tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post5450999139499691735..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: लंठ महाचर्चा: बाउ और नेबुआ के झाँखी - 4गिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-58645240876869281942011-01-02T12:32:31.239+05:302011-01-02T12:32:31.239+05:30...अद्भुत।...अद्भुत।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-45943741844503880382010-12-18T08:49:08.118+05:302010-12-18T08:49:08.118+05:30.
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जल्दी-जल्दी में पहली बार पढ़ा, आनंदित हुऐ दे....<br />.<br />.<br />जल्दी-जल्दी में पहली बार पढ़ा, आनंदित हुऐ देव... दोबारा फिर पढ़ेंगे... अभी काफी कुछ समझना रह गया है...<br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-36064855293863196972010-12-18T00:13:00.174+05:302010-12-18T00:13:00.174+05:30अरविन्द जी आपकी स्मृति जब हिचकोले खाना बंद करे तो ...अरविन्द जी आपकी स्मृति जब हिचकोले खाना बंद करे तो बताइयेगा ! फिलहाल हम तो कंकड़ी का अर्थ फूट लेने से लेते हुए गिरिजेश जी को बिना टीप दिए फूट ले रहे हैं :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-21409264424122347242010-12-17T20:52:52.065+05:302010-12-17T20:52:52.065+05:30jhutte kakari aur kankari ke pher main log bag pad...jhutte kakari aur kankari ke pher main log bag pade hai bahut dimag par jor dane ke baad samajh main aayage aglee kadi ka intijar hai----------.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07499570337873604719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-27903672021671352622010-12-17T15:53:59.822+05:302010-12-17T15:53:59.822+05:30बस पढ़ते जा रहें हैं...और आनंद उठा रहें हैं, टिप्प...बस पढ़ते जा रहें हैं...और आनंद उठा रहें हैं, टिप्पणियों से भी काफी ज्ञानवर्द्धन हो रहा है....rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-39100574060340384292010-12-17T10:24:45.603+05:302010-12-17T10:24:45.603+05:30jai bhades.....jai bharat
pranam.jai bhades.....jai bharat<br /><br />pranam.सञ्जय झाhttps://www.blogger.com/profile/08104105712932320719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-2524029761751683772010-12-17T10:20:55.187+05:302010-12-17T10:20:55.187+05:30केत्ता भाग चले हो? काहे कि पढ़बै त एक संघे प्रिण्ट-...केत्ता भाग चले हो? काहे कि पढ़बै त एक संघे प्रिण्ट-आउट लै क!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-38798296664278988162010-12-17T09:16:56.850+05:302010-12-17T09:16:56.850+05:30मेरी तो मात्र हाजिरी ही है पढ कर निहाल हुई जा रही ...मेरी तो मात्र हाजिरी ही है पढ कर निहाल हुई जा रही हूँ बस । शुभकामनायें।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-3280526219019457452010-12-17T07:36:51.101+05:302010-12-17T07:36:51.101+05:30@ओह ,स्मृति भी कैसी हिचकोले खाने लगी है :)@ओह ,स्मृति भी कैसी हिचकोले खाने लगी है :)Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-88846493838062821172010-12-17T07:04:40.673+05:302010-12-17T07:04:40.673+05:30@ अरविन्द जी,
:) यह बात मेरे हिन्दी अध्यापक ने भी...@ अरविन्द जी, <br />:) यह बात मेरे हिन्दी अध्यापक ने भी बताई थी लेकिन ब्रज के पक्ष में। इसे साझा करने के लिए धन्यवाद। उन्हों ने बताया कि ब्रज की गलियों में भटकते उसने यह सुना - <br />'माइ री मोहें साँकरी गरी में काँकरी गरत हौ'<br />लगे हाथ यह भी जोड़ गए कि वह इतना मुग्ध हुआ कि ब्रज की गलियों का ही होकर रह गया। :) सही बातें लोक में ऐसे ही कहावतों में बदल जाती हैं। <br /><br />अब यहाँ भोजपुरी की काँकरि और काँकरी में बस मात्राभेद है जब कि एक का अर्थ फूट तो दूजे का अर्थ कंकड़।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-27457832568742758812010-12-17T05:57:03.243+05:302010-12-17T05:57:03.243+05:30विरल चरित्र-योजना -ऊपर से ,गँवार ,अनपढ़ ऊबड़-खाबड़...