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उस समय जब कि महीने के अंतिम सप्ताह पर्स वेतन का चेक अगोरता था - तुम थी
और तुम्हारी पायलों की खनक सिक्कों सी थी।
सामने तो तुम खनकती रहती थी लेकिन अकेलेपन के उन
क्षणों में तुम्हारी उदास आँखें सूनी दीवार तकती थीं, शायद
तुम्हें उदासी का भान भी नहीं था - सैंया नादान, बेटी तो थी
ही। दीवार पर कोई चित्र न सही उससे लग कर एक टी वी तो आ ही सकता था। तुमने कभी कुछ नहीं कहा।
फर्श पर सोना ठीक था कि टी वी न देखना ? विकल्प विकल्पहीन, दोनों ठीक थे।
तुमने अपने योगी पति से कुछ नहीं कहा - जोगिया रंग की चादर बिछा हम फर्श पर
सोते रहे।
बी पी एल वन्दे मातरम सीरीज का 14" टी वी बॉस की बाइक पर सवार होकर घर आया - उस दिन
समझ नहीं पाया कि तुम खुश हुई या नहीं? लेकिन सूनी दीवार के
दोनो तरफ के आर सी सी खम्भे इंजीनियर की दृष्टि में पहली बार आए थे। देख कर भी न देखना और देखने देखने में अंतर होना - तड़ित द्युति सा आलोकित हो गया
था मन।
तुम्हारी साँस सहारे दो और जीवन जीते रहे। ..और वह दिन जब नन्हीं सी बेटी
के साथ बाज़ार गया था। सौ की नोट को सब्जी वाले ने लेने के बाद पचास का बताया था, खूब कहासुनी हुई - उस समय पचास रुपए
बड़ी सम्पति थे। घर आने पर बताने की गलती कर बैठा और
तुमने योगी का सब्जी लाना बन्द करा दिया। ...उस दौरान योगी ज़मीन में कांक्रीट के
खम्भे ढलवा रहा था - उसे शक्ति देने के लिए ...
..दूसरी संतान के समय और बाद में भी कुछेक दिनों को छोड़ तुम
अकेली रही। अब आर्थिक तंगी जैसी बात नहीं लेकिन समय की तंगी थी। योगी दौरे पर था -
सड़कों पर दौड़ती गाड़ियों के लिए पाइपलाइनों में ईंधन बहाना था लेकिन मन की नेह
नहर सूखी ही रही, कभी सोचा ही
नहीं कि ऊर्जा और ऊष्मा की आवश्यकता उस समय घर में अधिक थी। तुम चुप रही - घर आने
पर नेह नीर चेहरे पर छलकता था, आँखों में नहीं ...उस मकान
में खम्भे नहीं बस दीवारें थीं, क्या सचमुच ?
.. याद आता है दिल्ली में भतीजे के जन्म के बाद हिजड़ों के
आगे दीवार बन कर तुम्हारा खड़ा हो जाना। मेरी सारी क़ानूनी करामातों को धता
बताते हुए कितनी गरिमा और औदार्य से तुमने उनको संतुष्ट कर विदा किया था !
उल्लास की बेला का तुमने मान रखा था ... दिल्ली
पुलिस आधे घंटे बाद आई थी।
... लखनऊ की डेढ़ साल की भटकन - एक अदद 'अपने घर' की तलाश और सैंया ग़जब का सनकी। उसे तो
सिविल इंजीनियरिंग और वास्तुविद्या की सारी मान्यताएँ बस एक घर में ही चाहिए थीं -
जेब में बस कौड़ियाँ खड़कती थीं और मन में मिस्री मन्दिरों जैसे विशाल खम्भे आकार
लेते थे!
... हुँह .. याद नहीं आता कभी तुमने ये कहा हो। छ्ल क्षद्म
झेल, काले धन का खेल देख और शुभचिंतकों की मिट्टी पलीद कर जब
झुके मन निराश आता तो तुम्हारे आस जगाते एक दो बोल सुनता और तन जाता एक खम्भा - झुका मन खुल कर आकाश हो जाता।
.. आज 'अपना घर' है
जिसमें सिविल इंजीनियरिंग और वास्तुविद्या की मान्यताएँ नहीं के बराबर हैं - अनगढ़
घर लेकिन अनेकों आर सी सी के खम्भों के बीच एक घूमता खम्भा है, वह इस 'अनगढ़' को 'गढ़' बनाता है - वह तुम हो।
तुम्हारे सहारे ढेरों भंगिमाएँ बना सकता हूँ, निभा सकता हूँ। हाँ, पीछे झुकता जा
सकता हूँ - पता जो है कि गतिशील खम्भा सम्हाल लेगा। आवश्यकता पड़ने पर आगे भी खड़ा
हो जाएगा - मैं चुपचाप ओट ले सकूँगा। ..तुम हो तो सब हैं - घर, दीवार, बच्चे, रसोई,
सेमिनार, ट्रेनिंग, प्रोजेक्ट,
फाइनेंस, निगोसिएसन, ब्लॉगरी
... तुम हो सब है..
