Sumitra सुमित्रा मेघमयी
वर्षा से सम्मोहित भारत ने संवत्सर को वर्ष कहा, वर्षा के देवता इंद्र को देवराज बनाया। काव्य में मेघ हों या बरसते पर्जन्य हों, भारतीय मनीषा ने मानवीय भावों को उनसे उन्मेषित कर दिया!राम के प्रति जितना विश्वास माता सुमित्रा में दिखता है, किसी अन्य में नहीं। कवि ने उन्हें 'वाक्योपचारे कुशला' कहा है जैसे बात कर के ही दु:ख के मेघ हर लेने वाली counsellor हों -
आश्वासयन्ती विविधैश्च वाक्यैर्वाक्योपचारे कुशलाऽनवद्या
रामस्य तां मातरमेवमुक्त्वा देवी सुमित्रा विरराम रामा
राम वनगमन के समय सुमित्रा अपनी सपत्नी कौसल्या को समझाते हुये मेघ से जुड़ी उपमायें देती हैं। उनकी बातों में सूर्य हैं, चंद्र हैं, नयनों के जल हैं, शीत है, घाम है, समस्त प्रकृति उपस्थित सी है -
किम् ते विलपितेन एवम् कृपणम् रुदितेन वा
रामः धर्मे स्थितः श्रेष्ठो न स शोच्यः कदाचन ...
व्यक्तम् रामस्य विज्ञाय शौचम् माहात्म्यम् उत्तमम्
न गात्रम् अंशुभिः सूर्यः संतापयितुम् अर्हति
शिवः सर्वेषु कालेषु काननेभ्यो विनिस्सृतः
राघवम् युक्त शीतोष्णस्सेविष्यति सुखोऽनिलः
शयानम् अनघम् रात्रौ पिता इव अभिपरिष्वजन्
रश्मिभिः संस्पृशन् शीतैः चन्द्रमा ह्लादयिष्यति
सूर्यस्यापि भवेत्सूर्योह्यग्नेरग्निः प्रभोः प्रभोः
श्रियश्च श्रीर्भवेदग्र्या कीर्ति: कीर्त्याः क्षमाक्षमा
शिरसा चरणावेतौ वन्दमानमनिन्दिते
पुनर्द्रक्ष्यसि कल्याणि पुत्रं चन्द्रमिवोदितम्
त्वया शेषो जनश्चैव समाश्वास्यो यदाऽनघे
किमिदानीमिदं देवि करोषि हृदि विक्लबम्
किंतु मेघ सब पर भारी हैं -
मेघ जल से भर जाते हैं तो नीचे झुक जाते हैं। लौटा पुत्र चरणों में झुका होगा। वर्तमान के दारुण प्रसङ्ग से कौसल्या का ध्यान हटा कर सुमित्रा भविष्य के सुखद प्रसङ्ग की ओर ले जाती हैं -
अभिवादयमानं तं दृष्ट्वा ससुहृदं सुतम्
मुदाऽश्रु मोक्ष्यसे क्षिप्रं मेघलेखेव वार्षिकी
जब सुहृदों के साथ लौटे अपने पुत्र राम को आप अभिवादन में झुका पायेंगी तो वर्षा ऋतु के समय भरे मेघों के समान आप के आनंद अश्रु बरसेंगे।
मंत्रपूत जल से सिञ्चन करना प्रोक्षण कहा जाता है। सुमित्रा माता के उन आँसुओं को ऐसे जल की शुचिता प्रदान करते हुये कहती हैं -
अभिवाद्य नमस्यन्तं शूरं ससुहृदं सुतम्
मुदाऽस्रैः प्रोक्ष्यसि पुनर्मेघराजिरिवाचलम्
जब आप का शूर पुत्र सुहृदों के साथ लौट कर नमन अभिवादन में झुका होगा तब पुन: आप के आँसू उसका वैसे ही प्रोक्षण करेंगे जैसे मेघ पर्वत पर बरसते उसे भिगोते हैं।
राम साँवले हैं, विशाल पर्वत के समान ही समस्त परिस्थितियों में अचल रहते हैं, विचलित नहीं होते। माता के अश्रुमेघों के नीचे नत राम का विशाल घनश्याम भूधर व्यक्तित्व उन्हें अद्भुत गरिमा प्रदान करता है। दु:ख का काल है, सब ओर आशंकाओं की घटायें हैं किंतु वाक्योपचार कुशला देवी सुमित्रा उस समय को भी भावी सुख से जोड़ देती हैं। प्रकृत मन प्रकृति के मेघ वर्षण को देख आनंदित होता ही है, धरा सम्पूरित जो हो जाती है।
निशम्य तल्लक्ष्मणमातृवाक्यं रामस्य मातुर्नरदेवपत्न्या:
सद्यश्शरीरे विननाश शोकः शरद्गतो मेघ इवाल्पतोयः
लक्ष्मण की माता के वचन सुन कर राम की माता रानी कौशल्या के शरीर का दु:ख सद्य: नष्ट हो गया मानो अल्प जल वाला शरद ऋतु का मेघ हो। शरीर शब्द जिस धातु से बनता है, उसका अर्थ क्षरित होना होता है - शृ। दु:ख के क्षरण को दर्शाने हेतु कवि ने शरीर शब्द का प्रयोग किया है।
कौशल्या के मन को वर्षा ऋतु के पर्जन्य घन मेघों से ले कर शरद ऋतु के अल्पतोयी मेघों तक विरमा कर सुमित्रा ने रामवनगमन के दु:ख का शमन कर दिया। नाम ही है सुमित्रा, सु+मित्रा।
रामस्य तां मातरमेवमुक्त्वा देवी सुमित्रा विरराम रामा
राम वनगमन के समय सुमित्रा अपनी सपत्नी कौसल्या को समझाते हुये मेघ से जुड़ी उपमायें देती हैं। उनकी बातों में सूर्य हैं, चंद्र हैं, नयनों के जल हैं, शीत है, घाम है, समस्त प्रकृति उपस्थित सी है -
किम् ते विलपितेन एवम् कृपणम् रुदितेन वा
रामः धर्मे स्थितः श्रेष्ठो न स शोच्यः कदाचन ...
