रविवार, 25 मार्च 2018

भोजपुरी -12: रामनवमी : राम जी लिहलें अवतार रे चइतवा

फागुन रेचक है। वास्तविक मधुउत्सव तो चैत्र में होता है। नौ दिन नवदुर्गा अनुष्ठान, जन जन में रमते राम का नवजन्म नये संवत्सर में।
नवान्न दे पुनः प्रवृत्त होती धरा का स्वेद सिंचन, धूप में सँवरायी गोरी का पिया को आह्वान - गहना गढ़ा दो न, बखार तो सोने से भर ही गयी है!

चैत में शृंगार का परिपाक होता है। गेहूँ कटता है, रोटी की आस बँधती है, मधुमास भिन्न भिन्न अनुभूतियाँ ला रहा होता है एवं ऐसे में उस राम का जन्म होता है जो आगे चल कर मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये किंतु उनके जन्मोत्सव में जो भिन्न भिन्न पृष्ठभूमियों के लोकगायकों एवं नर्तकों की हर्षाभिव्यक्ति होती है, उसमें उल्लास स्वर नागर शास्त्रीयता तथा अभिरुचि की मर्यादाओं को तोड़ता दिखता है। इसमें गाये जाने वाले चइता चइती की टेर अरे रामा, हो रामा होती है। 
चइता पुरुष गान है। सुनिये चइता विशाल गगन के स्वर में। 
(अंत तक सुनने पर ही समझ में आयेगा कि चैत क्यों फागुन से श्रेष्ठ!)  

पूरी प्रस्तावना के साथ गान होता है। प्रकृति भी आने वाले के स्वागत में है, रसाल फल गए हैं, महुवा मधुवा गए हैं, पवन कभी लहराता है तो कभी सिहराता है। 
घर में नया अन्न आ गया है, पूजन हो रहा है, मंगल गान है, क्रीड़ा है। मस्ती भरे वातावरण में राम जी जन्म लेते हैं! ढोल की ढमढम के साथ बधाई गीतों की धूम है।

सावन से न भादो दूबर, 
फागुन से ह चइत ऊपर 
गजबे महीना रंगदार रे चइतवा।

आम टिकोराइ जाला
महुवा कोचाइ जाला
रस से रसाइल रसदार रे चइतवा।

कबहू लहर लागे 
कबहू सिहर लागे 
किसिम किसिम बहेला बयार रे चइतवा।

गेंहू के कटाई होला
नवमी के पुजाई होला 
लेके आवे अजबे बहार रे चइतवा।

घरे घरे मंगल होला 
कुस्ती आ दंगल होला 
मस्ती से भरल मजदार रे चइतवा।

ढोल ढमढमाय लागे 
चइता गवाय लागे 
राम जी लिहलें अवतार रे चइतवा।

बाजे अजोधा में अनघ बधइया 
ए राम रामजी जनमलें 
दसरथ जी के अंगनइया।

बाजे चइत मास गावेला बधइया
ए राम रामजी जनमलें 
दसरथ जी के अंगनइया।


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शृंखला के अन्य गीत 

लोक : भोजपुरी - 10: चइता के तीन रंग
लोक: भोजपुरी- 9: पराती, घरनियों का सामगायन
लोक: भोजपुरी- 8: कस कसक मसक गई चोली(निराला) और सुतलऽ न सुत्ते दिहलऽ(लोक)
लोक : भोजपुरी - 7: बोले पिजड़ा में सुगनवा बड़ऽ लहरी (अंतिम भाग)
लोक : भोजपुरी - 6: रोइहें भरि भरि ऊ... बाबा हमरो...भाग-1
लोक : भोजपुरी - 5 : घुमंतू जोगी - जइसे धधकेले हो गोपीचन्द, लोहरा घरे लोहसाई
लोक : भोजपुरी - 4 : गउरा सिव बियाह
लोक : भोजपुरी -3: लोकसुर में सूर - सिव भोला हउवें दानीऽ, बड़ऽ लहरीऽ।
लोक : भोजपुरी - 2 : कवने ठगवा - वसुन्धरा और कुमार गन्धर्व : एक गली स्मृति की
लोक:भोजपुरी-1: साहेब राउर भेदवा


शनिवार, 24 मार्च 2018

सीबीडी एसबीयू मैट्रिक्स तंत्र वीरभोग्या वसुंधरा CBD SBU Matrix System



जिन्होंने मैट्रिक्ससिनेमा शृंखला देखी है तथा जिन्हें भारतीय चिंतन परम्परा का आरम्भिक ज्ञान है, वे समझ जाते हैं कि सधे हुये नवोन्मेष द्वारा उसी परम्परा को आधुनिक युगबोध के साथ आधुनिक दृश्य श्रव्य माध्यम द्वारा प्रस्तुत किया गया है। गाँव गाँव घूम घूम गाथायें सुनाने वाली आख्यानक परम्परा को जो प्रभाव पहले हुआ करता था, वही प्रभाव इस युग में सिनेमा का है। जो विचार योद्धा यह जानते हुये सिनेमा एवं टी वी धारावाहिकों का उपयोग करते हैं, वे सफल हैं, जमे हुये हैं, जो नहीं करते, उनकी पकड़ जन सामान्य तक नहीं है। इस तन्‍त्र में महत्व इसका अधिक है कि आप कितने जन के अंतर्मन तक पहुँच सकते हैं, दृश्य श्रव्य माध्यम पुराने समय के नाटकों की पूर्ति करता है।
मैं भी न, जो कहने चला था, उसे तज जाने क्या कहने लगा। हाँ, तो उस फिल्म में एक समांतर शासन तंत्र है जिसके बारे में जन सामान्य को पता नहीं है तथा उसके प्रतिरोध में कुछ समझदार भी हैं जिन्हें उस तंत्र तक पहुँचने, उससे जूझने इत्यादि के लिये विशेष प्रयास करने पड़ते हैं।
उस स्तर का साई फाई तो नहीं, किंतु हम सभी भी एक मैट्रिक्स में ही रह रहे हैं जिसका नाम लोकतंत्र है। नेताओं के अतिरिक्त सत्ता में ऊपर बैठे जो अधिकारी जन हैं, वे यह जानते हैं कि तंत्र कैसे चलता है। विवशताओं, स्वार्थ, सेवा नियमों इत्यादि के कारण वे न तो मुँह खोलते हैं, न ही तंत्र छोड़ पाते हैं। तंत्र पर आक्रमण की स्थिति में वे ढाल बन कर तन जाते हैं क्योंकि उनके हित उससे नाभिनालबद्ध होते हैं। समस्त संसार में यह खेल चल रहा है, संसार के सबसे योग्य कुशाग्र जन उनके वेतन पत्रक पर हैं जो मैट्रिक्स के कर्ता धर्ता हैं।