ये प्रेम, समर्पण, त्याग और सहयोग ही सफल दांपत्य जीवन की आधारशिला हैं(खैर मुझे क्या पता मैं तो अभी रंडवा हूँ ..;) )
जवाब देंहटाएंजय हिंद... जय बुंदेलखंड...
तुम तो सब हो ...या रब हो ....
जवाब देंहटाएंहर घर इन्ही आस्थाओं और विश्वास से चलता है ...वर्ना मकान तो बहुत बनाते है लोग ....!!
श्रीमती जी. घर, टीवी, सब्जी, वेतन, योगी पति.....वाह।
जवाब देंहटाएंसारी बातें एक जगह समेंट दी हैं ।
मस्त वैलंटैनिहा पोस्ट है।
"तुम हो तो सब हैं - घर, दीवार, बच्चे, रसोई, सेमिनार, ट्रेनिंग, प्रोजेक्ट, फाइनेंस, निगोसिएसन ... तुम हो सब है.."
जवाब देंहटाएंइसमें ब्लागिंग तो जोड़ा नहीं ...जोड़ लें -और आज अचानक कंफेसन मोड़ में काहें हैं ?
अब इतना गिलवंद (पता नहीं यह शब्द सही है या नहीं -अंगरेजी का maudlin देखें! ) क्या वैलेंटाईन को लेकर हो गए हैं ?
भैया ई कहानी बिलकुल हमारौ है -हर्फ हर्फ ,बस आप इक ठो ताजमहल बना लिए और हम लगता है उनके जाने के बादे बना पायेगें -कभौं कभौं यिहौ बात दिमगवा में आवत है कि का मुम्ताजौ एक्कौ ताजमहल बना देतीं अगर खुदा न खास्ता उनके खसम के साथ कौनो हादसा हुई जात ?
यी मनवा बड़ा बेईमान है गिरिजेश भाई सब कुछ आछत ऐसन ही कौनो मुमताज के ढूँढत रहत हरदम ..हैप्पी वैलेंटाईन..ऐसन मुंह गिराई का न बैठें राऊर साल भरे क दिन .....
भावभीन पोस्ट आज का अवसर पर .
निज के सार्वजनीन प्रदर्शन पर आशंकित और आपके मंतव्य को समझने की चेष्टा कर रहा हूँ कहीं यह एक दिवसीय एजेंडा तो नहीं :)
जवाब देंहटाएंयदि आशंका निर्मूल हो तो फिर वर्षपर्यंत कन्फेशनरत एक और योगी की बधाई स्वीकार करें :)
और हाँ ये अरविन्द जी के मन में क्या चल रहा है " भैया ई कहानी बिलकुल हमारौ है -हर्फ हर्फ ,बस आप इक ठो ताजमहल बना लिए और हम लगता है उनके जाने के बादे बना पायेगें " जरा इस कन्फेशन पर भी ध्यान दिया जाये :)
आज राव साहब, आपने दिल जीत लिया.आपकी शीशे सी पारदर्शी निश्चलता मन को भा गयी. यूँ ही नहीं हो जाता प्रेम कालजयी,..यूँ ही तपना पडता होगा..! संत वैलेंटाइन के दिवस पर यह सहजता और इसका सौंदर्य...... मुझे लिखना होगा...Today, You are Man of the Day.
जवाब देंहटाएंयोगी को तो कई बार प्रणाम कर चुके हैं, आज योगेश्वरी को हमारा प्रणाम।
जवाब देंहटाएंआपको अलग से कुछ नहीं लिख रहा हूं क्योकि आज आपने अपनी शक्ति के स्रोत से परिचय करवा दिया है।
भाव-पूर्ण पोस्ट.
जवाब देंहटाएंसच्चे प्यार की अनुभूति होती है पढ़कर, दिल छलछ्ला पड़ता है...
जवाब देंहटाएंप्रेम, समर्पण.... भावनाओं से लबरेज़ ..... यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी....
जवाब देंहटाएंमौका भी है..आज वैलेन्टाईन डे पर विशेष..बढ़िया प्रेम और समर्पण के उत्तम भाव!!
