... दम है तो अन्ना हजारे चुनाव लड़ें, बहुमत में आ कर अपनी सरकार बनायें और अपनी मनमानी करें। विधान में इस तरह की छूट किसी को नहीं दी जा सकती। - टीवी बहस में एक छुटभैया भ्रष्ट
आगे पढ़ने से पहले ये तीन लेख 1, 2, 3 पढ़ लें, दुबारा क्यों लिखना?
छुटभैये को धन्यवाद जो उसने सत्तासीन प्रभु वर्ग के छ्ल, छ्द्म, दम्भ और तिरस्कार भावों को एक तार्किक प्रतीत होती अभिव्यक्ति दी। उसके आत्मविश्वास को देख रोना आता है – उसके ऊपर नहीं, अपने पर। यह वह तर्क है जिसकी कसौटी के आगे चौंधियाये हम अपने को पिछले 60 वर्षों से घिसते रहे हैं और घिसे जा रहे हैं। आह्वान तो सुने होंगे आप कि वोट दीजिये। अगर आप वोट नहीं देते तो आप को तंत्र की गड़बड़ियों पर शिकायत करने का कोई अधिकार नही! बहुत सम्मोहक, प्यारा और चमकदार तर्क है यह जिसकी अगली कड़ी ऊपर का कथन है। आइये देखें क्या है यह चुनाव तंत्र?
सूक्ष्म सांख्यिकी में न जाकर हम मोटे मोटे चलते हैं। पिछले 15 लोकसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत 55 से लेकर 63% के बीच रहा है। 2009 चुनावों में यह प्रतिशत 57% था। 2009 आम चुनावों में 71 करोड़ 40 लाख लोग मतदाता थे, अब शायद 75 करोड़ होंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि जब चुनाव हुये तो 31 करोड़ लोग घरों से बाहर ही नहीं निकले कि अपने भाग्यविधाता को चुन सकें। 15 वीं लोकसभा के सत्ताधारियों के चुनावपूर्व समझौते को 37% मत मिले थे। मतलब 15 करोड़ मत पाकर 120 करोड़ लोगों के ऊपर शासन! 5 में 3 का नहीं 1 का बहु(?)मत! इसे बहुमत का लोकतंत्र कहा जाता है!!
हमेशा से लोगों को मतदान न करने के लिये दोष दिया जाता है। क्या होगा अगर सभी मतदाता वोट देने निकल पड़ें? मत देने वाले 40 करोड़ लोगों को उन 31 करोड़ लोगों का धन्यवाद करना चाहिये जिनके न आने से वे मत दे पाये।
सांख्यिकी बहुत खतरनाक विद्या है। यह सत्ताधारियों को आत्मविश्वास देती है। पहले वे सायास दोषपूर्ण तंत्र बनाते हैं फिर सालों साल उसे कार्यरत देखते हैं और आँकड़ों को इकठ्ठा कर अपनी काहिलियत, अपने छ्द्म, छ्ल और जन के प्रति तिरस्कार को तार्किक आधार देते हैं। वे दुर्व्यवस्था को भी सांख्यिकी का आधार दे जायज ठहरा देते हैं।
आज ग्राम प्रधानी के चुनाव में भी 10 लाख तक खर्च हो जाना आम बात है। अर्थ बल, बाहु बल, जाति बल, छ्ल बल, छ्द्म बल आदि से संयुत सत्ताधारी वर्ग निश्चिंत है कि जनता ऐसे ही लेमनचूस चूसती रहेगी और वे मलाई काटते रहेंगे। अपने खानदान के सात सत्तर पीढ़ियों के लिये स्विस बैंक में पैसे जमा करते रहेंगे। उनका निर्लज्ज आत्मविश्वास देखिये कि सरेआम चुनौती देने से भी नहीं घबराते। क्यों घबरायें? तंत्र उनका है, मंत्र उनका है, जनतंत्र तो उनका होगा ही।
आप पूछेंगे कि आखिर विकल्प क्या हो? इस प्रश्न को उठाने से पहले जरा अपने गिरहबान में झाँक कर देखिये – क्या आप ने भ्रष्टाचरण के विकल्प के बारे में भी कभी सोचा है? क्या आप ने कभी अपने आप से यह पूछा है कि जहर की जड़ में मैं अमृत क्यों उड़ेल रहा हूँ? इस सनातनी देश में कर्मफल की बहुत बातें होती हैं। आप को जहाँ भी अवसर मिलता है, कुकर्म कर डालते हैं, किये जाते हैं और आशा करते हैं कि फल शुभ्र होगा, शुचितापूर्ण समाज? निरा पाखण्ड है यह!