इतने के पश्चात आप यदि रहस्य रोमाञ्च पढ़ने वाले हैं तो एलुमिनाटी या उस तरह के अनेक सिद्धांत आप के मन में कुलबुलाने लगे होंगे। मैं उनकी बात नहीं कर रहा, वे हों या न हों, इससे मौलिक समस्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। मैट्रिक्स को आप चाहें तो माया भी कह लें। 
वीरभोग्या वसुंधरा का जो सिद्धांत है, वही वैश्विक तंत्र को चलाने का मूल है। कोई नेता पकड़ा जाता है या हार जाता है तो आप बहुत प्रसन्न होते हैं किंतु यह नहीं सोच पाते कि जो दिख रहा है, वह हिमखण्ड की नोक भर है। उस आकर्षक नोक के नीचे जाने कितने समीकरण होते हैं जो असम्भव को सम्भव कर रहे होते हैं। उपद्रव छँटने तक, धूल बैठने तक सब सकुशल सम्पन्न हो चुका होता है। जनता प्रसन्न होती है कि चलो दण्डित हुआ, कुकर्मों की सजा हुई जबकि अपनी सात पीढ़ियों तक का सुखी समृद्ध जीवन निश्चित कर चुके तत्व यह सोच कर प्रसन्न होते हैं कि अब इससेअधिक क्या मिलता? ऐसे ही छूट गये! तंत्र चलता रहता है।
वीर एवं उपयुक्त समय पर कर्म में लग जाने वाले ही प्रकृति के प्रिय होते हैं। एक उदाहरण देता हूँ – CBD नाम सुने हैं? Coal Bed Methane को कहते हैं, वह मेथेन जो कोयला स्रोतों में पाई जाती है। आज से तीसो वर्ष पहले से उससे आगे के एक काम में चीन लगा हुआ है – कोयले का भञ्जन कर मेथेन गैस बनाना तथा उसके संघनन इत्यादि से विविध रसायन एवं ईंधन के निर्माण की युक्ति का विकास। चीनी कोयले की गुणवत्ता भारतीय कोयले से अच्छी है। सब को पता है कि हमारे यहाँ विशाल कोयला भण्डार है तथा उसका प्रभावी उपयोग कौन कहे, कोई उस दिशा में सोच भी नहीं रहा।
ऐसा नहीं भी है। लगभग 15 वर्ष पहले भारत के ही एक स्वनामधन्य प्रसिद्ध कम्पनी की सम्बंधित इकाई के सर्वोच्च व्यक्ति से मिला था। उन्होंने बताया कि हमलोग भारतीय कोयले का चीन द्वारा कल्पित विधि से दोहन कैसे हो, इस हेतु तकनीक विकसित करने एवं शोध में लगे हैं। हमारी एक समर्पित इकाई SBU Strategic Business Unit इस काम के लिये पिछले पाँच वर्षों से लगी हुई है। मुझे आश्चर्य हुआ कि करोड़ो का व्यय एक ऐसी तकनीक के लिये जिसकी उपादेयता संदिग्ध है! उन्होंने कहा कि देखिये, आरम्भ में सब ऐसे ही लगता है। कभी केवल सोचा ही गया होगा कि धरती माँ (उन्होंने यही शब्द प्रयुक्त किये थे) के गर्भ से कच्चा तेल निकाल, प्रसंस्कृत कर उस ईंधन पर सम्पूर्ण विश्व को निर्भर कर दास बनाया जा सकता है!
मैं उनकी शब्दावली – दास बनाना पर चौंका तो उन्होंने बात आगे बढ़ाई – संसार ऐसे ही चलता है। जो आगे होते हैं, वे लूट लेते हैं, शेष उनके फेंके पर जीवन व्यतीत करते हैं। उन्होंने कहा कि, देखिये अभी सरकार के पास इससे सम्बंधित कोई विधिक या नियमन के प्रावधान नहीं हैं, तकनीकी तो दूर की बात है। जब बात आगे बढ़ेगी तथा सुगबुगाहट होगी तो शीर्ष पर बैठे आई ए एस को हमलोग ही यह सब उपलब्ध करायेंगे, नियमन एवं विधिक प्रावधान भी हमारे अधिवक्ता तय करेंगे। सब कुछ बहुत ही साफ सुथरे ढंग से होगा तथा समय आने पर हम ही हम होंगे, क्योंकि हमें पता होगा कि कब, कैसे, कितना करना है, किसे करना है। सरकार किसी की रहे, आई ए एस कोई भी रहे, तंत्र हमारा होगा, हम शीर्ष पर होंगे।
मुझे लगता है कि इस उदाहरण से आप को ढेर सारे बिंदु मिले होंगे। यह भी जानिये कि पेट्रोलियम पदार्थों से सम्बंधित एक बहुत बड़ी कम्पनी ईंधन के रूप में हाइड्रोजन के वैसे ही वैकल्पिक अनुप्रयोग के अनुसंधान पर वर्षों से करोड़ो डॉलर लगा चुकी है जैसे हम आज डीजल पेट्रोल का करते हैं।
ये सभी ऐसा कैसे कर पाते हैं? क्योंकि वे सक्षम हैं। वे सक्षम क्यों हैं? क्योंकि चक्रीय गति में उन्होंने सर्वदा पहल की। उनके साथ सभी घूम रहे हैं किंतु वे घूमती चकरी की वह डण्डी हैं जो यह बताती है कि जुये में कौन जीतेगा, कौन हारेगा? जुये के भी अपने ढेर सारे नियम होते हैं, होते हैं कि नहीं? सब कुछ विधिवत होता है किंतु होता तो जुआ ही है! जुआ भी एक प्रकार का मैट्रिक्स ही है। कभी जुआघर गये हैं या नहीं?
जुआ कहिये, मैट्रिक्स कहिये या चाहे जो नाम दीजिये, चलेगी उसी की जो न केवल पहल करेगा अपितु तन मन धन से नवोन्मेष के साथ लगा रहेगा। 

