गुरुवार, 24 नवंबर 2011

बेहूदे समय में एक बेहूदी पैरोडी


सुन्दर लाल सफेद, उफ! सम्मान।
प्रख्यात कथाकार घड़ियाल।
लबार।
गुरु की जयंती
झापड़ कृपाण
भ्रष्टाचार।
गृह मंत्री
मुझे नहीं पता
यह देश किधर जा रहा?
रिटेल
एफ डी आई
कैबिनेट मंजूरी।
प्रधानमंत्री
देश के हालात खराब हो सकते हैं।
रुपया गिरता जा रहा।  
चीर दूँगा।
विपक्ष
चेताया  
पक्ष
उकसाया
सबपक्ष 
निन्दनीय कर्म।
चक्के जाम
प्रदर्शन
कल बन्द की नोटिस।  
एक सनकी
एक झापड़
वाहे गुरु!  
(सत्ता सेवक साहित्य, वाह रे कथाकार!
इनाम वसूलने को मिले लबार!
आत्मा की चिता ज्ञानपीठ
मर गये कवि कुल! रह गये तुम!!)
टी एस इलियट याद आया है – कहीं का रोड़ा, कहीं पर जोड़ा
...
What are the roots that clutch, what branches grow
Out of this stony rubbish? Son of man,
You cannot say, or guess, for you know only
A heap of broken images, where the sun beats,
And the dead tree gives no shelter, the cricket no relief,
And the dry stone no sound of water.
...
....
“My nerves are bad to-night. Yes, bad. Stay with me.
Speak to me. Why do you never speak? Speak.
What are you thinking of? What thinking? What?
I never know what you are thinking. Think.”
I think we are in rats’ alley
Where the dead men lost their bones.
 “What is that noise?”
 The wind under the door.
“What is that noise now? What is the wind doing?”
 Nothing again nothing.
 “Do
You know nothing?
Do you see nothing?
Do you remember Nothing?”
 I remember
Those are pearls that were his eyes.
“Are you alive, or not? Is there nothing in your head?”
...
मुझे नहीं पता
“चोर है!”
“सब चोर हैं।“
...
कानों पर अटखेलियाँ हैं गर्म सिसकी, देह पिघले मोम जमती सर हवा।
लगा चाटा चटाक, जल उठे हैं गाल, जम गई है देह डाँट- कल्पना मूर्ख!  
आ पहुँचे हो उनके सामने तैरते राख नदी पर, हवाई तिलस्म में घुलते
देखो! छिटक उठे हैं सितारे इस गहन चिरगर्भवती धरा की ममता कोख में  
देखो! निहारिकायें उड़ा रही हैं धूल धमाल अरे! साज ताल, सुनो पखावज
नाद निर्वात नित नृत्य नग्न हो उठा नवीन। काट खाया है निज को शोणित हीन
चमकती खाल से झाँकती शिरायें – यह सच है अज्ञानी, झुको सच के आगे!  
सामने सच विराट, श्याम मुंड लाट, श्याम भूधर हवाखोरों के वार
सहस्रों छिद्र मोहन, सहस्र रूप, सहस्र किनारे चमके  हजारो हजार
झुका हूँ, घुटनों को गला रहा शीतल तेज़ाब, देखा कभी कृष्ण प्रकाश?
इतना चौंधियाता! धड़के धड़ दिल हजार हजारो भुलक्कड़ साष्टांग अभिचार
उगलने लगी हैं पसीना घायल नोच दी गयी शिरायें, उतर रही है खाल
धीरे धीरे मांस पकता नमकीन जलन! देख रहा अस्थियों के चमके फास्फर;
 हे देव! तुम्हें ऐसे ही मिलना था। क्या करूँगा मैं जब देह ही नहीं रहेगी?
कौन हो तुम लोग मुझे रोकने वाले? सामने क्यों नहीं आते, क्यों यूँ लजाते?
हाथ घुमाओ यूँ जैसे कि किसी पास खड़े को लग न जाय, हम दिखेंगे
हुई है हाथों में जुम्बिश और मुझे घेरे खड़े हैं हजारों दमकते स्याह से –
यहाँ कोई काल नहीं सब वर्तमान है, फिकर करोगे तो सब दिखेंगे
....
...
न करो उम्मीद कि मैं फँसूगा 302  या 307 में - 
प्रतिष्ठित महापंडित रावणों का वध? 
हा, हा, हा 
सिवाय खुद को मारने के, 
किसी की ओर तना आक्रोश 
आतंकवाद की एक और घटना होती है। 
अट्टहास करता एक रावण चुप हो 
मीठी जुबाँ कहता है - 
अब सिर्फ मैं ही बचा एक ईमानदार 
मुझे मारना मानवता पर महान संकट लायेगा - 
I feel ashamed about myself 
I desire for fire
I desire to fire 
While still stuck up between these two fires - 
Economy takes twofold swings
It grows, it limps making millions neuter - 
Whole world is suffering from erectile dysfunction 
And population is growing, growing, growing on … 
ज़िबह होने को।
...
...
बरसती उमस रोज सूखे आसमान से
सत्ताइस डिग्री पंचानबे परसेंट 
चमकता कोलतार धूल लापता 
आदमी उड़ता भाप बन और हवायें नमक नमक। 
टपकते पसीनों से धुल गई सड़कें 
आकाओं की सवारियाँ गुज़री है अभी अभी 
