पंचवर्षीय कर्मकाण्ड का प्रथम चरण संपन्न हुआ. ढेर सारे आडम्बर हुए:
- अभिनेताओं ने जनता से अपील की – वोट के दिन घर से बाहर निकलो...
- स्वयंसेवी संस्थाओं ने नुक्क्ड़ नाटक किए.
- अखबारों ने इस्तहार निकाले बड़े बड़े.
- अभिनेताओं ने जनता से अपील की – वोट के दिन घर से बाहर निकलो...
- स्वयंसेवी संस्थाओं ने नुक्क्ड़ नाटक किए.
- अखबारों ने इस्तहार निकाले बड़े बड़े.
- टी.वी. पर एक विज्ञापन खूब चला – वोट करो. 21 वी सदी के मुरीद एक पुराने प्रधानमंत्री ने हमें एक नई शब्दावली दी थी – ‘करा करी’ वाली. उसी की तर्ज़ पर नई पीढ़ी को रिझाने के लिए वोट “करो” ..खूब गूँजा.
- ट्रांसफरेबल नौकरी वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों ने जोश में आ कर नई जगहों पर दुबारा वोटर कार्ड बनवा लिए... क्या फर्क पड़ता है यहाँ के लिए भी एक कार्ड बन जाए? आखिर बंगलादेशी भी लिए घूम रहे हैं! ...
और यह सब अभी चल ही रहा है. अभी तो कितने चरण बाकी हैं! एक राष्ट्रीय टाइम पास हो गया है.. वोट करो..जय हो...भय हो... जय हे.....पैसे बाँटे जा रहे हैं ... बड़ी पुख्ता व्यवस्था है.. ट्रेनिंग दर ट्रेनिंग चल रही है. सरकारी ऑफिसों में अधिकारियों को नया बहाना मिल गया है. इलेक्सन है साहब को फुर्सत कहाँ..आप की फाइल देखने को? गोया पहले निहाल कर देते थे फाइल देख देख कर!
पूरा देश व्यस्त है. सौदे हो रहे हैं किसे कहाँ वोट करना है? किसे घर में ही रहना है.....
और पहले चरण में इतनी नौटंकी के बाद भी यू.पी., बिहार में वही ढाक के तीन पात. आधे मतदाता घर से बाहर ही नहीं निकले.नक्सलियों ने वास्तविक सत्ता किसके हाथ में है इसका क्रांतिकारी शंख़नाद भी अपने तरीके से कइ जगहों पर किया.
इस बड़े लबड़धोंधों के दौरान क्या आप कभी सोचते भी हैं कि क्या होगा अगर सारे मतदाता सचमुच निकल पड़े वोट देने? क्या तंत्र इसके लिए तैयार है? वोटिंग टाइम और बूथों की संख्या क्या पर्याप्त होगी उसके लिए?
यह सब आप को एक षड़यंत्र नहीं लगता? बहुत ही सुनियोजित वेल स्ट्रक्च्रर्ड ! आखिर 58 सालों से चल रहा है. क्यों वोट देना जनता की इच्छा पर छोड़ दिया गया है? क्यों एक जगह पर एक ही दिन वोट पड़ता है?
क्यों यह प्रचारित नहीं किया जाता कि एक ऑप्सन यह भी उपलब्ध है कि हमें कोई उम्मीदवार पसन्द नहीं? हम सब को लतियाना चाहते हैं क्यों कि ये सभी उठाइगीर इस देश को चलाने के लिए “अयोग्य” हैं...डिस्क्वालिफॉइड!
क्यों यह प्रक्रिया तब तक नहीं चल सकती जब तक कम से कम 95% , 96%..... जैसी पोलिंग नहीं हो जाती?
