गुरुवार, 13 नवंबर 2008

अनाम वनस्पति के नाम . . नाना


काम करतॆ करते अचानक समय में भटक सा जाता हूं। कई साल दूर . . . .
शमी के फ़ूलों पर अटकी ओस की बूंदें . इल्लियां सरकती हैं पत्तियों पर और पगडंडी के चारो तरफ फैले जंगली फूलों के गंध से बौराया मैं पूछ बैठता हूं. . पिताजी इसका नाम क्या है? (आप पूछेंगे कि पगडंडी के दो ही किनारे हुए चार कहां से आए? संभवत: आप ने भाठ के खेतों में खेतवाही नहीं की है!)

पता नहीं बेटा ऐसे ही कोई पौधा है. भला इनके भी कोई नाम होते हैं. नहीं पिताजी नाम तो होगा आप को नहीं पता. नाना होते तो बताते . . . .

ये फूल आज भी होते हैं और अपनी कार से उन रास्तॊं से गुज़रते हुए आज आंखें नम हो जाती हैं . . . कितना कुछ खो दिया हमने . . . ये पौधे हम देहातियों के मित्र हुआ करते थे . . आज इतने अज़नबी हो गये हैं कि हम इऩ्हें बस घास कहते हैं। वनस्पति विज्ञानी कोई नाम तो ग्रीक/लैटिन/रोमन में बता ही देगा लेकिन वह लगाव कहां से लाएगा? . . . नाना!

जब भी खेतवाही करने निकलता हूं . . . इन फूलों की सरसराहट लगता है कि भरी दुपहरी में नाना किस्से सुना रहे हैं . . . सारंगा सदाब्रिज, लोरिक ,शीत बसंत . . . सब मुझे आगोश में ले लेते हैं . . . दिवंगत नाना कितने उपेक्षित हैं. . उनके कोई पुत्र नहीं हुए . हम असली मामाओं से वंचित उऩ्हें याद तक नहीं करते . .
मेरे बच्चों को कौन सुनाए? . . उऩ्हें समझ भी आएंगी वो सीधी साधी बातॆं ? हैरी पोटर तुमने बहुत नुकसान किया हमारा . . . बौराये फूलों की गंध अभी भी मेरे नथुनॊं को पसन्द आती है. . नाना और उनके किस्से याद आने पर अभी भी कानों को सिहरा जाते हैं. .

मां से कह कर दुआरे एक शमी का पौधा लगवा दिया है. . मां रोज उसके नीचे दिया बाती करती है. . . नाना का घर खंड्हर हो रहा है तो क्या हुआ . . .दुआरे वह फूल रहा है . . .
बौराये फूलों की गंध नथुनों में भर रही है . . एसी कमरे में बैठा छलछलाए मन से सोचता हूं रिटायर होने तक शमी कुर्सी लगा कर छांव में बैठने लायक हो जाएगा. . .