अंत में ईश्वर ने मनुष्य की रचना की और उसने पहली भूल की, उसने उसे जी भर निहारा ।1।
अपनी इस अद्भुत कृति पर वह मुग्ध हुआ ।2।
इतना मुग्ध कि मनुष्य का साथ तक असहनीय हो गया। उसने उसे पृथ्वी पर दूर भेज दिया ।3।
मनुष्य को पहली सीख मिली – प्रियता की पराकाष्ठा है निकटता का असहनीय हो जाना! दूरी ।4।
वह स्वयं के निकट हुआ और बिना किसी ईश्वरीय हस्तक्षेप के एक से अनेक हुआ ।5।
आसक्त ईश्वर ने मनुष्यों के पास अपना दूत भेजा। उन्हें सब कुछ बताने को कहा और दूत को चेताया कि उनसे आँखें न मिलाना ।6।
आसक्त ईश्वर ने मनुष्यों के पास अपना दूत भेजा। उन्हें सब कुछ बताने को कहा और दूत को चेताया कि उनसे आँखें न मिलाना ।6।
जीवन, कर्म, मित्रता, प्रेम, विवाह, संतान, धर्म, समाज, विधि, न्याय, अपराध, दंड, मृत्यु आदि सब पर उसने उन्हें सन्देश दिया। मनुष्य सिर झुकाये सुनते रहे। उनकी आत्मायें तृप्त हो गईं। उन्हों ने जीना समझ लिया ।7।
संतुष्ट दूत प्रस्थान को मुड़ा तो पीछे से एक स्वर आया – रुको!8।
वह मुड़ा। एक स्त्री उसके विशाल शुभ्र वस्त्र के एक कोने को पकड़े भूमि पर बैठी थी। पहली बार किसी मनुष्य ने उसके सामने सिर उठाया था। स्त्री ने प्रश्न किया – सब कुछ तो ठीक है लेकिन क्या करें यदि प्रेम की टीस सताना न छोड़े?9।
दूत ने पहली बार किसी मनुष्य से आँख मिलाया। वह पहला अपराध था, स्वर्गीय कहलाया। स्त्री कारण थी, घृणित हुई ।10।
चमकता सूरज मन्द हो गया,
सुगन्धित समीर बन्द हो गया,
समुद्र की लहरें शांत हो गईं,
ईश्वर की वाणी पथ भूल गई ।11।
सम्मोहित से दूत ने उत्तर दिया – अभी जा रहा हूँ। यात्रा से लौट कर बताऊँगा ।12।
दूत कभी नहीं लौटा। वह भटकता रहा। वह प्रेमग्रस्त हो गया था ।13।
ईश्वर को पहली बार निराशा, क्रोध, क्षोभ और मोह ने ग्रसित किया ।14।
उसने तय किया कि अब और किसी दूत को नहीं भेजेगा ।15।
सदियाँ बीतती रहीं। मनुष्य भूलते गये। स्मृति सुरक्षित रखने को उन्हों ने कई कहानियाँ गढ़ डालीं लेकिन भूलना जारी रहा ।16।
मनुष्यों के बीच से ही स्वयं को दूत कहने वाले होते रहे और अपनी बातों को ईश्वरीय कह कर प्रचारित करते रहे ।17।
वे सभी पुरुष थे। सबने स्त्री का निषेध किया। उसके लिये आचार संहितायें गढ़ीं और दंड विधान बनाये। मनुष्य का पहला अपराध स्त्री ने किया था ।18।
सबने माँ, एक स्त्री, की महिमा गाई। इससे उन्हें अपने होने पर गर्व होता था, उनके भीतर कुछ नरम नम होता था ।19।
सबने माँ, एक स्त्री, की महिमा गाई। इससे उन्हें अपने होने पर गर्व होता था, उनके भीतर कुछ नरम नम होता था ।19।
कान और आँखें बन्द करने पर भटकते दूत की आहट मिलती है ।20।
मनुष्य अपनी कहानियों और गीतों में प्रेम के उस प्रश्न को समझने सुलझाने के यत्न करता रहता है जिससे ग्रसित दूत उनके भीतर भटकता रहता है ।21।
आहट भुलाने को गीत गाये जाते हैं। स्त्री के बिना गीत नहीं बनते ।22।
संगीत अंतिम अपराध है। मनुष्य इससे आगे अपराध नहीं कर सकता ।23।
दूत का अंतिम अपराध अभी होना है, वह प्रेम से मुक्ति देगा ।24।
उस दिन ईश्वर की अंतिम भूल घटित होगी। उस दिन प्रलय होगा ।25।
प्रलय का दोष स्त्री के ऊपर होगा। वह ईश्वर को भ्रष्ट करेगी ।26।
वह दोष धारण करेगी और सृष्टि पुन: रच जायेगी ।27।
सृष्टि में पुन: स्त्री मनुष्य से अलग कहलायेगी और ईश्वर पुरुष होगा ।28।
पुन: लिखा जायेगा - अंत में ईश्वर ने मनुष्य की रचना की और उसने पहली भूल की, उसने उसे जी भर निहारा ।29।
सम्मोहित पढ़ती चली गयी....
