बुधवार, 4 अगस्त 2010

मैं हिन्दू हूँ

मैं नास्तिक  हूँ। मैं हिन्दू हूँ।
मैं किसी विचारधारा से नहीं बँधा हूँ। मैं हिन्दू हूँ।
रामजन्मभूमि विवाद पर सुनवाई पूरी हो चुकी है और न्यायालय के आदेश के आने के पहले धर्मान्ध, मतान्ध देशद्रोहियों द्वारा ब्लॉग प्लेटफॉर्म सहित किसी भी संचार माध्यम पर फैलाए जा रहे कुप्रचार, कुतर्क और द्वेषपरक प्रचार के पीछे छिपे षड़यंत्रों को समझता हूँ और उनका विरोध करता हूँ। मैं इन कुप्रचारों का विरोध करता हूँ।
मैं मानता हूँ कि राम, कृष्ण और शिव तीनों इस प्राचीन राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान के स्तम्भ हैं। इन तीनों के मूल स्थानों से जुड़े अयोध्या, मथुरा और काशी के स्थलों पर हिन्दू मान्यता के अनुसार बने पुराने मन्दिरों के पुनर्निर्माण को मैं राष्ट्रीय स्वाभिमान से जुड़े मुद्दे मानता हूँ और यह भी मानता हूँ कि ये किसी राजनीतिक पार्टी या संगठन आदि द्वारा उठाए बस जाने से त्याज्य नहीं हो जाते।
मेरी मान्यताओं के कारण कोई यदि मुझे किसी खाँचे में रख कर देखता है या मेरे ऊपर द्वेष वश आरोप लगाता है तो मुझे उसकी परवाह नहीं है। मैं उसके बेहूदे प्रश्नों का उत्तर देने को बाध्य नहीं हूँ लेकिन विद्वेष फैलाने के हर प्रयत्न का विरोध मेरा कर्तव्य है।  
मेरे देश में यदि सर्व धर्म समभाव जीवित है तो बस इस कारण कि यह हिन्दू बहुल है।  मुझे अपने देश पर और अपने हिन्दू होने पर गर्व है

37 टिप्‍पणियां:

  1. ई नोटिस का कारण तो नहीं समझे हम...बाकी हम भी सहमत हैं..

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  2. @अदा जी,

    जिस दिन से न्यायालय ने सुनवाई पूरी की है, ब्लॉग जगत में कट्टरपंथी तालिबानियों के प्रलाप जारी हैं। आप को दिखे ही नहीं ? कमाल है!

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  3. @गिरिजेश जी,
    इसमें कमाल की क्या बात है ..!
    हमने बहुत पहले से अनर्गल प्रलाप देखना बंद कर दिया है...

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  4. उदारवादी प्रवृत्ति ही हमें हिन्दू बनाती है।

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  5. '' क्या करूँ कहाँ जाऊं दिल्ली या उज्जैन ? '' ~ मुक्तिबोध ..
    पिछली प्रविष्टि में भावुक दोराहे पर खड़ा था इस बार बौद्धिक दोराहे पर ... . ! .
    वर्तमान में जो कुछ ब्लॉगजगत पर धार्मिक - पाखण्ड चल रहा है वह उनकी नीच मानसिकता का पर्याय है , इसे कलम का जेहाद कह लीजिये .. कभी कभी लगता है कि अतीत में कभी सामंजस्य था कि नहीं .. इस आधुनिक से समय में भी कितना पिछड़ापन है ! .. लगता है कि जड़ता/कट्टरता हर युग की स्थायी संपत्ति है ! इसे चुनौती देना कठिन है !

    पर क्या ऐसा नहीं लगता कि आपने 'तात्कालिक कुछ' के चक्कर में 'शाश्वत कुछ' मूल्यों को अनदेखा किया है !

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  6. हम तो केवल एक गुजारिश करते हैं कि भाई जान हमें मक्का में एक भव्य शिव मंदिर बनाने दो हम ये तीन नहीं कई मंदिर तुम पर न्योछावर कर देंगें ... कभी कभी सोचता हूँ मैं कितना भाग्यशाली हूँ जो हिन्दू पैदा हुआ ,मुस्लिम होता तो जबरदस्ती अल्लाह मियाँ में विश्वास करना पड़ता -
    मैं मंदिर जाऊं या न जाऊं ,पूजा करूँ न करूँ ,दारू पीऊँ या न पियूं ,मांस खाऊँ या न खाऊँ ,वेद को मानू या न मानू मेरी मर्जी ...मैं हिन्दू हूँ -विश्व में इतनी उदात्तता और वैयक्तिक छूट देता है कोई धर्म ? -इसलिए ही हम गर्व से कहते हैं कि हम हिन्दू हैं !
    कुछ लोगों द्वारा ब्लॉग जगत में अल्लाह के नाम पर जो गंदगी फैलाई जा रही है वह खुद अल्लाह मियाँ भी माफ़ नहीं करेगें !

