गुरुवार, 14 अगस्त 2014

ऋग्वेद के पथ - 2 : 'हिन्दुस्थान' नाम विवाद सन्दर्भ

दस ऋषिकुलों के आह्वान मंत्रों आप्री में तीन देवियाँ भारती, सरस्वती और इळा समान रूप और आदर में पायी जाती हैं। मेधातिथि और काण्व भारती के लिये 'मही' का प्रयोग करते हैं तो कुछ ऋषिकुल मही और भारती दोनों का।

भारती धरती है, सरस्वती जीवनस्रोत और इळा मानवीय प्रज्ञा। दो प्रतिद्वन्द्वी कुल कौशिक विश्वामित्र गाथिन(3.4) और वसिष्ठ मैत्रावरुणि (7.2) अलग स्थानों पर एक ही ऋचा का प्रयोग करते हैं।

इस प्राचीन, विराट और संस्कृतिबहुल देश के लिये आवश्यकता इस बात की है कि एकता के बिन्दु खोजें जायँ जहाँ विविधता के प्रति सम्मान हो, स्वीकार हो और साहचर्य हो न कि ऐसे जुमले जो विकट समस्याओं से भीत पाखंडी समाज को आँखें फेर कुकुरझौंझ के मौके प्रदान करें।

कौशिकों और मैत्रावरुणों के आह्वान स्वर में मेरा स्वर भी मिला लो देवियों! देश में सद्बुद्धि का प्रसार हो।

आ भारती भारतीभि: सजोषा इळा देवैर्मनुष्येभिरग्नि:
सरस्वती सारस्वतोभिरर्वाक् तिस्रो देवीर्बर्हिरेदं सदंतु।

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माता भूमि: पुत्रोऽहम्

शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

नागपंचमी की शुभकामनायें

Temple of Secretshttp://temple-of-secrets.blogspot.comShri Mukti Naga Temple, Bangaloreआज नागपंचमी है। पुरनियों के स्मृतिपर्व पर आप सबको शुभकामनायें। नाग उतने ही प्राचीन हैं जितने भृगु, अत्रि, अंगिरादि। नाग 'देवता' हैं, नाग 'बाबा' हैं, देवों और पितरों दोनों को अपने में समेटे हुये हैं। संवत्सर धारी सूर्यप्रतीक शिव के दक्षिणायन और उत्तरायण दोनों रूप उनमें समाये हैं। मुख्य भारतभू के सभी जनों में किसी न किसी रूप में नागों के जीन हैं।

वैदिकों के समांतर उनसे स्वतंत्र नाग जाति धीरे धीरे उस धारा में समा गयी जिसे आज सनातन हिन्दू कहते हैं। ऋग्वेद में अहिवृत्र इन्द्र का प्रतिद्वन्द्वी है। महाभारत काल आते आते नागिनें वैदिक राजकुलों की घरनियाँ होने लगती हैं। नागों से युद्ध भी होते हैं, सन्धियाँ भी होती हैं, वैवाहिक सम्बन्ध भी होते हैं। मातृपक्ष से देखें तो कृष्ण बलराम में नाग अंश है। भीम अर्जुन में नाग अंश है। अर्जुन नागकन्या उलूपी से विवाह करते हैं तो खांडववन प्रकरण में नागों का संहार भी। भीम को पाश और विष से अभय नागों द्वारा मिलता है। परीक्षित काल में नाग प्रत्याक्रमण करते हैं तो जनमेजय काल में उनकी शक्तियों का नाश होता है। बौद्धकाल में वे प्रबल ब्राह्मण क्षत्रिय कुलों के रूप में पुन: उठते हैं। परवर्ती बौद्धकाल के दिगनाग हों या नागार्जुन, उनके नामों से ही नागों की महत्ता स्पष्ट हो जाती है। सनातन धारा में बौद्धों के विलयन के साथ ही नाग भी विलुप्त हो जाते हैं, बच जाते हैं नागवंशी क्षत्रिय, नागों को लपेटे कुछ कश्यप, उन्हें मस्तक पर धारण किये कुछ भारशिव, राज्य करते राजभर।
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nagas_the_kerala_temples_image  ग्रामीण भारत आज मल्लविद्या के आयोजनों में व्यस्त होगा। गृहिणियाँ गोमय से नागबाबा की प्रतिकृति उकेरते घर को रक्षा घेरे में ले लेंगी। दूध और धान के लावा का प्रसाद चढ़ायेंगी। शुभ पकवान दलभरी पूड़ी और खीर बनायेंगी। naga-Hoysala-Belur-Chennakeshava-Temple-gm-
सच कहें तो किसी अन्य भारतीय नृजाति(यदि कह सकें तो) को इतना सम्मान नहीं मिलता। नाग भारत के रक्त में रच बस गये ऐसे कि पहचान भी कठिन हो गयी। मन्दिरों का शिल्प युगनद्ध नागयुगल के चित्रण बिना असम्भव हो गया। 
इस प्राचीन उत्कीर्णन में बौद्ध त्रिरत्न की आराधना करते नागों को देखिये, आप को लगा न कि शिवलिंग की उपासना में सर्प लगे हैं?

Naga people publ 1910 
भारत के कई प्रतीकचिह्न अनेक अर्थ रखते हैं। इसका कारण सम्मिलन, संलयन, विलयन और जीवन की वह सशक्त, अक्षुण्ण और बली परम्परा है जिसने सबको अपनी गोद में स्थान दिया।
भारत के विशाल शिवरूपक को देखिये। यदि सिर पर हिमालय है तो उससे लिपटे नाग भी विराजमान हैं। गले में तो नागेन्द्रहार है ही जिसका विष उसने वहीं धारण कर रखा है। कर्पूरगौर भस्मदेह शिव का नीला गला विलयन में भी स्वतंत्र अस्तित्त्व को दर्शाता है।
यह लोकपर्व आप के लिये शुभ हो।
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