आज एक अति वृद्ध आन्दोलनकारी के समर्थन में जो कुछ दिख रहा है वह कुछ नहीं हमारे अपने पाखण्ड की अभिव्यक्ति है। मुझे नहीं पता कि परिणाम क्या होगा लेकिन इतना अवश्य पता है कि –
- आप अपने बिजली के मीटर का बाईपास न हटायेंगे और न लोड के हिसाब से कनेक्शन रेटिंग ठीक करायेंगे।
- आप रेलवे टिकट के लिये घूस देना नहीं छोड़ेंगे।
- आप इस नवरात्र में अपनी प्यारी दुर्गा मैया को घूस के पैसे से खरीदी गयी लाल चूनर चढ़ाना नहीं छोड़ेंगे।
- क़्यू तोड़ कर लपकना नहीं छोड़ेंगे और न ऐसा करने वाले का विरोध करेंगे।
- बहते हुये बजबजाते नाले को देख आँखें मूँदना नहीं छोड़ेंगे।
और
- अपनी हर अकर्मण्यता के लिये हिंसा को दोषी ठहरा देंगे। हिंसा आसमान से उतरती है न?
... लिस्ट बहुत लम्बी हो सकती है।
यह हमारे चरित्र को दर्शाती है। यह दर्शाती है कि क्यों इतने बड़े देश में भ्रष्टाचार के प्रति इतनी सहिष्णुता है। हमारे सीनों पर हमारे पापों का जो बोझ है उसका दर्द हमें अन्ना हजारे के समर्थन में खड़ा कर रहा है और कुछ नहीं।
एक लोकतांत्रिक समाज से भ्रष्टाचार को मिटाने के लिय हमें मसीहाओं की जरूरत क्यों पड़ रही है? क्या हम वाकई यह चाहते हैं कि भ्रष्टाचार समाप्त हो या यह चाहते हैं कि हमें और भ्रष्ट होने का अधिकार मिले? दूसरे हजारो करोड़ के घपले कर रहे हैं और हम हजार लाख तक ही अटके हैं – बड़ी नाइंसाफी है! अलोकतांत्रिक है यह व्यवस्था!! इसे आमूल चूल हिलाने के लिये कोई हजारे आवश्यक है ताकि हम अवसर पा कर इसमें और गहरे प्रवेश कर रसपान कर सकें।
क्या कहा? ऐसा नहीं है। तो क्या है यह? अन्ना हजारे या ऐसे ही चन्द सिरफिरों की पहल या जोखिम से क्या अंतर पड़ा है हममें? कुछ नहीं। कुछ भी नहीं।
आप कह सकते हैं कि वहाँ हजारो करोड़ के घपले हो रहे हैं और तुम फुटकरिया पैसों को हमारी जेब से चलता कर देने के चक्कर में पड़े हो!
आप सही हैं लेकिन भूल रहे हैं कि यह कोई ईश्वरीय युग नहीं है। यह समर्थों का युग है। जो घपले कर रहे हैं, वे आप से अधिक समर्थ हैं। आप से कम समर्थ आप से कम भ्रष्टाचार कर पा रहे हैं। वे भी आप को उसी तरह से कोस रहे हैं और आप के लेवल पर आने को प्रयासरत हैं। हर समर्थ अपने से ऊपर के समर्थ के लिये संजीवनी का कार्य कर रहा है।
जो सबसे ऊपर बैठा है और जो चुनाव के साथ साथ मनमानी की भी चुनौती दे रहा है, वह यह सब समझता है। वह जो कह रहा है, उसे भी समझता है। वह हमसे आपसे अधिक समझदार है, समर्थ है इसलिये आप के मुँह पर चुनौती फेंक कर और आप को मत न देने के अपराधबोध से ग्रसित कर अपनी सत्ता के सदाबहार होने को सुनिश्चित कर रहा है। उसे आप की समझ पर पूरा भरोसा है और विश्वास है कि आप छटपटा रहे हैं लेकिन चन्द सिक्कों की चमक के आगे सोच नहीं सकते।
उसे पता है कि आप के पास विकल्प नहीं है क्यों कि पिछले 60 वर्षों में आप ने विकल्प नहीं मायाकल्प के बारे में सोचा है। उसे लोकतंत्र पर पूरा भरोसा है। अन्ना हजारे को भी लोकतंत्र पर पूरा भरोसा है। बस आप को नहीं पता कि आप को उन दोनों में से किस पर भरोसा है? आप कंफ्यूज हैं और कंफ्यूजन की स्थिति में अन्ना हजारे नहीं, छुटभैये के पक्ष में खड़ा होना आप के लिये, देश के लिये, सब के लिये अधिक उपयुक्त है। जी हाँ, अन्ना हजारे इस लोकतंत्र के लिये अनुपयुक्त हैं क्यों कि उनसे अराजकता फैलने का खतरा है। अराजकता विकास के लिये ठीक नहीं होती, इसे तो कम से कम सभी भ्रष्ट समझते हैं। फास्टिंग और मिस्डकाल तो हो चुके, क्यों न एक मोमबत्ती जुलूस भी निकालें - हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, लगे रहो अन्ना हजारे!
