रविवार, 11 नवंबर 2012

दीपावली की खिचड़ी

बीता वर्ष अच्छा रहा। अपने लिये अपने अनुसार जीवन का एक सार्थक वर्ष बीता। विघ्न बाधायें रहीं, कुछ तो बहुत पीड़ादायक लेकिन मेरी यात्रा जारी रही। जो महत्त्वपूर्ण काम करने थे, पूरे नहीं हुये लेकिन प्रक्रिया चलती रही। यदि मृत्यु के समय कोई चाहना बाकी न रह जाय तो उसे ही मुक्ति मानना चाहिये। मैं उसी दिशा में चल रहा हूँ और यात्रा दिनों दिन निज को भरपूर करती, नये को विस्तार देती आसक्ति के उन आयामों में विचरती बीत रही है जो होश सँभालने के साथ ही आ जुड़े थे किंतु बीच के बहुत बड़े कालखंड में दुर्गम कोने अतरों में लुप्त हो गये थे।
अद्भुत बात यह रही कि मैं बाहर जितना ही मुखर हुआ भीतर उतना ही मौन साक्षी होता गया। मनुष्य और उसकी सृष्टि को शिशुवत समझता रहा।
पिता का 'ज्ञानवृद्ध पुत्र' अब वस्तुत: वृद्ध हो रहा है - देवत्त्व की ओर। कहते हैं 75 की अवस्था में मनुष्य देव हो जाता है। आशा है तब तक तो जियेगा ही 
आज जब कि धनतेरस की तैयारियाँ चल रही हैं, कृतज्ञ भाव से माता पिता, बन्धु, पत्नी, संतानों और अपने नियोक्ता के लिये सोचता लिख रहा हूँ। पार्श्व में कुमार गन्धर्व गा रहे हैं – नाथ हा माझा मो.. ही खला