अपने देश में ही देखें तो कुछ प्रांत, विशेषकर हिंदी प्रांत, अन्यों से पीछे हैं। क्यों हैं? क्योंकि उनके निवासियों में यह कमी भीहै। कुछ लोग हीकहना अधिक उपयुक्त पायेंगे तो कुछ भी की उपेक्षा कर लाल पीला होना तथा तर्क वितर्क करना किंतु क्या है कि तर्कों से संसार नहीं भीचलता है, मैट्रिक्स तो अतर्क्य है ही! गहराई से सोचिये, सम्भवत: कोई किरण दिख जाये।       

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

On constipation constitution NOTA चड्ढी and अकबरी लोटा मसीही घण्टा

On constipation constitution NOTA चड्ढी and अकबरी लोटा मसीही घण्टा


कोष्ठबद्धता को अंग्रेजी में constipation कहते हैं। मानव मन अद्भुत होता है। कभी कभी कुछ लय ऐसे मिला लेता है कि जब भी आप कोई शब्द कहते सुनते हैं तो तुरंत लय वाला शब्द ध्यान में आता है। constitution ऐसा ही शब्द है जिसके साथ तुरंत ही constipation का ध्यान आता है। देश भी कोष्ठबद्धता से ग्रसित होते हैं। विकार जब उच्चस्थ मस्तिष्क तक पहुँच जाता है तो कुछ भी ठीक नहीं रह जाता। कोष्ठबद्धता लम्बे समय तक चले तो व्यक्ति उसका अभ्यस्त हो जाता है। कभी दुर्दैव से उदर स्वच्छ हो जाये तो ऐसे व्यक्ति को सारा संसार सूना लगने लगता है, सब कुछ उड़ता हुआ, प्लवित होता हुआ। घबरा कर वह पुन: कोष्ठबद्धता हेतु मन्नतें मानने लगता है। देश में constitution बहुत दिन से है। ब्रिटिशों को भगा हम सबने उनकी भगई अपना ली जिसने नवसामंत वर्ग को सजने सँवरने के पूरे अवसर सुविधायें प्रदान कीं। भगई विकेंद्रित हो विकसित होते हुये पहले रूपा की चड्ढी हुई, तदुपरांत फ्रेंची होती हुई ज़ीरो साइज जॉकी हो गई, दर्म्याना, एक कीनो पहनें सभी जन, जनाना, बचकाना। उसमें सबके उसकी साँस घुटती है किंतु चाहिये जॉकी की वही वाली ही, राजा को constipation है, कहे तो कौन कहे - हॉट कूल जो होती है। भ्रम की जॉकी स्थिति के समांतर ही भ्रष्टाचरण का विकेंद्रीकरण हुआ तो जॉकी एवं उसका constipation गाँवों में भी पहुँच गया। पिछवाड़े के अर्द्धवृत्तों को चौथाई उघारे जुवा बोतल पानी ले बाइक से निपटने जाने लगे। बाइक का खर्चा शौचालय निर्माण निधि के खाते में - स्वच्छ भारत बिकास। कोष्ठबद्धता का ही प्रभाव होता है कि चुनावों के दिन नगरीय जनता का आधा भाग पिकनिक मनाने सरेह में निकल्लेता है, उसे बोतल की आवश्यकता रहती है किंतु पीने वाली की, धोने वाली की नहीं।










इन सब असम्बद्ध अगड़म बगड़म के बीच कुछ को लगने लगा कि constipation वास्तव में रोग होता है, गर्वित होने का कोई उपादान नहीं, तो राजाओं ने उन्हें लॉलीपॉप पकड़ा दिया, लो चूसो, इससे सब कुछ साफ रहता है - मुँह से लेकर अधोविवर तक! उस लॉलीपॉप का नाम था - NOTA - भयङ्कर फुल्ल फॉर्म - None Of The Above, Of एवं The तक के पहले अक्षर उसके नाम में बड़के थे कि ल्यो, इसे चूसो एवं उन बड़कों के ऊपर मुँह ऊपर कर थूक दो, ले NOTA. हम सभी तुम्हारी जागरूकता से घबरा गये हैं। इसे चूसते हुये तुम्हें वास्तव में लगेगा कि हम सब तुम लोगों से बहुत अधिक भयभीत हो रहे हैं, हमारी पुंगी बजने ही वाली है।

उन जगे हुओं को बहुत प्रसन्नता हुई, हमको भी हुई पर बुरा हो गुरुत्वाकर्षण बल का कि ऊपर की ओर मुँह कर उछाली हुई हर थूक अपने मुँह पर ही गिरती है, हमें उसका विज्ञान शीघ्र समझ में आ गया। जॉकी नीचे तो सरक ही रही थी, उस पर सोचने की आवश्यकता हमें न लगी। किंतु नागर जन की एक प्रजाति को लॉलीपॉप डबौत अच्छा विकल्प लगा। जिसने कभी अंगुली में नीला क्या, पीला रंग तक न लगने लगाने दिया था, वह भी NOTA रँगाने लगा। नये प्रकार का हॉट कूलत्व - हमने तो सिर ऊपर कर आकाश में थूक दिया, हाउ कूल! nobody deserves मानो इनसे योग्य जन गढ़ने का साँचा ही टूट गया! आज एक जन ऐसे ही मिल गये पिलेटफारम पर। हमने कहा कि जानते हैं NOTA अर्थात नोटा की तुक किससे मिलती है? वे भकुवाये से देखने लगे तो मैंने कहा - ले लोटा ! ले घण्टा !!
constipation साफ होने की प्रतीक्षा करते रहो, घण्टा बजाते रहो, NOTA दबाते रहो। राजा लोग इस बार कोई नया चुसना थमाने वाले हैं तब तक माजते धोते एवं बजाते रहो!
DIIOT कहीं के!