जवाब देंहटाएंसभी की कहानी ऐसी ही होती होगी...अगर वह मध्यमवर्ग अथवा निम्न-मध्यम वर्ग का है.
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण पोस्ट. अच्छा लगा..
जे बात तो हम झुठे मूठे आपको लंठ समझते रहे , असली लंठई तो हमरी भौजाई ,में छुपी बैठी है आप अपने आलस के साथ उका कंबीनेशन करा के फ़ेमसिया गए ...का बात है का इश्टाईल से वेलन्टानियाए हैं आप ....मजा आ गया कसम से ...
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
Keep smiling!
जवाब देंहटाएंचलिए आपका प्रदर्शन तो हुआ...
जवाब देंहटाएंश्रीमती जी की आंखों में आपको इच्छित चमक दिख गई होगी...
हम भी शुरू होते हैं...
कहीं यह मौका चूक ना जाएं....
:)
जवाब देंहटाएंमित्र यही तो प्यार है. भले ही ये उस ढांचे में फिट न होता हो जिसके लिये आज का दिन जाना जाता है. हमारी कहानी में एक कोण और ये कि आज हमारे विवाह की वर्षगाँठ भी है.
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी,
जवाब देंहटाएं'तुम हो सब है' यही तो है वो नींव, इमारत, डेंटिंग पेंटिंग जो भी कहें सबकुछ...
ऐसा लगा आप मेरी और मेरे जीवन आधार की कहानी कह रहे हैं...न जाने हम भी कितनी बार गिरे है उठे हैं..और चल रहे हैं साथ-साथ...शायद यही है हमेशा हर बार...बस प्यार..
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति....
@दीपक
जवाब देंहटाएंये प्रेम, समर्पण, त्याग और सहयोग ही सफल दांपत्य जीवन की आधारशिला हैं(खैर मुझे क्या पता मैं तो अभी रंडवा हूँ ..;) )
'रंडवा' नहीं तुम कुँवारे हो अभी...समझे....!!
आज यहाँ टीपने में मुझे बड़ी दिक्कत हो रही है ..
जवाब देंहटाएंक्या पता अगले प्रयास में सफल हो सकूँ ! फिर आऊंगा ...
प्रविष्टि भले ही आज आ गयी, यह तो मन में स्थायी भाव की तरह रची-बसी थी !यह है आपके भाव-मुख की आकृति !
जवाब देंहटाएंकैसे रचा जा सकता है बाउ ! कैसे जीवन के बहुविधि रंगों से रंगी-आग और फाग-साथ ही दुलराती अभिव्यक्ति का वितान तन सकता है ! कैसे युक्ति और अनुभूति सहज घुट सकते हैं ! - यह इस प्रविष्टि से बेहतर और कौन कहेगा !
गिरिजेश जी, दरअसल हम में से ज्यादातर लोग आर सी सी का खम्भा बनाने के चक्कर में भूल जाते हैं कि सीमेंट की जरूरत कहीं और भी होती है...पर आपने जरूर समय समय पे याद किया और तभी एक गढ़ है आपके पास...
जवाब देंहटाएंएक बात और आपने जितना सेंटिया दिया था अपने पोस्ट से, टिपण्णी कारों ने उतना हीं लाईट कर दिया मूड को...\
वेलेंटाइन डे की अच्छी शाम...
पोस्ट दिल को छू गई।
जवाब देंहटाएंबेहद पसंद आई।
जीवन का निर्धूम सांझा चूल्हा.
जवाब देंहटाएंगार्हस्थ और अलौकिक एक साथ.
अंत में तय कर पाया हूँ कि अनुपम प्रेम कविता ही है.
गज़ब भाव अभिव्यक्त कर दिए भइया...! भाभी जी को प्रणाम करते हुए मैं चला अपनी पोस्ट लिखने। :)
जवाब देंहटाएंआलसी तो मैं भी हूं मगर आप जैसा नही।आप आलसी होकर भी आलसी नही है।और आपने जो लिखा है उसे मैं अविवाहित होने के बावज़ूद समझने मे कामयाब हो गया।आंसू अगर पलकों का बांध न भी तोड़ पाये तो क्या आज़ादी की पहली लड़ाई तो छेड़ ही चुके हैं।हो सकता है कमेण्ट पूरा होते-होते वे आज़ाद हो जायें।सच्चे प्यार से बने मकान नही घर का सबसे मज़बूत खम्भा भाभी जी हैं।वे मुझसे काफ़ी छोटी हैं फ़िर भी मैं उन्हे प्रणाम करता हूं।शायद वेलेंटाइन डे की ये सबसे अच्छी और सच्ची पोस्ट है।सलाम करता हूं आपको और आपके जज़्बात को।
जवाब देंहटाएंखो जाने का दुःख भी गजब होता है , यह मैं इस समय अनुभव कर रहा हूँ ...