इतने खल जनों से घिरा हूँ कि लगता है खल से ही ‘ख’ माने अंतरिक्ष और ‘खलु’ माने समस्त बने होंगे! लेकिन उन सब के होते हुये भी यदि आज इस तरह लिख पा रहा हूँ तो कोई नाथ भी होंगे ही। इस अनुमान को आप एक नास्तिक की आस्तिकता कह सकते हैं।
***** 
कल देर रात प्राची में बृहस्पति को निहारता रहा। देवगुरु बृहस्पति मुझ गुरुविहीन को चिढ़ाते से लगे। वे क्षण थे जब मैं किसी के साथ होते हुये भी नहीं होता। अक्सर ऐसा होता है क्यों कि जो साथ होते हैं उनसे कुछ कहना व्यर्थ ही होता है। ऐसे में एक साथ चेतना के दो स्तरों पर जीना होता है। 
आकाशीय प्रदूषण के कारण देवगुरु के अतिरिक्त चन्द तारे ही दिख रहे थे लेकिन मुझे पता था कि आज की रात देहाती नभ में इस समय सुरसरि के मनुसरि गंगा होने का दृश्य दिख रहा होगा। मृग राशिरूप रुद्र के मस्तक पर एक ओर से ब्रह्महृदय और बृहस्पति के मध्य होती हुई देवसरि आकाशगंगा  उतर रही होगी और दूसरी ओर से स्रोतस्विनी (Eridanus) गंगा बन भू की ओर बढ़ रही होगी।
gangaavataran
मूर्ख हैं हम जो इन गाथाओं को बस कपोल कल्पना मिथक कह नकारते रहे हैं। ये मिथ और धरा के इतिहास एवं वास्तविकताओं को नभ में सर्वदा के लिये अंकित कर देने के उपक्रम उन विलक्षण प्रतिभाओं का आभास कराते हैं जिनके उर्वर मस्तिष्क में एक अद्भुत  शक्ति जागृत थी – कल्पना। उनकी कल्पनायें ऋत से सम्वाद करती उन मूल्यों को गढ़ती और जीती रहीं जो आज भी प्रासंगिक हैं। आज की शब्दावली है नवोन्मेष यानि Innovation जो बिना कल्पना के असम्भव है। नहीं लगता क्या कि तमाम प्रगति के होते हुये भी कहीं हम भारतीय अपनी कल्पना शक्ति को खोते रहे हैं? प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल के ये शब्द भी पढ़ने को मिले:
‘...इक्कीसवीं सदी का सबसे बड़ा संकट कल्पना का संकट है। इक्कीसवीं सदी की सबसे बड़ी विफलता स्मृति और कल्पना की विफलता है। हम अपनी स्मृतियों से सीखना नहीं चाहते। हम अपने भविष्य की प्रदत्त कल्पनाओं से आगे जाकर कल्पनाएँ नहीं करना चाहते। ये सबसे बड़ा संकट है। और ये संकट ही हमारा स्थान है। हम ऐन इस संकट के बीचोंबीच खड़े हैं। मैं नहीं जानता कि ये कामना करने का पर्याप्त आधार हमारे पास है या नहीं लेकिन फिर भी यह कामना करना चाहता हूँ कि हम इस स्थान पर खड़े हो करके कल्पना के पुनर्वास का, विवेक के पुनर्वास का साहस कर सकें। तब संभवतः हम सचमुच अपने आप से कह सकेंगे कि हम दीप हुए, दीप भव होने की कामना हमने सचमुच पूरी करने की कम-से-कम कोशिश की।
*****
वरेण्य प्रकाशरूप सविता को चित्त में धारण करने का आह्वान करने वाले ऋषि विश्वामित्र बृहस्पति के लिये ऋक् संहिता में कहते हैं:
वृषभं चर्षणीनां विश्वरूपमदाभ्यम्। बृहस्पतिंवरेण्यम्॥
बृहस्पति विश्वरूप है। वह वरेण्य कहीं हमारी कल्पना शक्ति ही तो नहीं? विश्वामित्र जैसा कल्पनाशील और क्या कह सकता है?
ऋषि वामदेव तो सम्भवत: सूर्य में ही बृहस्पति का दर्शन कर लेते हैं:    
बृहस्पति: प्रथमं जायमानो महो ज्योतिष: परमो व्योमेन् 
सप्तास्यस् तुविजातो रवेण वि सप्तरश्मिर् अधमत् तमांशि। 
 वह प्रकाशपुंज के भीतर से सर्वोच्च नभ में प्रथम जन्मा है। सप्तरश्मियों के आलोक और अपने उद्घोष द्वारा हमें घेरे अन्धकार को दूर भगा देता है।  
टी वी पर, समाचारों में, हमारी चर्चाओं में और हमारे कर्मों में हर ओर खल तम का हाहाकार है। आज के दिन मेरी कामना है कि आगे आने वाले समय में हम ऐसे उद्घोष करें और उनके साक्षी भी हों जो तमस अन्ध हाहाकार को शमित कर दें। शब्दों और उद्घोष की दुर्दशा, उनके क्षुद्र व्यक्तिगत हित में उपयोग शमित हों।   
दीपावली राम की वापसी का पर्व है – ज्योतिपर्व। खल रूपी तम के पराभव का पर्व। कहते हैं कि हजारो वर्षों तक लोककंठ में रहने के पश्चात यह गाथा वाल्मीकि द्वारा पहली बार स्वरबद्ध हुई – क्रौंचवध के दृश्य की कारुणिकता और शोक से उपजा श्लोक छ्न्दगान। यह श्लोक दैवी उद्घोष है और वाल्मीकि से पहले इसी अर्थ में प्रयुक्त था। वशिष्ठ कहते हैं:
तम् उ ज्येष्ठं नमसा हविर्भि: सुशेवम् ब्रह्मणस् पतिं गृणीषे।
इन्द्रं श्लोको महि दैव्य: सिषु यो ब्रह्मणो देवकृतस्य राजा।
 (ऋक् 7-097-03)
विद्वान इस ऋचा में श्लोक का अर्थ वृहद दैवी लय और सर्वोच्च भाव से प्रेरित शब्दों से लगाते हैं जो कि आत्मा पर शासन करने वाले इन्द्र को व्यक्त करते हैं। वाल्मीकि की वीणा के लय पर बद्ध रामकथा इस अर्थ में एक प्रकाशकथा है।

