सोमवार, 23 जनवरी 2012

प्रेम और सुभाषचन्द्र बोस: An Indian Pilgrim ...Ich denke immer an Sie


सुभाषचन्द्र बसु ( टोकियो, नवम्बर 1943)
भारत में कुछ नायकों को लोग न मृत्यु बदा होने देते हैं और न प्रेम।
सुभाष चन्द्र बोस ऐसे ही नायक हैं। यह बात अलग है कि उन्हों ने प्रेम किया, विवाह किया और कुछ सप्ताह की पुत्री को छोड़ संसार से विदा भी हुये।
परी देश की कहानी सी लगती है यह प्रेम कहानी लेकिन त्रासद है। देश और प्रेमिका के प्रेम को साथ साथ साधने में अदम्य साहस और कर्म का परिचय देते सुभाष बाबू के जीवन के इस पक्ष से साक्षात्कार होने पर उनके प्रति और प्यार उमड़ता है। साथ ही यह खीझ भरी सीख भी पुख्ता होती है कि प्रेम की राह में काँटे बहुत होते हैं।

समर के संगी दो प्रेमी 
ऑस्ट्रिया में जन्मी और आयु में तेरह वर्ष छोटी एमिली शेंकेल  (Emilie Schenkl) से उनकी मुलाकात यूरोप निर्वासन के दौरान जून 1934 में वियना में हुई। विशार्ट नामक कम्पनी ने सुभाष बाबू को 1920 से आगे भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन पर पुस्तक लिखने को कहा था। अपनी पुस्तक के लिये अंग्रेजी जानने वाले किसी सहायक की आवश्यकता थी जिसकी पूर्ति एमिली ने की और दोनों के सम्बन्ध प्रगाढ़ होते चले गये। एमिली सज्जन, प्रसन्न और नि:स्वार्थ प्रकृति की महिला थीं। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण सुभाष बाबू उन्हें प्यार से बाघिन कह कर पुकारते थे। एमिली ने बाद में बताया कि प्रेम में पहल सुभाष बाबू ने ही की थी।
  
दिसम्बर 1937 में दोनों ने गुप्त रूप से हिन्दू रीति के अनुसार विवाह कर लिया। उस समय जर्मनी में भिन्न नृवंश केमनुष्यों में आपसी विवाह पर रोक थी।

नवम्बर 1942 में उनकी एकमात्र पुत्री अनीता का जन्म हुआ और कुछ दिनों पश्चात सुभाष बाबू की रहस्यमय(विवादास्पद) दुर्घटनाजन्य मृत्यु हो गई। परिस्थितियाँ ऐसी थीं कि सुभाष बाबू ने अपने जीवन के इस पक्ष को गोपनीय रखा और अंतिम यात्रा के कुछ पहले ही अपने भाई शरत बाबू को यह बात लिखी जिसमें पत्नी और बेटी का खयाल रखने का अनुरोध भी था। मृत्यु की तरह ही उनका प्रेम सम्बन्ध और वैवाहिक जीवन विवादास्पद हुए। दोनों के प्रेमपत्रों की असलियत पर प्रश्न उठाये गये और सुभाष बाबू के चरित्र और यूरोप जाने के असली मंतव्य पर लांछ्न लगाये गये। उन्हें कायर भी कहा गया जिसने अपने प्रेम सम्बन्ध को दुनिया से छिपाये रखा और बाद में पत्नी और पुत्री को धक्के खाने के लिये छोड़ दिया।

लोग भूल जाते हैं कि जो योद्धा होगा वह प्रेमी भी होगा। बिना प्रेम के, बिना उस भीतरी आग के कोई महान योद्धा नहीं हो सकता।

देखें उनके प्रेमपत्रों से कुछ अंश:

