गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

एक देहाती बोध कथा

घने डरावने जंगल से एक धुनिया (रुई धुनने वाला) जा रहा था। मारे डर के उसकी कँपकँपी छूट रही थी कि कहीं शेर न आ जाय !
धुनिए को एक सियार दिखा । पहले कभी नहीं देखा था इसलिए शेर समझ कर भागना चाहा लेकिन भागने से अब कोई लाभ नहीं था - खतरा एकदम सामने था। सियार को धुनिया दिखा जिसने अपना औजार कन्धे पर टाँग रखा था, हाथ में डंडा भी था। सियार की भी वही स्थिति, हालत पतली हो गई -
 राजा शिकार करने आ गया, अब मार देगा !
दोनों निकट आए तो उनके डर भी आमने सामने हुए। सियार ने जान बचाने के लिए चापलूसी की:
"कान्हें धनुष  हाथ में बाना, कहाँ चले दिल्ली सुल्ताना"
कन्धे पर धनुष और हाथ में बाण लिए हे दिल्ली के सुल्तान! कहाँ जा रहे हैं?
धुनिए ने उत्तर दिया:
"वन के राव बड़े हो ज्ञानी, बड़ों की बात बड़ों ने जानी" 
हे जंगल के राजा ! आप बड़े ज्ञानी हैं। बड़ों की बात बड़े ही समझते हैं । ...

20 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा हा,
    गिरिजेश सर, इसके बाद भी कुछ हुआ होगा जरूर, जब धुनिया कुछ दूर पहुंच गया था तो सियार ने फ़िर कुछ डायलाग जरूर मारा होगा......

    कभी वो भी लिखियेगा।

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  2. nice!
    (अब हम का कहें? बड़ों की बातें, बड़े ही पहचानते हैं.)

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  3. वाह, बड़ा ही गूढ़ सन्देश दिया आपकी इस लघु कथा ने, गिरिजेश जी !

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  4. बड़ों की बात बड़ों ने जानी" ....गूढ़ सन्देश.

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  5. धुनिये के उत्तर से स्यार को गौरव - बोध हुआ ही होगा !
    अच्छा खोजे हैं आप !

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  6. wonderful post !

    The message is conveyed beautifully .

    Ironically we all are running in the same fashion in lure or in fear of something or the other.

    We need to fight the fear in ourselves. Fear indeed deprives us from many opportunities coming our way.

    Unfortunately most of us are living like jackals , in fear of Lions.

    Thanks,
    (The Lioness)

    Smiles..

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  7. इस वार्तालाप के बाद थोड़ा आगे जाने पर दोनों ही पार्टियों की मन:स्थिति जानने की इच्छा है :)


    वैसे बोधकथा ने तो बहुत गूढ़ संदेश दिया है।

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  8. हम तो नहीं समझ पाये आपकी बात। पर यह जरूर है कि हिन्दी ब्लॉगरी में टिप्पणियां धानुका-सियार संवाद के स्तर की होती हैं। :)

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  9. भैया यी पञ्च तंत्र शैली हमको समझ न आई -राजा कौन ,धानुक कौन ,सियार कौन -मैं एक ही सियार को जनता हूँ वह रामलू सियार है ताऊ का ! बस बाकी मोको नाको पता !

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  10. प्रश्न कुछ भी हो, उत्तर वही दीजिये जो आता हो । :)

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  11. "दोनों निकट आये तो उनके डर भी सामने हुए ..."

    यह भी कहाँ घटता है...आमने-सामने होते ही कितने हैं ? नहीं तो इनसे भिन्न कौन !

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  12. बोधकथा के कथा वाले पार्ट से बोधतत्व को निथार कर अंगीकार करने की असफ़ल कोशिश कर रहा हूँ..

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  13. सही कहा - बडों की बात बडे ही जाने
    बढिया कथा है जी

    प्रणाम स्वीकार करें

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  14. बड़ों की बात बड़ों ने जानी" ...

    ab hum Kuch bolenge to Chota muh badi baat ho jayegi.

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