शनिवार, 28 जनवरी 2012

वसंत की भटकन

आज वसंत पंचमी है। माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पाँचवी तिथि, विक्रम संवत 2068। भारत की छ: ऋतुओं वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर और हेमंत में वसंत ऋतु सिरमौर मानी गई है। वसंत माने पुराने पत्तों का अंत। यह नवोन्मेष की ऋतु है। ऋतुचक्र और पंचांग के फेर से अंतर पड़ता है लेकिन यह ऋतु नई फुनगियों, अन्न की पकी बालियों, सरसो की पियराई और गालों की लाली की ऋतु है। वसंत कामदेव का पुत्र है। यह मौसम राग का मौसम है। वसंत पंचमी, महाशिवरात्रि और अंत में होली, ऐसी उत्सवी ऋतु कोई और नहीं।
बाहर पार्क में पेंड़ अभी भी ठूँठे हैं लेकिन चिड़ियों की चहक बढ़ गई है। समीर शीतल है लेकिन ठिठुरन ऊष्म का आभास है। शहर में फूलों का महोत्सव कुछ दिन पहले ही समाप्त हुआ है और मैं सोचता हूँ कि भारत की मनीषा धन्य है! राग ऋतु का प्रारम्भ विद्या की देवी के उत्सव से। ऋतु के भरपूर यौवन में औघड़ वरदानी, महाभोगी, महायोगी शिव के विवाह का उत्सव और अवसान के समय होली जैसा रंग भरा पर्व! रागमयी वृत्तियों पर विद्या की लगाम, भोग के साथ योग की साधना, और अंत तो जैसे होता ही नहीं, उससे उच्छृंखल इनकार होली के होरियान, भदेस, अश्लील सर र र र र ...रामचन्द्र शुक्ल का विरुद्धों का सामंजस्य! सृष्टि ऐसे ही तो चलती रहती है जब तक सदाशिव संहार न कर दें!
आज के दिन महाप्राण निराला की स्मृति स्वाभाविक है। हठपूर्वक अपना जन्मदिन वसंत पंचमी को मनाते थे। उन्हें और उनकी जीवनी पढ़ते लगता है कि सुसंस्कृत भारत अपनी सकल दुर्बलताओं और शक्तियों के साथ सामने आ खड़ा हुआ है। उन्हें अपनी प्रतिभा पर गर्व था और हिन्दी जगत की उपेक्षा का पर्याप्त अनुभव भी। सरस्वती पुत्र ने कभी हिन्दी में बात करना भी बन्द कर दिया था! रागविरागमयी स्वर लहरियों को पश्चिमी संगीत में निबद्ध किया जिन्हें आज तक समझने के न प्रयास हुये और न कोई खास सम्मान मिला।
उन्हें पढ़ते संगीत का अज्ञान अखरता है। बहुत प्रयास किया लेकिन ....। पहाड़ी, भैरवी, भूपाली, देस आदि के स्वर पहचान जाता हूँ। बिथोवन, बाख, विवाल्डी और मोज़ार्ट की रचनाओं को बजते सुन अनुमान लगा लेता हूँ लेकिन बस वहीं समाप्त। निराला की कविताई का सम्मोहन सर्वदा रहेगा। यहाँ तक कि कुछ पहचानने पर उनकी एक कविता को घनघोर रूप से अंग्रेजी कविताओं से गुँथी अपनी अधूरी रचना में स्थान देने से स्वयं को रोक नहीं पाया:

... साइकिल से उतरते हाँफते वह मुस्कुराया था - 
तुम्हें फिल्म बुरी लगी क्या? जिम से फायदा होगा और संगीत के लिये मुझे याद कर कर के दुआयें दोगे मनु!...सही ही कहता था - पॉजेसिव अतनु।
... आंटी के आगे अच्छा बच्चा बना बैठा हूँ। अंकल चौकी पर तकिये का सहारा लिये अधलेटे हैं।
"मॉम! भैरवी सुनाओ न। मनु इसीलिये आया है।"
...सुबह सुबह झूठ! अतनु तुम माँ से भी झूठ बोलते हो?...
मधुर मातृस्वर - 
सुर-नर-मुनि जनमानी, सकल बुधज्ञानी
जगजननी जगदानी, महिषासुर मर्दिनी
भैरवी में कोई खासियत नहीं होती। सुरों में कोई अच्छाई नहीं और न ही हार्मोनियम में कुछ खास। खास तो मनुष्य़ का स्वर होता है। पत्तों से छन कर भीतर आती दिवस की पहली किरणें तन्मय स्वर में भीगती चली गईं और मैं? रवि रश्मियाँ तो हमेशा से मुझे पसन्द रही हैं। तुम, माँ, मन्दिर, पुजारी...उनके साथ जाने कितनी बातें, कितने लोग जुड़े हैं। भावुकता उमड़ पड़ी, स्वरलहरियाँ भीनती गईं। गीत गोविन्द, सॉनेट, पापा का मानस स्वर...सबने जैसे अपने छिपे कोष खोल दिये। तुम्हारा वह अक्सर कहना - मनु! बहुत कुछ समझ में नहीं आता - समझ गया। स्वयं से कहा - उर्मी! अबकी मिलो तो बताऊँगा...आंटी गाती रहीं, मनप्रस्तर पर स्वरलिपियाँ - सर्वदा के लिये सुरक्षित।
भवानी दयानी, महा वाकवानी
ज्वालामुखी चंडी, अमर पददानी
जगजननी जगदानी।
"मनु! तुम्हारे यहाँ गाते बजाते हैं?"
"नहीं...बस अष्टमी के दिन गाँव में कीर्तन होता है।"
"तुमी कानो एस्चो?" आंटी हँसने लगी हैं।
"निराला को जानते हो? हिन्दी कवि?... हमारे बैसवाड़े के थे?"
"मैंने हिन्दी कवितायें उतनी नहीं पढ़ीं।"
"भालो ना... सुनो उनके कुछ शब्द भैरवी में ही।"
अतनु हार्मोनियम पर मुस्कुराया है।
"गृह-गृह पार्वती, सुन्दर-शिव सँवारती
उर-उर आरती, ग़ृह-गृह पार्वती।
उर-उर आरती।" ... आंटी गाती रहीं और संगीत निरक्षर नहाता रहा...

बचपन के संस्कार। पीत वस्त्र, पीत पुष्प, पीत मिष्ठान्न और पीत तिलक -  वर दे! वीणावादिनी वर दे। स्वयं से पूछ रहा हूँ – किस तरह का नास्तिक है रे तू!
“आप लोग जाइये। मैं बाहर खड़ा हूँ।“
“आक्रोश है, इसका अर्थ है कि मानते हो?”
“कुछ भी कहो मैं मन्दिर में नहीं जाऊँगा।“
आनन्द अच्छा गाता है -  
काट अंध उर के बंधन स्तर
बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर, जगमग जग कर दे।
श्मशान के ऊपर वसंत राग।
“कहाँ हो आनन्द? आज वसंत पंचमी है। सुनने का मन कर रहा है।”

“ हलो! ... सुप्रभातम सर!”
“जग गये क्या? वसंत पंचमी की शुभकामनायें।“
“हाँ, जग ही रहा हूँ। ... वाह! आप ने अच्छी याद दिलाई।“
“मुझे आप के स्वर में ‘वर दे’  की रिकॉर्डिंग चाहिये।“
“हा, हा, हा... अभी तक याद है। अवश्य, अवश्य ... किसी न किसी बहाने यह सम्पर्क बना रहना चाहिये।“
“गीत याद भी है या भूल गये?”
“अरे नहीं यार! याद है ...भूलेगा तो 'रागविराग' पड़ी है घर में। देख लेंगे। श्रीमती जी हिन्दी से एम ए कर रही हैं।
“... गा कर भेजिये न! जल्दी से दिन में ही... चाय पीने के बाद का पहला काम।“
“हा, हा, हा.... मानव मन विचित्र होता है।“
“कैसे रिकॉर्ड करेंगे? मोबाइल पर तो एक मिनट की सीमा होती है।“
“अरे नहीं। कर लेंगे।“
“मैं इंतज़ार कर रहा हूँ।“... 

..."रिकॉर्ड तो कर लिया लेकिन वह बात नहीं आ पाई। आप सामने बैठे होते तो शायद वह बात आ जाती!" 
मन ही मन बड़बड़ाया हूँ - वह युग पुन: कहाँ आयेगा आनन्द! अब देखिये न, उस समय भी आप आप ही कहते थे लेकिन  अब के आप में वह आप कहाँ? जो बीत गई सो बीत गई। 