हमारे दूसरे महाकाव्य महाभारत में जो भगवद्गीता है उसे तमसअन्ध-राष्ट्र को दिव्यदृष्टि प्राप्त संजय सुनाता है और अंत में अपना मत ‘मतिर्मम’ व्यक्त करते हुये जीवन के सार प्रस्तुत करता है: श्रीर्विजयोभूतिर्ध्रुवानीति:।
ये सार हम सबको प्राप्त हों:
श्री – अंत: और बाह्य सौन्दर्य
विजय – आंतरिक और बाहरी शत्रुओं पर विजय
भूति – दैवी और भौतिक सम्पदा
ध्रुव नीति – दृढ़ नीति

और
किसी सुलझे व्यास को यह कहने की नौबत न आये:
मैं बाँह उठा उठा कर कहता हूँ लेकिन कोई नहीं सुनता, मेरी कोई नहीं सुनता!
... हमें व्यर्थ के शोर से मुक्ति मिले, दिन प्रतिदिन बजते दगते पटाखों के बजाय हम अपने भीतर की लय पर नये ‘श्लोक’ रचें। ganga_descent_high
शुभमस्तु ॥

40 टिप्‍पणियां:

  1. .
    .
    .
    J,

    @ कहते हैं 75 की अवस्था में मनुष्य देव हो जाता है।

    पर इन सब देवों के खोजे सच अलग-अलग से क्यों होते हैं ?

    @ टी वी पर, समाचारों में, हमारी चर्चाओं में और हमारे कर्मों में हर ओर खल तम का हाहाकार है। आज के दिन मेरी कामना है कि आगे आने वाले समय में हम ऐसे उद्घोष करें और उनके साक्षी भी हों जो तमस अन्ध हाहाकार को शमित कर दें। शब्दों और उद्घोष की दुर्दशा, उनके क्षुद्र व्यक्तिगत हित में उपयोग शमित हों।

    कामना तो मेरी भी यह है पर मैं उतना आशावान नहीं... हम खल-तम में आकंठ डूब चुके हैं...हम अब प्वॉयंट ऑफ नो रिटर्न पर पहुँच चुके हैं... फिर किसी शिव को ताँडव करना होगा... फिर विनाश होगा...तभी उजाला उग पायेगा और सद्सृजन भी होगा अब...


    ...

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    1. sorry for my venture to interfere between you 2 intellectuals, सच अलग अलग शायद इसलिये भी होते हैं कि ज्ञान के विभिन्न सोपान हैं और हम जैसे कुछ निचले पायदान पर स्थिर\स्थित वालों को भी अपने स्तरानुसार सच मिल जाये।

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  2. अपने नियत िवश्व में समय बीते, इससे भला और क्या हो सकता है जीवन..

