दस ऋषिकुलों के आह्वान मंत्रों आप्री में तीन देवियाँ भारती, सरस्वती और इळा समान रूप और आदर में पायी जाती हैं। मेधातिथि और काण्व भारती के लिये 'मही' का प्रयोग करते हैं तो कुछ ऋषिकुल मही और भारती दोनों का।
भारती धरती है, सरस्वती जीवनस्रोत और इळा मानवीय प्रज्ञा। दो प्रतिद्वन्द्वी कुल कौशिक विश्वामित्र गाथिन(3.4) और वसिष्ठ मैत्रावरुणि (7.2) अलग स्थानों पर एक ही ऋचा का प्रयोग करते हैं।
इस प्राचीन, विराट और संस्कृतिबहुल देश के लिये आवश्यकता इस बात की है कि एकता के बिन्दु खोजें जायँ जहाँ विविधता के प्रति सम्मान हो, स्वीकार हो और साहचर्य हो न कि ऐसे जुमले जो विकट समस्याओं से भीत पाखंडी समाज को आँखें फेर कुकुरझौंझ के मौके प्रदान करें।
कौशिकों और मैत्रावरुणों के आह्वान स्वर में मेरा स्वर भी मिला लो देवियों! देश में सद्बुद्धि का प्रसार हो।
आ भारती भारतीभि: सजोषा इळा देवैर्मनुष्येभिरग्नि:
सरस्वती सारस्वतोभिरर्वाक् तिस्रो देवीर्बर्हिरेदं सदंतु।
अति सुन्दर !अभी अभी स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में लेखों के नाम पर भाई लोगों द्वारा फेंका गया दिमागी कचरा पढ़ कर मन बड़ा खराब हो रहा था। आपका लेख पढ़ कर बहुत अच्छा लगा है।
जवाब देंहटाएंसामयिक आलेख शृंखला। हमारी परंपरा विविधता के सम्मान और अनेकता में समन्वय की है। दुखद है कि हम अपनी ही संस्कृति और संस्कृत से कटते जा रहे हैं।
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी पर्व पर हार्दिक शुभकामनायें!
सर, मैं ब्लाॉगों पर रिसर्च कर रही हूूँ। कृपया आप अपना ई मेल पता मुझे दे दीजिए। आप के ब्लॉग के विषय में कुछ जानना है।
जवाब देंहटाएंgirijeshrao[@]gmail[.]com से ब्रैकेट हटाने पर ई मेल पता मिल जायेगा।
हटाएंthank u sir. i will contact you.
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