हवा हुई है हर्जनुमा हसरतें हलाल हरदम 
हमारी आँखें लाल लाल इनमें गुस्सा नहीं 
आँसू सूख चुके इनमें घुसा पसीना देह का सभी। 
No we don’t cry, we laugh in ecstasy
For the air is filled with nitrous oxide 
We all are happy, this is land of happiness. 
There is no marrow left in our bones
They have filled the nectar of joy in. 
We never die, we are a cancer free society
We don’t cry, we are sons of heavenly spirits.
हम हैं बेपर्दा हमारा सब कुछ है सामने 
बढ़ रहे हैं पर्दानशीं घर में, दफ्तर में, सड़क पर 
मालों में खुलने लगे हैं शो रूम नकाबों के 
एक से बढ़ कर एक रकाबों के 
वे सवार हैं म्यूटेंट हिनहिनाते गुल घोड़ों पर 
जिनकी पूजा के मंत्र नहीं हमारी किताबों में 
निकला किये हैं रोज वे दिग्विजय को 
रोज़ उनकी जश्न है रोज विजय है 
But neither horses are sacrificed nor hymns are sung 
और रोज़ होता है अश्वमेध उनका।
सुनते हैं रोज़ हम उनकी दास्तान-ए-मुहब्बत
एच डी ट्रांसमिशन एल ई डी थ्री डी टीवियों पर 
उफ्फ! वे हसीं चमकते सुनहले चेहरे 
उफ्फ! वे काँपते होठ और लरजते आँसू 
उफ्फ! वो अन्दाजे बयाँ और वो नशीली मुस्कान 
उफ्फ! वो हरकतें और नेपथ्य में बजती ताली 
उफ्फ! सड़ी ज़िन्दगी, लफ्जों में बच रही गाली।
They have thoroughly abused us, raped us 
That we have learnt and mastered all the tones of orgasm
We are a joyful society. 
We dance, we sing, we experiment 
Fresh breed of fleshy musicians in Bollywood compose 
Sweet music of Satan laden with Khudai words
Ah Sufi! you have been resurrected.
Nothing is true, nothing is false, all are elusion.
O! your panty hose, written there liber allusion
हरहराती भागती सेक्सी ज़िन्दगी – Fuck you! 
गालियों में दम नहीं we are disappointed.
अफवाहें हैं कि दूध के पैकेटों में हैं वे हॉर्मोन 
जिनसे मर्दानगी खत्म होती है 
यह यूँ ही नहीं हुआ कि हिजड़े 
डिजायनर जींस पहनने लगे हैं और 
क्रांति के विश्वविद्यालयों में फ्रीडम ही फ्रीडम है। 
पढ़ो, सोचो, चिल्लाओ और नौकरी पाओ 
एक अदद बीवी, दो अदद बच्चे।
मजे जिन्दगी के ऐसे या वैसे 
आकाओं ने कर रखे हैं हजारो इंतजामात 
तुम्हें क्रांति चाहिये – ये लो 
तुम्हें भ्रांति चाहिये – ये लो 
तुम्हें शांति चाहिये – ये लो 
फ्रस्ट्रेशन चाहिये – ये लो 
सब बिकाऊ है, माल में सब मिलता है
खरीदने की भसोट होनी चाहिये 
यह मल्टी डायमेंशनल मार्केटिंग का दौर है
He who curses the market most 
Is marketed the most.
सत्यम् शिवम् सुन्दरम् 
Proletariats of the world! Be united.
हमारी सरकार सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय।
हर्फ टूटते हैं, बिखरते हैं और 
बातें कहाँ से कहाँ पहुँच जाती हैं। 
यह बातों पर संकट का दौर है कि 
कहना और लिखना पढ़ना होता जा रहा कम कम 
और टाइप करते सॉफ्टवेयर टूल बदल देता है चुपके से शब्द 
हो जाते हैं अर्थ ज़ुदा, बयाँ ज़ुदा
जो बात थी एक मासूम सी धड़कन रवाँ 
हो गई है बकबक बयाँ 
वो कहते हैं कि क्या हुआ जो दीपक हुआ पिनक 
उसका भी अर्थ है, उसकी भी जगह है। 
कविता की मौत का मर्सिया पढ़ने का यह उत्तम समय है। 
......
I sat upon the shore
Fishing, with the arid plain behind me
Shall I at least set my lands in order?
...
मैं नहीं कह रहा कि
मैंने पहले कहा
न जड़ना आरोप मुझ पर उकसावे का-
मैं राजनेता नहीं।
...
More fair than the sun, | a hall I see,
Roofed with gold, | on Gimle it stands;
There shall the righteous | rulers dwell,
And happiness ever | there shall they have.
....
These fragments I have shored against my ruins
...
दत्त – दें तो किसको दें? कस्मै देवाय?
दयध्वम् – किस पर करें दया? सुसाइड हो गई एक हॉबी!  
दम्यता – किसका दमन? नक्सली सरगना मारा गया!
अश्वत्थामा हतो हत: ... अर्द्ध सत्यम्
एक अदद बीवी, दो अदद बच्चे।
मजे जिन्दगी के ऐसे या वैसे 
आकाओं ने कर रखे हैं हजारो इंतजामात।
सत्यं शिवं सुन्दरं
शांति:, शांति:, शांति:। 