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  3. बहुत ख़ूब! धनतेरस और दीपावली की ढेरों मंगल कामनाएं!
    आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 12-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1061 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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    1. ग़ाफिल जी,
      धन्यवाद। आप के दिये लिंक पर गया। मुझे यह समझ में नहीं आया कि दीपावली पर्व पर दो वर्ष से भी अधिक पुरानी एक निहायत ही भ्रामक, विरोधाभासी और प्रोपेगेंडा वाली पोस्ट का लिंक लगाने की क्या आवश्यकता आन पड़ी? वह पोस्ट है - गैर-मुसलमानों के साथ संबंधों के लिए इस्लाम के अनुसार दिशानिर्देश। क्या सन्देश देना चाहते हैं आप? इस देश में इस्लामी तय करेंगे कि ग़ैर मुसलमानों को कैसे रहना है और कैसे अपने पर्व मनाने हैं?
      हम हिन्दू कब अपनी ग़फलतों और बेहूदगियों से मुक्त होंगे? आप को पता भी है कि ये कौन लोग हैं और इनके छिपे एजेंडे क्या हैं? आप की समझ पर तरस आता है। सेकुलरी कंडीशनिंग से हम कब मुक्त होंगे? यही समय मिला था आप को दो साल से भी पुरानी हैवानों की पोस्ट का लिंक देने को?
      इस्लाम को जानना है तो स्वयं क़ुरआन और हदीस पढ़िये, हैवानों के प्रचार पर मत जाइये।
      इस टिप्पणी के माध्यम से आप से विनम्र अनुरोध है कि या तो उन्हें हटाइये या वहाँ से मेरी पोस्ट का लिंक। यह सन्देश आप को ई मेल के माध्यम से भी भेज रहा हूँ। चूँकि बहुत से लोगों के ई मेल पते ग़लत होते हैं और सन्देश वापस आ लुढ़कते हैं, इसलिये यह अनुरोध यहाँ भी कर रहा हूँ।
      आप आये और मुझे मान दिये उसके लिये कृतज्ञ हूँ, आभारी हूँ लेकिन व्यापक हित में कुछ कटु सा अनुरोध कर रहा हूँ। आशा है कि आप उसका भी मान रखेंगे।

      सादर,
      गिरिजेश

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    2. अभी तक तो न वो पोस्ट हटी है न आपकी, यही अनुरोध चर्चामंच पर भी कीजिये।

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    3. अब वहाँ तो टिप्पणी करने से रहा। मेल बाउंस बैक नहीं हुई है तो इसका अर्थ यह है कि ग़ाफिल जी तक पहुँच ही गयी है। हो सकता है कुछ सोच विचार रहे हों।

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    4. सोंच-विचार?!?!?! अरे भैया जी, इन मूढ़मतियों के पास दिमाग़ है भी सोंच-विचार के लिए??? जितना प्रयत्न ये अपना स्वतंत्र विचार विकसित करने में लगायेंगे, उसके दशांश में ये शर्मनिरपेक्ष लोग बुद्धिजीवी घोषित हो, हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक सदभावना के सितारे बन जाते हैं. वैसे भी 'धिम्मी' बन के जीने की हमारी आदत बहुत पुरानी है.

      गाफिल बाबू अपने मरकस बाबा के अफ़ीम की पिनक में मस्त है... रहने ही दिया जाए... ये आँख खोल के सोने का बहाना करने वाले लोग हैं... जाग नही सकते...

      अभी तो बस यही चार लाइन याद आ रहा है:

      यह एकलिंग का आसन है,
      इसपर न किसी का शासन है,
      .............
      ............
      राणा तू इसकी रक्षा कर
      यह सिंहासन अभिमानी है...

      सादर

      ललित

      हटाएं
    5. आज यह मेल श्री रूपचन्द शास्त्री जी को भेजी गई जो कि, जहाँ तक मुझे पता है, चर्चा मंच के मॉडरेटर हैं:
      __________________
      आदरणीय शास्त्री जी,

      दीप पर्व की शुभकामनायें।
      जहाँ तक मुझे पता है, आप चर्चा मंच के मॉडरेटर हैं। एक दिन पहले नीचे लिखी गई मेल आप के चर्चाकार श्री ग़ाफिल जी को भेजी गई लेकिन लगता है कि उन्हों ने देखा नहीं या देख कर भी कुछ न करने का निर्णय लिया है। मेल स्पष्ट है। अभी तक उन्हों ने न तो उस दो साल पुरानी इस्लामी पोस्ट का लिंक दीपावली के अवसर पर की गई चर्चा से हटाया है और न ही मेरी पोस्ट का लिंक।

      आप से अनुरोध है कि मेरी आपत्ति पर तदनुकूल तत्काल कार्यवाही सुनिश्चित करें। इस पावन पर्व पर आप इस मेल को मेरा अंतिम अनुरोध समझें।

      सादर,
      गिरिजेश राव

      हटाएं
    6. शास्त्री जी ने चर्चा से उस इस्लामी पोस्ट का लिंक हटा दिया है। धन्यवाद।

