रात भर अन्धेरे से जूझता रहा
सलवटें गवाह हैं।
दिन चटका है, खिलखिलाती धूप है
गाँव के गाँव
शहर कस्बे सब तबाह हैं ।
और तुम
पड़े हुये हो आइ सी यू के बेड पर
न रात, न दिन, न साँझ, न अरुण
बस एकरस दुधिया उजाला
नियत लक्स का।
ऐसे में प्रार्थना किससे करूँ?
क्या करूँ?
लहरियाँ हैं साँस की, वाद्य की और स्वर की
कि राख से उठते हैं अँखुये
झोपड़ी फिर बनती है
हरियाली फिर सजती है
जोगी कहते रहे हैं
जीवन ऐसे ही चलता है
तो ...प्रार्थना क्यों?
किससे करूँ कि जब सब
ऐसे ही चलता है?
नहीं पता मुझे।
वह मौन है जो खिंचता है जब
सब दह जाने के बाद एक गठरी काँधा ढोता है
जिसमें होते हैं आटा, कपड़े और विवशतायें
जिसकी गाँठ को जिजीविषा कहते हैं।
उसे आज तुम्हें देता हूँ
(सुना है बाँटने से बढ़ती है)
आज उसे बाँटता हूँ
सिक्किम को
जौनपुर, बनारस, आज़मगढ़ ...
बढ़ियाये गाँवों को
लीलावती हॉस्पिटल को
संसार में सब ओर -
जहाँ भी युद्ध है, मृत्यु है, विनाश है
ईति है, भीति है, ध्वंस है, उपास है -
इस प्रात मैं बाँटता हूँ
कि आज रात मुझे नींद आये
मेरा स्वार्थ ही मेरी प्रार्थना है।
सलवटें गवाह हैं।
दिन चटका है, खिलखिलाती धूप है
गाँव के गाँव
शहर कस्बे सब तबाह हैं ।
और तुम
पड़े हुये हो आइ सी यू के बेड पर
न रात, न दिन, न साँझ, न अरुण
बस एकरस दुधिया उजाला
नियत लक्स का।
ऐसे में प्रार्थना किससे करूँ?
क्या करूँ?
लहरियाँ हैं साँस की, वाद्य की और स्वर की
कि राख से उठते हैं अँखुये
झोपड़ी फिर बनती है
हरियाली फिर सजती है
जोगी कहते रहे हैं
जीवन ऐसे ही चलता है
तो ...प्रार्थना क्यों?
किससे करूँ कि जब सब
ऐसे ही चलता है?
नहीं पता मुझे।
वह मौन है जो खिंचता है जब
सब दह जाने के बाद एक गठरी काँधा ढोता है
जिसमें होते हैं आटा, कपड़े और विवशतायें
जिसकी गाँठ को जिजीविषा कहते हैं।
उसे आज तुम्हें देता हूँ
(सुना है बाँटने से बढ़ती है)
आज उसे बाँटता हूँ
सिक्किम को
जौनपुर, बनारस, आज़मगढ़ ...
बढ़ियाये गाँवों को
लीलावती हॉस्पिटल को
संसार में सब ओर -
जहाँ भी युद्ध है, मृत्यु है, विनाश है
ईति है, भीति है, ध्वंस है, उपास है -
इस प्रात मैं बाँटता हूँ
कि आज रात मुझे नींद आये
मेरा स्वार्थ ही मेरी प्रार्थना है।
अवाक हूँ पर प्रार्थना में शामिल समझो!
जवाब देंहटाएंसच है। भय ने भगवान और प्रार्थना का सृजन किया है। प्रार्थना जब सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय के लिए होती है तो इसमें सभी का स्वार्थ सम्मिलत हो जाता है। जैसे यह कहना...
जवाब देंहटाएंसंसार में सब ओर -
जहाँ भी युद्ध है, मृत्यु है, विनाश है
ईति है, भीति है, ध्वंस है, उपास है ..
....जिजिविषा की गांठ खूब खोली है आपने।
कमाल की रचना !
जवाब देंहटाएंअसाधारण चिंता और अपना स्वार्थ ...
गहन चिंता में शक है कि नींद आ पाएगी ! .
शुभकामनायें आपको !
अपना स्वार्थ ही परमार्थ बन जाये तो उसे क्या कहें ?
जवाब देंहटाएंवास्तविक अभ्यर्थना!!
जवाब देंहटाएंसच्ची प्रार्थना!!
मेरे गुरुदेव कहा करते हैं - समस्या स्वार्थी होने में नहीं, ’स्व’ को संकुचित कर लेने में है. आपकी कविता में उनकी ही बात सुनाई दी मुझे. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंमन विचलित है मेरा भी, अपने ही स्वर सुनायी दे रहे हैं. यदि यह स्वार्थी होना है, तो अच्छा है.
जवाब देंहटाएं.गहरी सोच लिए आपकी ये लेखनी ....ईश्वर की प्राथर्ना में हम भी शामिल है ....सिक्किम का दर्द पूरे देश का दर्द है ...
जवाब देंहटाएंजब औरों की पीड़ा समझने की उत्कण्ठा बढ़ जाती है तो आँखें भी सहयोग करना बन्द कर देती हैं।
जवाब देंहटाएंमूक हूँ, और सोच रहा हूँ, प्रार्थनाएं ऐसे भी (ही?) तो उपजती होंगी।
जवाब देंहटाएंसच्ची प्रार्थना अवश्य सुनी जाती हैं, बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
bhaavon ki gahan abhivyakti.
जवाब देंहटाएंजहाँ भी युद्ध है, मृत्यु है, विनाश है
जवाब देंहटाएंईति है, भीति है, ध्वंस है, उपास है ..
उत्कृष्ट अभिव्यक्ति/प्रार्थना...
सादर...
संसार में सब ओर -
जवाब देंहटाएंजहाँ भी युद्ध है, मृत्यु है, विनाश है
ईति है, भीति है, ध्वंस है, उपास है -
इस प्रात मैं बाँटता हूँ ..
अत्यंत भाव पूर्ण प्रस्तुति ...सादर !!!
संसार में सब ओर -
जवाब देंहटाएंजहाँ भी युद्ध है, मृत्यु है, विनाश है
ईति है, भीति है, ध्वंस है, उपास है -
इस प्रात मैं बाँटता हूँ ..
अत्यंत भाव पूर्ण प्रस्तुति ...सादर !!!
आमीन !
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