहरों तक ही सीमित है। <br />घराती औरतें तो बेचारी अलग उद्योग में लगी थीं - अन्नपूर्णा का रसद आपूर्ति विभाग। पहले ही बता चुका हूँ कि उस रात नारी समाज का उद्योग पुरुषों के श्रम पर भारी पड़ा।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-82741018773126551402009-07-25T08:42:56.914+05:302009-07-25T08:42:56.914+05:30कितने ही नए शब्दों से सामना हुआ। अब घंटों शब्दकोश ...कितने ही नए शब्दों से सामना हुआ। अब घंटों शब्दकोश उलटना-पलटना पड़ेगा।<br /><br />बारत वर्णन में एक कमी रह गई। सब पुरुषमय था। बारत में और सामनेवालों की तरफ से आई स्त्री-पात्रों का वर्णन भी रहता तो और भी मजा आ जाता।<br /><br />बेहतरीन पोस्ट, अब तक का सर्वश्रेष्ठ। घात-प्रतिघात से पूर्ण। बाऊ अच्छे हीरो के रूप में उभर रहा है।<br /><br />अगली किश्त का इंतजार रहेगा।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttps://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-14004970266257171552009-07-25T07:10:11.294+05:302009-07-25T07:10:11.294+05:30अद्भुत संजय दृष्टि !अद्भुत संजय दृष्टि !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-77839620582957797722009-07-25T06:04:07.802+05:302009-07-25T06:04:07.802+05:30बारात और द्वारपूजा का इतना समृद्ध विवरण दिया है आप...बारात और द्वारपूजा का इतना समृद्ध विवरण दिया है आपने कि न पूछिये । सब कुछ सूक्ष्मतः अवलोकित । <br /><br />विस्मृत किये जा रहे आचार-व्यवहार, परंपरा और शब्द संपदा का इतना सुन्दर विनियोग देख कर मन हुलास से भर गया है । मैं और-और की चाह में अतृप्त हुए जा रहा हूँ । ब्लॉग की चौखट पर ऐसी अभिव्यक्ति से किस छपाई की तुलना है इस वक्त । सब बेमानी है । <br /><br />और बाऊ ! वह तो सबके बाऊ ही हैं ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.com