आ नो भद्रा: क्रतवो यंतु विश्वत:।
संगच्छध्वं संवदध्वं संवो मनांसि जानताम
देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते
समानीव आकूति: समाना हृदयानि व:
समानमस्तु व मनो यथा व: सुसहासति।
धूप!
आओ,अंधकार मन गहन कूप फैला शीतल तम ।मृत्यु प्रहर भेद आओ। किरणों के पाखी प्रखर कलरव प्रकाश गह्वर गह्वर भर दो विश्वास सबल । तिमिर प्रबल माया कुहर हो छिन्न भिन्न। सत्त्वर सुरूप आओ। अंधकार मन गहन कूप भेद कर आओ धूप। |
नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें ....
जवाब देंहटाएंशुभ हो ...!!
परम परमेश्वर को स्वीकार हो यह सत चित प्रार्थना
जवाब देंहटाएंकविता मौलिक है भाव और भावार्थ दोनों में !
इस प्रार्थना के लिए धन्यवाद. आपको और आपके परिवार को नव संवत्सर व नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंनव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें ....
जवाब देंहटाएंशुभ हो ...!!
धन्यवाद और नवरात्रि की शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद और नव संवत्सर की व नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपको भी नव संवत्सर की मांगलिक शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें और विश्वशांति के लिये प्रार्थना ।
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंवैसे ये ऋचाएं बाऊ के किस्से में भी आई थी न?
हमारी भी शुभकामनायें ! भर लेना चाहता हूँ यही स्वर ’आ नो भद्रा क्रतवो यन्तु विश्वतः’ ..
जवाब देंहटाएंकुकर्मों से ठसाठस भरी हुयी कविता
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