9 टिप्‍पणियां:

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  2. गज़ब का लिक्खे हो भाई,बहुत बधाई !

    एक गंभीर पोस्ट !

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  3. मन में कितना कुछ दौड़ता है। हाँ, बाहर भी दौड़ता है, बराबर से।

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  4. काले अक्षरों में अपनी बकधुन है।
    हरे अक्षरों में 90 साल पहले रची इलियट की 'The Wasteland' की पंक्तियाँ हैं।
    बैगनी अक्षर का एक खंड दसवीं सदी की एक कविता 'Voluspo - The Wise-Woman's Prophecy'से लिया गया है। ...
    ... ज़िन्दगी हमेशा से ऐसी ही रही है। फर्क नज़रिये से पड़ते रहे हैं।...आँखों से कीचड़ कब जायेगा?

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  5. हर सदी में कुछ लोग हैं.. जो देखते हैं, सुनते हैं, महसूस करते हैं और ऐसे ही आक्रोश व्यक्त करते हैं। अधिकांश तो अभिव्यक्त भी नहीं कर पाते। कुछ अभिव्यक्त को पढ़ते हैं, सुनते हैं और शांति पाते हैं। अधिकांश न महसूस करते हैं न महसूस किये को सुनते/पढ़ते हैं, बस जीये चले जाते हैं। लगता है यह धरती ऐसे ही दो प्रकार के कीड़ों के बोझ से लदी प्रतीक्षा कर रही है किसी महाविनाश का।

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  6. अपस्मार और खंड मनस्कता का झटका देती है यह कविता तो

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  7. ".......we are living in rat's alley"


    thaetre of absurd याद आ गया .......

    लेखन में ऐसा आक्रोश आपको सहज बना जाता है..(न जाने मुझे ऐसा क्यों लगता है )

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