tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post2443064944196991272..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: ...रोवें देवकी रनिया जेहल खनवागिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger26125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-48870691891561590282014-08-18T04:29:53.566+05:302014-08-18T04:29:53.566+05:30हमने तो ऐसा नहीं देखा ... हमने तो ऐसा नहीं देखा ... Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-16090058267763487482014-08-18T04:19:36.157+05:302014-08-18T04:19:36.157+05:30शुभकामनायें। बालक अपनी राह खुद चुन लेगा। बल्कि राह...शुभकामनायें। बालक अपनी राह खुद चुन लेगा। बल्कि राह तो तब बनी बनाई होती है जब आतताइयों ने कोई और राह छोड़ी ही न हो... Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-30664793267838968682010-05-20T07:34:30.210+05:302010-05-20T07:34:30.210+05:30पोस्ट के साथ-साथ सवाल-जबाब रोचक हैं।पोस्ट के साथ-साथ सवाल-जबाब रोचक हैं।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-23288305028057135812010-05-10T17:20:07.735+05:302010-05-10T17:20:07.735+05:30ओह!
यह नारीवाद न ठेले होते तो अद्भुत होती पोस्ट!ओह! <br />यह नारीवाद न ठेले होते तो अद्भुत होती पोस्ट!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-76123591121491265912010-05-09T15:24:00.251+05:302010-05-09T15:24:00.251+05:30रोचक ।रोचक ।अरुणेश मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-90122491630877528452010-05-09T13:14:43.337+05:302010-05-09T13:14:43.337+05:30@ पंकज जी
कहाँ थे आप जमाने के बाद आए हैं !
देवी ...@ पंकज जी<br />कहाँ थे आप जमाने के बाद आए हैं ! <br /><br />देवी पूजा की परम्परा लोक परम्परा है जो कहीं वाममार्गियों से जुड़ती है। इसका आम सोच पर कोई खास प्रभाव नहीं दिखता। लेकिन अवतार परम्परा हमारे मनोमस्तिष्क पर छायी हुई है। राम और कृष्ण के प्रसंग जिस तरह ग्राम्य और नागर दोनों जीवनों को प्रभावित करते हैं, वह विचारणीय है। <br />इस कारण ही यह प्रश्न मेरे मन में उठता रहता है कि सारे अवतार पुरुष ही क्यों हुए ? <br />ब्रह्मा,विष्णु और महेश - सृष्टि सर्जक,पालक और संहारक तीनों पुरुष और सम्भवत: ईश्वर भी पुरुष ! <br />वेदों में भी मुआ 'आदिपुरुष' ही है, 'आदिनारी' नहीं।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-70736322727754481592010-05-09T13:00:36.333+05:302010-05-09T13:00:36.333+05:30@ संजय जी,
@ आपसे संपर्क होने पर(एकतरफ़ा ही सही) -...@ संजय जी,<br />@ आपसे संपर्क होने पर(एकतरफ़ा ही सही) - एकतरफा नहीं बन्धु! टेलीपैथी के बारे में सुना ही होगा। इस समय आप को उत्तर दे रहा हूँ जब कि सामान्यत: इस समय नेट जोड़ता ही नहीं। <br />@ जिंदगी से ज्यादा डेंजरस कुछ भी नहीं है, अपनापन भी नहीं।<br />सही कहा। ज़िन्दगी डेंजरस है। अपनापन और विलगाव तो बायप्रोडक्ट हैं ज़िन्दगी के। मुर्दे या पत्थर क्या खाक मुहब्बत/अदावत करेंगे:)<br />@<br /> कभी कुछ नागवार गुजरे तो एक बार सरल भाषा में कहकर देखियेगा चाहे अपने ब्लॉग पर या मेरे ब्लॉग पर, आपको पुन: परेशान नहीं होना पड़ेगा। आखिर फ़त्तू इतनी दुनियादारी तो समझ ही गया है कि इजाजत मांगने से इजाजत नहीं मिलती है, सीधे से पांच रुपल्ली मांग लो तो इजाजत साथ में फ़्री मिल जायेगी ::))<br />- कोई नागवारी नहीं बन्धु! मैंने बस अपनी बात कही। ऐसी टिप्पणियाँ कहाँ जल्दी मिलती हैं! आप की साफगोई का कायल रहा हूँ बीड़ू:)गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-39979519645479773652010-05-09T10:58:43.797+05:302010-05-09T10:58:43.797+05:30य़दि उत्तर चाहिये तो प्रश्न करने ही होते हैं. मातृ ...