मंगलवार, 20 मार्च 2018

Spring Equinox and Festivals कल के वसंत विषुव के व्याज से पर्व चर्चा

Spring Equinox and Festivals
आप ने कुछ लोगों को सुना होगा कि विक्रम संवत तो वैशाख में लगता है, यह तो शक संवत है! वास्तव में वे सौर कैलेण्डर एवं सौर-चंद्र पञ्चाङ्ग की बातें कर रहे होते हैं, किञ्चित भ्रम में भी रहते हैं। 

पहले चार बिंदुओं को जानिये। धरा से सूर्य को देखें तो सूर्य उत्तर-दक्षिण-उत्तर वर्ष भर दोलन करते प्रतीत होते हैं। इस गति के कारण ही जाड़ा, गरमी, बरसात ऋतुयें होती हैं जिन्हें दो दो में बाँटने पर छ: हो जाती हैं।

कल प्रात:काल 21 मार्च को महाविषुव या वसंत विषुव का सूर्योदय होगा। इस दिन पृथ्वी के बीचोबीच की कल्पित रेखा विषुवत वृत्त वाला तल सूर्य के गोले के बीचोबीच से जाता है, सूर्योदय ठीक पूरब में, सूर्यास्त ठीक पश्चिम में। सम ऋतु – वसंत। निकट का पर्व – वासंती नवरात्र। शस्य देखें तो गेहूँ, रबी। रामनवमी के नौ रोटी। 

यहाँ से क्रमश: उत्तर की ओर झुकते सूर्य के कारण दिन के घण्टे बढ़ते जाते हैं, ताप भी बढ़ता जाता है। 21/22 जून को अधिकतम उत्तरी झुकाव होता है, भीषण उमस, वर्षा ऋतु का उद्घाटन। ग्रीष्म अयनांत, चलना रोक कर लौटना। 

वहाँ से पुन: दक्षिण की ओर माध्य स्थान की ओर लौटते सूर्य 22/23 सितम्बर को पुन: विषुव वाली माध्य स्थिति प्राप्त करते हैं। सम ऋतु – शरद। निकट का पर्व – शारदीय नवरात्र। कृषि उपज देखें तो धान, खरीफ शस्य। 
वहाँ से दक्षिण की ओर झुकते जाते हैं, दिन छोटे होने लगते हैं, शिशिर आ जाता है, पूस जाड़ तन थर थर काँपा। 21/22 दिसम्बर को अधिकतम दक्षिणी झुकाव होता है। शीत अयनान्त। 
यहाँ से उत्तरायण होते सूर्य पुन: 21 मार्च की स्थिति तक आते हैं। ऋतु चक्र चलता रहता है। 3 – 3 महीनों के अंतर से चार बिंदु। 
इतना समझ लेने पर अब जानिये कि अंतर्राष्ट्रीय कैलेण्डर सौर है अर्थात चंद्र गति से इसका कोई सम्बंध नहीं। विक्रम संवत सौर-चंद्र है अर्थात दोनों को मिला कर, समायोजित करते चलता है किंतु तिथियों एवं मास के लिये चंद्र गति पर ही निर्भर होता है, पूर्णिमा के दिन चंद्र नक्षत्र से मास का नाम होता है।
इस कारण आप पायेंगे कि अंतर्राष्ट्रीय कैलेण्डर के अनुसार अधिकतर पर्वों का दिनांक निश्चित नहीं होता किंतु चंद्र मास, पक्ष एवं तिथि निश्चित होते हैं। 
वस्तुत: चंद्र तिथि मास के अनुसार हम मूलत: सौर गति से उत्पन्न ऋतु आधारित पर्व ही मनाते हैं। पर्व को पोर, सरकण्डे की गाँठ से समझिये, एक निश्चित बिंदु। 
अब ऊपर लिखा पढ़िये तो! दो महत्त्वपूर्ण सौर बिंदुओं विषुव के निकट सम ऋतु में दोनों नवरात्र पड़ते हैं। 
ऐसा नहीं है कि पूर्णत: सौर पर्व उत्तर में नहीं मनाये जाते। संक्रांतियाँ वही तो हैं! एक समय ऐसा था शीत अयनांत एवं वसंत विषुव के बिंदु परवर्ती काल में अपनाये गयी राशि पद्धति की क्रमश: मकर एवं मेष से सम्पाती थे। सापेक्ष सूर्य की लगभग 26000 वर्ष की एक अन्य गति के कारण यह सम्पात खिसकता रहा एवं अब 23/24 दिनों का अंतर आ गया है। जो जन पहले अयनांत एवं विषुव मनाया करते थे, अब सौर संक्रांति मनाते हैं जिसकी तिथि, मास स्थिर नहीं होते, सौर कैलेण्डर का दिनाङ्क स्थिर होता है – 14/15 जनवरी (मकर संक्रांति) एवं 13/14 अप्रैल। 
14 अप्रैल को उत्तर में वैशाखी होती है – मेष संक्रांति, कतिपय पूरबी भागों में नया संवत्सर आरम्भ होता है तो दक्षिण में तमिळ नववर्ष –पूर्णत: सौर। वैशाखी नाम से स्पष्ट है कि पर्व का नाम चंद्र मास पर ही है। उस मास पूर्णिमा को चंद्र विशाखा नक्षत्र पर होता है। 

ऐसे समझिये कि सूर्य तो वर्ष भर एक समान गोला ही दिखता है, जबकि चंद्रमा कलायें दर्शाता है, वह भी दो पक्षों में। इस कारण चंद्रमा ने आकाश में उस कैलेण्डर की भाँति दिन बताने का काम किया जो भीत पर टँगा कैलेण्डर आज कल करता है। 


14 अप्रैल को ही भोजपुरी क्षेत्र में हर वर्ष पड़ता है – सतुआन (सतुवान, सतुवानि) पर्व, पूर्णत: सौर। सतुवा अर्थात रबी के उबले, सुखाये, भुने, पिसे विविध अन्न। आप के यहाँ कौन सा पर्व पड़ता है?


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कल सूर्योदय अवश्य देखें तथा उनकी स्थिति किसी दूरवर्ती स्थायी वस्तु, संरचना इत्यादि के सापेक्ष मन में बिठा लें। वह आप को वर्ष भर वास्तविक पूरब की दिशा बताती रहेगी। उसके सापेक्ष वर्ष भर सूरज की उत्तरी दक्षिणी यात्रा का पञ्चाङ्ग तथा कैलेण्डर देखते हुये प्रेक्षण कर सकते हैं।



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अन्य रोचक लेख:
  1. नक्षत्र पहचानें - युगादि अवसर चैत्र चन्द्र सङ्ग Nakshatra Moon Chaitra Yugadi

