रविवार, 15 सितंबर 2019

शाक साग वनस्पति भाजी सब्ज़ सब्ज़ी व आहार


गाँव गिराम से ले कर नगर तक 'उत्त भदेस' में 'भाजी' हेतु 'सब्ज़ी' शब्द का 'मूसलाधार' प्रयोग हमारी पीढ़ी में आरम्भ हुआ तथा बपुरा 'भाजी' शब्द पहले 'शाक' 'साग' हेतु रूढ़ हुआ एवं आगे प्राय: प्रयोगबाह्य हो गया। 

पारसी भाषा में 'सब्ज़' हरे (ताजे एवं भले भी) अर्थ में प्रयुक्त है। सब्ज़ी वही होगी जो 'हरी' हो अर्थात आलू की 'सब्ज़ी' नहीं हो सकती। इसके विपरीत यदि औषधि, वनस्पति आदि शब्दों के आयुर्वेदिक पारिभाषिक अर्थ न ले कर प्रचलित अर्थ लें तो वनस्पति शब्द पादप या पादपस्रोत अर्थ में चलता है। पौधा पादप से ही है। जो पाद अर्थात पाँव एक ही स्थान से बद्ध किये हो, स्थित स्थावर जिसमें गति न हो। 

भाजी शब्द वनस्पति से है, लोकसंक्षिप्ति। इसका प्रयोग पुन: आरम्भ करें क्यों कि यह आलू से ले कर पालक तक, सबके लिये उपयुक्त होगा। आप का अपना शब्द है, पर्सिया फारस से आयातित नहीं जिसने अपनी सभ्यता आक्रांता अरबी के बान्हे रख दी! 

भाजी शब्द प्रयोग न तो पिछड़े होने का चिह्न है, न ही सब्जी प्रयोग से आप सभ्य नागर हो जाते हैं। 

शाकाहार अपनायें, स्वस्थ रहें किंतु साग का उसके 'मांस' सहित प्रयोग अल्प करें क्यों कि आयुर्वेद इसे पशुमांस समान ही गरिष्ठ बताता है। सूप लें।

यहाँ शाकाहार मांसाहार का युद्ध आरम्भ न करें। आहार का सम्बंध परिवेश, सभ्यता, संस्कृति, उपलब्धता, मूल्यदक्षता, मान्यताओं आदि से है।
बृहद हिंदी क्षेत्र हेतु शाकाहार पर्याप्त उपलब्ध है, पोषक है, मूल्यदक्ष है, धरा के स्वास्थ्य हेतु भी उत्तम है, अत: पथ्य है। 
वैविध्य बनाये रखें। जिन भाजियों को पिछड़ा मान कर आप छूते तक नहीं, उनमें अनमोल तत्व हैं। प्रयोगधर्मी बनें, भारत के अन्य प्रांतों का शाकाहार अपनायें, टन के टन टमाटर उदर में हूरना व भखना तो आप ने विदेशियों से सीखा न, वे तो अपने हैं! 
सदैव ध्यान रखें कि खाद्यविशेष का चयन उसकी गुणवत्ता से करना होता है। कोई खाद्य न पिछड़ेपन का चिह्न होता है, न आभिजात्य का। जिन कोदो, मड़ुवा, साँवा, टाङ्गुन, जौ आदि को आप मोटा अन्न एवं पिछड़ा मान कर त्याग दिये, थरिया भर भर भात एवं तीन समय गेहूँ की रोट्टी सोट्टी खा स्थायी रूप से अपानवायूत्सर्जन के रोगी हो गये; उन्हीं मोटो झोटों को अब नागर अभिजन Organic Stores से चौगुने मूल्य में ले कर धन्य धन्य हो रहे हैं। आप खेती करते हैं तो उनकी बुवाई करें, मोटा अन्न, मोटा दाम। 
हाँ, टमाटर सांस्कृतिक संकट भी है। अपने व्यञ्जनों से इसके प्रदूषण को शनै: शनै: हटा ही दें। मुआ बचा रह गया अंग्रेज है!

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