य़दि उत्तर चाहिये तो प्रश्न करने ही होते हैं. मातृ दिवस मात्र दिवस न रहे यही कामना है. <br /><br />अरे भाई, कृष्ण को स्त्री क्यों देखना चाहते हैं आप. दुर्गा हैं ना. जो जैसा है वैसा रहने दें. वैसे परंपरा की बात तो ये है कि चाहे कृष्ण हों या राम या विष्णु या शिव, अपनी समर्थ अर्धांगनियों के बिना श्री हीन माने जाते हैं.पंकजhttps://www.blogger.com/profile/05230648047026512339noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-35734278320856561142010-05-09T10:28:45.757+05:302010-05-09T10:28:45.757+05:30सहिष्णुता में विश्वास होने के कारण ही प्रश्न और प्...सहिष्णुता में विश्वास होने के कारण ही प्रश्न और प्रतिप्रश्न कर पाता हूं। असहमति में मुझे कोई बुराई नहीं दिखती। जरूरी नहीं है कि हर चीज को हम सब एक ही नजरिये से देखें।<br />परपीड़ा के प्रति आपकी आद्रता से वाकिफ़ भी हूं, और शायद इसीलिये आपसे संपर्क होने पर(एकतरफ़ा ही सही) अभिभूत भी रहता हूं। अपनेपन वाली आपकी पोस्ट पर बीड़ू की टिप्पणी भी है और यकीन मानिये सिर्फ़ विरोध करने के लिये या समर्थन करने के लिये मैं कभी टिप्पणी नहीं करता हूं। जैसा मुझे लगता है, वही टीपता हूं। और जिंदगी से ज्यादा डेंजरस कुछ भी नहीं है, अपनापन भी नहीं।<br />ऐसी एक टिप्पणी में जितना समय और श्रम लगता है उतनी देर में दस बीस रैंडम पोस्ट्स पर ठप्पा लगाया जा सकता है और ज्यादा मशहूर हुआ जा सकता है।<br />सवाल उठाने का सिर्फ़ यही उद्देश्य है कि मंथन से कुछ ऐसा हासिल हो सके कि कुछ तो अनुत्तरित प्रश्न शांत हों।<br />फ़िर भी कभी कुछ नागवार गुजरे तो एक बार सरल भाषा में कहकर देखियेगा चाहे अपने ब्लॉग पर या मेरे ब्लॉग पर, आपको पुन: परेशान नहीं होना पड़ेगा। आखिर फ़त्तू इतनी दुनियादारी तो समझ ही गया है कि इजाजत मांगने से इजाजत नहीं मिलती है, सीधे से पांच रुपल्ली मांग लो तो इजाजत साथ में फ़्री मिल जायेगी ::))संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-84385930641135339742010-05-09T08:26:32.231+05:302010-05-09T08:26:32.231+05:30भारत की परम्परा प्रश्न परम्परा है। वेदों में वृहस्...भारत की परम्परा प्रश्न परम्परा है। वेदों में वृहस्पति ऋषि की नास्तिकता की ओर झुकी ऋचाओं को भी स्थान दिया गया। उपनिषद आरण्यक इस परम्परा को आगे बढ़ाते हैं। बुद्ध अपने शिष्यों को स्वयं पर प्रश्न उठाने के लिए उकसाते हैं तो कृष्ण भारत युद्ध के मैदान में भी अर्जुन के साथ प्रश्नोत्तर करते हैं। शायद हमारी सहिष्णुता का मूल यही है। .. <br />समस्या तब आती है जब प्रश्न के साथ उसी रौ में स्थापनाएँ भी की जाती हैं। कंस प्रकरण में मेरी वाणी जी के साथ सहमति है। मुखर नहीं हुआ, एक दूसरी पंक्ति खींच दी - याद दिलाने के लिए। अमरेन्द्र जी ने भी वह बात याद दिलाई जो लोग भूले रहते हैं। देवकी का दु:ख सोचता हूँ तो भीतर तक आर्द्र हो जाता हूँ। देवकी प्रतिनिधि है - सदियों तक सताई हुई गर्भिणियों की - कोई वैद्य नहीं बस अन्धविश्वासी टोटके। ..संतोष होता है कि आज स्थिति बहुत सुधर चुकी है। <br />@ 'किसी अपने की' और 'सभी अपने' - यह 'अपनापन' बड़ा डेंजरस होता है बीड़ू! :) इसी सन्दर्भ में तो मैंने वह पोस्ट लिखी थी - http://girijeshrao.blogspot.com/2010/04/blog-post_10.html<br />@ नया लिखने की जरूरत - हमेशा थी, है और रहेगी। एक यात्रा है स्वयं की और परिवेश की पहचान की - चलती रहनी चाहिए, चरैवेति चरैवेति।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-52549479418999192822010-05-09T08:06:40.725+05:302010-05-09T08:06:40.725+05:30बढ़िया प्रस्तुति :)