बुधवार, 14 मार्च 2018

महाभारत शांतिपर्व - 1 Mahabharat Shanti Parv - 1

महाभारत शांतिपर्व
Mahabharat Shanti Parv
युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हो गया। श्रीकृष्ण ने वह रात अर्जुन के महल में व्यतीत की। प्रात:काल युधिष्ठिर मिलने गये तो उन्हें ध्यान में निश्चल दृढ़निश्चय पाया - काठ एवं शिला की भाँति: 
स्थाणुकुड्यशिलाभूतो निरीहश्चासि माधव
9मानो निर्वात में कोई दीपशिखा हो!
यथा दीपो निवातस्थो निरिङ्गो ज्वलतेऽच्युत
तथासि भगवन्देव निश्चलो दृढनिश्चयः
पूछने पर भगवान ने उत्तर दिया कि शर शय्या पर इस समय भीष्म मेरा ध्यान कर रहे हैं, अत: मेरा मन उनमें लगा हुआ है: 
शरतल्पगतो भीष्मः शाम्यन्निव हुताशनः
मां ध्याति पुरुषव्याघ्रस्ततो मे तद्गतं मनः

वे मेरी शरण में हैं अत: मेरा मन उनमें है। वे गङ्गा पुत्र वसिष्ठ ऋषि के शिष्य हैं - वसिष्ठशिष्यं तं। वे समस्त अ‍ङ्गों सहित चारो वेदों को धारण करते हैं - साङ्गांश्च चतुरो वेदांस्तमस्मि मनसा गतः। 
वे जामदग्नेय राम के प्रिय शिष्य -रामस्य दयितं शिष्यं जामदग्न्यस्य - त्रिकालदर्शी हैं। 
उन धर्मविद का मैं मन ही मन चिन्‍तन कर रहा था - वेत्ति धर्मभृतां श्रेष्ठस्ततो मे तद्गतं मनः। उनके अवसान से धरा उसी प्रकार सूनी हो जायेगी जैसे चंद्रमा से हीन अमा की रात होती है - भविष्यति मही पार्थ नष्टचन्द्रेव शर्वरी। 
आप चल कर उनसे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष से सम्बंधित विद्याओं; 
होता, उद्गाता, अध्वर्यु एवं उद्गाता से सम्बंधित यज्ञ कर्मों
एवं 
चार वर्णों के धर्म के बारे में ज्ञान प्राप्त कीजिये। 
कौरवों के धुरन्‍धर भीष्म के अस्त से ज्ञान शास्त्रादि अल्प रह जायेंगे, नष्ट हो जायेंगे। इस कारण ही मैं आप को उनके पास जा कर प्रेरक ज्ञान प्राप्त करने को कह रहा हूँ। 
चातुर्वेद्यं चातुर्होत्रं चातुराश्रम्यमेव च
चातुर्वर्ण्यस्य धर्मं च पृच्छैनं पृथिवीपते
तस्मिन्नस्तमिते भीष्मे कौरवाणां धुरंधरे
ज्ञानान्यल्पीभविष्यन्ति तस्मात्त्वां चोदयाम्यहम्

युधिष्ठिर ने कहा कि मैं चाहता हूँ आप, स्वयं भगवान, मुझे उनके पास ले चलें ताकि आसन्नमृत्यु पितामह एक बार आप का दर्शन भी कर सकें। 
श्रीकृष्ण ने सात्यकि से व्यवस्था करने को कहा। सात्यकि ने सारथी दारुक द्वारा रथ सज्जित करवा दिया। 
(क्र्मश:) 

रविवार, 11 मार्च 2018

नक्षत्र पहचानें - युगादि अवसर चैत्र चन्द्र सङ्ग Nakshatra Moon Chaitra Yugadi

Nakshatra Moon Chaitra Yugadi
नक्षत्र पहचानें प्रथम भाग , द्वितीय भाग
... 
(इस लेख में हम बहुत ही सरलीकृत ढाँचे में चैत्र महीने की रात के माध्यम से कुछ मूलभूत तथ्य समझने के प्रयास करेंगे।)
चंद्रमा हम पृथ्वीवासियों के सबसे निकट का पिण्ड है, आकर्षक भी है, घटता बढ़ता कलायें (Moon Phases) जो दिखाता है! 
सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक का समय एक दिन कहलाता है जिसे आजकल 24 घण्टों में बाँटा गया है। प्राचीन भारत में इसे 30 मुहूर्तों में बाँटा गया था अर्थात 1 मुहूर्त = 24x60/30 = 48 मिनट।
देखा गया कि रात के आकाश में चंद्रमा एक निश्चित स्थान पर पुन: लौटने में 27 से 28 दिन का समय लगाता है। निश्चित स्थान को उन तारों के माध्यम से जाना गया जो अपेक्षतया स्थिर प्रतीत होते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि चन्‍द्रमा पृथ्वी का एक चक्कर इस अवधि में पूरी करता है (लगभग 27 दिन 9 मुहूर्त)। प्रेक्षण की सुविधा के लिये रात का जो अर्द्धगोलीय आकाश सिर के ऊपर दिखता है, उस पर चंद्रमा के दिन प्रतिदिन के आभासी पथ के 27 भाग कर लिये गये तथा उन्हें नाम दिया गया नक्षत्र।
नक्षत्र नाम का उत्स है न: क्षरति अर्थात जिसका क्षरण न हो, जो बना रहे क्योंकि उसके ऐसे स्थिर पृष्ठभूमि के सापेक्ष ही गति का अध्ययन किया जा सकता है। उन स्थिर खण्डों को चमकते तारा या तारकसमूहों के नाम दे दिये गये यथा कृत्तिका खण्ड में सर्वदा कृत्तिका तारा समूह दिखाई देगा। जब चंद्र उस खण्ड में पहुँचेगा तो कहेंगे कि चंद्रमा कृत्तिका नक्षत्र पर है। प्रतीकात्मक रूप में इसे ही कहा गया कि चंद्रमा की 27 पत्नियाँ हैं जिनमें से प्रत्येक के यहाँ वह क्रम से एक एक रात रहता है।
चंद्रमा का संक्षिप्त नाम मा है, चंदा मा मा से समझें। मा के सापेक्ष, सहित जो अवधि थी वह मास कहलाई – महीना, 27.3 दिनों की अवधि। चूँकि यह स्थिर नक्षत्रों के सापेक्ष थी अत: नाक्षत्र मास कही जाती है।
सापेक्षता देखें तो सूर्य भी सम्मिलित हो जाते हैं। जहाँ चंद्र पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है, वहीं पृथ्वी चंद्र को साथ लिये सूर्य की परिक्रमा कर रही है। सूर्य के प्रकाश से ही चंद्रमा प्रकाशित होता है। इन दो गतियों के कारण ही चंद्रमा की कलायें, घट बढ़ दिखती है।
कला नाम को कल अर्थात लघु भाग से समझें। कल कल बहती नदी हो या कलाओं के साथ चंद्रमा, मानों लघु भागों को मिला कर ही उनका प्रवाह, गति या रूप बनता है।
यदि आप पूर्णिमा के दिन की साँझ देखें तो बहुत ही मनोहारी दृश्य दिखता है। पश्चिम में सूर्य लाल हुये डूब रहे होते हैं तो उनके विपरीत पूरब में पूर्ण चंद्र उग रहे होते हैं। यदि हम पूर्ण वृत्त को 360 अंश में बाँटें तो कहेंगे कि दृश्य आकाशीय अर्द्धवृत्त के व्यास के दो विपरीत बिंदुओं पर स्थित सूर्य एवं चंद्र 180 अंश की दूरी पर होते हैं।
इसका विपरीत तब होगा जब चंद्रमा गति करते करते सूर्य के साथ जा पहुँचेगा अर्थात जब दोनों एक साथ होंगे, एक ही बिंदु पर। आमने सामने होने पर चंद्र सूर्य के प्रकाश से पूरा चमकता है एवं साथ होने पर विराट सूर्य के प्रभा वलय में छिपा रहता है, नहीं दिखता जिसे कहते हैं अ-मा, मा नहीं, चंद्रमा नहीं, अमावस्या

