tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post3058193316219226689..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: टुकड़ा टुकड़ा दुपहरगिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger33125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-69106769606249069822010-09-09T02:14:51.541+05:302010-09-09T02:14:51.541+05:30जैसे जैसे एक एक मंजर आपने फ़्रीज कर लिया हो और फ़ि...जैसे जैसे एक एक मंजर आपने फ़्रीज कर लिया हो और फ़िर धीरे धीरे पिघलने दिया हो उन्हे और फ़िर बहने और खडा कर दिया हो हमें उस बहाव के सामने .. जिसमें बहते, उतराते, डूबते हुये भी हम इन पलों को बहते देख सकते हैं...<br /><br />रात के इस पहर में भी जैसे आपकी इस दोपहर के टुकडे जी गया और ये आपकी इस पोस्ट की सफ़लता है..Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)https://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-32069599354503555182010-09-08T09:20:30.213+05:302010-09-08T09:20:30.213+05:30yeh apanaapan neem hi de sakata hai... baaki sab y...yeh apanaapan neem hi de sakata hai... baaki sab yaa to pratidaan dete hain yaa gyan dete hain. Aisee hi kayee dupaharyaa maine bhi dekhi aur mahsoos ki hai.... aisa kyon hota hai ki bharataa to mann hai par chhalakati aankhein hain?Lalithttps://www.blogger.com/profile/07381473297376142200noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-17173442564471481022010-06-05T00:50:50.122+05:302010-06-05T00:50:50.122+05:30मैं तो इस दृश्य में डूब गया हूँ ।मैं तो इस दृश्य में डूब गया हूँ ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-77757538092829676132010-06-04T20:09:06.622+05:302010-06-04T20:09:06.622+05:30कही भीतर तक ठहर गया हूँ ......ओर शायद निकलने में व...कही भीतर तक ठहर गया हूँ ......ओर शायद निकलने में वक़्त लगे ..आपकी ये पोस्ट वाकई भीतर कई आत्माओं को खटखटाती है.....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-27659359252596926472010-06-03T21:28:54.327+05:302010-06-03T21:28:54.327+05:30सुन्दर पोस्ट! दो आलसी एक-दूसरे को धकियाते हुये काम...सुन्दर पोस्ट! दो आलसी एक-दूसरे को धकियाते हुये काम जल्दी शुरू करें भाई!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-88032749473626568812010-06-03T21:11:09.159+05:302010-06-03T21:11:09.159+05:30jitni bhi tareef karun kam hogi..
Rula dene wali ...jitni bhi tareef karun kam hogi..<br /><br />Rula dene wali post hai. Emotional kar diya !ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-25800100558626196922010-06-02T22:34:32.790+05:302010-06-02T22:34:32.790+05:30हुजूर ! सार्वजनिक तौर पर काहे भद्द पिटा रहे हैं हम...हुजूर ! सार्वजनिक तौर पर काहे भद्द पिटा रहे हैं हमारी ! :)<br />आप आलसी तो हम दर आलसी हैं ! :)<br />[ मेरे साथ आलस परम्परा प्रदत्त अर्थ में है ]<br />पर अब देर-सबेर ही सही मेरे कान में जूं रेंगेगी , हुजूर !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-81886474068136067452010-06-02T22:03:07.420+05:302010-06-02T22:03:07.420+05:30इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.मिलकर रहिएhttps://www.blogger.com/profile/07902674799352650300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-12632492170336349992010-06-02T21:13:20.128+05:302010-06-02T21:13:20.128+05:30waah waah !