 कभी कभी तैरता हिमशैल भी पिघल जाता है, वैसा ही मेरे साथ हुआ है।...क्या इस प्यार का कोई लौकिक उपयोग है? हम जो कि दो अलग से देशों के वासी हैं, क्या कुछ भी हम दोनों में एक सा है? मेरा देश, मेरे लोग, मेरी परम्परायें, मेरी आदतें, रीति रिवाज, जलवायु ....असल में सबकुछ तुमसे और तुम्हारे परिवेश से अलग है। इस क्षण मैं वे सारे भेद भूल गया हूँ जो हमारे देशों को अलग बनाते हैं। मैंने तुम्हारे भीतर की स्त्री से प्रेम किया है, तुम्हारी आत्मा से प्रेम किया है।
एक खास प्रेमपत्र
नज़रबन्दी के दौरान उनके पत्र सेंसर किये जाते थे। अकेलेपन के इस दौर में एमिली के पत्रों से उन्हें आस मिलती। इस दौरान के औपचारिक पत्रों में भी अपने प्रेम को व्यक्त करने की राह उन्हों ने ढूँढ ली। उन्हों ने कालिदास के नाटक शकुंतला से प्रेरित गोथे की एक कृति के पहले भेजे अंग्रेजी अनुवाद का जर्मन मूल एमिली से ढूँढ़ने को कहा और इसे उद्धृत किया:
Wouldst thou the young year’s blossoms and the fruits of its decline,
And all whereby the soul is enraptured, feasted fed:
Wouldst thou the heaven and earth in one sole name combine,
I name thee, oh Shakuntala! And all at once is said.
कांग्रेस का दुबारा सभापति न बनने की दशा में उन्हों ने 4 जनवरी को यह पत्र लिखा:
 “...एक तरह से यह अच्छा होगा। मैं अधिक मुक्त रहूँगा और स्वयं के लिये मेरे पास अधिक समय रहेगा।“ उन्हों ने आगे जर्मन में जोड़ा ‘Und wie geht es Ihnen, meine Liebste? Ich denke immer an Sie bei Tag und bei Nacht.’ (और तुम कैसी हो मेरी प्रिये! दिन और रात हर समय मैं तुम्हें ही सोचता रहता हूँ।)“
एमिली हमेशा उनके लिये अति खास रहीं। अपनी पुस्तक में उन्हों ने केवल एमिली को ही नाम लेकर आभार व्यक्त किया। 29 नवम्बर 1934 को उन्हों ने पत्र में लिखा:

मैं यह पत्र एयरमेल से भेज रहा हूँ। किसी को यह न बताना कि मैंने तुम्हें एयरमेल से पत्र भेजा है, क्यों कि मैं और किसी को भी एयरमेल से पत्र नहीं भेजता हूँ – उन्हें यह ठीक नहीं लग सकता है।

