tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post3447268332755787658..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: ढेला पत्तागिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-78494285300630903352011-01-29T21:54:29.753+05:302011-01-29T21:54:29.753+05:30सबकी अपनी अपनी गति और नियति होती हैं ....नीति कथा ...सबकी अपनी अपनी गति और नियति होती हैं ....नीति कथा है या बोध कथा ...?<br />टिप्पणी आप्शन खुला रह गया! केयरफुल केयरलेस्नेस ..स्मार्ट !:)Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-50769377738594440432011-01-29T18:48:26.887+05:302011-01-29T18:48:26.887+05:30यत्नों-प्रयत्नों की ही तो सब कथाएँ हैं, आस/अपेक्षा...यत्नों-प्रयत्नों की ही तो सब कथाएँ हैं, आस/अपेक्षा न रखना उनका बोध। मुझे दोनों ही उचित लगे।Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-10630927326235963162011-01-29T09:18:14.852+05:302011-01-29T09:18:14.852+05:30कोशिश तो की दोस्ती निभाने की, कुटिल खल कामी[:)] भा...कोशिश तो की दोस्ती निभाने की, कुटिल खल कामी[:)] भाई से पूरी तरह सहमत हूँ |Neerajhttps://www.blogger.com/profile/11989753569572980410noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-14917659459170263562011-01-28T23:43:31.198+05:302011-01-28T23:43:31.198+05:30एक दिन आँधी पानी दोनों साथ साथ आये। न ढेला पत्ते क...एक दिन आँधी पानी दोनों साथ साथ आये। न ढेला पत्ते को बचा पाया और न पत्ता ढेले को। ढेला गल गया और पत्ता दह बिला गया। <br />बहुत सुंदर जी,.... अब खुल गया हे तो इसे खुला ही रहने दे, धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-69256251073559389762011-01-28T22:17:48.300+05:302011-01-28T22:17:48.300+05:30@एक दिन आँधी पानी दोनों साथ साथ आये। न ढेला पत्ते ...@एक दिन आँधी पानी दोनों साथ साथ आये। न ढेला पत्ते को बचा पाया और न पत्ता ढेले को। ढेला गल गया और पत्ता दह बिला गया। <br />ऐसी मित्रता न हो वही ठीक। अगर हो जाय तो उससे अधिक आस न रखना। ...<br />कथा के समापन नें अच्छी संकेतक पारी खेली है,कुछ नम कुछ गहन.डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-5379386960758532652011-01-28T19:47:43.557+05:302011-01-28T19:47:43.557+05:30परसाई जी ने(?)एक जगह लिखा था कि मित्र वही होता है ...परसाई जी ने(?)एक जगह लिखा था कि मित्र वही होता है जो आपकी खुशी में खुश हो, विपत्ति में तो अनजान भी मदद कर देते हैं. मगर मित्र वही है जो आपकी तरक्की से भी खुश हो.<br />सिर्फ विपात्ति से बचने की आस लिये दोस्ती करना उचित नहीं! <br />वैसे मनीषियों का चिंतन तो आचार्य ही जानें!!सम्वेदना के स्वरhttps://www.blogger.com/profile/12766553357942508996noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-80295909025535532732011-01-28T19:42:29.372+05:302011-01-28T19:42:29.372+05:30यह भी खूब रही! कल रात ब्लॉगर सेटिंग करने में टिप्प...यह भी खूब रही! कल रात ब्लॉगर सेटिंग करने में टिप्पणी विकल्प खुला रह गया। ... आप सभी का धन्यवाद और आभार।<br /> <br />रह गईं खुली सपनों को सहेजती आँखें <br />सितारे हँसे शाद के आँसू छिड़क गये।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-30586746183688782302011-01-28T18:57:13.864+05:302011-01-28T18:57:13.864+05:30जितना सम्भव हो सहायता की जाये, एक दिन तो जाना ही ह...जितना सम्भव हो सहायता की जाये, एक दिन तो जाना ही है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-27238092270144362452011-01-28T17:35:38.181+05:302011-01-28T17:35:38.181+05:30ये बोध कथाएं जीवन दृष्टि जागृत कर जाती हैं...ये बोध कथाएं जीवन दृष्टि जागृत कर जाती हैं...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-74968478642084825942011-01-28T12:53:16.041+05:302011-01-28T12:53:16.041+05:30बचपन की याद आ गयी. लगता है यह लघु कथा सभी भाषाओँ म...बचपन की याद आ गयी. लगता है यह लघु कथा सभी भाषाओँ में है.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-91449651982473316242011-01-28T10:39:23.402+05:302011-01-28T10:39:23.402+05:30katha padh li...iski shiksha grahan kee jaaye ya n...katha padh li...iski shiksha grahan kee jaaye ya nahi ye soch raha hun.... :)स्वप्निल तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/17439788358212302769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-65686863971011133932011-01-28T10:35:06.764+05:302011-01-28T10:35:06.764+05:30hummmmmmmmmmm.........
itene sankshep me? kya sam...hummmmmmmmmmm.........<br /><br />itene sankshep me? kya samjoon......<br /><br />pranam.सञ्जय झाhttps://www.blogger.com/profile/08104105712932320719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-14869613618047419302011-01-28T09:47:33.266+05:302011-01-28T09:47:33.266+05:30एक नया नज़रिया ! पसंद आया !एक नया नज़रिया ! पसंद आया !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-31116852875772041752011-01-28T08:13:26.676+05:302011-01-28T08:13:26.676+05:30'कथा समाप्त' पर-
हम छत्तीसगढ़ी में कहते ...'कथा समाप्त' पर-<br />हम छत्तीसगढ़ी में कहते हैं ''दार भात चुर गे, मोर किस्सा पुर गे''.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-82994515921919781072011-01-28T07:33:35.985+05:302011-01-28T07:33:35.985+05:30न ढेला जानता था न पत्ता कि आंधी-पानी दोनो एक साथ आ...न ढेला जानता था न पत्ता कि आंधी-पानी दोनो एक साथ आयेंगे। जब तक यह अज्ञानता रहेगी तब तक ऐसी दोस्ती यूँ ही चलती रहेगी। ज्ञान है कि बगैर ठोकर खाये मिलता नहीं।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-21534460731930815292011-01-28T07:21:16.799+05:302011-01-28T07:21:16.799+05:30जब तक हो सका, साथ दिया। जब वश से बाहर हुआ तो दोनों...जब तक हो सका, साथ दिया। जब वश से बाहर हुआ तो दोनों साथ में नष्ट हुये, ऐसी बुरी तो नहीं रही मित्रता। यह तो नहीं किया कि खुद बने रहने के लिये दूसरे को इस्तेमाल किया।<br />पर ये अपना नजरिया, विद्वान लोगों की राय फ़िर आकर जानेंगे।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.com