....नहीं नहीं साहब मुझे मत बताइए कि बड़ी कयामत हो जाएगी. संसाधन कहाँ हैं इसके लिए? लॉ ऐण्ड ऑर्डर का क्या होगा?....आखिर पूरे संसार में ऐसे ही होता है! हम में कौन सुर्खाब के पर लगे हैं !!.....हमारे पास ठीक से कराने के लिए लोग कहाँ हैं?.
इस देश ने कर दिखाया है. बानगी देखिए..शायद आप भूल गए हैं:
- एक निर्वाचन आयुक्त सनक जाता है नौटंकी देखते देखते... और पूरा तंत्र एक ही चुनाव में बदल जाता है. जनता जान जाती है कि अनुशासन के साथ चुनाव कैसे होते हैं. प्रक्रिया जारी रहती है. इलेक्सन दर इलेक्सन.
- एक प्रधानमंत्री और उसका वित्त मंत्री निर्णय लेते हैं... शोर शराबा उठता है देश बेंच रहे हैं. दूसरी ग़ुलामी .... वगैरह... अर्थव्यवस्था खुल जाती है. परिणाम आप के सामने हैं.
- एक प्रधानमंत्री निर्णय लेता है. पूरे भारत को सड़कों के जाल से जोड़ने का. बहुत बवाल. कितनी ज़मीन जाएगी! सीमेंट और बाकी सामान कितने महंगे हो जाएँगें/गए.... सब के बावज़ूद काम हुआ और चल रहा है और सीमेंट कितना ही महंगा हो गया हो गांवों से ले कर शहरों तक घर बनने कम नहीं हुए.....
- एक कं. निर्णय लेती है..सब के हाथ मोबाइल होगा. बहुत फायदा होगा.... और कुछ ही सालों में अंतर...मेरा मोबाइल घनघना रहा है..बीबी जी को बोलना आज काम पर देर से आऊँगी. अर्जेण्ट हो तो मेरे नं. पर मिस कॉल कर देना !!
----- बड़ी लम्बी लिस्ट है गिनाने बैठूं तो. जब अलग अलग क्षेत्रों में क्रांतिकारी कायापलट हो सकती है तो इस क्षेत्र में क्यों नहीं ? विकल्प गिनाता हूँ:
- इनकम टैक्स रिटर्न की तर्ज़ पर यह अनिवार्य कर दिया जाय कि हर वोटर कार्ड धारक को वोट देना ही होगा. वह इंटर्नेट पर करे, ए टी एम से करे या बूथ पर जाए. पोलिंग दो दिन हो और दो दिन के एक्स्टेंडेड पिरियड में पोलियो ड्रॉप की तर्ज पर घर घर जा कर वोट दिलवाए जाँय. इंटर्नेट या ए टी एम या खाताधारक बैंकों के आन लाइन साइट या इलेक्सन कमीशन के साइट पर भी चारो दिन वोटिंग के ऑप्सन उपलब्ध रहें.
- ई मेल सेवा देने वाली कम्पनियॉ आज कल असीमित मेल बॉक्स साइज दे रही हैं. ज़रा सोचिए करोड़ों खाता धारकों को असीमीत मेल बॉक्स साइज अगर एक प्राइवेट कं दे सकती है तो करोड़ों मतदाताओं का ऑन लाइन बायोमेट्रिक डाटा बेस क्यों नहीं बनाया जा सकता?
- क्यों नहीं सेटेलाइट लिंक के ज़रिए गांव गांव पोर्टेबल वोटिंग मशीनें नहीं घुमाई जा सकतीं? बायोमेट्रिक प्रिंट तो हर मत दाता के लिए यूनीक होगा. गांवों के भूलेख यदि ऑन लाइन उपलब्ध हो सकते हैं तो हर टोले पर पटवारी और लेखपाल जा कर वोट क्यों नहीं डलवा सकते.
- हर मतदाता को ए टी एम कॉर्ड के पासवर्ड की तर्ज पर एक टेम्पोरेरी पासवर्ड दिया जा सकता है. अपने मोबाइल से इस का प्रयोग कर वह वोट कर सकता है.
