(१) केशव
विष्णु के विविध रूप नाम चार हाथों में चार अस्त्रों/उपादानों के क्रम से आते हैं। यह केशव रूप है। न्यूयॉर्क संग्रहालय The Met, 1000 Fifth Avenue, New York, NY 10028 में स्थित इस प्रतिमा का विवरण इस प्रकार है :
मत्स्य, कूर्म, जामदग्न्य राम, संकर्षण राम, बुद्ध; इन पाँच को लेकर समस्यायें हैं जो कृष्ण को मिला कर जटिल हो जाती हैं।
१३०० वि. का यह केशव विष्णु शिल्प होयसल राजाओंं के समय का है। यह बल्लिग्राम के दसोजा नामक शिल्पकार द्वारा निर्मित है।
ऊपर पाँच पाँच कर दशावतार दिये गये हैं। दाशरथि राम के पश्चात हलधर संकर्षण राम, तब परशुधारी जामदग्न्य राम, तब बुद्ध एवं सबसे अंत में कल्कि हैं। श्रीकृष्ण को सर्वोच्च मान कर केशव में ही समाहित माना गया है अर्थात यह एक विशेष वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बंधित कृति है। उल्लेखनीय है कि राम जामदग्न्य संकर्षण राम के पश्चात दर्शाये गये हैं तथा बुद्ध दशावतार में हैं।
(२) महाविष्णु
महाविष्णु। तोमर काल। वर्तमान के पञ्जाब, हरयाणा एवं दिल्ली क्षेत्र। प्रतिमा अब न्यूयॉर्क संग्रहालय में, विवरण इस प्रकार है :
केशव Keshava |
Artist:Dasoja of Balligramaदशावतार विकास के अनेक चरण रहे हैं तथा दक्षिण भारत का इसमें योगदान अधिक रहा। साम्प्रदायिक आग्रह, मतभेद, श्रेष्ठता की भावना आदि के कारण दाशरथि राम के पश्चात तथा वराह के पूर्व के क्रम एवं उपस्थिति, दोनों में विविधता रही। आज जो मान्यता है उसमें वराह, नृसिंह, वामन, दाशरथि राम एवं कल्कि को ले कर कभी समस्या नहीं रही।
Period:Hoysala period
Date:first quarter of the 12th century
Culture:India (Karnataka, probably Belur)
Medium:Stone
Dimensions:H. 56 1/2 in. (143.5 cm); W. 28 in. (71.1 cm); D. 9 1/4 in. (23.5 cm)
Classification:Sculpture
Credit Line:Rogers Fund, 1918
Accession Number:18.41
मत्स्य, कूर्म, जामदग्न्य राम, संकर्षण राम, बुद्ध; इन पाँच को लेकर समस्यायें हैं जो कृष्ण को मिला कर जटिल हो जाती हैं।
१३०० वि. का यह केशव विष्णु शिल्प होयसल राजाओंं के समय का है। यह बल्लिग्राम के दसोजा नामक शिल्पकार द्वारा निर्मित है।
ऊपर पाँच पाँच कर दशावतार दिये गये हैं। दाशरथि राम के पश्चात हलधर संकर्षण राम, तब परशुधारी जामदग्न्य राम, तब बुद्ध एवं सबसे अंत में कल्कि हैं। श्रीकृष्ण को सर्वोच्च मान कर केशव में ही समाहित माना गया है अर्थात यह एक विशेष वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बंधित कृति है। उल्लेखनीय है कि राम जामदग्न्य संकर्षण राम के पश्चात दर्शाये गये हैं तथा बुद्ध दशावतार में हैं।
(२) महाविष्णु
महाविष्णु Mahavishnu |
Date:10th–11th century
Culture:India (Punjab)
Medium:Sandstone
Dimensions:H. 43 1/2 in. (110.5 cm); W. 25 5/8 in. (65.1 cm); D. 10 in. (25.4 cm)
Classification:Sculpture
Credit Line:Rogers Fund, 1968
Accession Number:68.46
विचार करें कि प्रतिमा किसी मन्दिर में ही रही होगी। कहाँ गया वह मन्दिर? उत्तर भारत के प्राय: समस्त बिखरे महालय मुसलमानों ने नष्ट कर दिये, उन पर मजार, मकबरा, मस्जिद बना दिये। परमर्दिदेव द्वारा निर्मित एवं जयपुर शासकों द्वारा परिवर्द्धित वह मन्दिर एक उदाहरण मात्र है जिसे आज ताजमहल कहते हैं।लोद़ियों से ले कर हुमायूँ के मकबरे तक, किसी की भी खुदाई हो, मन्दिर अवशेष मिलेंगे। भूचुम्बकीय सर्वेक्षण से भी जाना जा सकता है।
सभी बड़े मन्दिर शिक्षा के केन्द्र भी हुआ करते थे। अग्रहार या ग्रामदेय व्यवस्था के कारण शिक्षक वृत्ति हेतु शासन पर निर्भर नहीं रहता था तथा धर्मानुशासन उसे नियन्त्रण में रखता था, न कि आज के सब धान २२ पसेरी जैसा दण्डविधान।
सब समाप्त हो गया। आज इन क्षेत्रों की अधिकांश जनसंख्या अर्द्ध व्यञ्जन का उच्चारण तक नहीं कर पाती!
समझें कि शिक्षा एवं संस्कृति की लड़ी जब विछिन्न होती है तो युगीन दुर्घटनायें होती हैं। पीढ़ियाँ भ्रष्ट हो अपनी ही शत्रु हो जाती हैं।
कश्मीरी पत्थरबाजों के पुरखे सिकन्दर बुतशिकन के पूर्व वाजश्रवाओं के तुल्य होते थे।
शारदा देवी को आप वीणावादिनी तक सीमित जानते हैं। वृत्रहन्ता वाजिनी सरस्वती का वास्तविक रूप कश्मीर में सुरक्षित था।... सब नष्ट हो गया।
सभी बड़े मन्दिर शिक्षा के केन्द्र भी हुआ करते थे। अग्रहार या ग्रामदेय व्यवस्था के कारण शिक्षक वृत्ति हेतु शासन पर निर्भर नहीं रहता था तथा धर्मानुशासन उसे नियन्त्रण में रखता था, न कि आज के सब धान २२ पसेरी जैसा दण्डविधान।
सब समाप्त हो गया। आज इन क्षेत्रों की अधिकांश जनसंख्या अर्द्ध व्यञ्जन का उच्चारण तक नहीं कर पाती!
समझें कि शिक्षा एवं संस्कृति की लड़ी जब विछिन्न होती है तो युगीन दुर्घटनायें होती हैं। पीढ़ियाँ भ्रष्ट हो अपनी ही शत्रु हो जाती हैं।
कश्मीरी पत्थरबाजों के पुरखे सिकन्दर बुतशिकन के पूर्व वाजश्रवाओं के तुल्य होते थे।
शारदा देवी को आप वीणावादिनी तक सीमित जानते हैं। वृत्रहन्ता वाजिनी सरस्वती का वास्तविक रूप कश्मीर में सुरक्षित था।... सब नष्ट हो गया।
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