जवाब देंहटाएं.
जिस सहजता को आज देख रहा हूँ आपकी पोस्ट पर , यह सहजता मुझे
आज से पहले आपके यहाँ नहीं मिली , जितना भी पढ़ा हूँ ... जो काव्य
आज मिल रहा है , वह पहले नहीं मिला था , यद्यपि कि कवितायेँ आपकी
और भी पढ़ चुका हूँ , .......... आज - सी सहजता को पाने के लिए आपकी
भविष्य की पोस्टों को निरखूँगा , पर क्या पा सकूँगा ; पर्याप्त संदेह है मुझे !
---- अरे यह क्या मैं तो उपदेशक सा बोल रहा हूँ और 'सो काल्ड' बच्चा भी हूँ !
पर जनाब इस बच्चे को शक्ति भी तो आपकी इस रचना ने ही दी है ... सो बच्चे का
क्या कसूर !
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पहले का लिखा मिट गया और अब उस तरह का लिख नहीं पा रहा हूँ !
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बड़ा सुकून मिला ! फिर कब ऐसा संयोग होगा ? बता सकेंगे !/?
सुन्दर!भावपूर्ण, प्यारी, पोस्ट! दोनों खंभों को बधाई और मंगलकामनायें!
जवाब देंहटाएंसुन्दर। बहुत सुन्दर। अति सुन्दर।
जवाब देंहटाएंपत्नियों को ऐसे धन्यवाद कम ही मिलते हैं.....! आपने बड़ी संवेदना के साथ उनका आभार दिया।
जवाब देंहटाएंआभार आपका भी इस भावुक पोस्ट के लिये...!
ओहो ! मैडम को पोस्ट पढाई गयी या चुपके से पोस्ट हो गयी?
जवाब देंहटाएंलाजवाब!
जवाब देंहटाएंमेरे खयाल में सभी घर जो कम हिलते-डुलते हैं ऐसे ही किसी खंबे की बदौलत। मेरा भी!
हम्म...पुरुष अपनी भावनाएं कम ही प्रकट करते हैं....सबकुछ मन के तहखाने में छुपा कर रखते हैं...बडा सा नवताल का ताला लगा....आपने सिर्फ ताला ही नहीं खोला...हमें थोड़ी सी झलक भी दिखा दी,उस तहखाने की.....शुक्रिया इस वैलेंटाइन दिवस का..:)
जवाब देंहटाएंतुम हो सब है!!! आपकी लेखनी और निश्चल मन को नमन. भावों की अभिव्यक्ति में जो तरलता विद्दमान है वो बिरलों को ही मिलती है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंbahute badiya hai :-)
जवाब देंहटाएंbahute badiya hai :-)
जवाब देंहटाएंSo sweet...........Kash koi mere liye bhi aisa likhta :-)
जवाब देंहटाएंलकी हो दोस्त आपकी किस्मत पर रश्क आता है !
जवाब देंहटाएंकदमों के निशान मिले तो लगा कि नहीं यह बियाबान नहीं, एक रास्ता है, कितना गहरा और कितना अनजान, यह तो नहीं जानता, लेकिन कदमों के निशान सुकून दे जाते हैं...
जवाब देंहटाएंभाभीजी को नमन्
पढ़ते-पढ़ते कहीं खो सा गया...शायद अपने बचपन में.....याद आ गयी माँ-पिता जी की गृहस्थी की दुश्वारियाँ....उनका एक-दूसरे की कही-अनकही बातों को समझ लेना.....हम बच्चों की छोटी-छोटी खुशियों के लिए उनके बड़े-बड़े त्याग.....वो सूनी दीवार पर पहली अजन्ता घड़ी के लगने के बाद की ख़ुशी.....!!!!
जवाब देंहटाएंये लेख पढ़के जाने क्यूँ ऐसा लगा कि शायद "जीवनसाथी" ऐसे ही होते हैं !!!!....वैलेंटाइन से कितने अलग....मूक समर्पण -निश्छल प्रेम- परस्पर सम्मान.....हमारे समाज की आधारशिला....!!!!!
.......जिन्दगी ......कितने रंग ढ़लती है .................हम न जाने जाने क्या क्या जीते हैं...........
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