भोजपुरी शृंखला की अन्य कड़ियाँ:
(1) साहेब राउर भेदवा (2) कवने ठगवा (3) लोकसुर में सूर - सिव भोला हउवें दानी बड़ लहरी (4) अम्मा के स्वर में - गउरा सिव बियाह की एक झलकी (5) घुमंतू जोगी - जइसे धधकेले हो गोपीचन्द, लोहरा घरे लोहसाई (6) रोइहें भरि भरि ऊ ... बाबा हमरो |
यह पिछले भाग से जारी है:
पीछे छूट गया जोगीछपरा। क्यों लग रहा है कि मैंने टाइम मशीन से कोई यात्रा की? पिछ्ड़े देहात में भी नहर के उस पार समय पीछे है और इस पार आगे! ...
नहीं, वह स्वर एक नर्तक(ई) का नहीं हो सकता। स्वर अभिनय इतनी ऊँचाई नहीं छू सकता और इस पेशे में तो कोई असंग रह ही नहीं सकता लेकिन प्रमाणों का क्या करूँ? किसी ने भी किसी दूसरे का नाम नहीं लिया! मौन धसता चला गया है। मैं यह पूछ कर कि बीगन पंडित अपने गाँव आयेंगे क्या? चुप हो गया हूँ । भैया कहते हैं – आयेंगे, अब उनकी पत्नी उन्हें आये बिना रहने नहीं देगी। भैया को मेरे तिलस्म पर भरोसा है ...
... मैं घर पहुँचने के बाद अनमने उत्तर दे बाकी काम में लग जाता हूँ। दिन में दो एक बार भैया के पास फोन कर पूछ लेता हूँ – नहीं, कोई काल नहीं... मोबइलवा ऑफ बा। वह आश्वस्त करते हैं - अरे ऊ खुदे करिहें...
पिताजी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। मन में उदासी है और एक कलाकार से साक्षात होने की उमंग भी – विचित्र मन:स्थिति में हूँ। अनमन लहरी। मोबाइल में अनुज के भेजे ऑडियो के बहुत छोटे अंश को सुनता हूँ:
बोले पिजड़ा में सुगनवाऽ बड़ऽ लहरी
बोले पिजड़ा में मयनवाऽ बड़ऽ लहरी।
क्या है गीत का पिजड़ा? पिजड़ा तो देह है रे! पिंजर प्रेम परकासिया। चौंध सी हुई है – देह! अनुज से पता करो कि गायक दिखने में कैसा है? अरे बावरे! वहाँ क्यों नहीं सूझा? ... पता नहीं। ...छोटा भाई मोबाइल पर बता रहा है – साँवला चेहरा। मझोली गठी हुई काठी। घने केश ...समझ लीजिये – वह परिचय का एक नाम लेता है - दाढ़ी के साथ।
“दाढ़ी! तुमने दाढ़ी कहा?”
“हाँ, अधिक बढ़ी नहीं - युवा जोगियों की तरह।“
बिंगो!
मेरा अनुमान सही था। नौटंकी का समाजी जो नर्तकी बनता है, दाढ़ी क्यों रखेगा?
अपने शक की पुष्टि की प्रसन्नता क्षण भर में हवा हो जाती है। अगर वह नहीं तो कौन? दिन व्यर्थ गया! दुबारा से खोज!! कहाँ ढूँढूँ?
मन में वर्षों पुराना किशोर सिर उठाता है – किसे किसे ढूँढ़ोगे गिरिजेश? तुम्हारी खोज कभी सफल भी हुई? मन में कुछ कुछ भूले बिसरे से अंश हैं:
... बन बन ढुँढलीं, खोजलीं आँखि मिलंते।
छ्न्द छ्न्द लय ताल में ढुँढलीं, खोजलीं स्वर से मन से।
अरे हिया हिया में पइस के ढुँढलीं, खोजलीं उर के धन से।
कवने खोतवा में लुकइलूऽ, अहि रे बालम चिरईऽ ....
सगरी उमिरिया धकनक जियराऽ, कवले तोहके पाईं।
कवने सुगना पर मोहइलू, अहि रे बालम चिरईऽ!