अगर आप सोचें तो आप भी कुछ नायाब तरीका सुझा सकते हैं. यदि कुछ मस्तिष्क में आता है तो उसे पोस्ट करें. कैंची नस्ल के लोग जो हर बात को काटते ही रहते हैं और दोष दर्शन जिनका मौलिक स्वभाव है, मैं उनकी बात नहीं कर रहा.
समस्या यह है कि लोकतंत्र के नाम पर एक बहुत बड़ा षड़यंत्र चल रहा है और हम आप चुपचाप तमाशा कैसे देखते रह सकते हैं? आखिर इतनी महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया को जो पाँच वर्षों में एक बार ही होती है, इतना जटिल, दुरूह और व्यय साध्य क्यों बना दिया गया है? कहीं यह प्रभु वर्ग की हमेशा सत्ता में बने रहने की चाल तो नहीं !...जरा मनन करें..................................जारी
blog jagat mein aapka swagat hai, vartman raajnitik halaton par bahut gehree chot kee hai apne , likhte rahein.
जवाब देंहटाएंलोकतंत्र के नाम पर,चला ठगी का दौर।
जवाब देंहटाएंएक चिठेरा आलसी, रस्ता ढूँढे और॥
रस्ता ढूँढे और, कराएं वोटिंग कैसे?
सभी करें मतदान, तरीके खोजे वैसे॥
है निराश ‘सिद्धार्थ’ नहीं सूझे है कोई मन्त्र।
शत प्रतिशत मतदान सहेगा कैसे ये लोकतंत्र?
भाई साहब, आपका सपना बड़ा सुहाना है। लेकिन आलस छोड़ निद्रा त्यागिए, आँखें खोलिए और कलम उठाइए तो यह षड़यन्त्र नंगा होने लगेगा।
अनुरोध: यह word verification का लफ़ड़ा फ़ौरन हटा लीजिए। टिप्पणी करने वालों को तंग करने के अलावा इसकी कोई जायज उपयोगिता नहीं रही।
आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है. आपके नियमित लेखन के लिए अनेक शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएंएक निवेदन:
कृप्या वर्ड वेरीफीकेशन हटा लें ताकि टिप्पणी देने में सहूलियत हो. मात्र एक निवेदन है बाकि आपकी इच्छा.
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?> इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानो!!.
पाँच बरस के पर्व का स्वागत है श्रीमान।
जवाब देंहटाएंचुनें लो को होश से और करें मतदान।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
लिखना तो बहुत अच्छी बात है और हम लिखने की हर कोशिश की सराहना करते हैं,किन्तु मित्र पढ़ना उससे भी अच्छी बात है .क्योंकि पढ़ कर ही आप लिखने के काबिल बनते हैं इसलिए अगर आप लिखने पर एक घंटा खर्च करते हैं तो और ब्लागों को पढने पर भी दो घंटे समय दीजिये ,ताकि आपकी लेखनी में और धार पैदा हो .मेरी शुभकामनाएं व सहयोग आपके साथ हैं
जवाब देंहटाएंजय हिंद
aalas me ye haal hai to aalas tyagane ke bad kya hoga, narayan narayan
जवाब देंहटाएंword verification का लफ़ड़ा हटा दिया है. आप की टिप्पणियों के लिए धन्यवाद. मैने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि हिन्दी में इतना विशाल, विराट, विविध, वाइव्रेण्ट और व्यवस्थित ब्लॉग समाज होगा ! भइ वाह !!
जवाब देंहटाएंआप सभी से अनुरोध है कि मेरा प्रोफाइल फोटो प्रतिदिन अवश्य देखें. इसमें भारत के किसी पौधे/वृक्ष/लता/पुष्प का चित्र हिन्दी और वैज्ञानिक नाम के साथ मिलेगा. मेरा प्रयास होगा कि प्रतिदिन इसे अद्यतन करूँ.
