इस्लामी हिजरी संवत को राज्य संवत का दर्जा देने से कर वसूली में बहुत
समस्यायें थीं। चन्द्र संवत होने के कारण यह सौर वर्ष से 11-12 दिन छोटा होता
था जिसके कारण ऋतुओं से महीनों की संगति नहीं थी। फसल कटाई और कर वसूली का महीना
साथ साथ पड़ने की आवृत्ति 33 वर्षों में एक थी।
राजा टोडरमल और पर्सिया के सलाहकारों की राय पर अमल करते हुये अकबर ने अपने
राज्य के 29 वें
वर्ष यानि 1584 ई. में सौर संवत 'तारीख-ए-इलाही' (दैवी संवत) के राजकीय संवत होने का फरमान जारी किया। रबिउल अव्वल
8, हिजरा 992 का वह दिन महाविषुव था
अर्थात वसंत ऋतु, दिन और रात बराबर, ईसाई
कैलेंडर से 21 मार्च।
लगभग दो वर्षों पहले ही सुदूर यूरोप में पोप ग्रेगरी ने 15 अक्टूबर 1582
को जूलियन कैलेंडर का संशोधित रूप लागू करवाया था जिसे आज तक माना
जा रहा है। इस संशोधन के कारण ग्यारह दिन कैलेंडर से ग़ायब हो गये और 1583 का महाविषुव 10 मार्च के बजाय 'सही' दिनांक यानि 21 मार्च को
पड़ा।
अकबर ने इलाही संवत को अपने सिंहासनारोहण के वर्ष से लागू मानने को कहा। 14 फरवरी 1556
को वह गद्दीनशीं हुआ था और इलाही संवत उस साल के महाविषुव अर्थात 10
मार्च जूलियन/21 मार्च ग्रेगरियन 1556 तदनुसार 27 रबिउस सानी हिजरा 963 से लागू माना गया।
शाहजहाँ तक यह संवत कर वसूली और राजकीय संवत दोनों रहा। शाहजहाँ ने हिजरा
को पुन: राजकीय संवत बनाया हालाँकि कर वसूली के लिये तारीख इलाही को औरंगजेब के
शासन काल के अंत तक प्रयुक्त किया जाता रहा। उत्तर प्रदेश के भूमि दस्तावेजों में
प्रयुक्त फसली संवत तारीख इलाही से ही उपजा।
Interesting information.Thanks
जवाब देंहटाएंजानकारी के लिए धन्यवाद्..
जवाब देंहटाएंचन्द्र और सूर्य, दोनों ने ही समय को निर्धारित किया है, अन्तर चन्द्र को नित देख सकने और सूर्य आधारित मौसम पर आधारित रहा है।
जवाब देंहटाएंसूर्य के आगे चन्द्रमा की क्या बिसात? लेकिन पुराने जमाने में चाँद की चाल पर लोग ज्यादा आकर्षित थे, जबकि साल महीने और दिनों के साथ-साथ मौसम की आवृत्ति भी सूर्य की चाल के आधार पर ज्यादा सटीक बैठती है।
जवाब देंहटाएंबढिया जानकारी
जवाब देंहटाएंरोचक ऐतिहासिक जानकारी। जब हम पंचांगों की समीक्षा करेंगे तो जिल्लेलाही के साथ आपका नाम भी आयेगा। पंचांग में चाँद की बात आकर्षण की नहीं सरलता की है।
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