कुछ संयोग जो संयोग लगते नहीं!
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(1) इस्लाम आधारित विभाजन के दौर में कश्मीर का मुद्दा राष्ट्रसंघ में ले जाया गया। कब्जे वाली भूमि पाकिस्तान की हुई।
(2) नदी जल बँटवारे की सन्धि कर पाकिस्तान को सदा के लिये निश्चिंत कर दिया गया।
(3) चीन ने आक्रमण कर अक्षय चिन अपने अधिकार में किया। तिब्बत पहले ही अधिकृत किया जा चुका था।
(4) पाकिस्तान ने कराकोरम क्षेत्र की कुछ भूमि चीन को दे दी।
(5) तिब्बत को काट छाँट कर कुछ भाग स्वायत्त बना कर बाकी चीन में मिला लिया गया। अब चीन की पाकिस्तान तक पहुँच थल मार्ग से सुनिश्चित हो गयी।
(6) इसके साथ ही चीन कराकोरम मार्ग के काम पर लग गया।
पाक अधिकृत कश्मीर और बलूचिस्तान के रास्ते अरब सागर के पत्तन तक अपनी पहुँच सुनिश्चित करने के लिये चीन ने एक बहुत ही महत्त्वाकांक्षी योजना बनाई है CPEC (China Pakistan Economic Corridor)। तेल और अन्य व्यापारिक सहूलियतों के कारण चीन को भारी लाभ होगा। बचत का कुछ भाग पाकिस्तान में आधारभूत ढाँचे के विकास में लगाया जायेगा।
... और हम सिन्धु जल बँटवारा समझौते को सँजोते मोहनदासी चरखे पर बुनी विकासवादी खादी के उत्पादन से पुन: 'पंच'शील राष्ट्र बनने के लिये प्रयास करते रहेंगे। एक दिन 'अब्राहमियों के वर्चस्व की लड़ाई का क्षेत्र' कब बन जायेंगे, पता ही नहीं चलेगा।
लगभग सभी बहुराष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद जैसे लैपटॉप, टैब, मोबाइल आदि चीन में बनते हैं, उनसे आप बच ही नहीं सकते। उनसे हानि नहीं, आप के देश को कराधान से आय भी होती है, वैध राह से आते हैं।
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(1) इस्लाम आधारित विभाजन के दौर में कश्मीर का मुद्दा राष्ट्रसंघ में ले जाया गया। कब्जे वाली भूमि पाकिस्तान की हुई।
(2) नदी जल बँटवारे की सन्धि कर पाकिस्तान को सदा के लिये निश्चिंत कर दिया गया।
(3) चीन ने आक्रमण कर अक्षय चिन अपने अधिकार में किया। तिब्बत पहले ही अधिकृत किया जा चुका था।
(4) पाकिस्तान ने कराकोरम क्षेत्र की कुछ भूमि चीन को दे दी।
(5) तिब्बत को काट छाँट कर कुछ भाग स्वायत्त बना कर बाकी चीन में मिला लिया गया। अब चीन की पाकिस्तान तक पहुँच थल मार्ग से सुनिश्चित हो गयी।
(6) इसके साथ ही चीन कराकोरम मार्ग के काम पर लग गया।
पाक अधिकृत कश्मीर और बलूचिस्तान के रास्ते अरब सागर के पत्तन तक अपनी पहुँच सुनिश्चित करने के लिये चीन ने एक बहुत ही महत्त्वाकांक्षी योजना बनाई है CPEC (China Pakistan Economic Corridor)। तेल और अन्य व्यापारिक सहूलियतों के कारण चीन को भारी लाभ होगा। बचत का कुछ भाग पाकिस्तान में आधारभूत ढाँचे के विकास में लगाया जायेगा।
... और हम सिन्धु जल बँटवारा समझौते को सँजोते मोहनदासी चरखे पर बुनी विकासवादी खादी के उत्पादन से पुन: 'पंच'शील राष्ट्र बनने के लिये प्रयास करते रहेंगे। एक दिन 'अब्राहमियों के वर्चस्व की लड़ाई का क्षेत्र' कब बन जायेंगे, पता ही नहीं चलेगा।
लगभग सभी बहुराष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद जैसे लैपटॉप, टैब, मोबाइल आदि चीन में बनते हैं, उनसे आप बच ही नहीं सकते। उनसे हानि नहीं, आप के देश को कराधान से आय भी होती है, वैध राह से आते हैं।
हानि उन कचरा उत्पादों से है जो अवैध राह से आ कर अर्थव्यवस्था को पंगु बना रहे हैं और देसी उद्यमों को मिटा रहे हैं। उन्हों ने आप के घर और हर पर्व पर कब्जा जमा लिया है। उदाहरण के लिए पिचकारी, रंग, अबीर, दीपक, मोमबत्ती, पटाखे, खिलौने, मच्छरमार, स्टेशनरी आदि आदि। इनका बहिष्कार कीजिये। नागरिक के तौर पर यह न्यूनतम है जो किया जा सकता है, सरकार तो जो है, हइये है!
गजब की खोजी पोस्ट है जी महाराज आप झुट्ठे आलसी आलसी कहते रहते हैं , बहुत ही बेहतरीन और कमाल धमाल | पिछली पोस्टें भी अनियमित होने के कारण पढने से बच गयी हैं , आते रहेंगे अब तो
जवाब देंहटाएंATI UTTAM MEIN APKE VICHARON SE SAHMAT HUN KRIPYA MERI AJ KIPOST BHI PADHEN
जवाब देंहटाएंhttp://kucugrabaatein.blogspot.in/2016/09/blog-post.html
कोई भी देश अपने नागरिकों से अधिक महान नहीं बन सकता। हम लोग बीस-तीस-चालीस हज़ार के फ़ोन खरीद सकते हैं लेकिन दिवाली के दिये में अठन्नी बचाने लगते हैं। इसलिए दुकानदार भी अब चीनी माल ही रखते हैं। बस अब कुछ दशकों का खेल बाक़ी है।
जवाब देंहटाएंचीन बहुत ही आक्रामक तरीके से विश्व को पैसे से जीत रहा है। अब तो अमेरिका भी घुटने टेक गया। यूरोप तो पहले ही पास्त था, केवल हिंदुस्तान ही टक्कर दे रहा है और देता रहेगा, लेकिन हम अभी पुर्ण सजग नही है। मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट कम करनी होगी और कोई रास्ता नही है
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