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  7. @ अमरेन्द्र जी,
    दिल्ली, उज्जैन नहीं लखनऊ आइए। लम्बी कविता पढ़ाऊँगा भी और दिखाऊँगा भी। :)

    चीखा हूँ मूल्यों से परेशाँ हो के
    इस बाज़ार में बड़ी महँगाई है

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  8. अमरेन्द्र जी, दुबारा अर्ज कर रहा हूँ (पैरोडी इस्टाइल) :)
    कुछ कहने पे तूफान उठा लेती है दुनिया
    अपनी तो ये आदत है कि हम चुप नहीं रहते


    इसके पहले वाली टिप्पणी की द्विपदी पर एक ग़जल लिख कर भेजूँ? सँवार देंगे तो मास्साब के आह्वान में काम आएगी। वो वाले नहीं अपने मास्साब जो हमारे एक ब्लॉग पर पोस्ट बन कब्जा किए बैठे हैं

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  9. aalsi bhaayi aap hinu ho men muslim hun or aap bhi jaante hen ke hindu ho yaa muslim shj srl or pyaare hote hen or jo aese nhin hote voh naa hindu hote hen naa mulmaan voh to bs setaan or shetaan hote hen . akhtar khan akela kota rajsthan

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  10. बाऊ , मेरा आग्रह था / है कि इकबाल जैसा 'बैलेंस' शायर धार्मिक तंग-नजरी का शिकार हो के अपनी काव्य-कला को कहीं का नहीं छोड़ा और संकीर्णता का शिकार हो कला को इस्लाम के धार्मिक यशोगान तक पहुंचा के ही रह गया !
    यह धार्मिक पचड़ा ऐसा है ही कि इसमें विवेक को हमेशा जागृत रखना होता है , मजहबी-जज्बात मटियामेट कर देते हैं रचनाशीलता का ! इससे बचने की जरूरत है , आपको , हमको , सबको !

    भेजिए विस्तार करके दुपदी को , जिस लायक हूँ , जरूर कोशिश करूंगा .. ! फिजिक्स वाले भी दुपदियायेंगे ? बढियां !

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  11. भाई अकेले जी,
    आज तक तो आप यहाँ नहीं पधारे थे - मुलायमियत के पाठ लेकर!
    आप की बात में मुलायमियत दोष है। मनुष्य सहज सरल नहीं बहुत बहुत जटिल होता है
    । धर्मान्धों का एक खास प्रकार तो और भी जटिल होता है
    । यह सिखावन उनको भी दे आइए।
    सभी लोग प्यारे भी नहीं होते। एक बात मुझे समझ में नहीं आती कि जब भी हिन्दू अपने हक़ की बात करते हैं तो उन्हें मुलायमियत की सीख क्यों दी जाने लगती है ?

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  12. हिंदू होने पर गर्व मुझे भी है लेकिन उन कट्टरपंथियों के नजरिए से नहीं....मेरे खुद के नजरिए से...क्योंकि मैं भी ईश्वर को चाहे मानूँ या न मानूँ....चाहे रोज पूजा करूँ या न करूँ....कोई फर्क नहीं पड़ता....कोई पाबंदी नहीं है....और माजरा ये कि मैं बिना किसी पाबंदी के यह सब खुशी खुशी करता हूँ....अपने ईश्वर को बुरा भला कहते पोस्ट भी लिखता हूँ.....कभी उन पर व्यंग्य गढ़ता हूँ तो कभी उन्हें कुछ न करने के लिए आलसी भी ठहराता हूँ.....लेकिन मुझे ऐसा करने से कोई नहीं रोकता....कोई दबाव नहीं डालता.....और फिर मैं ईश्वर को खुशी खुशी अपने भोजन में से भोग भी लगाता हूँ....भला इतना स्वतंत्रता और कौन सा धर्म मुझे देगा।

    पोस्ट से पूरी तरह सहमत हूँ।

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  13. पोस्ट से और सतीश पंचम जी से पूरी तरह सहमत हूँ। इसे मेरे विचार भी समझें।

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  14. @ मजहबी-जज्बात
    नहीं, यह सांस्कृतिक जज्बात है। जो लोग मजहबी हैं वे जानें उसके जज्बात क्या होते हैं ?
    वैसे मरकस बाबा के अनुयायी इसे फासीज्म जैसा भी कुछ कहते हैं