aise aalekh bahut kam milte hain pad...waah waah !<br /><br />aise aalekh bahut kam milte hain padhne ko...aaj mila hai, aaj ka din saphal ho gaya !<br /><br />jai ho !Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09116344520105703759noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-87245017152505668292010-06-02T20:18:02.061+05:302010-06-02T20:18:02.061+05:30@ अनुराग भैया,
'उपर' को ठीक कर दिया है। मै...@ अनुराग भैया,<br />'उपर' को ठीक कर दिया है। मैं अमरेन्द्र जी को कसे हुआ था, आप आ कर मामला बिगाड़ दिए :) <br />हिमांशु जी और इन महाशय के साथ 'हिन्दी' ब्लॉग (http://naagaree.blogspot.com/) बनाया था। उद्देश्य था - मानक हिन्दी पर एक ब्लॉग की प्रस्तुति। बस एक प्रार्थना ही वहाँ है।<br /> हिमांशु जी तो जैसे लगता है ब्लॉगरी ही छोड़ दिए हैं और ये महाशय अपनी ऊर्जा और ज्ञान को इधर उधर बिखेरते रहते हैं। <br />इस टिप्पणी के माध्यम से अब सार्वजनिक रूप से इन दोनों महारथियों से अनुरोध है कि श्रीगणेशाय नम: से आगे अब श्लोक पढ़ें।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-21062981907834508222010-06-02T19:26:23.681+05:302010-06-02T19:26:23.681+05:30सौर उपकरण की जानकारी का शुक्रिया. सौर प्रकाश तो उत...सौर उपकरण की जानकारी का शुक्रिया. सौर प्रकाश तो उत्तर प्रदेश के पहाडी गाँवों (अब उत्तराखंड?) में देखा था, पंखे की बात नयी रही. <br /><br />हमसे नहीं पूछा मगर टांग अडाने में क्या जाता है - 'ऊपर' सर्वमान्य और स्वीकृत है, पश्चिम में भी.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-77408335035885848392010-06-02T18:02:27.675+05:302010-06-02T18:02:27.675+05:30मन का सुकून भी अजीब शय है। इसका भौतिक सुख से शायद ...मन का सुकून भी अजीब शय है। इसका भौतिक सुख से शायद ही कोई लेना-देना हो। अपने पूर्वजों की सौंपी हुई थाती को संजोकर उसे सीने से चिपकाए रखने में ही यदि बुजुर्ग बाप सुकून महसूस करता है तो युवा पुत्र अपने सभी ऐशो-आराम उसे देने की हसरत मन में दबाकर रह जाता है।<br /><br />पुत्र के मन का सुकून भी तो छिनता है पिता की ऐसी तपस्या से। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दिए जाने वाले संदेश भी बदल रहे हैं। <br /><br />मैं तो ऐसे पुत्र की ओर से पिता को शिकायत दर्ज कराने की सोच रहा हूँ।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-84388007886066591462010-06-02T17:33:25.303+05:302010-06-02T17:33:25.303+05:30आपका पाठक होना उस सम्मान से भी बडा है मेरे लिए जित...आपका पाठक होना उस सम्मान से भी बडा है मेरे लिए जितना कि आपका इस पोस्ट को लिखने का सम्मान । लेखन शैली , शब्द संयोजन , उनकी ऊबड खाबड , रपटीली सांप सी प्रस्तुति , कौन है जो इससे लिपटे बिना निकल जाए । ये निकलने ही नहीं देती कभी मुझे तो । बहुत दिनों से मन अशांत था , शांत हो गया पढ कर ये तो नहीं कह सकता , मगर जाने क्यों सुकून बहुत मिला । शायद और भी बार बार पढना पडे ।अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-87958272111700255522010-06-02T17:15:14.957+05:302010-06-02T17:15:14.957+05:30उम्मीद थी टुकड़ा टुकड़ा भावनाओं का प्रस्फुटन होगा,...उम्मीद थी टुकड़ा टुकड़ा भावनाओं का प्रस्फुटन होगा, पर यहाँ तो पूरा सैलाब आ गया...<br /><br />--------<br /><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">क्या आप जवान रहना चाहते हैं?</a><br /><a href="http://ts.samwaad.com/" rel="nofollow">ढ़ाक कहो टेसू कहो या फिर कहो पलाश...</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-73228754801886039772010-06-02T12:49:13.459+05:302010-06-02T12:49:13.459+05:30seedha dil katk pahunch gayi yah kriti ....kuch pa...seedha dil katk pahunch gayi yah kriti ....kuch panktiyaan yaad aa gayeen meena kumari likhi hui ..