अब कैसे छूटे राम, नाम रट लागी।
प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी,
जाकी अंग अंग बास समानि।
प्रभुजी तुम घन बन हम मोरा,
जैसे चितवत चन्द चकोरा।
प्रभुजी तुम दीपक हम बाती,
जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभुजी तुम मोती हम धागा,
जैसे सोने मिलत सुहागा।
प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा,
ऐसी भक्ति करै रैदासा।
आज रविदास जयंती है। 'प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी' के रचनाकार को नमन। बनारस के सीर गोवर्धन में जन्मे इस संत ने 'बेग़मपुरा' की अवधारणा भी दी - दुखहीन, समानता और निर्भयता को समेटे एक आदर्श नगर। बनारस से बेग़मपुरा एक्सप्रेस उसी की स्मृति में चलती है। इस संत की सरल रचनायें सुदूर पंजाब और महाराष्ट्र तक में लोकप्रिय हैं।
चित्तौड़ की संत रानी मीराबाई इनकी शिष्या रहीं। गुरु ग्रंथ साहिब में दादू, कबीर की तरह ही इनकी भी रचनायें संग्रहीत हैं।
पंजाब में सवर्ण श्रेष्ठता की 'गबरू जाट' छवि के विरुद्ध 'गबरू चमार' का जो पॉप कल्चर चला है, उस पर भी भीम के अतिरिक्त इस चमार संत का प्रभाव है। समाज में अहंकार का वर्ग संतुलन बनाये रखने में भी वह कारगर होंगे, बेग़मपुरा निवासी रविदास ने कभी सोचा भी नहीं होगा!
यह पंजाबी पॉप रचना भले आप को अच्छी न लगे लेकिन 'जट्ट' के समकक्ष पढ़ते लिखते आगे बढ़ते 'चमार' का आत्मविश्वास तो सराहना की माँग करता ही है!
Bahut sundar.
जवाब देंहटाएंवर्ग-अहंकार के संतुलन का यों तो सबसे बड़ा प्रमाण उसी समय (लेकिन दबे स्वर में ) मिल गया था जब अभिजात्य राजपूत रानी इस अछूत ( उस समय घोर अछूत )संत की शिष्या बनी और बाद में भक्तिकाल की ज्ञानमार्गी शाखा के कवियों नानक ,दादू आदि के साथ रैदास का नाम प्रमुखता के साथ जुड़ गया . यह भक्ति के साथ साहित्य कला का भी प्रभाव था . अब संगीत और वह भी समय के साथ बदलते और दिनोंदिन लोकप्रिय होते पॉप संगीत में 'गबरू चमार ' का नाम ही अपने आप में आत्मगौरव का प्रतीक है फिर रचना बेशक लोकप्रिय होने का विश्वास भी कराती है . संत की रचनाओं से कलाकार प्रेरणा ले रहे हैं यह और भी अच्छी बात है . 'बेगमपुरा 'और 'गबरू चमार ' मेरे लिए नई जानकारी है . आभार आपका .
जवाब देंहटाएंऐसी भगती करे रैदासा ... जय हो!
जवाब देंहटाएंभक्तिकाल में, जैसे भक्तियोद के तात्कालीन कारण थे. ऐसे ही कारण समय समय पर, समाज की एकरसता के विरूद्ध खड़े होते हैं.
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