खलील कहीं नहीं है लेकिन मन में उनके गहमर प्रश्नों की बुलन्दी है और फिर हताशा...मोबाइल पर क्रेज़ी हार्ट का कंट्री सांग लगा कर सुनने लगा हूँ... They say no place for weary kind... अम्मा का कहा अब समझ में आ रहा है – मैं weary kind हूँ। क्या सोचते होंगे लोग? no place to lose your mind… Pick up crazy heart! Give one more try ...धूप में बैठा चुप हूँ ... pick up! उलाहने में Crazy lazy हो गया है – pick up lazy heart, one more try! ... भीतर कुछ नहीं होता।
...रात घिर आई है। भैया खुशखबरी लेकर आये हैं – बीगन पंडित ने फोन किया था, कल दस बजे तक आयेंगे।
सोलर लाइट सिस्टम का प्रकाश है। भैया की प्रसन्नता दिख रही है, मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं देता। वह आगे बताते हैं – पता है उन्हों ने बताया है कि वह गीत उन्हों ने नहीं गाया था बल्कि उनके पार्टनर ने गाया था? मैं उछ्ल पड़ता हूँ। भैया आगे कहते हैं – हँ, कहत रहलें कि ऊ गुरुभाई हउवें, उन्हूँके लिया अइहें। उनके पार्टनर भी कल साथ आयेंगे।...
क्षणों का क्या महत्त्व है? प्रसन्नता क्या होती है? ... मुझे नहीं पता। एक अनजान गायक। सवा-एक मोबाइल रिकॉर्डिंग। उसका नाम तक मुझे नहीं पता और उसे भी नहीं पता कि उसने एक अनजान का क्या हाल कर रखा है! पूछता हूँ – नाव बतवले हँ कि नाहीं? बीगन पंडित ने गुरुभाई का नाम नहीं बताया। गहरी साँस लेता हूँ – अभी भी अनाम है!...
...सुबह के सवा दस बजे हैं। भैया ने मोबाइल काल किया है – ऊ लोग आ गइल बाऽ। चाय पानी होता तवलेक आ जा। मुझे स्वयं पर आश्चर्य होता है कि अब कोई हल्तल्फी नहीं है। सुगना आ पहुँचा है। अब क्या? ...
मझोले कद के साँवले गुरुभाई। मोटे नयन नक्श। बढ़ी दाढ़ी। सँवारे घने केश। ललाट पर श्वेत चन्दन। मूर्तिमान गँवई जोगी।
अभिवादन करता हूँ,“आप का नाम क्या है?”
“शम्भू... शम्भू पांडे।“ अनाम ‘स्वयम्भू नामी शम्भू’ हो गया!
बताते हैं कि जहाँ हम लोग गये थे उससे ढेलाफेंक दूरी पर ही उनका टोला है – मन्दिर वाला टोला। अगर किसी से पूछे होते तो उसी दिन मुलाकात हो जाती!
... बहुत पूछा था शम्भू पंडित! किसी ने बताया होता तब न? सब बीगन पंडित और उनकी मंडली की ही बात करते रहे। इतने अज्ञात बन कर क्यों रहते हो?...
शिवरात्रि के पर्व पर जोगी शम्भू आज मेरे लिये निरगुन गायेंगे!! हाथ फिर से जुड़ गये हैं - क्या कहूँ?
भैया पूछते रहते हैं। वे दोनों उत्तर देते हैं और मैं शांत हूँ .. बड़ऽ लहरीऽ।
लहर ही उठी है – किसी नौटंकी में बीगन पंडित गउरा बनें और शम्भू पंडित महादेव तो कैसा हो? सछाते गँवई गउरा महादेव।
गउरा अपने महादेव से ऊँची और महादेव औघड़ी रूप में! रतजग्गे से मदमाते नयन लिये गउरा और सँवराये महादेव ...बड़ऽ लहरीऽ...