ब्लौग-जगत में आपका स्वागत है..शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंस्वागत एवं शुभकामनाऎं दोनो स्वीकार करें.....
जवाब देंहटाएंमै आश्चर्य में हूँ कि एक आलसी भी चिट्ठा लिख सकता है
जवाब देंहटाएंआपके ब्लोग का नाम बिल्कु्ल दुरुस्त है
जवाब देंहटाएंअगला पोस्ट २०१० मे लिखें
पर अच्छा लिखते रहें
शुभकामनाएं
ब्लोग जगत मे आपका स्वागत है। सुन्दर रचना। मेरे ब्लोग ्पर पधारे।
रचना जी बहुत बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंमेरे आलसीपन के बारे मेँ आप के उलाहना भरे मेल को पढ़ने के बाद जब आप के ब्लॉग पर गया तो आप की कविता 'धूप' पढ़ने को मिली. कुछ ऐसा था कि करीब दस वर्षों के बाद वीणा झंकृत हो उठी. एक प्रार्थना सी जुगलबन्दी फूटी. प्रस्तुत है, आप इसे जुगलबन्दी के योग्य समझेँ या अयोग्य जो है सो है:
धूप!
आओ,अंधकार मन गहन कूप
फैला। शीतल तम मृत्यु प्रहर
भेद आओ। किरणों के पाखी प्रखर
कलरव प्रकाश गह्वर गह्वर
कर जाओ विश्वास सबल ।
तिमिर प्रबल माया कुहर
हो छिन्न भिन्न। सत्त्वर अनूप
आओ। अंधकार मन गहन कूप
भेद कर आओ धूप।
भटके हुए नास्तिक की प्रार्थना उसे समर्पित है जिसे मैँने 'तू ही सब तेरा' कहा है.
उल्टी बानी भाग 2 के बीज बपन की यातना से उबर चुका हूँ. अंकुरित होने में बहुत कम समय लगेगा. हिन्दी टाइपिंग में हाथ तंग हैं. यह तो मेरे अनुज सिद्धार्थ शंकर की प्रेरणा का प्रसाद है कि मैं सक्रिय हुआ.
आप ठीक ही कह रहे हैं। हमारे यहां लोकतंत्र ढोंग रहा है। वरना 60 साल की आजादी के बाद भी यहां क्योंकर इतनी गरीबी, निरक्षरता, बेरोजगारी, कुस्वास्थ्य, मकानहीनता, भूख और मुफलीसी है?
जवाब देंहटाएंलगभग हमारे साथ ही चीन भी आजाद हुआ था (1949 में वहां स्म्यवादी क्रांति हुई थी)। चीन हमारे ही जितना बड़ा देश है।
देखिए आज वह कहां हैं और हम कहां।
सचमुच एक सुविचारित स्वागत योग्य पोस्ट है यह -एक दिन पर कब नहीं बता सकता आपकी यह अभिलाषा साकार होगी !
जवाब देंहटाएंआपकी ताजी पोस्ट पढ़कर यहाँ हाजिरी लगा रहा हूँ !
जवाब देंहटाएंप्रोफ़ाइल अद्यतन करने वाली बात विरम गयी है आपसे ! शायद विचार बदल गए हैं...प्राथमिकताएं बदल गयीं हैं !
लोकतंत्र में एक बड़े आमूल चूल परिवर्तनों के लिए हमें तैयार रहना होगा जब .......कोई इसके लिए तैयार होगा तब !!
जवाब देंहटाएंनिर्वाचन के लफड़ों को देखते हुए ....एक नए ढाँचे की जरुरत पर शायद ही यह तथाकथित अधिकार संपन्न वर्ग तैयार होगा ?
यह किस्सा भी बेशर्म भारतीय राजनीति में निर्लज्जता का ही अध्याय है
ई वाला भी बढ़िया है।
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