इन दो विपरीत बिंदुओं तक पहुँचने में चंद्रमा को लगभग 15 दिन लगते हैं अर्थात पुन: पूर्णिमा तक पहुँचने में लगभग 30 दिन लगने चाहिये जोकि वस्तुत: 29 दिन 16 मुहूर्त का होता है। पूर्णिमा से अमा एवं पुन: अमा से पूर्णिमा तक की अवधियाँ दो पक्ष कहलाती हैं – कृष्ण पक्ष क्योंकि इसमें चन्‍द्र पूर्ण से शून्य तक घटता जाता है एवं शुक्ल पक्ष क्योंकि उसमें चन्‍द्र शून्य से बढ़ता हुआ पुन: पूर्ण अवस्था को प्राप्त कर लेता है। चूँकि इस मास में सूर्य एवं पृथ्वी दोनों के सापेक्ष चंद्र की गति है अत: यह संयुत मास कहलाता है। इसे सामान्यत: चंद्र मास भी कहते हैं। चंद्र मासों के नाम पूर्णिमा के दिन उसकी नक्षत्र स्थिति से रखे गये हैं यथा जिस मास में पूर्णिमा का चंद्र कृत्तिका पर होता वह कार्त्तिक, जिसमें मघा पर होगा वह माघ इत्यादि।
प्रश्न यह है कि नाक्षत्र मास एवं संयुत मास की अवधियों में अंतर क्यों है? ऐसा इस कारण है कि धरती भी तो सूर्य की परिक्रमा करती आगे बढ़ रही होती है! इस कारण सूर्य निर्भर समान कला या समान कोणीय स्थिति तक पहुँचने के लिये चंद्रमा को अतिरिक्त चलना पड़ता है, यह अवधि लगभग 2 दिन 7 मुहूर्त होती है जिससे चंद्रकला प्रेक्षण आधारित संयुत मास 29 दिन 16 मुहूर्त का होता है जिसे गणना सुविधा के लिये 30 दिन का मान लिया गया।
दिन को भी 30 भागों में बाँट कर 48 मिनट की इकाई ‘मुहूर्त’ अपनाने के पीछे भी यही कारण है।
संयुत मास का प्रत्येक भाग तिथि कहलाया। पूर्णिमा, अमावस्या एवं दोनों पक्षों के चौदह चौदह दिन प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया आदि मिला कर कुल तीस तिथियाँ होती हैं। शून्य से 180 एवं पुन: लौट कर वहीं आने में 360 अंश हो जाते हैं अर्थात एक तिथि वह हुई जिसमें 360/30 = 12 अंश का कोणीय अंतर पूरा कर लिया जाता है। स्पष्ट है कि यह वर्गीकरण सूर्योदय सूर्यास्त से कोई सम्बंध नहीं रखता। परिपथ वैभिन्न्य, सरलीकरण एवं गति वैविध्य को मिला कर प्रभाव यह होता है कि किसी तिथि की अवधि निश्चित न हो एक परास में होती है, ऐसा भी होता है कि तिथि का क्षय हो जाता है या तिथि बढ़ भी जाती है क्योंकि दिन को सूर्योदय से आरम्भ मानने पर ऐसा हो सकता है कि सूर्योदय के पूर्व 12 अंश की यात्रा आरम्भ हो एवं अगले सूर्योदय से पहले ही पूरी हो जाय; यह भी कि सूर्योदय के पश्चात हो एवं अगले सूर्योदय से आगे तक चलती रहे। 360 अंश में ही 27.3 दिन भी होने हैं तथा 29.5 भी।
यदि यात्रा को प्रेक्षण से समझना चाहें तो इस चैत्र मास पूर्णिमा के दिन से प्रतिदिन चंद्रोदय का समय देखते जायें। आप पायेंगे कि प्रतिदिन चंद्र प्राची (पूरब) में बिलम्ब से उग रहा है। यह अंतराल आरम्भ में  4/3 मुहूर्त से होता हुआ एकादशी तक 1 मुहूर्त तक क्रमश: बढ़ेगा। अगले दिन सूर्योदय के पश्चात भी चंद्र दिखता रहेगा। चंद्रोदय से अस्त तक का समय घटता रहेगा। कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी/चतुर्दशी तक चंद्र दिखने के पश्चात अमावस्या के दिन दिखेगा ही नहीं!
आप ने देखा होगा कि सूर्य उत्तर या दक्षिण की ओर झुके हुये उगता है। इन दो झुकावों के अंतिम बिंदुओं के बीच वर्ष भर सूर्य दोलन करता सा लगता है। वे दो बिंदु अयनांत कहलाते हैं। अयन अर्थात गति, अंत अर्थात उनसे आगे झुकाव नहीं बढ़ना। ऐसे में वर्ष में दो बिंदु ऐसे आते हैं जब झुकाव शून्य हो जाता है तथा सूर्य ठीक पूरब में उगते हैं। ये दो बिंदु विषुव कहलाते हैं। सूर्य की दक्षिणी चरम झुकाव से उत्तर की गति उत्तरायण कहलाती है तो उत्तरी चरम झुकाव से दक्षिण की गति दक्षिणायन
मार्च में जो विषुव 20/21 को पड़ता है वह वसंत विषुव कहलाता है। इसे महाविषुव भी कहते हैं। इस बिंदु के निकट ही वर्ष का आरम्भ बिंदु पड़ता है, युगादि, नववर्ष। वसंत की मधु सम ऋतु होने के कारण ही इसे यह सम्मान प्राप्त हुआ। मार्च में ऋतु अच्छी होने के कारण आकाशीय प्रेक्षण में भी सुभीता रहता है।
इस वर्ष तीन ग्रह – गुरु, मंगल एवं शनि को चंद्र के साथ आकाश में प्रात:काल 5 बजे उठ कर देखा जा सकता है। शनि का सूर्य परिक्रमा काल 29.46 वर्ष, गुरु का 11.86 वर्ष एवं मंगल का 1.88 वर्ष होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि:
शनि एक नक्षत्र पर 29.46x365.25/27 = 399 दिन, गुरु 11.86x365.25/27 = 160 दिन एवं मंगल 1.88x365.25/27 = 25 दिन रहते हैं। इतनी लम्बी अवधि के कारण इस मास प्रेक्षण हेतु इन्हें भी नक्षत्रों की भाँति स्थिर ही माना जा सकता है।