व्यक्तम् रामस्य विज्ञाय शौचम् माहात्म्यम् उत्तमम्
न गात्रम् अंशुभिः सूर्यः संतापयितुम् अर्हति
शिवः सर्वेषु कालेषु काननेभ्यो विनिस्सृतः
राघवम् युक्त शीतोष्णस्सेविष्यति सुखोऽनिलः
शयानम् अनघम् रात्रौ पिता इव अभिपरिष्वजन्
रश्मिभिः संस्पृशन् शीतैः चन्द्रमा ह्लादयिष्यति
सूर्यस्यापि भवेत्सूर्योह्यग्नेरग्निः प्रभोः प्रभोः
श्रियश्च श्रीर्भवेदग्र्या कीर्ति: कीर्त्याः क्षमाक्षमा
शिरसा चरणावेतौ वन्दमानमनिन्दिते
पुनर्द्रक्ष्यसि कल्याणि पुत्रं चन्द्रमिवोदितम्
त्वया शेषो जनश्चैव समाश्वास्यो यदाऽनघे
किमिदानीमिदं देवि करोषि हृदि विक्लबम्
किंतु मेघ सब पर भारी हैं -
मेघ जल से भर जाते हैं तो नीचे झुक जाते हैं। लौटा पुत्र चरणों में झुका होगा। वर्तमान के दारुण प्रसङ्ग से कौसल्या का ध्यान हटा कर सुमित्रा भविष्य के सुखद प्रसङ्ग की ओर ले जाती हैं -
अभिवादयमानं तं दृष्ट्वा ससुहृदं सुतम्
मुदाऽश्रु मोक्ष्यसे क्षिप्रं मेघलेखेव वार्षिकी
जब सुहृदों के साथ लौटे अपने पुत्र राम को आप अभिवादन में झुका पायेंगी तो वर्षा ऋतु के समय भरे मेघों के समान आप के आनंद अश्रु बरसेंगे।
मंत्रपूत जल से सिञ्चन करना प्रोक्षण कहा जाता है। सुमित्रा माता के उन आँसुओं को ऐसे जल की शुचिता प्रदान करते हुये कहती हैं -
अभिवाद्य नमस्यन्तं शूरं ससुहृदं सुतम्
मुदाऽस्रैः प्रोक्ष्यसि पुनर्मेघराजिरिवाचलम्
जब आप का शूर पुत्र सुहृदों के साथ लौट कर नमन अभिवादन में झुका होगा तब पुन: आप के आँसू उसका वैसे ही प्रोक्षण करेंगे जैसे मेघ पर्वत पर बरसते उसे भिगोते हैं।
राम साँवले हैं, विशाल पर्वत के समान ही समस्त परिस्थितियों में अचल रहते हैं, विचलित नहीं होते। माता के अश्रुमेघों के नीचे नत राम का विशाल घनश्याम भूधर व्यक्तित्व उन्हें अद्भुत गरिमा प्रदान करता है। दु:ख का काल है, सब ओर आशंकाओं की घटायें हैं किंतु वाक्योपचार कुशला देवी सुमित्रा उस समय को भी भावी सुख से जोड़ देती हैं। प्रकृत मन प्रकृति के मेघ वर्षण को देख आनंदित होता ही है, धरा सम्पूरित जो हो जाती है।
निशम्य तल्लक्ष्मणमातृवाक्यं रामस्य मातुर्नरदेवपत्न्या:
सद्यश्शरीरे विननाश शोकः शरद्गतो मेघ इवाल्पतोयः
लक्ष्मण की माता के वचन सुन कर राम की माता रानी कौशल्या के शरीर का दु:ख सद्य: नष्ट हो गया मानो अल्प जल वाला शरद ऋतु का मेघ हो। शरीर शब्द जिस धातु से बनता है, उसका अर्थ क्षरित होना होता है - शृ। दु:ख के क्षरण को दर्शाने हेतु कवि ने शरीर शब्द का प्रयोग किया है।
कौशल्या के मन को वर्षा ऋतु के पर्जन्य घन मेघों से ले कर शरद ऋतु के अल्पतोयी मेघों तक विरमा कर सुमित्रा ने रामवनगमन के दु:ख का शमन कर दिया। नाम ही है सुमित्रा, सु+मित्रा।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंसाधु!
जवाब देंहटाएंवाह👌👌👌
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