<br /><br /><br />tukde tukde din beeta , aur dhajji dhajji raat mili<br />jiska jitna aanchal tha, bas utni saugaat mili..स्वप्निल तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/17439788358212302769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-16694294351429749072010-06-02T12:02:12.175+05:302010-06-02T12:02:12.175+05:30क्या कहूँ ? भावुक हो गया हूँ ...... हिरदय का एक-ए...क्या कहूँ ? भावुक हो गया हूँ ...... हिरदय का एक-एक कोना भिगो दिया है ...आभारRahttps://www.blogger.com/profile/08726389437723424230noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-62963902839969438412010-06-02T11:11:38.506+05:302010-06-02T11:11:38.506+05:30हृदयस्पर्शी!हृदयस्पर्शी!अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-72560638941804818602010-06-02T11:11:09.278+05:302010-06-02T11:11:09.278+05:30बात है बन्धु!बात है बन्धु!अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-23104832233358264202010-06-02T10:28:29.110+05:302010-06-02T10:28:29.110+05:30@ गिरिजेश राव
यह सब कह पाने के लिए संवेदनशील मन क...@ गिरिजेश राव <br />यह सब कह पाने के लिए संवेदनशील मन की जरुरत होती है फिलहाल इतना मानकर चल रहा हूं कि कुदरत ( धूप भी ) टुकड़ों में बंटी हुए नहीं होती वो जिस कार्य के लिए नियत / तैनात है केवल वही करती है... ये तो हम और हमारी अनुभूतियां है जो परिवेशगत कारणों से इसे टुकड़ों में जीने / देखनें जैसा अनुभूत करते हैं... यह भी मानकर चल रहा हूं कि गिरिजेश राव एक भावुक इंसान है और वो जीवन...संबंधों ..के वैषम्य / विविधताओं को 'प्रतीकात्मक ऊष्मा' के 'सौन्दर्य-आलेप' (मेकअप) के साथ देख पाने और अभिव्यक्त कर पाने का सामर्थ्य रखते है ! कहने में कोई हर्ज़ नहीं कि इस नस्ल के लोग अंगुलियों में गिने जा सकते है ...बाकी तो संसार है ...माया है...भीड़ है ...की बोर्ड तोड़ू लोग है ...ईश्वर का धन्यवाद ...कि गिरिजेश इनमे से एक नहीं ! <br />जहां तक शब्द शिल्प / गूंथने का प्रश्न है ब्लागर मुझे सुघड़ स्त्री से प्रतीत हुए ठीक वैसे, जैसे उन्हें धूप के महातापी ' पीत / हल्दुआ वर्ण ' 'शुभ्र' लगे ! ...यहां मैंने जो भी लिखा उसमें मित्रता की कोई भूमिका नहीं यह रचनाकार की सृजन धर्मिता का प्रतिकार / बकाया स्वत्व है , जो लौटा रहा हूं !<br /><br /><br />@ कुमार राधारमण जी <br /><br />गिरिजेश की रचना 'क्लास' ( शास्त्रीय ) है ! इसके लिये दाहिने... बायें... ऊपर... नीचे की बात थोड़ा असम्मानजनक सी लगी ! अच्छेपन का ये पैमाना ...ये दौड़ किसी की भी हो... गिरिजेश की बिलकुल भी नहीं ! उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेंगे , अंतत: आप भी गिरिजेश की रचना की तारीफ ही कर रहे है बस ज़रा भेड़ चाल वाल॓ अंदाज में ! खेद सहित !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-91251497687508967292010-06-02T09:26:28.125+05:302010-06-02T09:26:28.125+05:30राव साहब ,
मैं तो 'ऊपर' ही कहूंगा और पसंद ...राव साहब ,<br />मैं तो 'ऊपर' ही कहूंगा और पसंद करूंगा ! पर आपकी बात आपकी बात ! <br /><br />वैसे तो 'उलीचने' क्रिया में प्राथमिक रूप से हाथ वा (या भी )बर्तन के द्वारा जमा पानी <br />फेंकने ( उलचने ) का भाव है , इसलिए खटका ! चूंकि पम्पिंग सेट खुदौ<br />एक जगह पर ठहरे पानी ( भूगर्भ जल से अलग ) को दूसरी जगह फेंकता <br />है इस तर्ज पर इसके साथ भी उलीचना चलेबुल माना जा सकता है ! <br /><br />अच्छा रहा इसी बहाने अच्छे लिंक तक गया !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-79264061989933688502010-06-02T08:52:27.613+05:302010-06-02T08:52:27.613+05:30इन बद्ली परिस्थितियों मे आकर भी क्या करेंगें। सबसे...