      हटाएं
    7. लिंक बदल दिये जाने से मेरी टिप्पणी अब वहाँ अप्रासंगिक दिख रही है,अपनी टिप्पणी हटानी चाही थी लेकिन टिप्पणी हटाने का विकल्प नहीं दिखा। तदापि धन्यवाद तो बनता ही है और असुविधा के लिये खेद भी।

      हटाएं
    8. श्रीमान् मिरिजेश जी! संजय जी! और ललित भाई! आपका बहुत-बहुत आभार हमारी बुद्धि पर तरस खाने का! और चर्चामंच पर इस तरह की टिप्पणी करने का तथा उसे हमें मेल करने का! दरअसल बात यह है कि आप अपने विचार उस पोस्ट पर भी जाकर दें और चर्चामंच पर भी यही चर्चामंच का उद्देश्य है अगर आपको वह पोस्ट गाली लग रही है तो हम उसे भी चर्चा पर लगायेंगे ताकि लोग जान सकें कि पोस्टों पर ऐसी गालियां भी लिखी जाती हैं और कहीं यदि भगवान का भजन हो रहा है तो वह भी लगायेंगे कि ऐसा भी लिखा जाता है...क्या अच्छा और क्या बुरा है यह लोगों की व्यक्तिगत सोच पर निर्भर करता है और अपनी बुद्धि के अनुसार टिप्पणी कर सकते हैं यही तो चर्चामंच का मूल उद्देश्य है...अच्छा और बुरा जो कि नितांत व्यक्तिगत धारणा पर आधारित होता है हम दोनों दिखाएंगे उसपर आप अपने विचार से राय दें और उस पोस्ट पर भी जाकर दें इसी में चर्चामंच टीम की कृतार्थता है...मेरे विचार से आप हमसे नाराज़ न हों क्योंकि हमने अपनी तरफ़ से वहां कुछ नहीं लिखा है और हम आपकी प्रशंशा इसलिए करते हैं कि आपने ऐसी टिप्पणी करने का साहस किया...हम आपके स्वस्थ और प्रसन्न जीवन की कामना करते हैं...आभार आपका---यह मेल और आपकी टिप्पणी समयाभाव के कारण विलम्ब से देखा अतः विलम्ब से उत्तर देने के लिए खेद व्यक्त करता हूं आशा है आप हम से सहमत होंगे...शास्त्री जी ने जो वह पोस्ट हटा दी है यह बेहद दुःखद है क्योंकि चर्चामंच का यह मकसद कदापि नहीं होना चाहिए कि कुछ सिरफ़िरों और धर्मांधियों के धमकाने पर पोस्ट ही हटा दी जाय...गिरजेश भाई आपका ब्लॉग आलसी का ब्लॉग है...संजय भाई ख़ुदै कह रहे हैं मो सम कौन कुटिल तथा ललित भाई तो अभी तक अपनी प्रोफ़ाइल ही अपडेट नहीं किए आप सबके बारे में हम क्या कहें वैसे तो हम ग़ाफ़िल हैं ही ज़रा अपना ग़रेबान भी झांक कर देखें आपसब...संजय भाई उस चर्चा का शीर्षक था ‘चलो साथ मिलकर दीवाली मनाएं’ कौन साथ मिलकर भारत में रहने वाली और क़ौमों को आप साथ नहीं रखना चाहते? आज का हिन्दुस्तान अकेले आप तथाकथित हिन्दुओं के ही बलपर चल रहा है...बुरा न मानना हिन्दूधर्म के बजाय अगर आप मात्र मानवधर्म का पाठ सीख जायें तो शायद मानव का कल्याण हो सके...इसी संकीर्ण बुद्धि के बूते ब्लॉग बनाकर चले आए लिखने और बन जाना चाहते हैं रहनुमा...मुझे तरस तो नहीं आ रहा आप लोगों की बुद्धि पर पर मुआफ़ करना दोस्त! घृणा अवश्य हो रही है

