आप लोगों ने सम्भवत: देखा होगा, मेरा परिचय चित्र परिवर्तित होता रहता है। आज एक वनस्पति तो कल दूसरा पौधा। वास्तव में एक पुराने वचन को निभाने का प्रयास करता हूँ। प्रतिदिन तो नहीं हो पाता किन्तु आवृत्ति अधिक ही है। सदा की तरह इस बार भी मुझे कुछ नया करने के लिए सिद्धार्थ जी और बालसुब्रमण्यम जी ने प्रेरित किया है।
सिद्धार्थ जी जब लखनऊ आए थे तो उन्हों ने मुझे वचन के विपरीत अनियमित होने के लिए टोका था। मैं कई दिनों तक चित्र जो नहीं परिवर्तित करता। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतनी सूक्ष्म जाँच पड़ताल चल रही है! कल क्या हुआ कि ऐसे ही चैटिंग करते हुए बालसुब्रमण्यम जी ने टोका आप चित्र तो परिवर्तित करते हैं किन्तु इतने छोटे चित्र को देख कर देसी/वैज्ञानिक नाम आदि नाम कौन जानेगा? एक बार पुन: मैं सूक्ष्म दृष्टि द्वारा चेताया गया। उनका मंत्र मान मैं यह शृंखला प्रारम्भ कर रहा हूँ - अपने दिवंगत नाना की स्मृति में जिन्हें लोग उनके जीवन काल में ही देवता कहते थे और जो वनस्पतियों के गतिशील शब्दकोश थे।
मुझे कुछ नहीं आता जाता । बस एक भावुक प्रयास है। आप लोगों को प्रस्तुत वनस्पतियों के बारे में कुछ अधिक पता हो तो कृपया बतायें तथा मेरी त्रुटियों को सुधारने में किञ्चित भी संकोच न करें। हाँ, आलसी स्वभाव के कारण प्रतिदिन नया नहीं प्रस्तुत कर पाऊँगा। इस बार का कुछ भाग आप को टूटी फूटी पर मेरी टिप्पणी के रूप में भी मिल जाएगा।
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पौधा है : बरियार, अधिक सूचना हेतु :http:// ayurvedicmedicinalplants.com/ plants/1176.html
वैज्ञानिक (Botanical) नाम: Sida retusa (Linn.) Borssum, सामान्य नाम - जंगली मेंहदी
हम पूरबियों का एक त्योहार है - जिउतिया । शुद्ध नाम है जीवित्पुत्रिका (जो जीवित पुत्रों की माँ हो ?)। आश्विन (क्वार माह) कृष्ण पक्ष अष्टमी को यह तप-पर्व पड़ता है। वे सारी नारियाँ जिनके पुत्र जीवित होते हैं, वे उनके दीर्घायु और कल्याण हेतु निर्जला व्रत रखती हैं। विद्रोही स्वभाव की माताएँ, जिनकी केवल लड़कियाँ ही होती हैं, भी अपनी दुलारियों के लिए यह व्रत रखती हैं। पूरे 24 घण्टों तक निर्जल निराहार व्रत, उमस ताप में !
इस तप-पर्व के दिन बरियार लाखों माताओं का सन्देशवाहक बनता है। पौधा ढूँढ़ कर उसके चहुँओर सफाई कर उसे विशिष्ट दूत की तरह सजा दिया जाता है। माताएँ अक्षत रोली से 'अँकवार' देती हैं (भेंटती हैं) । बरियार का अर्थ होता है - बलवान। राम के पास जाता दूत बलवान तो होना ही चाहिए। बजरंग बली जो वहाँ हैं !
सीधे प्रभु राम को सन्देश जाते हैं , "ए अरियार ए बरियार जा के राजा रामचन्द्र से कहि दीह (बेटा, बेटी का नाम) के माई जिउतिया भूखल बाली"। कितनी ममताओं का आश्रय बनता है एक झँखेड़ा पौधा - भले साल में एक ही दिन ! मुझे इसे जंगली कहते लज्जा आती है। नागर न सही ग्रामीण तो है ही।
मुझे इतना ही पता है। माताओं, बरियार दूत और राम के बीच कुछ और गोपन होता हो तो नहीं मालूम । आप को पता हो तो बताइए।
बहुत उत्कृष्ट जानकारी. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
जानकारीपूर्ण पोस्ट.
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट जानकारी..........
जवाब देंहटाएंbahut achha !
जवाब देंहटाएंलीजिए हुजूर ! हटा दिया ससुरे वल्र्ड वेरीफिकेशन को । खामखां में तंग कर रहा था हमारे दोस्तों को । अजीजों की नाराज़गी अफोर्ड नहीं कर सकते हम । आप जैसे शुभेच्छुओं से ‘शुभेच्छा का प्रमाण’ मांगूं, इतना तो नामुराद नहीं । भई हमने नहीं मांगा था, कम्बख्त कंप्यूटर ही बदमाशी कर रहा था, हमें अनाड़ी जान कर । आपकी एक शिकायत पर कर दिया इलाज । हार्दिक धन्यवाद । आगे भी ऐसा ही सहयोग मिलता रहे बराए मेहरबानी ।
जवाब देंहटाएंआदाब
कोलाहल से कौस्तुभ
जिउतिया वाली ये लाइन तो मैंने भी सुनी है :)
जवाब देंहटाएंओह! रोचक पोस्ट और ब्लॉग में तो बहुत पोटेंशियल लग रहा है आपके।
जवाब देंहटाएंबहुत बरियार बा लेखनी!
bahut hi accha hai. badhai....
जवाब देंहटाएंजिउतिया ' त्यौहार की पहली बार जानकारी मिली आपसे ....न जाने कितने त्यौहार होगे जिनके बारे हम नहीं जानते ....जानकारी के लिए शुक्रिया ....!!
जवाब देंहटाएंगंगातीर वाले पांडे जी की पोस्ट पर आपकी टिप्पणी को पकडकर इहाँ तक पहुँचे हैं - बहुतै उत्कृष्ट जानकारी रही, धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहम भी फिर पन्हुचे। बरियार मनई! :)
जवाब देंहटाएंकुछ दिन बाद ये पर्व है तो फिर पढ़ा ये पोस्ट। और इसके बाद वाला भी ।
जवाब देंहटाएंकही कहीं रामचंद्र की जगह सीता जी का जिक्र आता है । कहीं हनुमान जी की माँ अंजनी ने तो ये व्रत नही रखा था । पुत्र की कुशलता की कामना हेतु ।
मन में आया ।
- नितीश ओझा ।
हर वर्ष जिउतिया के दिन आपकी पोस्ट निकाल कर पढ़ती हूँ।
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