..कौतुक से दोनों को एकतारा बाँधते हुये देखता हूँ। शम्भू पंडित बहुत संकोची हैं, कम बोलते हैं जब कि बीगन पंडित बताते हुये सकुचाते नहीं हैं। नाच में काम करने का असर है साइत! बीगन ही बताते हैं कि शम्भू के एकतारे का तार किसी बाइक के गियर वाले तार से लिया है। वह जोर से मारते हैं न! पीतल का तार नहीं टिकता।
मन में कहता हूँ – वाह रे लोकगायक! तुम्हारे स्वर की बुलन्दी अंगुलियों में भी है, उसे पावरफुल बाइक का तार चाहिये और प्रकट में पहली फरमाइश करता हूँ - बड़ऽ लहरीऽ। वह मुस्कुराते हैं। पूछता हूँ – हेडफोन से कोई कष्ट या असुविधा तो नहीं? वह बताते हैं – नहीं, आकाशवाणी में गा चुका हूँ। सन् 1994। वह भुगतान के पहले भरे जाने वाले फॉर्म की कॉपी भी दिखाते हैं– मेरे 5000/- आज भी बाकी हैं।
...कैसी आस लिये आये जोगी? मुझमें शक्ति होती तो...
... वह बताते हैं - एक पैसा नहीं दिया। दौड़ाने लगे तो छोड़ दिया मैंने ही। ...मेरे मुँह में पित्त सा भर आया है – दगाबाज आकाशवाणी गोरखपुर। ... शम्भू! काश मैं तुम्हें पूरा दे पाता।...
सर्वं शुभं शम्भू! ... बड़ऽ लहरीऽ
दोनों गायकों के स्वर में दसियो गीत रिकॉर्ड कर लिये हैं मैंने!
... एकतारे को ट्यून करते शम्भू लीन हैं और मैं सोच रहा हूँ - कौन होता है लहरी? क्या होता है लहरी? हिन्दी वालों को अपनी भोजपुरिया समझ बतानी पड़ेगी। उन्हें तो बस लहर की समझ है न!
लहरी कहते हैं दिलखुश व्यक्ति को। गाँव जवार में ऐसे जन हर टोले पाये जाते हैं। उनके स्वरों में बारहमासा गाता है। वे रंग रसिया होते हैं। सबके रंजक, सहायक, मौके पर काम आने वाले। बियाह सियाह में डट कर काम करने वाले और मौसम आने पर सबसे पहले ढोल निकालने वाले। भौजाइयों के प्रीतम प्यारे और भाइयों के लगुआ भगुआ! वे रोयें तो दो चार को रुला दें और हँसें तो गर्दा उड़ा दें। लोक का जीवन उनमें बसता है। लोक तो शंकर महादेव को भी लहरी नाम से जानता है! बम भोले औढरदानी। महाभोगी, महाजोगी।
कबीरदास आत्मा की तुलना लोक लहरी से करते हैं जो जिन्दगी के मजे लेने में मस्त है और अपनी वास्तविक प्रकृति भूल गया है – साढ़े तीन हाथ लम्बे शरीर रूपी पिंजरे में क़ैद। अपनी बात समझाने के लिये कबीर का निज शैली में प्रबल प्रहार! चेतो! साथ में उतनी ही करुणा जो लहरी की व्यंजना दे दे लहकाती है। आँखों में लहरें उठने लगती हैं – अंत समय पछताते रोओगे लहरी! अभी तो पिजरे में बहुत किल्लोल कर रहे हो! .. पिताजी मगन हैं।
बड़ऽ लहरीऽ ए बड़ऽ लहरीऽ,
बोले पिजड़ा में सुगनवा बड़ऽ लहरीऽ।