इन बद्ली परिस्थितियों मे आकर भी क्या करेंगें। सबसे महत्वपूर्ण बात आज की सन्तान द्वारा अपने माता पिता की भावनाओं को समझ उसका सम्मान करने से है। अतएव बुजुर्गो द्वारा यह समझा जाता है कहीं अपमान का घूंट न पीना पडे अपने गांव घर मे ही ठीक है। मार्मिक प्रस्तुति।सूर्यकान्त गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/05578755806551691839noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-8004672252205363122010-06-02T08:21:01.191+05:302010-06-02T08:21:01.191+05:30शिकायत दर्ज करें ,कभी कभी आप ज्यादा रुला देते हैं ...शिकायत दर्ज करें ,कभी कभी आप ज्यादा रुला देते हैं ...<br />टुकड़े टुकड़े दोपहर का चिथड़ा चिथड़ा सुख भी तलाशिये आर्य नहीं तो यह पूरा जीवन ही दुखमय है ..<br />सब कुछ -वियोग विराग ,शक्ति -असहायता सब कुछ यहीं झेलते हुए मनुष्य का पराभव हो जाता है !<br />आईये हम सब मिलकर रोज गीता पढ़ें !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-26427067267943282652010-06-02T07:59:29.097+05:302010-06-02T07:59:29.097+05:30... दुपहर टुकड़ा टुकड़ा है। इसके मायने सब के लिए अ...... दुपहर टुकड़ा टुकड़ा है। इसके मायने सब के लिए अलग हैं।<br /><br />...सशक्त लेखन. उम्दा पोस्ट.देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-66560403395957523972010-06-02T07:18:28.910+05:302010-06-02T07:18:28.910+05:30@ कुमार राधारमण जी,
पसन्द करने के लिए धन्यवाद। ब्...@ कुमार राधारमण जी, <br />पसन्द करने के लिए धन्यवाद। ब्लॉगवाणी में ऊपर पहुँचने के लिए कई अन्य योग्यताओं की भी आवश्यकता पड़ती है जो मुझमें नही हैं। मैं परवाह भी नहीं करता। आप जैसे सुधी जन की सलाह, प्रोत्साहन और लगाव मिलते रहें, यही बहुत है। <br /><br />@ अमरेन्द्र जी, <br />'उपर' और 'ऊपर' का पाठभेद स्थानीय उच्चारण से प्रभावित है। पूरब में दीर्घ तो पश्चिम में लघु। थोड़ा और श्रम कर बताइए कि सही क्या है? 'हिन्दी' अभी भी आप की राह देख रही है। पम्प के साथ उलीचने के प्रयोग इन स्थानों पर देखें:<br />http://www.lekhni.net/1306934.html<br /><br />http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_6389773.html/print/<br /><br />http://www.patrika.com/print/emailarticle.aspx?id=3606<br /><br />http://hindi.indiawaterportal.org/content/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%AC-%E0%A4%B8%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B6%E0%A4%B0-%E0%A4%B6%E0%A4%AF%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A4%B0<br /><br />इतने सतर्क पाठन के लिए धन्यवाद। आप जैसे पाठकों के कारण ही कई बार उचाट के बाद भी लिखा जाता है। <br /><br />@ अनुराग भैया,<br />यह 12 वोल्ट का डी सी पंखा है जो बैटरी से चलता है। तेज़ ठंडी क्षैतिज हवा। कीमत 500 से 700। बैटरी सोलर पैनल से चार्ज होती है। सोलर सिस्टम मय बैटरी 7-8 वर्ष पहले ब्लॉक से सब्सिडी पर रु.7500/- में लिया था। पहले केवल प्रकाश व्यवस्था थी, पंखा बाद में जोड़ा। आज तक कोई समस्या नहीं आई - बैटरी में भी नहीं। बस डिस्टिल्ड पानी समय समय पर डालना पड़ता है। यह सिस्टम'नेडा' के लिए भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा निर्मित किया गया था। सरकारी चीजें हमेशा खराब ही नही होतीं। आज प्राइवेट दुकान से लिया जाय तो करीब 27000 का पड़ेगा। <br /><br />दु:ख यही है कि यह सिस्टम पॉपुलर नहीं हो पाया। मार्केटिंग की कमी और सरकारी काहिली इसके कारण लगते हैं।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-28338760812609065912010-06-02T06:43:34.796+05:302010-06-02T06:43:34.796+05:30टुकड़ा- टुकड़ा दुपहर का यह गर्मी भरा सुकून (!!)... न...टुकड़ा- टुकड़ा दुपहर का यह गर्मी भरा सुकून (!!)... नहीं छूटता है इसका मोह ...<br />ऐसी शिकायतें कई सुन चुके ...<br />वहीँ दूसरी ओर शहर में बुजुर्ग खुद को पूछे न जाने की पीड़ा ढोते हैं ...वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com