हार्दिक बधाई :)
ढेर सारी शुभ...बढ़िया प्रस्तुति :)<br /><br />हार्दिक बधाई :)<br /><br />ढेर सारी शुभकामनायें :)एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-30452151217497817122010-05-09T06:35:26.089+05:302010-05-09T06:35:26.089+05:30@ फ़र्क और गलत:- हम क्यों दूसरों को बने बनाये फ...@ फ़र्क और गलत:- हम क्यों दूसरों को बने बनाये फ़्रेम में ही फ़िट देखना चाहते हैं? अगर सब को बनी बनाई मान्यताओं पर ही चलना है तो हमें या आपको भी कुछ नया लिखने की कोई जरूरत ही नहीं है। हमसे पहले के लोग बहुत कुछ और बहुत अच्छा लिख गये हैं हमारे मुकाबले। कोरी कट पेस्ट करने से ही काम चल जाता, और लॉबी की तरह।<br />आंख मूंदकर किसी ऐसी बात को मानना जो हमें पूरी तरह अपील नहीं करती, उससे ज्यादा बेहतर है इस पर सवाल उठाने का आंख मूंदकर समर्थन करना। चाहे प्रश्नकर्ता अपना हो या पराया।<br />वैसे हमें तो सभी अपने ही लगते रहे हैं अभी तक, हो सकता है गलती लगी हो।<br />अपनी अपनी राय रखने के लिये शायद सब स्वतंत्र हैं।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-73580140387533913052010-05-09T04:22:24.828+05:302010-05-09T04:22:24.828+05:30@ सवाल रखने और बहन को जान से मारने का उपक्रम करने ...@ सवाल रखने और बहन को जान से मारने का उपक्रम करने और उसकी गोद उजाड़ने वाले नृशंस हत्यारे को अच्छा भाई समझने और उसका समर्थन करने में बहुत फर्क है ....और आँख मूँद कर किसी अपने की गलत प्रतिक्रिया पर हाँ में हाँ मिलाकर उसे भ्रम में रखना और भी गलत है ...वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-84388464611409387032010-05-09T04:17:57.298+05:302010-05-09T04:17:57.298+05:30अभी तक यहाँ नहीं हुआ है
हैप्पी मदर्स डे...
लेकिन भ...अभी तक यहाँ नहीं हुआ है<br />हैप्पी मदर्स डे...<br />लेकिन भारत में हो गया है...<br />शुभकामना...स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-55292795069444461832010-05-08T23:29:52.973+05:302010-05-08T23:29:52.973+05:30संवेदना का यह पाठ माँ ही पढ़ाती है और बड़ा होकर वह...संवेदना का यह पाठ माँ ही पढ़ाती है और बड़ा होकर वह यह भूल जाता है यह विडम्बना नहीं तो और क्या है ?शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-63999728950305878772010-05-08T22:09:58.671+05:302010-05-08T22:09:58.671+05:30गिरजेश भाई
लगा कि आपके साथ हम भी बनारस की किसी गल...गिरजेश भाई<br /> लगा कि आपके साथ हम भी बनारस की किसी गली में घूम रहे हैं और गवैयों की टोली के साथ आनंद उठा रहे हैं ......! लोक गीतों में जो अपनापन है वो और कहाँ.....पुराणी सांस्कृतिक विरासत से परिचय करने का हार्दिक धन्यवाद !Pawan Kumarhttps://www.blogger.com/profile/08513723264371221324noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-9279337996574634682010-05-08T22:08:47.824+05:302010-05-08T22:08:47.824+05:30बनारस स्टेशन के पूर्व में स्थित इस छोटे से मंदिर स...बनारस स्टेशन के पूर्व में स्थित इस छोटे से मंदिर से मेरा पुराना हल्का फुल्का याराना रहा है....महानगरी सुबह चार बजे पहुंचती थी और मैं रोडवेज पकडने तक मां पिताजी से अलग हट यहां मंजीरेदास को सुनता था....<br /><br /> अब यह मंदिर वहां नहीं है...अब वहां दो एटीम लग गये हैं....मेरी ही कंपनी के ....यानि याराना अब भी बना हुआ है...अप्रत्यक्ष तौर पर ही सही :)सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-1657121040365326402010-05-08T21:57:42.328+05:302010-05-08T21:57:42.328+05:30@ आज कुछ खास ही दिन - मातृ दिवस की बेला है।