विरल चरित्र-योजना -ऊपर से ,गँवार ,अनपढ़ ऊबड़-खाबड़ लगनेवाले पर मानवीय गरिमा से युक्त ,ये पात्र अपने परिवेश के साथ जीवन्त हो उठे हैं . कटु सामाजिक यथार्थ के साथ-साथ चलता व्यक्ति के नैतिक मूल्यों का संयोजन इसे दीप्ति प्रदान कर रहा है . <br />लिखे जाइये !प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-39165052577515504742010-12-16T23:19:02.364+05:302010-12-16T23:19:02.364+05:30लगभग सब कुछ पढने को बाकी है यहाँ, बस ये चारों भाग ...लगभग सब कुछ पढने को बाकी है यहाँ, बस ये चारों भाग आज दिन भर पढ़े लेकिन टीपने को कुछ नहीं सूझा। <br />मुग्धता बहुत कम कर देती है शब्दों के संग्रह को। <br />पर अब अमरेन्द्र जी के कहने के बाद आसानी ये हो गई है कि "हूबहू" का इस्तेमाल किया जा सकता है। <br />यह उत्कॄष्ट लेखन गतिमान रहे, सतत अनवरत।Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-37485959717127287792010-12-16T22:43:55.237+05:302010-12-16T22:43:55.237+05:30@ग्रियर्सन ऐसे ही अवध की किसी गली में घूम रहा था त...@ग्रियर्सन ऐसे ही अवध की किसी गली में घूम रहा था तभी उसके कानों में ये मधुर शब्द गूँज उठे ..<br />माई रे ,सांकरी गली में मोहें कांकरी गरत है ...<br />कंकड़ कंकड़ी ....शब्द हमारे यहाँ ज्यादा प्रचलित है -बाकी फल वाली ककरी/ककडी है कंकरी नहीं!<br />अमरेन्द्र के फूट वाले उदाहरण से बात कुछ ज्यादा स्पष्ट हुयी नहीं तो मैं गेस वर्क से ही कम चला लेता !<br />आंचलिक बोलियों की विपुल विविधता /अगम्यता को देखकर कभी कभी लगता है खड़ी बोली ही अब संवाद का माध्यम बने तो ठीक है ........Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-45423863882445381182010-12-16T21:29:11.126+05:302010-12-16T21:29:11.126+05:30शाम से दूसरी बार पढ़ रहा हूँ। कुछ नया नहीं है कहने...शाम से दूसरी बार पढ़ रहा हूँ। कुछ नया नहीं है कहने को, अमरेन्द्र की टिप्पणी और सतीश पंचम जी की टिप्पणी के बाद वैसे भी टीपना मात्र हाजिरी लगाने वाली बात है। हम सब साक्षी हैं एक उत्कॄष्ट साहित्यिक रचना के खंड-दर-खंड लेखन के।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-87826513067627435622010-12-16T20:55:32.457+05:302010-12-16T20:55:32.457+05:30बात अवधि और भोजपुरी की हो रही है........ संभवत हिं...बात अवधि और भोजपुरी की हो रही है........ संभवत हिंदी का विकास यहीं कहीं हुआ होगा........ पर मुझ जैसे 'कठमगज' इन शब्दों का सही अर्थ नहीं निकाल पाते ......... मात्र भाव ही समझते हैं......... और नीले शब्दों का भी इस्तेमाल जहां जरूरी हो वहीँ करना चाहते हैं........ कि प्रवाह नहीं टूटे.......... <br />बस.......<br /><br />क्या है कि मेरे पूर्वज पश्तों जबान बोलते थे...... जो धीरे धीरे पंजाबी के संपर्क में आती आती अपनी ही अलग भाषा बन गई....... जैसा की रिश्ता जो अवधी और भोजपुरी में है........<br /><br />बढिया है....दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-5103032326340400582010-12-16T19:25:49.982+05:302010-12-16T19:25:49.982+05:30पात्र तो मेरी नजरों के आगे घूम रहे हैं...........
...पात्र तो मेरी नजरों के आगे घूम रहे हैं...........<br /><br />narrative skill का उत्कृष्ट प्रदर्शन!<br /><br />अगली कड़ी शीघ्रता से दें ...........<br /><br />सादरगंगेश रावhttps://www.blogger.com/profile/10791109109633152718noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-43720953554028696722010-12-16T18:42:02.778+05:302010-12-16T18:42:02.778+05:30@ अरविन्द जी,
यहाँ कँकड़ी का अर्थ 'फूट' स...@ अरविन्द जी, <br />यहाँ कँकड़ी का अर्थ 'फूट' से लेना चाहिए। हमारी तरफ इसे काँकरि या काँकर कहा जाता है, जिसे समझाने के लिए मैंने 'कँकड़ी' कहा। मुझे 'फूट' नया, कृत्रिम और अजनबी सा लगता है। <br />अनुनासिक ध्वनि 'ँ' भी ध्यातव्य है। सरलीकरण के आग्रह से 'ँ'के'ं' में परिवर्तन ने देसज का बहुत अहित किया है।<br />आप के यहाँ अवधी में सम्भव है ककड़ी कहा जाता हो या कुछ जगहों की भोजपुरी में भी ऐसा हो (कोस कोस पर पानी बदले, पाँच कोस पर बानी)सो आप की बात से इनकार नहीं। समझने के लिए 'फूट' का सहारा लिया जा सकता है।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-56102977365371857142010-12-16T18:27:58.269+05:302010-12-16T18:27:58.269+05:30.
