दीपावली अमानिशा से जागरण का पर्व होती है। वर्षों से लम्बित पड़े स्वर आयोजन का प्रारम्भ करने को सोचा तो यह भी ध्यान में आया कि रात में जगना तो मुझसे हो नहीं पाता!
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा 2072 सूर्योदय के पहले, भोर में जाग कर निराला जी की इस अद्भुत कविता के अंतिम भाग का ध्वनि अंकन किया। निशा बीत चुकी थी इसलिये प्रारम्भ भी राघव के जागरण अर्थात 'निशि हुई विगत ...' से किया। सुनिये।
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ग़ज़ब!
जवाब देंहटाएंहोगी जय होगी जय!
जवाब देंहटाएंसुन्दर !
जवाब देंहटाएंसुन्दर !
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