@ वैस...@ आज कुछ खास ही दिन - मातृ दिवस की बेला है। <br />@ वैसे हमें अपने तर्क या विचार नहीं रखने चाहिये क्या? आंख मूंदकर जो और जैसा बताया गया है, मान लेना चाहिये क्या? - अवश्य रखने चाहिए। आँख मूँद कर क्यों मानना? प्रश्न तो होते रहने चाहिए।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-59091559271541089942010-05-08T19:36:49.900+05:302010-05-08T19:36:49.900+05:30गिरिजेश सर, आज सुबह सुबह अदा जी के ब्लॉग पर कंस का...गिरिजेश सर, आज सुबह सुबह अदा जी के ब्लॉग पर कंस का जिक्र और आपकी पोस्ट भी उन्हीं पौराणिक पात्रों पर देखकर लग रहा है कि आज कुछ खास ही दिन हैं। हम दोनों से सहमत हैं। <br />वैसे हमें अपने तर्क या विचार नहीं रखने चाहिये क्या? आंख मूंदकर जो और जैसा बताया गया है, मान लेना चाहिये क्या? फ़िर तो दुनिया में समस्यायें शायद खत्म हो जायेंगी। पर क्या करें अपने दिमाग का, सवाल बढ़ते ही जा रहे हैं। <br />पोस्ट दिल को छू गई है।<br />आभार स्वीकार करें।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-51467717964274980902010-05-08T14:33:13.933+05:302010-05-08T14:33:13.933+05:30रोए देवकी रनिया जेहल खनवा SSS
सांस्कृतिक परिवेश को...रोए देवकी रनिया जेहल खनवा SSS<br />सांस्कृतिक परिवेश को सहकर्मी बनाते हुए आपके द्वारा अपनी बात कहने का यह अन्दाज --- बहुत सुन्दरM VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-49541255197236322502010-05-08T14:01:52.215+05:302010-05-08T14:01:52.215+05:30आंसुओं से नैन भरे ..मन गदगद हुआ ...सुबह कंस के गुण...आंसुओं से नैन भरे ..मन गदगद हुआ ...सुबह कंस के गुणगान से दुखी मन कुछ शांत हुआ ...<br />कौन कहता है सारी संवेदना पुरुष पर ही केन्द्रित है ....इसे पढने के बाद भी ...??वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-7639139525296856572010-05-08T12:36:59.838+05:302010-05-08T12:36:59.838+05:30'बेचैन आत्मा' जी के निर्देश पर ध्यान देवें...'बेचैन आत्मा' जी के निर्देश पर ध्यान देवें , देव ! <br />जन्म और कष्ट ; दोनों के बीच सोहर का उत्साह पिरोया जाता है !<br />कृष्ण के आस-पास जन्म के समय का कष्ट है , आरंभिक कष्ट है ! <br />राम के यहाँ जन्मोत्तर वनवास है , उत्तर-कष्ट है ! <br />एक गुप्तार-घात में जाता है और दूसरा बहेलिये के विशिख से मरता है ! <br />कष्ट की डगर के कारण ही दोनों एक दीखते होंगे आपके बाबू जी को !<br />और ब्लॉग के नारीवाद से आप ज्यादा संवेदित है न - :) <br />..........<br />बड़ी चित्ताकर्षक प्रस्तुति की है आपने ! ठहराव के साथ पढ़ा ! सुन्दर लगा ! आभार !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-87205972857475880162010-05-08T12:35:40.186+05:302010-05-08T12:35:40.186+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-24127936345385937182010-05-08T10:03:53.824+05:302010-05-08T10:03:53.824+05:30सोहर गाते-गाते आपने चिकोटी काट ली...!
..कन्हैया त...सोहर गाते-गाते आपने चिकोटी काट ली...!<br /><br />..कन्हैया तुम अवतार भी हुए तो पुरुषोत्तम के ! नारी क्यों नहीं हुए ?<br />शायद आप नारी के क्यों नहीं हुए कहना चाहते है..के छूट गया है.<br />..भजन मंडलियों द्वारा गाए जाने वाले इन सोहरों में जो जितना डूबता है उतना पाता है. अपने भाव को सुंदर ढंग से अभिव्यक्त किया है आपने.देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-31197995689942543382010-05-08T09:44:35.312+05:302010-05-08T09:44:35.312+05:30apaki behtarin soch ko pranam.apaki behtarin soch ko pranam.VICHAAR SHOONYAhttps://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.com