एक और स्थान पर उन्हें दिल की रानी कहते हुये सुभाष बाबू लिखते हैं:
  तुम पहली स्त्री हो जिसे मैंने प्यार किया है...ईश्वर से प्रार्थना है कि तुम ही अंतिम रहो...मैंने कभी नहीं सोचा था कि किसी स्त्री का प्रेम मुझे बाँध लेगा। पहले कितनी स्त्रियों ने मुझे चाहा लेकिन मैंने उनकी ओर कभी नहीं देखा। लेकिन तूने बदमाश! मुझे पकड़ ही लिया।“ 
1937 के एक बहुत ही आर्द्र और सान्द्र पत्र में उन्हों ने लिखा:
... तुम हमेशा मेरे साथ हो। सम्भवत: मैं संसार में और किसी के बारे में सोच ही नहीं सकता।...मैं तुम्हें बता नहीं सकता कि बीते महीने मैंने कितना दुख और अकेलापन महसूस किया है। केवल एक चीज मुझे प्रसन्न कर सकती है – लेकिन मैं नहीं जानता कि वह सम्भव भी है। फिर भी मैं उसके बारे में दिन रात सोच रहा हूँ और ईश्वर से प्रार्थना कर रहा हूँ कि मुझे सही राह दिखाये ...”
दिसम्बर 1937 में An Indian Pilgrim नाम से उन्हों ने अपनी अधूरी आत्मकथा लिखना प्रारम्भ किया। उसमें उन्हों ने लिखा:
मेरे लिये सत्य का आवश्यक अंग प्रेम है। प्रेम जगत का सार है और मानव जीवन में आवश्यक तत्त्व है ...मैं अपने चारो ओर प्रेम का खेल देखता हूँ; मैं अपने भीतर उसे ही पाता हूँ; मुझे लगता है कि अपनी पूर्णता के लिये मुझे अवश्य प्रेम करना चाहिये और जीवन की पुनर्रचना के लिये मुझे प्रेम की एक मौलिक सिद्धांत के रूप में आवश्यकता है।“
एक पत्र में वह एमिली को समय पर दवाइयाँ लेने, वर्तनी की अशुद्धियों में सुधार करने और उन्हें उनकी वास्तविक जन्मतिथि, जन्म समय और स्थान भेजने को कहते हैं। उन्हों ने लिखा:
” Ich denke immer an Sie – Warum glauben Sie nicht?’ (मैं तुम्हारे बारे में हमेशा सोचता रहता हूँ। तुम मेरा भरोसा क्यों नहीं करती?). ....“Ich weiss nicht was ich in Zukunft tun werde. Bitte sagen Sie was ich machen soll (मुझे नहीं पता कि मैं भविष्य में क्या करूँगा। मुझे बताओ न कि मुझे क्या करना चाहिये)...Ich denke immer an Sie. Viele Liebe wie immer (मैं तुम्हारे बारे में हमेशा सोचता रहता हूँI हमेशा की तरह ढेर सारा प्यार) ”.
घोषित रूप से अपने पहले प्यार ‘देश’ और अपनी गुप्त ‘हृदयेश्वरी’ के प्रेम की पीर को जीते सुभाष बाबू की मन:स्थिति को सोच आँखें भर आती हैं। उनका अंतिम पत्र यह था:
“...मैं नहीं जानता कि भविष्य ने मेरे लिये क्या रख छोड़ा है। हो सकता है कि मैं अपना जीवन जेल में ही बिता दूँ, मारा जाऊँ या फाँसी पर चढ़ा दिया जाऊँ। चाहे जो हो, मैं तुम्हें याद करता रहूँगा और तुम्हारे प्यार के लिये तुम्हें अपनी मौन कृतज्ञता व्यक्त करता रहूँगा। हो सकता है कि मैं तुम्हें फिर कभी न देख पाऊँ .... हो सकता है कि लौटने पर तुम्हें लिखने लायक भी न रह पाऊँ...लेकिन मेरा भरोसा करो कि तुम हमेशा मेरे हृदय में रहोगी, मेरी सोच में रहोगी और मेरे सपनों में रहोगी। यदि भाग्य हमें इस जीवन में अलग कर देगा तो अगले जन्म में भी मैं तुम्हें चाहूँगा।
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अनीता और एमिली
अगस्त 1945 के अंत की एक साँझ एमिली अपने वियना के घर की रसोई में बैठी ऊन का गोला बनाती रेडियो पर समाचार सुन रही थीं। अचानक ही रेडियो ने घोषणा की कि भारतीय ‘क़िस्लिंग’ सुभाष चन्द्र बोस एक विमान दुर्घटना में तायहोकू (ताइपेय) में मारे गये हैं। एमिली की माँ और बहन ने उन्हें भौंचक्के हो कर देखा। वह धीरे से उठीं और बेडरूम की ओर गईं जहाँ उनकी पुत्री अनीता गहरी नींद में सोई हुई थी। उसके बिस्तर के बगल में झुक कर वह रोने लगीं।
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आभार: द टेलीग्राफ (कलकत्ता); हिन्दुस्तान टाइम्स; टाइम्स ऑफ इंडिया और सर्मिला बोस  

23 टिप्‍पणियां:

  1. एक महानायक की महान प्रेम गाथा ..पढ़कर मन पुलकित हुआ और आपको आभार कहने की तीव्र इच्छा......श्रेष्ठ मनुष्यों ने प्रेम को महिमापूर्ण बनाये रखा है ..प्रेम जो मानवता की एक बड़ी थाती या विरासत है !