प्रात:काल पाँच से सवा पाँच बजे की चंद्रमा की इनके सापेक्ष स्थितियाँ इस चित्र में दर्शायी गयी हैं। पूरब में देखिये तो प्रतिदिन। चंद्रमा की इन स्थितियों को मिला कर जो रेखा बनती है वही क्रान्‍तिवृत्त है जिस पर दिन में सूर्य चलता हुआ प्रतीत होता है। साथ में आप विविध नक्षत्रों विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, धनिष्ठा, श्रावण, अभिजित एवं विविध तारासमूहों हंस, गरुड़, धनु, ऐरावत (वृश्चिक) को भी देख सकते हैं।
इस बार 18 मार्च को वर्ष प्रतिपदा है, युगादि, चैत्र शुक्ल 1, नववर्ष, नवरात्र आरम्भ।
इस दिन से चन्द्र कहाँ दिखेगा?
जैसा कि पहले बताया है, ध्यान रखें कि अब चंद्र को बढ़ना है। ऊपर के चित्र से स्पष्ट है कि एक निश्चित समय पर चंद्र प्रतिदिन क्षितिज के निकट चलता चला जा रहा है। अमावस्या के दिन सूर्य चंद्र दोनों साथ होंगे, साथ साथ उगेंगे तथा अस्त होंगे। स्पष्ट है कि चंद्र सूर्य के साथ होने के कारण कभी नहीं दिखेगा। पूर्णिमा के दिन उलट स्थिति होती है, सूर्य से ठीक उलट 180 अंश का अंतर होने के कारण चंद्र रात भर दिखता है। इन दो सीमाओं की तुलना करें तो पायेंगे कि चंद्र तब ही दिखेगा जब सूर्य अस्त रहे तथा चंद्र क्षितिज के ऊपर। साथ ही कला भी ऐसी होनी चाहिये कि प्रकाशित भाग दृश्यमान हो। प्रतिपदा को ऐसा नहीं हो पाता।
दूज का चाँद मुहावरा है सुंदरता के लिये तथा दिखने में कठिनाई के लिये भी। चंद्र प्रेक्षण उसी तिथि से हो सकता है।
अब किञ्चित गणित। सरल ही है।
चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा पश्चिम से पूरब दिशा में करता है जिसमें समय लगता है 27.3 दिन जबकि पृथ्वी भी उसी दिशा में अपनी धुरी पर घूम रही है जिसमें समय लगता है मात्र 1 दिन अर्थात पृथ्वी की यह गति चंद्र की परिक्रमण गति की तुलना में बहुत अधिक है। इस कारण चंद्र भी सदा अन्य पिण्डों की भाँति ही पूरब में उगता एवं पश्चिम में अस्त होता है।
360 अंश को 30मुहूर्तx48 या 24घण्टेx60 से भाग दें तो पायेंगे कि धरती एक अंश 4 मिनट में घूम जाती है। चंद्रमा परिक्रमा पथ पर एक दिन में 13.2 अंश (360/27.3) आगे बढ़ चुका होता है। इस बढ़े हुये अंश को पूरा करने के लिये धरती को 13.2x4 मिनट अर्थात लगभग 53 मिनट लगते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि चंद्रोदय प्रतिदिन पिछले दिन से 53 मिनट पश्चात होगा, ऐसा ही अस्त के साथ भी स्वत: हो जायेगा। जब पूरी परिक्रमा कर लेगा तो 27.3x53 ~ 1440 मिनट अर्थात 24 घण्टे का चक्र पूरा कर पुन: अपने वास्तविक उदय समय को पा लेगा, चक्र चलता रहेगा।
इसी तथ्य का उपयोग चंद्र दर्शन में कर सकते हैं। अमावस्या के पश्चात प्रतिपदा को चंद्र का उदय सूर्य के उदय से 53 मिनट पश्चात होगा। द्वितीया को 106 मिनट पश्चात। चूँकि सूर्य पहले से ही आकाश में चमक रहा होगा, अन्य आकाशीय पिण्‍डों की भाँति ही चंद्र भी नहीं दिखेगा। ऐसा प्रतिदिन होगा।
तो क्या करें?
स्पष्ट है कि हमें अस्त के समय देखना होगा। तब क्या होगा? सूर्य से 106 मिनट पश्चात चंद्र का अस्त होगा अर्थात सूर्य प्रकाश के अभाव में रात में अन्य पिण्डों की भाँति ही चंद्र भी दिखेगा। इसका अर्थ यह हुआ कि लगभग सात सवा सात बजे साँझ को पश्चिमी आकाश में आँखें गड़ाये रहें तो चन्द्र का निरीक्षण कर पायेंगे।
शुक्ल पक्ष में पश्चिमी आकाश में चंद्र प्रेक्षण में हमारा सहयोगी होगा परम तेजस्वी शुक्र, साँझ का ‘तारा’, हालाँकि यह ग्रह है किंतु नाम रूढ़ हो गया है। क्षितिज के पास इस 'तारे' के निकट ही बुध ग्रह होगा तथा इन दोनों से किञ्चित ऊपर आँख गड़ा कर देखने पर आकाश स्वच्छ हो तो दूज का चाँद दिख जायेगा।
षष्ठी को चन्‍द्रदेव अपनी प्रिय पत्नी रोहिणी के साथ होंगे तथा उससे आगे क्रमश: पूरब दक्षिण की ओर बढ़ते जायेंगे।
चैत्र के इस पश्चिमी आकाश में आप को एक साथ नक्षत्र मण्डल की अंतिम रेवती के साथ अश्विनी से आरम्भ कर आर्द्रा तक के नक्षत्र दिखेंगे। रुद्र तथा स्रोतस्विनी होंगे ही।
पूर्णिमा आते आते चन्द्र पुन: पूरब में होगा, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र पर। आठ बजे के आसपास उस समय साथ में दिखेंगे – मघा, पूर्वा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति एवं उत्तर में सप्तर्षि भी।
पूर्णिमा से आगे वैशाख महीने में प्रेक्षण पुन: वैसे ही पूरब दिशा में करते रह सकते हैं जैसे इस लेख के आरम्भ में किया था।
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चलते चलते :
आप चंद्र देख कर बता सकते हैं कि शुक्ल पक्ष का है या कृष्ण पक्ष का। चंद्र वृत्त की परिधि का अंश सर्वदा सूर्य की ओर रहता है जबकि घटता बढ़ता अंश उससे विपरीत। यदि वह पश्चिम दिशा में है तो हुआ शुक्ल पक्ष, यदि पूरब दिशा में है तो हुआ कृष्ण पक्ष।
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शनिवार, 10 मार्च 2018

