घने डरावने जंगल से एक धुनिया (रुई धुनने वाला) जा रहा था। मारे डर के उसकी कँपकँपी छूट रही थी कि कहीं शेर न आ जाय !
धुनिए को एक सियार दिखा । पहले कभी नहीं देखा था इसलिए शेर समझ कर भागना चाहा लेकिन भागने से अब कोई लाभ नहीं था - खतरा एकदम सामने था। सियार को धुनिया दिखा जिसने अपना औजार कन्धे पर टाँग रखा था, हाथ में डंडा भी था। सियार की भी वही स्थिति, हालत पतली हो गई -
राजा शिकार करने आ गया, अब मार देगा !
दोनों निकट आए तो उनके डर भी आमने सामने हुए। सियार ने जान बचाने के लिए चापलूसी की:
"कान्हें धनुष हाथ में बाना, कहाँ चले दिल्ली सुल्ताना"
कन्धे पर धनुष और हाथ में बाण लिए हे दिल्ली के सुल्तान! कहाँ जा रहे हैं?
धुनिए ने उत्तर दिया:
"वन के राव बड़े हो ज्ञानी, बड़ों की बात बड़ों ने जानी"
हे जंगल के राजा ! आप बड़े ज्ञानी हैं। बड़ों की बात बड़े ही समझते हैं । ...
हा हा हा,
जवाब देंहटाएंगिरिजेश सर, इसके बाद भी कुछ हुआ होगा जरूर, जब धुनिया कुछ दूर पहुंच गया था तो सियार ने फ़िर कुछ डायलाग जरूर मारा होगा......
कभी वो भी लिखियेगा।
nice!
जवाब देंहटाएं(अब हम का कहें? बड़ों की बातें, बड़े ही पहचानते हैं.)
वाह, बड़ा ही गूढ़ सन्देश दिया आपकी इस लघु कथा ने, गिरिजेश जी !
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर!
जवाब देंहटाएंबड़ों की बात बड़ों ने जानी" ....गूढ़ सन्देश.
जवाब देंहटाएंधुनिये के उत्तर से स्यार को गौरव - बोध हुआ ही होगा !
जवाब देंहटाएंअच्छा खोजे हैं आप !
wonderful post !
जवाब देंहटाएंThe message is conveyed beautifully .
Ironically we all are running in the same fashion in lure or in fear of something or the other.
We need to fight the fear in ourselves. Fear indeed deprives us from many opportunities coming our way.
Unfortunately most of us are living like jackals , in fear of Lions.
Thanks,
(The Lioness)
Smiles..
इस वार्तालाप के बाद थोड़ा आगे जाने पर दोनों ही पार्टियों की मन:स्थिति जानने की इच्छा है :)
जवाब देंहटाएंवैसे बोधकथा ने तो बहुत गूढ़ संदेश दिया है।
kahani ka sandesh bahut accha hai
जवाब देंहटाएंहम भी समझ गए आपकी बात :)
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहम तो नहीं समझ पाये आपकी बात। पर यह जरूर है कि हिन्दी ब्लॉगरी में टिप्पणियां धानुका-सियार संवाद के स्तर की होती हैं। :)
जवाब देंहटाएंभैया यी पञ्च तंत्र शैली हमको समझ न आई -राजा कौन ,धानुक कौन ,सियार कौन -मैं एक ही सियार को जनता हूँ वह रामलू सियार है ताऊ का ! बस बाकी मोको नाको पता !
जवाब देंहटाएंप्रश्न कुछ भी हो, उत्तर वही दीजिये जो आता हो । :)
जवाब देंहटाएं"दोनों निकट आये तो उनके डर भी सामने हुए ..."
जवाब देंहटाएंयह भी कहाँ घटता है...आमने-सामने होते ही कितने हैं ? नहीं तो इनसे भिन्न कौन !
बोधकथा के कथा वाले पार्ट से बोधतत्व को निथार कर अंगीकार करने की असफ़ल कोशिश कर रहा हूँ..
जवाब देंहटाएंसही कहा - बडों की बात बडे ही जाने
जवाब देंहटाएंबढिया कथा है जी
प्रणाम स्वीकार करें
Kya baat hai bhai khoob pahichana
जवाब देंहटाएंबड़ों की बात बड़ों ने जानी" ...
जवाब देंहटाएंab hum Kuch bolenge to Chota muh badi baat ho jayegi.
Kya baat hai bhai
जवाब देंहटाएं