मंगलवार, 16 मार्च 2010

नवसंवत्सर पर प्रार्थना

आ नो भद्रा: क्रतवो यंतु विश्वत:।
संगच्छध्वं संवदध्वं संवो मनांसि जानताम
देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते
समानीव आकूति: समाना हृदयानि व:
समानमस्तु व मनो यथा व: सुसहासति।
धूप!
आओ,अंधकार मन गहन कूप
फैला शीतल तम ।मृत्यु प्रहर
भेद आओ। किरणों के पाखी प्रखर
कलरव प्रकाश गह्वर गह्वर
भर दो विश्वास सबल ।
तिमिर प्रबल माया कुहर
हो छिन्न भिन्न। सत्त्वर सुरूप
आओ। अंधकार मन गहन कूप
भेद कर आओ धूप।

12 टिप्‍पणियां:

  1. नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें ....
    शुभ हो ...!!

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  2. परम परमेश्वर को स्वीकार हो यह सत चित प्रार्थना
    कविता मौलिक है भाव और भावार्थ दोनों में !

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  3. इस प्रार्थना के लिए धन्यवाद. आपको और आपके परिवार को नव संवत्सर व नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  4. नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें ....
    शुभ हो ...!!

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  5. धन्यवाद और नव संवत्सर की व नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामनायें

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  6. आपको भी नव संवत्सर की मांगलिक शुभकामनाएँ.

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  7. शुभकामनायें और विश्वशांति के लिये प्रार्थना ।

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  8. शुभकामनायें !
    वैसे ये ऋचाएं बाऊ के किस्से में भी आई थी न?

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  9. हमारी भी शुभकामनायें ! भर लेना चाहता हूँ यही स्वर ’आ नो भद्रा क्रतवो यन्तु विश्वतः’ ..

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  10. कुकर्मों से ठसाठस भरी हुयी कविता

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