वितस्ति, बित्ता, बिलांग एवं अन्य माप – अग्निपुराण pradesh gokarna tal vitasti agnipuran

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वितस्ति, बित्ता, बिलांग एवं अन्य माप – अग्निपुराण


श्रीकृष्ण जन्म समय : महाभारत, हरिवंश एवं सर्वतोभद्र Birth of Krishna Mahabharat Harivansha Sarvatobhadra

Birth of Krishna Mahabharat Harivansha Sarvatobhadra
श्रीकृष्ण जन्म समय : महाभारत, हरिवंश एवं सर्वतोभद्र
महाभारत का खिलभाग 'हरिवंश', श्रीकृष्ण जीवन का सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक वृत्तान्‍त है। उसमें उनके जन्म का महीना नहीं दिया गया है।
उसके विष्णु पर्व में भगवान को अठमासा बताया गया। एक प्राचीन परम्परा वर्ष का आरम्भ माघ से बताती है। यदि वहाँ से आठ महीने गिनें तो भाद्रपद आता है, क्या ठीक है, ठीक ठीक तो संस्कृतज्ञ ही बता पायेंगे।
अर्द्धरात्रि को जन्म, अभिजित मुहूर्त। तैत्तिरीय ब्राह्मण अनुसार पाँचवा मुहूर्त अभिजित होता है। दिन के पन्द्रह मुहूर्तों को रात में दुहरा कर देखें तो अर्द्धरात्रि के समय अभिजित होने के लिये मुहूर्त (48 मिनट का समय) गणना का आरम्भ रात के 2 बजे से ठहरता है जिसे आज कल सैद्धांतिक ज्योतिष में जीव या अमृत नाम दिया जाता है।
दूसरा विजय नाम का मुहूर्त किसी अन्य नाम पद्धति (रात के लिये प्रचलित‌) से सम्बंधित प्रतीत होता है।
तारों भरी रात शर्वरी कहलाती है जोकि कृष्ण पक्ष की संकेतक है। समस्या जयन्ती नाम एवं अभिजित नक्षत्र से आती है।
सिनीवाली, राका इत्यादि अन्य रातों के नामों की भाँति सम्भव है कि अष्टमी की रात जयंती कहलाती हो किंतु अभिजित नक्षत्र?

अथर्वण संहिता में नक्षत्र 27 के स्थान पर 28 हैं जोकि प्राचीन पद्धति थी। उत्तराषाढ़ एवं श्रावण नक्षत्रों के बीच अभिजित नक्षत्र बताया गया है जोकि आज के अभिजित (Vega) से भिन्न है।

महाभारत में अभिजित के पतन की कथा है। उस कथा तथा सर्वतोभद्र चक्र को मिला कर देखने पर श्रीकृष्ण जन्म का नक्षत्र अभिजित या रोहिणी होने का मर्म स्पष्ट हो जाता है। 
महाभारत के वनपर्व में ऋषि मारण्‍डेय इन्द्र के माध्यम से बताते हैं - अभिजित रोहिणी की 'छोटी बहन' है जो स्पर्धावश तपस्या करने वन में चली गयी है। नक्षत्र के गगन से च्युत हो जाने के कारण मैं मूढ़ हो गया हूँ।
उन्हें उस ब्रह्मा से सलाह लेने की बात बताई जाती है जिन्हों ने धनिष्ठा सहित सभी नक्षत्रों को बना कर नभ में स्थापित किया। अभिजित का काम कभी रोहिणी करती थी।


स्पष्टत: यह संवाद उस नाक्षत्रिक गति को दर्शाता है जब महाविषुव मृगशिरा से हटते हुये रोहिणी को भी पार कर चुका था और कृत्तिका तक आने से पहले इन दोनों के मध्य छोटी बहन अभिजित 'कल्पित' की गयी। वह भी 'वन में चली गयी' अर्थात महाविषुव उससे भी हट गया। महाभारत का यह भाग भारतीय नक्षत्र गणना के स्वर्ण युग को दर्शाता है जब आकाश और भूमि की बातें संगति में थीं। आकाश में महाविषुव की सीध में कोई स्पष्ट नक्षत्रमंडल न होने पर अभिजित को गढ़ा गया और बाद में वन को भेज दिया गया क्यों कि उसके स्थान पर दूसरा नक्षत्र आ गया था। 28 से 27 नक्षत्र होने के पीछे यह कारण भी है। सम्पूर्ण विश्लेषण में कहीं भी न तो राशि नाम आया, न उसकी सहायता लेने की आवश्यकता पड़ी।
श्रीराम हों या श्रीकृष्ण, बहुत प्राचीन हैं, राशि आधारित सैद्धांतिक ज्योतिष से बहुत पहले के। राशियों की बातें अपेक्षतया नये ग्रंथों जैसे पुराणों में मिलती हैं या क्षेपक रूप में जोकि स्पष्टत: सैद्धांतिक गणना कर पुरा घटित को उनके अनुकूल वर्णित करने के प्रयास मात्र हैं।