      हटाएं
    9. गिरिजेश भाई! आपने टिप्पणी के स्वतः प्रकाशन पर रोक लगा रखी है शायद डरते होंगे कि कोई ऐसी टिप्पणी न कर दे कि आपकी स्वतन्त्र कुवाचालता पर आंच आ जाय...हिम्मत होगी तो मेरी टिप्पणी को प्रकाशित कर देना दोस्त...ईश्वर आपको सद्बुद्धि दे

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    10. संजय भाई ‘मो सम कौन कुटिल’! चर्चामंच पर आपकी अप्रासंगिक हुई टिप्पणी को भी डिलीट कर दिया गया है वैसे इन सभी डिलीशन से मैं बहुत ही दुःखी हूं कि आप सभी तथाकथित ज्ञानियों की समझ में यह नहीं आया कि चर्चामंच का उद्देश्य क्या है?

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    11. ग़ाफिल जी,
      ... थोड़ा टिप्पणी मॉडरेशन की तकनीक के बारे में भी जान बूझ लें तो अच्छा हो, आप 'चर्चा कर्म' जैसे गुरुगम्भीर दायित्त्व के निर्वाह में लगे हैं, इतना जानना तो बनता ही है।
      आप गफलतों से मुक्त हों, चर्चा के पहले पढ़ें, देश काल की मर्यादा समझें, मुक्तमना हो निर्णय लें एवं मानवधर्म और इस्लामी ज़िहादियों में अंतर समझ पायें; यही कामना है। इसके अतिरिक्त मुझे कुछ नहीं कहना। पहले के तीन बिन्दु उस अतिरिक्त को व्यक्त करते हैं जो मैं कह नहीं पा रहा। 'गुरु विरंचि सम' वाला अनुशासन याद आ गया है ;)

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    12. गाफ़िल जी,
      हरियाणा में एक कहावत चलती है, ’बुड्ढा मरे या जवान, हत्या सेती काम’ - आपके चर्चामंच की कृतार्थता वाली बात पर याद आ गई। गाली हो या भगवत भजन, आपको तो लिंक से मतलब है। बढ़िया है, लगे रहिये। हम सिरफ़िरों, धर्मान्धों और तथाकथित हिन्दुओं की प्रशंसा करने के लिये और सुखद भविष्य की कामना करने के लिये आप जैसे मानवधर्मी का आभार कैसे व्यक्त किया जाये, अभी तो यही उलझन है फ़िर मानव कल्याण की कैसे सोचें? यूँ भी ये विभाग आप सम बुद्धि-ज्ञान विशारदों से ही शोभा पाता है। आप कल्याण-कार्य में प्रवृत्ति अवश्य रखें, हम जैसे संकीर्ण बुद्धि वाले लोगों का जो होगा सो देखी जाएगी। रहनुमाई की कोशिश हममें से किसने की, स्पष्ट करेंगे क्या? निश्चिंत रहिये, अपना तो ऐसा कोई इरादा कभी नहीं रहा।
      हाँ, कम से कम मेरे प्रति आपकी घृणा जरूर हमेशा जीवंत रहे, ऐसी घृणा मेरे लिये तो संजीवनी का काम करती है।
      चर्चामंच पर मैंने टिप्प्णी की थी और उसमें लिंक नं. का भी जिक्र किया था। उस लिंक को बदलकर कोई दूसरी पोस्ट को वहाँ लगा दिया गया, इसलिये वो टिप्पणी अप्रासंगिक हो गई थी। आपने हटाया उसके लिये मेरा धन्यवाद। यदि सभी डिलीशन्स के कारण आप दुखी महसूस कर रहे हैं तो ये मामला आपके और आपकी टीम के बीच का है।
      चलता हूँ,पापी पेट का सवाल है। आगे आपसे सुसंवाद शाम के बाद ही पढ़ कर पाऊंगा।

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  4. .. हमें व्यर्थ के शोर से मुक्ति मिले, दिन प्रतिदिन बजते दगते पटाखों के बजाय हम अपने भीतर की लय पर नये ‘श्लोक’ रचें।

    ऐसा ही हो!