जवाब देंहटाएंकहूँ क्या, कुछ सूझ नहीं रहा....
ये ईश्वर भी न, बस्स ...
जवाब देंहटाएंमेरी पहली टिप्पणी लगता है ईश्वर या दूत ने उड़ा दी।
जवाब देंहटाएंवर्षों के अध्ययन, अनुभव या ध्यान का निचोड़।
जवाब देंहटाएंआपकी पिछली पोस्ट पर की गई टिप्पणी की पुनः-प्रस्तुति मेरी ओर से!! मुग्ध हूँ (प्रेमासक्त भी कह सकते हैं).. एक नयी व्याख्या उस चिरंतन विभेद को रेखांकित करती हुई.. एक नई दृष्टि!!
जवाब देंहटाएंअंततः मूल पर लेखकीय वापसी का बोध कराती प्रविष्टि ! स्वागत है !
जवाब देंहटाएंसृष्टि के प्रथम सार से लेकर अंतिम सार तक .........
जवाब देंहटाएंसनातन दर्शन का सार ...........
एक सम्मोहन ......एक भविष्यवाणी ......
चक्र गाथा ........
सत्यम-शिवम्-सुन्दरम ..........
अभिभूत हूँ ........
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जवाब देंहटाएंजिस सिरे से सुक्त का सुत्र पकड़ा, उसी छोर पर समापन हुआ।
जवाब देंहटाएंसिद्ध हुआ कि धरती गोल है। :)
अद्भुत .... सम्मोहक ....
जवाब देंहटाएंपरन्तु गलती इश्वर ने नहीं की - गलती की है स्वयं को इश्वर समझें वालों ने - जो इश्वर का हवाला देकर बहुत से कथन कहते रहते हैं |
जवाब देंहटाएंकल रात ही मोबाइल पर पढ़ लिया था लेकिन कमेंट नहीं कर पाया। अब दुबारा पढ़ा।
जवाब देंहटाएंअद्भूत रहा यह लेखकीय मंथन। अद्भूत।
वह तो हमेशा अपराधिनी रहेगी-पूछने की हिम्मत क्यों की !
जवाब देंहटाएंवाह! ओल्ड टेस्टामेण्ट तो मैत्थू/मार्क/ल्यूक/जॉन के थे। ये टेस्टामेण्ट किस संत का है?
जवाब देंहटाएंईश्वर ने मनुष्य की रचना की और उसने पहली भूल की, उसने उसे जी भर निहारा ।
जवाब देंहटाएंjai baba banaras.....
और एक हुए थे ब्लाग- वैदिक ऋषि गिरिजेश राव
जवाब देंहटाएंऊपर जिनकी रचना तुमने पढी है......
(धुर अतीत अंतर्जाल से रिट्रीव किया एक दुर्लभ दस्तावेज ,२३३३,प्लेमेडा,अल्फ़ा सेंटोरी सोलर सिस्टम )
अति सुन्दर सूक्त, कोई भाष्य रचे तो काम बने
जवाब देंहटाएंरोचक गाथा ..एक पल को लगा कि बायबिल का कोई हिस्सा पढ़ [सुन] रही हूँ..आप का यह लेख बोलता सा है ..
जवाब देंहटाएं***ईश्वर भी एक पुरुष ही है...सृष्टि का रचियता!!!
"मनुष्यों के बीच से ही स्वयं को दूत कहने वाले होते रहे" कपिलवा जिस दिन इधर आया आपका ब्लॉग नहीं छोड़ेगा. :)
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएं??????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????
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