tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post7759025727221571199..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: सभ्यता संकट में Occupation of public spaceगिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-23721735710779129382016-09-14T01:15:23.071+05:302016-09-14T01:15:23.071+05:30ये एक सार्वभौमिक विरोधाभास है. पौराणिक उदाहरण दिया...ये एक सार्वभौमिक विरोधाभास है. पौराणिक उदाहरण दिया जाये तो कलयुग द्वारा परीक्षित से शरण मांगकर वहाँ पांव पसारने की बात है. मज़हब का उदाहरण दें तो हिंदू और इस्लाम के उदाहरण से देखा जा सकता है और यदि राजनीतिक विचारधारा का उदाहरण दिया जाय तो लोकतंत्र और कम्युनिज़्म सटीक उदाहरण हैं. और अगर राष्ट्रीयता की बात हो तो भारत और पाकिस्तान. पहला उदात्त और विस्तृत है, दूसरा सीमाबद्ध है. पहले में दूसरे को स्वीकारने, सहने, समाहित करने की इच्छाशक्ति भी है और दया भी. दूसरे पक्ष की नज़र में पहले की उपस्थिति अपने अस्तित्व के लिय खतरा है और इसलिये उस पर प्रहार जायज़ है. सभ्यता को यह समझना पडेगा कि पिशाच आदमखोर होते हैं. बर्बर समाज सभ्यता को अपने लिये खतरा मानकर उसके प्रति होस्टाइल रहता है.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.com