tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post7270907955735796450..comments2023-10-30T15:17:40.771+05:30Comments on एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man: ऋग्वेद के पथ - 1गिरिजेश राव, Girijesh Raohttp://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-80117119265120582442014-08-17T07:09:32.852+05:302014-08-17T07:09:32.852+05:30जय हो!जय हो!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-22914664279399918212014-07-29T10:46:29.296+05:302014-07-29T10:46:29.296+05:30जय होजय होShilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124528716864366928.post-46432221218038888082014-07-27T10:54:41.665+05:302014-07-27T10:54:41.665+05:30ऋग्वेद पढ़ते नीचे से ठेलेवाली की पुकार सुन कर चौंक ...ऋग्वेद पढ़ते नीचे से ठेलेवाली की पुकार सुन कर चौंक सा गया हूँ - आलू, पियाज, बोड़ा, कोंहड़ा, परोरा के साथ 'घिया'। लौकी के लिये लौका, कदुआ आदि तोसुना था किंतु घिया तो दिल्ली में ही चलता है? इतर प्रांतों से आये बनारस में रहते लोग घिया कहते होंगे, ठेले वाले ने शब्द को अंगीकार कर लिया। <br />व्यापार गतिक होता है। नयेपन को सबसे पहले स्वीकारता है क्यों कि रोजी उसी स्वीकार से जुड़ी हुई है। शब्दों के साथ भी ऐसा ही है। वैदिक काल में भी व्यापारी वर्ग शब्दों का ट्रांसपोर्टर होता होगा। वैदिकी के प्रसंग में जो तथाकथित इतर भाषाओं से आये शब्द बताये जाते हैं, उनके सम्बन्ध ऐसे सूक्तों से होंगे क्या जो व्यापार कार्य की बातें करती हों? गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.com