पिजड़ा है सढ़े तीनि हाथ के, तामे सुगना बोलिय हाय हाय, तामें सुगना बोले।
कभी कभी मस्ती मेंह आके, दिल का जेहवर खोले
बोले पिजड़ा में सुगनवा बड़ऽ लहरीऽ,
बोले पिजड़ा में मयनवा बड़ऽ लहरीऽ।
पाँच तत्त के महल बनल बा, तामे सुगना बोलिय हाय हाय, तामें सुगना बोले।
बोले साम और सुबेरवा, बड़ऽ लहरीऽ
बोले पिजड़ा में मयनवा बड़ऽ लहरीऽ।
बीच महल में आसन मारि के, राजा बनि के बइठे हाय हाय, राजा बनि के बइठे।
झूले प्रेम के झुलनवा, बड़ऽ लहरीऽ
बोले पिजड़ा में सुगनवा बड़ऽ लहरीऽ,
बोले पिजड़ा में मयनवा बड़ऽ लहरीऽ।
अपने सुख के कारन सुगना राखे नौ नौ नारी, राखेय नौ नौ नारी
सब नारिन से बाति करेला, अपने भऽरेला हुँकारी
बोले पिजड़ा में सुगनवा बड़ऽ लहरीऽ।
बोले पिजड़ा में मयनवा बड़ऽ लहरीऽ।
कहें कबीर सुनो भइ साधो, एक दिन होइहें जाना, एक दिन होइहें जाना
रोइहें भरि भरि ऊ नयनवा बड़ऽ लहरीऽ,
रोइहें भरि भरि ऊ नयनवा बड़ऽ लहरीऽ।
शरीर के नौ द्वार – दो आँख, दो कान, दो नासाछिद्र, मुँह और दो गुह्यांग - भोगी के लिये नौ नौ नारियों के समान हैं। उसने उन्हें रखा हुआ है। इन्द्रियलिप्त उन सबसे मन मनसायन की बात करता है और सहमति में हुँकार भरता हुआ जीता है! स्वयं को धोखा देता है। वाह रे कबीर!
पिताजी पूछते हैं – कहाँ मिलेगी ऐसी सहज और अर्थगहन कविताई? मैं उत्तर देता हूँ – लोक में।
गायकों से अनुरोध करता हूँ कि अम्मा को भी सुनना है और आप दोनों को मेरे घर भी चलना पड़ेगा। घर के ओसारे में वही गीत अब युगल स्वरों में गाया जाने लगा है और मुझे समझ में आता है कि बीगन पंडित सहगायन के किस सौन्दर्य की बात कर रहे थे!
(गीत एच डी वीडियो में रिकॉर्ड किया था – 400+MB! नेट अपलोड के लिये क़्वालिटी को बहुत कम कर दिया है ताकि फाइल का आकार छोटा हो सके। समस्त गायन को यू ट्यूब पर अपलोड करने की योजना भी बना रखी है मैंने। आकाशवाणी न सही, हम खुले मंच पर पर ही इन कलाकारों को प्रचारित कर सकते हैं।)
हम लोग मोबाइल नम्बरों का आदान प्रदान करते हैं। मैं पूछ्ता हूँ – आप लोगों के गुरुजी कौन हैं? शम्भू जी तो मुस्कुरा कर रह जाते हैं लेकिन बीगन पंडित बताते हैं कि पडरौना क्षेत्र के हैं उनके गुरुजी, बहुत अच्छा सोरठी बिरजाभार गाते हैं।
...कभी सुनेंगे रात भर जाग कर सोरठी बिरजाभार। पुरातन गर्मी की उन छतनार रातों को पुन: जिलायेंगे जब न मच्छर होते थे और न थकान। नभ को ओढ़ हम लेटे रहते जब कि गायक तारों के लिये धरती से सोरठी भेजता रहता - हम बस पुकार सुनते रह जाते थे! ... एकिया हो रामाऽ कवने करनवा रतिया बाँझि?