लीजिये सुनिये, आनन्द ने भेजा है।


 मेरे लिये वसंत स्मृतियों का आनन्द है। वसंत पंचमी, श्रावणी ... कैसे कैसे पर्व! वर्तमान के किनारे भूत में जीता मैं।
देख रहा हूँ कि आने वाली 14 फरवरी को समूचा संसार बढ़िया जायेगा। फूलों की बात के लिये दिन की प्रतीक्षा क्यों करनी? पंचमी हो, श्रावणी हो या वैलेंटाइन डे या कोई भी सामान्य सा दिन! 
... फूल खिलते रहेंगे। सड़कों पर पसीने टपकते रहेंगे। जगमग जग कोठियाँ तनती रहेंगी। भूख मरोड़ती रहेगी। मालों के आगे सड़क के डिवाइडरों पर नाइट शिफ्ट की बस्तियाँ भी बसती रहेंगी। चूल्हे के नाम पर सड़क के आवारा ईंटों से घिरी आग जलती रहेगी। जिनके कैलेंडर से होली दिवाली के अलावा सभी त्यौहार ग़ायब होंगे। वे दो भी इसलिये कि फुरसत का बहाना मिलता है और देसी ठर्रे की बाढ़ में बहा देने को जिन्दगी का राग भी...
...और एक जीवधारी ऐसे ही भटकता रहेगा।

वर दे! वीणावादिनी वर दे!     

19 टिप्‍पणियां:

  1. बुद्धि और समृद्धि से देश खुशहाल हो, वसंत पंचमी की शुभकामनाएँ!!

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  2. गर्मी आने का संकेत है, सर्दी जाने का संदेश है, सम में उत्सव

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  3. @वीणावादिनी वर दे!

    वर दे ही दो हे वीणावादिनी !!

    (आचार्य लोगों को पता नहीं कितने वर की जरूरत पड़ती है :))

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  4. आवाज साफ नहीं आई। सुनने में आनंद नहीं है। लेख गुरू-गंभीर है। कमेंट लिखने से पहिले ही मिट जा रहे हैं। यह वासंती हवा अपना राग तो सुनायेगी ही..आप चाहे इसे जो नाम दें।..शुभकामनाएँ।

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    1. 15 वर्षों के बाद आनन्द ने यह गीत गाया। वे कितने प्रसन्न हुये, मैं अनुमान ही लगा सकता हूँ। तब जब कि सुर तक भूल गये हों और पुराने संसार से पुकार आये तो कैसा होता है? ... गीत से वह स्वयं संतुष्ट नहीं लेकिन मैंने तो अपनी वाली करा ही ली :) ...हमारी मुलाकात एक संयोग ही थी और उसके बाद की कहानी पर एक अच्छा उपन्यास लिखा जा सकता है लेकिन...विश्वास कीजिये कि अगर आनन्द ब्लॉग जगत में आ जायँ तो एक चमकते सितारे होंगे लेकिन ...
      आप की टिप्पणी स्पैम में अटकी थी।

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  5. काट अंध उर के बंधन ... बसंत भटकता रहा और आपका लिखा मुझे भजन के साथ अभिभूत करता गया ...

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  6. वसंत के भटकाव के बहाने ही अधूरी कहानी का अंश पढने को मिला !
    शुभकामनायें !

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  7. इसे खोजता ही आया था मुझे मालूम था आप बसंत पंचमी और निराला को अनदेखा नहीं कर सकते ...
    कामदेव की ध्वजा पर मीन का अंकन कुछ निहितार्थ लिए है .....और पूरा मोहकमाये
    मछलियांन इधर है ... :)

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    1. मोह+कमाये - अच्छी कमाई है :)
      मकरध्वज किसे कहते हैं?

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    2. आश्चर्य है कि शिव ने जब कामदेव को भस्म किया तो उस समय वह आम के पत्तों में छिपा था। क्या उस समय वसंत ऋतु थी? कामदेव और शिव का मिथक क्या सन्देश देता है? महाशिवरात्रि, शंकर की बारात, वसंत ऋतु, वसंत कामदेव का पुत्र ...जाने कितने सन्देश छिपे हैं!

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  8. उल्लू गया, चाँद गया, आयी बसंत बहार
    अच्छा किया, खूब किया, हेडर दिया सुधार।

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  9. ऋतुओं का राजा है वसन्त, राग-रंग के मनमाने रूपों से सजा .राग का परावर्तन ही बन जाता होगा मन की भटकन !

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  10. कुछ चीजों पर सिर्फ़ मुग्ध हुआ जा सकता है, आपकी लेखनी कुछ ऐसी ही चीज है।
    वसंत की शुभकामनायें।

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  11. वसंत पंचमी को जब सूरज ने आँख खोली, संयोगवश गँगा के पुल पर था, काशी छोड़ता हुआ।
    बस एक अकेली भोर ही हिस्से थी, स्मृतियाँ भी न....!!!

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