    इक़बाल को तो मैं इन पंक्तियों के लिए याद रखता हूँ। (ग़लती सुधार दीजिएगा)
    ऐ आब-ए-रौंद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको ।
    उतरा तेरे किनारे, जब कारवां हमारा ।।
    यह तो तब था जब वह हिन्दुस्तान में था, पाकी हुआ तो क्या क्या लिखा,क्यों लिखा उसका अल्ला जाने।

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  15. मेरी मान्यताओं के कारण कोई यदि मुझे किसी खाँचे में रख कर देखता है या मेरे ऊपर द्वेष वश आरोप लगाता है तो मुझे उसकी परवाह नहीं है। मैं उसके बेहूदे प्रश्नों का उत्तर देने को बाध्य नहीं हूँ लेकिन विद्वेष फैलाने के हर प्रयत्न का विरोध मेरा कर्तव्य है।



    ग़ज़ब.... बहुत ग़ज़ब की पोस्ट....... एक एक शब्द से सहमत...... सेंट परसेंट........

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  16. "मैं हिन्दू हूँ"
    बधाई हो!

    दुख की बात है कि मुट्ठी भर अतिवादी कठ्मुल्लाओं की हठधर्मिता की वजह से एक पूरा तबका दुनिया भर में शक़ के दायरे में आकर बदनाम हो रहा है। याद रहे झूठ के पाँव नहीं होते।

    ग़लती सुधार दीजिएगा
    इक़बाल भारत के विभाजन से 9 बरस पहले 1938 भोपाल में अंतकाल फरमा गये थे।

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  17. @ स्मार्ट इंडियन,

    भूल सुधार के लिए धन्यवाद।
    वैसे परवर्ती इक़बाल जेहनी तौर पर पाकी थे। पाकिस्तान की अवधारणा को बौद्धिक आधार देने, सींचने और पुष्ट करने वालों में वह अग्रणी थे। पाकिस्तान उनका 'मानस पुत्र' था जो बाद में हक़ीकत बना।

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  18. हम अच्छे इंसान है ...आस्तिक हो या नास्तिक ...और हिन्दू भी ..!

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  19. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  20. अली सा,
    अमरेन्द्र जी की टोकारी के बाद आप की टोकारी सुखद रही।
    अरविन्द जी की या मेरी प्रतिक्रियाएँ ब्लॉग जगत में फैलाए जा रहे दुर्गन्ध से घुटन महसूस करते जनों की अभिव्यक्तियाँ हैं। अपनी आस्था और विश्वास को कहते भी लोग डरते हैं कि कहीं कोई तमगा न पहना दिया जाय! कोई साम्प्रदायिक, मुस्लिम विरोधी न कह दे!! प्रतिगामी, प्रतिक्रियावादी न कह दे!!! परिभाषाएँ बहुत संकीर्ण हो चुकी हैं और लोकतंत्र भींड़/भेंड़तंत्र ।
    ऐसे में ठाकुर न कहेगा तो कौन कहेगा? कहा ही बस है और पूरी ईमानदारी से कहा है, जो है सो है - इतना ही कर सकता हूँ। लेकिन यह घोष व्यर्थ नहीं गया है।
    आप की असहमति से सहमत हूँ :)निश्चिंत रहें, दृष्टि साफ है।
    ब्रम्हऋषि या ब्रह्मऋषि नहीं ब्रह्मर्षि होता है :) वैसे मैं तो बुद्धत्त्व का अभिलाषी हूँ लेकिन उस कथित 'क्रांति से भयभीत पलायनवादी' सा होना अनेकानेक अनेकानेक जन्मों की साधना और त्याग माँगता है। आलसी राम से तो इस कल्प में होने से रहा।

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  21. उन लोगों की तर्ज़ पर आपको भी कहना पड़ा ?

    इंसान अपने 'होने' या 'ना होने' की सफाई किस किस को देता फिरेगा और क्यों ? किसलिए ?

    आप 'जो' हैं वो हर दिन 'अभिव्यक्त' होते रहे हैं फिर झुंडों / भीड़ों की तर्ज पर / उकसावे पर प्रतिक्रिया दे बैठना ! आश्चर्य है मित्र !

    आज किसी ब्लॉग पर अरविन्द जी की रोचक प्रतिक्रिया पढ़ी उन्होंने कहा अल्लाह का वजूद है तो राम का क्यों नहीं ? फिलहाल उनकी टिप्पणी के मजे ले रहा हूं !

    आपके होने पर सहमत और खुश लेकिन स्वघोष के औचित्य से असहमत !