अगले अंक में: फगुआ के माहौल में महाप्राण निराला और एक लोककलाकार का मुकाबला :) यानि कि - 'कस कसक मसक गई' के मुकाबले 'सुतलऽ न सूते दिहलऽ' .... ;) फागुन में बाबा देवर लगें, ए लिये खराब मनले के कवनो जरूरत नइखे! |
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जिस दिन निरगुन रिकॉर्ड किये उसी दिन रात में मय हारमोनियम, ढोलक, झाल ,करताल, साउंड सिस्टम आठ गवैयों का कार्यक्रम रखा था। फगुआ, रंगफाग, चौताल, बैसवारी, झूमर, चैता, सोहर, कीर्तन, कजरी वगैरह सब हुये - 5 घंटे तक चला लेकिन सिंगल ट्रैक की रिकॉर्डिंग और ऐसे माहौल की रिकॉर्डिंग में बहुत अंतर होता है। बिजली रानी गुल हो गईं। जनरेटर चलाया गया। दूरी के बावजूद उसका शोर भी था...बहुत प्रयास किया परंतु रिकॉर्डिंग की क़्वालिटी सुधार नहीं पाया। मेरी योजना थी कि होली तक एक एक कर प्रस्तुत करता रहूँगा। रिकॉर्डिंग में सुधार के लिये हाथ पैर मार रहा हूँ, ब्लॉग जगत से भी सहायता की माँग कर रहा हूँ। कुछ सही हो पाया तो अवश्य प्रस्तुत करूँगा।
एक अपील:
जवाब देंहटाएंपता नहीं यह निवेदन कर मैं ठीक कर रहा हूँ या नहीं, फिर भी आप सब से कहना है कि जिस तरह की सहायता आप श्री शम्भू पांडेय की कर सकें, कृपा करके करें। उनका मोबाइल नम्बर यह है: 09936203868। आज प्रात: ही बात हुई है और मैंने उन्हें बताया है कि अब उन्हें सारा संसार गाते हुये देख सुन सकता है। मैंने यह भी पूछा कि उनके यहाँ मनीऑर्डर आता है या नहीं? उन्हों ने हाँ में उत्तर दिया।
मेरी 'पुरजोर चाह' पूरी करने का धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंA big salute, Girijesh ji.
जवाब देंहटाएंSalute to you also sir ji!
हटाएंगंगेश, इसका सारा श्रेय तुम्हें जाता है। पता है शम्भू जी ने क्या बताया? जिस दिन तुम उनसे मिले थे उस दिन वह अपने बच्चे की पुस्तक लेने रामकोला गये थे। 50 रुपये पास नहीं थे इसलिये उन्हों ने एकतारा उठाया था। दो तीन जगह से शायद तीसेक रुपये मिले और बाकी के बीस रुपये खुद लगा कर उन्हों ने बच्चे की किताब खरीदी।
जवाब देंहटाएं... आगे क्या कहूँ?
आह !
हटाएंशंभू जी वाकई में बहुत ही संकोची हैं ..........
हुआ यूं था कि उनको सुनते सुनते मैं बहुत ही भावुक हो चला था ......
एक अमिट छाप बन गयी थी उस दिन...........
मुझे उनकी मदद न कर पाने का बहुत अफ़सोस है ..........
आह!
शंभू पाड़े ज्यादा जबर हैं ....आपने लोक में ही परलोक सुख का जुगाड़ करा दिया है ! साधुवाद!
जवाब देंहटाएंपहला भाग पहले ही पढ़ लिया था और अंतिम भाग की प्रतीक्षा कर रहा था। अद्भुत और अलौकिक है आपकी वर्णन शैली। ऐसा लगा आपके साथ मैं भी वहीं था।
जवाब देंहटाएंअनायास ही 'रेणु' याद आ गए। लोक संगीत और लोक कलाओं का वर्णन वे भी मुग्ध भाव से करते थे।
गीत सुनकर आनंद की अनुभूति हुई। धन्य हैं आप जो इन लोक कलाकारों को दुनिया के सामने लेकर आए।
शाबाश गंगेश, शाबाश गिरिजेश! गायक द्वय से परिचय कराने का आभार!
जवाब देंहटाएंआभार, यह सहेज कर प्रस्तुत करने के लिये, लोकगीतों में देश का राग बसता है, वह बना रहे, वह बचा रहे..
जवाब देंहटाएंयह सहेज लिया जाएगा, और जब तब सदैव आपका आभार व्यक्त किया ही जाएगा।
जवाब देंहटाएंजय हो !
जवाब देंहटाएंबांध लेने वाली लहरी.. आभार इस आंचलिक स्वाद के लिए...
जवाब देंहटाएंकुछ लोग इतने गरीब होते हैं की उनके पास किसी की तारीफ के लिए दो शब्द भी नहीं होते....!! में वही गरीब हूँ ???
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