कृष्णावतार शृंखला में कन्हैयालाल मुंशी को पढ़ते हुये मानव कृष्ण के प्रेमिल अवतार होते जाने को जाना। देवकी, यशोदा, शैव्या, सत्या, रुक्मिणी, कृष्णा ... इन सब पर छाया प्रेम, जाने कितने विविध रूपों में!
व्यास को अमर मानता वही लेखक इस युग की कालभूमि में रचे गये एक दूसरे उपन्यास ‘तपस्विनी’ में प्रेम की सान्द्रता का साक्षात्कार कराता है, एक स्त्री का प्रेम नायक में जरा जर्जर व्यास को उतारने का चमत्कार कर दिखाता है। सम्वेदनायें, प्रेम की गहनता, समर्पण उस अतीन्द्रिय भावभूमि में ले जाते हैं जहाँ चमत्कार विश्वसनीय हो जाते हैं, अतार्किक होते हुये भी सब कुछ बहुत प्यारा सा, वांछनीय लगने लगता है – इन गलियाँ दिल न दिमागाँ!
अमृता प्रीतम ने साहिर को किस दृष्टि से, किस भावभूमि में देखा, सुना और जिया, जाने इमरोज और अमृता किन तंतुओं को बुनते रहे; पता नहीं लेकिन उस देस जाने पर भीगना हो ही जाता है, तब भी जब कि यह इश्क़ अपने टाइप का नहीं लगता!
अमृता की दीवानी हरकीरत हक़ीर हीर अनुभूतियों के ठाँव चलती राँझड़ा के लोक में पहुँचा देती है, जाने कौन है वो! मन में घुमंतू लोकगायक के स्वर उमड़ने लगते हैं:
छेजी तेरी सहू तेरा सो गिआ; मैं सच दी आख सुनाई...
दिल दरिया समुन्दरों डूँगा, कौन दिलाँ दी जाने?
बिचे बेरी, बिचे चप्पा, बीचे बंझ मुहाने!
चौदारी टबक बन्दे बिच बस गे, तम्बू वांगो ताने!
जे कोई ठाठ दिलाँ दी बुझे, हर दम खुशियाँ माने!
हरकीरत की कविताई में हीर की यह दीवानगी दिखती है - सुगन्धित चमेली फूली है, आ मेरे प्रियतम, चुन लो!
नंगे पिंडे चोटाँ मारिआँ, मेरी हुंदी नैन निमानी
जिहिआँ चोटाँ तन मेरे लाईआँ, तेरे इक लगे ताँ जाने!
...सुत्ता ही, ताँ जाग पिओ, चुगलाँ फल चमेली
दरारों से आहें भरती रहीं
कोई रेत का तिनका
आँखों में लहू बन जलता रहा
घुप्प अँधेरे की कोख में
वह दीया जला लौट आती है
किसी और जन्म की
उडीक में .....!!
आँख , कान श्वास -प्रश्वास
सब कुछ शून्य मुद्रा में नि:शब्द है
रात सुब्ह के ब्रह्म मुहूर्त की प्रतीक्षा में बैठी है
वह आज पावन कुम्भ के जल से
कर लेना चाहती है आचमन ...
पारुल ‘पुखराज’ अपने परिचय में कहती हैं - किसी नखत के मेघ हैं बेबखत बरसे जा रहे। कहते हैं कि अंगुली में पहना गया पीत पुखराज शुभ ले आता है लेकिन किसी ने उससे चाँद गढ़ नभ पर टाँक दिया हो तो? धरा पर अमृत बरसता है। उत्कृष्ट साहित्य, गीत, संगीत संकलनों के बीच बीदरी की बात देखिये:
पारुल रेडियो पर भी हैं। कभी कभी अपनी कविताओं से पाठकों को महादेवी और प्रसाद जैसों की स्मृति करा देती हैं:
बंगलुरू में कार्यरत हैं ब्लॉगर पूजा उपाध्याय। विज्ञापन संसार में कॉपीराइटर पूजा का लेखन ऊपर की दो ब्लॉगरों से एकदम अलग है – चुलबुला, बिन्दास और अलग सा फ्लेवर लिये संजीदा भी। अपने पाँव जमाये जमाने को चुनौती सी देती एक स्त्री जिसे पढ़ना नव्य लेखन के नगीने देखने जैसा होता है। परिचय में कहती हैं:
Some people break rules...some make them...I belong to the second category. I love playing with words,they have been my friends for life. This blog is an extension of myself... Some day I will make a movie...or a couple of them...and write a book...and do so many things... I want to live my life...every moment of it...AND ON MY OWN TERMS
और उसके बाद पूछती भी हैं:
You're going to the moon! What did you forget to pack?