boss,purana benami hoon ,a nameless. mera itna kahna hai ki bhrashtracharya par bahas nahin action ki jaroorat hai .jeewan ka adha hissa ek dum dead honest ki tarah bitaya hai maine,lekin jab jaroorat badhi to isi corruption ki gali main jaana pada hai ....mujhe sharm aa rahi hai ye kahte hue ki main bhi ek chhota mota bhrasht hoon.kya kiya jaaye ....jyada se jyada hum apne ko sudhh rakh sakte hain .anna nahin hain hum ki apni naitikta ke bojh se dusro ko daba den.mera dil desh ke garibon ke liye dharakta hai ......jo hoga dekha jaayega
जवाब देंहटाएं"... दम है तो अन्ना हजारे चुनाव लड़ें, बहुमत में आ कर अपनी सरकार बनायें और अपनी मनमानी करें"
जवाब देंहटाएं1.मनमानी करें।
2. अपनी सरकार बनाये बिना उस स्वच्छ प्रशासन की अशा न करें जो शेष लोकतांत्रिक विश्व में सहज सुलभ है।
ऐसा कहना केवल मूर्खता नहीं, उद्दंडता भी है। ऐसे लोगों को टीवी पर लाना भी शर्मनाक है।
... लिस्ट बहुत लम्बी हो सकती है ... यह हमारे चरित्र को दर्शाती है।
यह उन बेचारों की बेचारगी को दर्शाती है जिन्हें आशा की किरण दिखाई नहीं देती। अन्ना जैसे लोग उनके लिये आशा की एकमात्र किरण हैं। क्या यह किरणें आवर्धित की जा सकती हैं? ऐसा हो पाये तो बहुत से चरित्र बदले हुए दिखेंगे।
उस छुटभैये नेता की बद-जुबानी के पीछे हम जैसे लोगों का नैतिक ह्रास ही है जो कि ऐसे लोगों को संबल प्रदान करता है जो यह मान कर चलते हैं कि ज्यादातर लोग किसी न किसी तरह भ्रष्टाचार से कहीं न कहीं टचित हैं।
जवाब देंहटाएंऔर सही कहा कि जो लोग वोट देने बाहर नहीं निकलते वो अब झुट्ठे ही पूं पां करे जा रहे हैं...यदि उनमें जिम्मेदारी का एहसास होता तो वोट वाले दिन को छुट्टी न मानकर जिम्मेदारी वाला दिन मानते।
बहुत ही दमदार पोस्ट है।
चुनावी प्रक्रिया में लोगों का विश्वास इसलिये उठ गया है कि उसमें सिद्धान्तों की जगह बाहुबल और धनबल सर्वोपरि हो गया है। अब नेती जी(छोटे नेता)अन्ना को इसीलिये चुनाव में बुला रहे हैं।
जवाब देंहटाएंस्वागतेय ताजी वैचारिक बयार. (भाइयों को ऐतराज न हो कि आंधी, तूफान, सुनामी क्यों नहीं कहा जा रहा है.)
जवाब देंहटाएंबुरा जो देखन मैं चला,
जवाब देंहटाएंबहुत टेंटा है साला जो टीवी पर ऐसन बोल गया !
जवाब देंहटाएंइस देश का बहुसंख्यक भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा है,परिमाण की छोडिये ..तथापि अन्ना हजारे में हजारों की आशाएं निहित हैं और वे हमारी भले ही आज पार्श्वांकित हो गयी भावना की ही नुमायन्दगी कर रहे हैं -उन्हें पूरा समर्थन मिलना चाहिए !
