tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post2968199454042002821..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: पहली भेंट...गिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-63210330321607763472013-02-14T09:07:08.010+05:302013-02-14T09:07:08.010+05:30निशब्द निशब्द sunokahanihttps://www.blogger.com/profile/17041078249659276421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-17789985208661932712012-04-19T01:16:23.204+05:302012-04-19T01:16:23.204+05:30मैं सोचता हूँ कि क्रमवार ही पढूँगा, लेकिन प्रभु! आ...मैं सोचता हूँ कि क्रमवार ही पढूँगा, लेकिन प्रभु! आप हाथ पकड़ के बिठा लेते हैं।<br /><br />कपोल आरक्त हुये<br />फुनगियाँ खिल उठीं<br />खग पाँख उगे ओठ ऊपर<br />दाँत दबे प्रगल्भ<br />भूली लाज अछ्न्द पसरी<br />समय रुका<br />शब्द मौन<br />ब्रह्म गुम!<br /><br />अहा! कैसा सौंदर्य!<br />आँख मूँद के कविता ने मुझे मैंने कविता को महसूसा।<br /><br />तुम्हें जाते निरखता रहा<br />जब स्पर्श दीठ टूटी<br />तो पाया<br />भीगी अंगुलियाँ शीतल थीं।<br /><br />गदगद हुआ! वाह!Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-61294374223919817392012-04-18T21:06:01.297+05:302012-04-18T21:06:01.297+05:30एक टाइम मशीन की यात्रा मेरे लिए.. समय जैसे मन्मथ क...एक टाइम मशीन की यात्रा मेरे लिए.. समय जैसे मन्मथ के उलटे घोड़े सा भाग रहा है.. हर एक पंक्तियों से उतरते हुए एक एक बरस की भूतकाल में यात्रा की मैंने.. और तब जाकर अनुभव हुआ कि जो आपने लिखा है वह सच है.. विश्वसनीय.. कल की घटना की तरह.. कोई पास नहीं मेरे जिससे कहूँ कि छूकर देखो मेरी उँगलियों को.. गीली हैं, शीतल हैं ना!!!!!!!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-23956207813041342922012-04-18T18:04:12.605+05:302012-04-18T18:04:12.605+05:30आपकी यह कविता तो कई गद्य को पढ़ने का समय ले गई ! प...आपकी यह कविता तो कई गद्य को पढ़ने का समय ले गई ! पहली भेंट को आपने इतना बढ़िया चित्रित किया है कि पाठक खुद को अक्षी साक्षी समझने की भूल कर सकता है।:)देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-7802262154508918242012-04-18T12:11:50.924+05:302012-04-18T12:11:50.924+05:30हृदय की अगढ़ धड़कनों का सुन्दर वर्णन, कई बार पढ़ने...हृदय की अगढ़ धड़कनों का सुन्दर वर्णन, कई बार पढ़ने का मन किया।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-65774955616083106172012-04-18T09:54:22.361+05:302012-04-18T09:54:22.361+05:30lovely poetry ..lovely poetry ..Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-11775306442781344832012-04-18T08:17:32.618+05:302012-04-18T08:17:32.618+05:30बहुत शानदार कविता है। और गिफ़्ट वाली पायल की तीसरी...बहुत शानदार कविता है। और गिफ़्ट वाली पायल की तीसरी चौथी कड़ी अभी पढ़नी है। मेरी आंखों का नंबर बढ़वाने की सजा आपको जरूर मिलेगी। मोबाईल पर आंख गड़ाये स्साली नजर धुंधला गी है.संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-30719569357346377942012-04-18T08:09:47.726+05:302012-04-18T08:09:47.726+05:30बार बार पढ़ता हूँ आधे रास्ते ही खोने लगता हूँ...बार बार पढ़ता हूँ आधे रास्ते ही खोने लगता हूँ...Padm Singhhttps://www.blogger.com/profile/17831931258091822423noreply@blogger.com