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  5. उत्तर
    1. डीकोड का प्रयास करते हैं :)
      ✘ - नकार
      ☀ - सूर्यग्रहण
      ★ - सितारे गर्दिशाँ ;)
      ☆ - चमकते तारे
      ☼ - पुन: चमकता सूर्य
      ✍ - लेखन
      ☬ - शिष्य धर्म सिख प्रतीक, खालसा
      ☮ - विश्व शांति
      ✔ - सकार, शान्ति, मंगल मंगल ...

      अब अर्थ आप बता दीजिये।

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    2. हे भगवान! ऐसी प्रज्ञा हो तो कोई पोस्ट लिखे, टिप्पणी पढ़े!
      coding-decoding दोनों के लिए- ओह! वाह!!

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    3. जय हो! एक लम्बी टिप्पणी लिखी मगर पोस्ट न हो सकी सो लम्बी बात संक्षेप में लिख दी. लाजवाब पोस्ट है. दीपावली पर हार्दिक मंगलकामनाएं!

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    4. अरे वही तो है "लंबी टिप्पणी का संक्षेप", आपने जिसे डिकोड किया...

      :०)

      सादर

      ललित

      हटाएं
    5. न था कुछ तम के सिवा
      फ़िर तमसो मा ज्योतिर्गमय की भावना
      चरणबद्ध तरीके से ज्योति का प्रकटन
      लिपिबद्ध
      सरबत दा भला(लोकहित-लोककल्याण)
      पूर्णता
      लक्ष्य प्राप्ति।


      :))

      हटाएं
  6. कई बार अबूझ लगता है पढ़कर लेकिन ऐसी हर बार अभिभूत हो जाता हूँ, इस बार भी हो गया।


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  7. दिग्भ्रान्तियाँ सृजन की मौलिकता को विश्लेषण के प्रवाह में मज्जन की जगह तिरोहित कर देती हैं / कथ्य की सफलता निषेचन का नियोजित आग्रह होता है ,जो मनःस्थिति के आधारभूत दीप को जलाने में सहायक होता है / व्यतिक्रमता के साथ ,भौतिक व अभौतिक साध्य क्लिष्ट हो जाते हैं ....सतत दीपावली का समायोजन व शुभकामनयें /

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  8. आभार।
    ऐसे बेहूदे मंचों पर जाना बन्द कर दीजिये जो हिन्दू पर्वों पर ढूँढ ढूँढ़ कर दो साल पुरानी इस्लामी ज़िहादी लेखों के लिंक देते हों।

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  9. बहुत बढिया । आपको दीपावली की शुभकामनायें

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  10. "ये सार हम सबको प्राप्त हों:
    श्री – अंत: और बाह्य सौन्दर्य
    विजय – आंतरिक और बाहरी शत्रुओं पर विजय
    भूति – दैवी और भौतिक सम्पदा
    ध्रुव नीति – दृढ़ नीति"


    "शिव" और "शव" में यही तो अंतर है!!!

    शिवमस्तु...

    सादर

    ललित

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  11. ✘☀★☆☼ ✍ ☬ ☮✔

    @अज्ञान के अँधेरे में ज्ञान का सूर्य और सितारे डूबे हुए थे, परन्तु शनै: शनै: ज्ञान का सूर्य और सितारे अब चमचमाने लगे हैं क्योंकि आपकी लेखनी, का प्रतिनिधत्व जो प्राप्त हो रहा है, विश्वशांति और लक्ष्यप्राप्ति के लिए।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बैस्टेस्ट डिकोडिंग सो फ़ार:)
      बाकी निर्णय पर मुहर तो मुख्य प्रोग्रामर को ही लगानी चाहिये या फ़िर अभी तक वांछित डिकोडिंग नहीं हुई?

      हटाएं
    2. @ Sanjay ji,
      aap befajool mein hamko credit de rahe hain, sab mehnat aap hi kiye hain, ham to khaali-pili packing kar diye hain...
      haan nahi to..!!

      हटाएं

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