    क्रोध और इरिटेशन ! ये ठाकुर* लोग इसीलिए देर ब्रह्मर्षि बन पाते हैं :)


    [ब्रह्मर्षि *विश्वामित्र से क्षमा सहित ]



    एक और टीप :)
    मैंने सोचा इसी जन्म में सुधार कर लूं बड़ी मुश्किल से टायप कर पाया हूं ब्रह्मर्षि ! पूर्व टिप्पणी में मुझे भी खटक रहा था अतः उसे विलोपित कर रहा हूं ! बचे हुए निशान आप मिटा दीजियेगा!हो सके तो आपका प्रत्युत्तर इसके बाद चिपकाइये !

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  22. अपने अपने धर्म का पालन करना हर किसीका हक है ...
    पर कुछ लोग चिल्लाते रहते हैं कि उनका धर्म ही श्रेष्ठ है ... मतलब बाकि के धर्म निकृष्ट है ...
    इनको धर्म का मतलब ही नहीं पता है ... कुछ पुरानी किताबों (कुरान, गीता, बाइबल इत्यादि) को पढ़ कर ये सोचने लग जाते हैं कि यही सत्य है ... दरअसल इनमें सोचने समझने की क्षमता नहीं होती है ...
    ये खुद अंधे होते हैं ... अंधत्व को वरदान मानते हैं ... और दूसरों को अंधा बनाने पर तुले हुए रहते हैं ...

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  23. निकट व दूरगामी परिणामों पर जाग्रत व सचेत रहने के आपके मनोबल को प्रणाम!!

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  24. मैं एक सच्चा भारतीय मुसलमान हूँ!

    वन्दे -ईश्वरम !!!

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  25. अब अपने सलीम खान को ही ले लीजिये , जनाव कहते है कि वे एक सच्चे भारतीय मुसलमान है ! अब मेरी जैसी अल्प बुद्धि वाला तो यही समझेगा कि यहाँ पर झूठे भारतीय मुसलमान भी रहते है ! खैर, मैं कहने ये आया था गिरिजेश जी कि इस देश का ज्यादा बेडा गरक हमारे सेक्युलर भाइयों ने ही किया है !

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  26. @ आदरणीय अली जी ,
    ठाकुरों के बारे में कह दिया , देव , ब्राह्मणों के बारे में कहिये ?? .. :)

    'राम' पर आप रोचक-प्रतिक्रियाजन्य-आनंद ले रहे हैं तो मुझे याद आ रही है एक कौवाली में गाई गयी पंक्तियाँ ---
    '' राम की पड़ गयी खींचातानी , राम पड़े जन्जालन में ,,,,
    ,,,,,,,,, बहुत कठिन है डगर पनघट की ... ''

    'तात्कालिक कुछ' का संकेत मैंने अपने आरंभिक कमेन्ट में कर दिया है , इसका औचित्य भी 'तात्कालिक कुछ' के रूप में ही देखा जाय ... बाकी मैं 'शाश्वत कुछ' का आग्रही हूँ !!

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  27. मेरे देश में यदि सर्व धर्म समभाव जीवित है तो बस इस कारण कि यह हिन्दू बहुल है। मुझे अपने देश पर और अपने हिन्दू होने पर गर्व है।

    हमें भी भारतीय और हिंदू होने पर गर्व है ।

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  28. @ अमरेन्द्र जी ,
    भाई , जिन्हें हाशिए पर जाना चाहिये उनका नोटिस लिया जा रहा है ! सीलन भरी कोठरियों से उठते भभूकों को प्रतिक्रिया देकर इज्ज़त बख्शी जा रही है !
    व्यक्तिगत रूप से मैं , आपसे सहमत हूं कि रचनाशीलता / सृजनधर्मिता को सबसे बड़ा खतरा धर्मान्धता/कट्टरपन से है ! मेरे लिए आप, निश्चित ही किसी दोराहे पर नहीं हैं !

    आज तो ठाकुरों पर ही बात बनती थी भाई :)

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  29. सहमत हूं आपसे, । मात्रा गलती संघटन को संगठन कर लें

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  30. @ मिथिलेश जी,
    मात्रा गलती नहीं यह तो ब्लण्डर था।
    धन्यवाद, सुधार दिया है।

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  31. मैं भी हूँ. वैसे इस घोषणा का कारण? अरे प्रलाप करने वालों से क्या फर्क पड़ने वाला है. वो तो करते ही रहेंगे.

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    1. प्रलाप तक सीमित रहें तो बात ही क्या है, वे तो जन्मभूमि से लेकर बामियान बुद्ध तक और काशी विश्वनाथ से लेकर ट्विन टोवर तक सभ्यता का हर चिन्ह नेस्तनाबूद करने पर उतारू हैं|

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