@ घर पहुँचते पहुँचते फेंकरनी का करेजा काँकर (कँक....<br />@ घर पहुँचते पहुँचते फेंकरनी का करेजा काँकर (कँकड़ी) की तरह फट पड़ा। <br />--' काँकर ' का प्रयोग मुझे एकदम नहीं खटक रहा . अवध के हिस्से में भी इसे काँकर बोलते हैं , जिसे खड़ी बोली क्षेत्र में 'फूट' बोलते हैं . सादर !! <br />.<br />टीप क्या करूँ , ऐसे लेखन पर ..<br />स्मार्ट इन्डियन जी ने जिस जीवन्तता का जिक्र किया , वह जीवन्तता मौजूद !<br />सतीश जी जिस गुणवत्ता पर रीझ कर विलम्ब की परवाह न करने पर उतर आये , वह गुणवत्ता मौजूद !<br />दीपक बाबा जी ने राजनीति और समाज के महीन रेशे देखा , वह कुशलता मौजूद !<br />रंजना जी ने जिस 'अद्वितीयता' की भूरी भूरी सराहना की , वह अद्वितीयता मौजूद !<br />.<br />ऐसे संयोग कम बनते हैं ! आभार , आर्य !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-69947385039781219632010-12-16T18:27:52.501+05:302010-12-16T18:27:52.501+05:30जय हो... हम आये थे प्रेम पत्र का अनुरोध लेकर. और य...जय हो... हम आये थे प्रेम पत्र का अनुरोध लेकर. और ये देखकर कन्फ्यूज हो गया हूँ किसका रिक्वेस्ट भेजा जाय. <br />काम जारी रहे. ब्रह्ममुहूर्त में उठा कीजिये कोई डिस्टर्बेंस हो तो समुचित उपाय करें. और धकाधक छापिये. कुछ यूँ कहने का मन हो रहा है... यही समय है मनु घिस दो अपने को रेखाएँ तो बाद में चमकेंगी ही :)Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-59541363813669209202010-12-16T17:21:38.576+05:302010-12-16T17:21:38.576+05:30कंकर -ककड़ी या कंकड़ी ?दोनों का मतलब अलग अलग है ! क...कंकर -ककड़ी या कंकड़ी ?दोनों का मतलब अलग अलग है ! कलेजा तो ककडी की तरह फट सकता है कंकड़ी की तरह नहीं !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-77838038916183393722010-12-16T15:23:56.794+05:302010-12-16T15:23:56.794+05:30नीला अनुवाद आने के बाद पुनः पढ़ा। सजीवता शब्दों के...नीला अनुवाद आने के बाद पुनः पढ़ा। सजीवता शब्दों के माध्यम से उतार लाये हैं हमारे मन में।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-4904754270560594992010-12-16T14:28:25.750+05:302010-12-16T14:28:25.750+05:30आज भी ऐसी कहानिया लिखी जा रही हैं, इस हर्ष को शब्द...आज भी ऐसी कहानिया लिखी जा रही हैं, इस हर्ष को शब्दों में बाँध किस भांति अभिव्यक्त करूँ..एकदम समझ नहीं पड़ रहा..<br /><br />कथा का प्रभाव बताऊँ -<br /><br />लगा जैसे अपने संग बांधकर ले गयी और घटनास्थल के एक कोने में दर्शक बना खड़ा कर दिया....कोने में खड़े हो सबकुछ घटित होते देखते रहे हम..आत्मविस्मृत कर दिया पूरा का पूरा..<br /><br />इतने दिन तक इस ब्लॉग से बेखबर रही,इसे अपना दुर्भाग्य कहूँ या इस ब्लॉग पर आने का रास्ता मिला इसे सौभाग्य ठहराऊं ???<br /><br />आपकी लेखनी को नमन !!!रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-43898040682590488042010-12-16T13:46:51.678+05:302010-12-16T13:46:51.678+05:30@वेद, शास्त्र, स्मृति, नीति, पुराण, इतिहास सब वामा...@वेद, शास्त्र, स्मृति, नीति, पुराण, इतिहास सब वामाचार। स्वाहा! स्वाहा!!<br /><br />और इस बीच गाँव दिहात की राजनीति और समाज का चित्रण करती बेहतरीन पोस्ट.दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-70009884947270213342010-12-16T12:57:15.455+05:302010-12-16T12:57:15.455+05:30बिसखरिया माई, रामसनेही सिंघवा.....खदेरन पंडित....फ...बिसखरिया माई, रामसनेही सिंघवा.....खदेरन पंडित....फेंकरनी....ओह<br /><br /> यही है 'विहंगम साहित्य'.....यही है । <br /><br /> अपने सामने किसी उत्कृष्ट साहित्यिक रचना की पांडुलिपीयों को रचते बनते देखने का सुख ही अलग होता है मित्र। <br /> <br /> इंतजार है अगली कड़ी का। <br /><br /> देर करोगे तो भी चलेगा.....लेकिन क्वालिटी येईच मंगता है :) <br /><br />भदेस भारत..... Rocks :)सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-41857055598706465702010-12-16T09:20:16.812+05:302010-12-16T09:20:16.812+05:30ज़बर्दस्त! लग रहा है जैसे एक एक क्षण का हाल आंखों ...ज़बर्दस्त! लग रहा है जैसे एक एक क्षण का हाल आंखों देखा हो। अगली कडी कहाँ है? इंतज़ार कैसे हो?Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.com