मगर दुःख है नीले सियार उनके अभियान में भी घुस गए हैं -जंतर मंतर से इस आभासी जगत में जोर जोर से दहाड़ने का स्वांग रच रहे हैं !
इस अभियान को लेकर बस यही संशय हमें भी है -मगर आशा टूटी नहीं है !
कहीं सरकार उन्हें आत्महत्या के अपराध में जंतर मंतर से उठवा न ले ! वह डर रही है -हम आप होते तो अब तक सींखचो के पीछे होते ! मेरी तो नौकरी भी उसी क्षण ले ली जाती ! साला चला है हरिश्चन्द्र बनने -एक सी एम् ओ यह सब करने के पहले ही बिचारा टे बोल गया !
मोमबत्ती जुलूस भी निकल चुके\चुका।
जवाब देंहटाएंपोस्ट से जो अर्थ निकल रहा है, अक्षरष: यही राय अपनी है। अभी अन्ना हॉट आईटम है, सब अन्ना के साथ हैं। वो पुरानी कहावत, ’चढ़ते सूरज को सलाम’ फ़िर भी लोगों के मन में जोश है तो हम उनके जज्बे और इरादों के लिये आमीन कह रहे हैं।
.
जवाब देंहटाएं.
.
देव,
आप सही हैं, कुछ नहीं होने वाला... भ्रष्टाचार आज हम लोगों के DNA में तक समा चुका है...
लगे रहो अन्ना हजारे... बेचारे...
...
भ्रष्टाचार आज हम लोगों के DNA में तक समा चुका है...
जवाब देंहटाएंna is-se kum na jada.........
pranam.
People should not be afraid of it's Government, Its the Government that should be afraid of it's people.
जवाब देंहटाएंevery saint has a past
जवाब देंहटाएंevery sinner has future....
साली शुरुआत तो हो....
अन्ना आस जगाते हैं।..
ek sunder kathan......
जवाब देंहटाएंहम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, लगे रहो अन्ना हजारे!
jai baba banaras.....
आईना दिखाती शानदार पोस्ट।
जवाब देंहटाएंव्यर्थ नहीं है यह आंदोलन। कुछ न कुछ तो हो कर ही रहेगा। खुलकर बोलने, खुलकर लिखने और आत्मचिंतन का यह अवसर भी इस आंदोलन की ही देन है।
जनसंख्या नियंत्रण, चुनाव सुधार जैसे सभी मोर्चे एक साथ खुल जांय, सभी ठान लें कि बस अब और नहीं...अब सुधरना और सुधारना ही होगा तो कोई आश्चर्य नहीं कि हम कुछ ही वर्षों में नये भारत को चमकते-दमकते देखें।
एक छोटे से आंदोलन को इतना बड़ा जन समर्थन, भले ही इसमें दूध के धुले लोग ना हों यह दर्शाता है कि सभी नदी की सड़न से ऊब चुके हैं। चाहते हैं निर्मल जल।
हमें सुधारने के लिए स्वर्ग से कोई फरिश्ता नहीं आयेगा चलकर । अधिसंख्य भ्रस्ट हैं तो इन्हीं भ्रस्टों को ही तय करना है कि नहीं अब बहुत हो चुका। अब और नहीं। हम सुधरेंगे...जग सुधरेगा।
अन्ना हजारे के अनशन का जब पहला दिन थो तो दिन भर सास बहु सीरियलों में मगन रहने वाली मेरी पत्नी ने मुझसे पूछा की अन्ना अनशन पर क्यों हैं? मैंने लोकपाल बिल की पूरी कथा कह सुनायी तो उनका का अगला सवाल था की ये लोकपाल कहाँ से आयेगा और क्या गारंटी है की वो खुद भ्रष्ट नहीं होगा और अगर वो भ्रष्ट हुआ तो क्या उसकी निगरानी के लिए एक और लोकपाल पद का सृजन किया जायेगा.
जवाब देंहटाएंराव साहब आप सही हैं जब तक हम लोग दिल से नहीं चाहेंगे भ्रष्टाचार ख़त्म नहीं होगा.
जवाब देंहटाएंअपना काम बनता तो, भाड़ में जाये जनता
जनता तो यही उचारे,का करें अन्ना हज़ारे,
Your comment will be visible after approval.
जवाब देंहटाएंThis clause should be visible before we plan to put a comment !
लुकाये हो टर्म्स एण्ड कन्डीशन अप्लाई, तो का करें टिप्पणीकार बेचारे.