शायद ही ब्लॉग जगत में किसी स्त्री ने अपने प्रियतम पर वैसे लिखा होगा जैसे पूजा ने लिखा है! आप मुग्ध होते हैं और तभी चुपके से वह किसी वाक्य में चुनौती छोड़ देती हैं, सोचते होगे काश! ऐसी एक लड़की मेरी भी होती लेकिन ऐसी लड़की का पिता होना बहुत बड़ी कठिन...
अब तक:
प्रतिभा शिल्प
हीर पुखराज पूजा
आगे:
शैल शेफाली रश्मि
अनु अल्पना
अर्चना आराधना
वाणी रचना
नज़र है, आपकी पारखी नज़र पर,
जवाब देंहटाएंअसर है, वक्त के घुलते असर पर,
Good
जवाब देंहटाएंpooja जी को पढ़ा है। अच्छा लगता है वहां। ताज़ी हवा के हँसते झोंके जैसी लगती हैं वे। जिसे कोई बाँध नही पाए। जो हमेशा ताजगी और रिलेक्सेशन लाए। कहीं कोई बनावट नही। कोई छिपाव कोई बनावट नही। बस बहती हवा।
जवाब देंहटाएंहीर जी और पुखराज जी को अब तक नही पढ़ा। या एकाध बार शायद। परिचय के लिए आभार।
आभार इस पोस्ट के लिए।
तीनो ही अभिन्न प्रतिभा की स्वामिनी!! इस प्रस्तुति के लिए आभार!!
जवाब देंहटाएंतीनो ही काफी समय से नियमित लिख रही हैं,उन्हें पढना अच्छा लगता है.
जवाब देंहटाएंआपने तीनो के बारे में बहुत ही अच्छा लिखा है.
पारुल पुखराज का लेखन खूब पढ़ा है और उनकी मधुर स्वर लहरी भी सुनी है। कम ही लोग इस प्रकार की बहुमुखी प्रतिभा रखते हैं। मेरी शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंभाव-संसार में भिन्नता होतेहुए भी हीर जी और पुखराज जी में एक समानान्तरता लगती है.पूजा जी की मनोभूमि मे एक रूमानियत अनुभव की हुई-सी!
जवाब देंहटाएंकाफ़ी पढ़ा है तीनों को और तीनों की ही तारीफ़ के शब्द कम हैं मेरे पास।
जवाब देंहटाएंये जो नाम आप ले रहे हैं, उनके पीछे कुछ न कुछ काण्ड आप ज़रूर कर रहे हैं :):)
हटाएंप्रतिभा-शिल्प तो समझ आया ...
हीरा-पुखराज पायेंगे अगर आप पूजा करेंगे, ऐसा कोई लोचा है का ?? :):)
नवरात्र हो
हटाएं'शैल' पर 'शेफाली' के पुष्प हों,
प्रात की 'रश्मि'याँ हों
- कोई राम ऐसे में ध्यान लगाये तो
'संचित त्रिकुटी पर ध्यान द्विदल देवी पद पर
जप के स्वर लगा काँपने अम्बर थर थर थर'
सधेगा क्या? वसंत में शरद का संक्रमण हो गा क्या?
अर्थान इन दिनों नवरात्र है, शैल, शेफाली, पुष्प, रश्मि (इत्यादि इत्यादि) के ब्लोगों पर गिरिजेश राव रुपी राम, पोस्ट रुपी जप के ऐसे स्वर लगा रहे हैं, कि समस्त ब्लॉग जगत थर् थर थर काँपने लगा है, किन्तु बालिकाओं (शैल, शेफाली, पुष्प, रश्मि इत्यादि इत्यादि और आने वाली इत्यादियाँ ) परेशान न हो, लिखती रहो, अपने ब्लोग्स में वसँत के फूल खिलाती रहो, क्योंकि अगर आलसी का चिट्टा के द्वारा तुमलोगों के ब्लोग्स पर शिशिर ऋतु लाने का प्रयास भी किया गया, तो वो संक्रमण संभव नहीं होगा :):)
हटाएंयही माने है न ?
:):)
शिशिर नहीं शरद ऋतु!
हटाएं'राम की शक्ति पूजा'
गायन चुनौती थर थर थर
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अन्त में लगा चित्र समूह गहन अभिव्यक्ति है……
जवाब देंहटाएं॥शक्ति की उपासना करते शिव॥