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  2. “...मैं नहीं जानता कि भविष्य ने मेरे लिये क्या रख छोड़ा है। हो सकता है कि मैं अपना जीवन जेल में ही बिता दूँ, मारा जाऊँ या फाँसी पर चढ़ा दिया जाऊँ। चाहे जो हो, मैं तुम्हें याद करता रहूँगा और तुम्हारे प्यार के लिये तुम्हें अपनी मौन कृतज्ञता व्यक्त करता रहूँगा। हो सकता है कि मैं तुम्हें फिर कभी न देख पाऊँ .... हो सकता है कि मैं तुम्हें पुन: कभी न देख पाऊँ। हो सकता है कि लौटने पर तुम्हें लिखने लायक भी न रह पाऊँ...लेकिन मेरा भरोसा करो कि तुम हमेशा मेरे हृदय में रहोगी, मेरी सोच में रहोगी और मेरे सपनों में रहोगी। यदि भाग्य हमें इस जीवन में अलग कर देगा तो अगले जन्म में भी मैं तुम्हें चाहूँगा।”

    उफ़्फ़! नेताजी के जन्मदिन पर एक अनुपम भेंट। शुभ अवसर मनाने का यह तरीका पसन्द आया। महानायकों का हर काम अनूठा होता है। चाहे देश के लिये जाँनिसारी की बात हो चाहे प्रेम के लिये जाति, धर्म, राष्ट्रीयता से ऊपर उठने की बात हो, महानायक अपने पीछे अनुकरणीय उदाहरण छोड़ जाते हैं। उन्हें समझे बिना उनके कृत्यों में कमियाँ निकालना आसान है, मगर उन सा हो पाना ... असम्भव!

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  3. अंतिम चित्र में एमिली भी अनीता की तरह प्यारी बच्ची लग रही हैं!

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  4. नेताजी के जीवन के इस पहलू से बहुत कम लोंग ही परिचित रहे होंगे !
    युद्ध प्रेम करने का अधिकार नहीं छीनते!

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  5. हृदय की अग्नि स्वयं को ही न जला दे, इसके लिये प्रेम आवश्यक है, सुभाष सबसे अलग हैं, महानायक।

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  6. प्रेम और क्रांति ...

    युद्ध और प्रेम

    क्रांतिकारी और प्रेमी..

    लगता है हर क्रांतिकारी के मन में कहीं न कहीं - प्रेम छुपा रहता है. पर प्रेमी के मन में क्रांति हो या न हो ये कहा नहीं जा सकता.

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  7. आप हर जगह अपना इलाका ढूढ़ लेते हैं :))

    सुंदर!!

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  8. पता नहीं कहाँ से आपने इन पत्रों को संजोया ... सच कहूँ तो मुझे नेता जी के इस प्रेम प्रसंग और उनकी बच्चे के बारे में पता नहीं था ... पर आज जब पता चला है तो मन और भी श्रधा से भर गया है इस महानायक के लिए ... ये प्रेम ही होता है जो कुछ भी करने की प्रेरणा देता है ह्रदय में ...

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  9. बहुत ही तैयारी के साथ लगे थे आप इस प्रस्तुति के लिए!
    साधुवाद आर्य!

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  10. मेरए कलकत्ता प्रवास के दौरान, मेरे एक मित्र ने विस्तार से यह प्रेम-कथा मुझे सुनाई थी... लेकिन सुनने से पढ़ने का आनंद दूना है!! जनम-दिन पर वीरता और शौर्य की कथाएं तो बहुत देखीं, किन्तु पर

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  11. किन्तु प्रेम कथा ने मन को उद्वेलित कर दिया!!

    (पिछली टिप्पणी अपने आप पोस्ट हो गयी, बीच में ही)

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  12. मन में वही कसक और हल्की सी टीस,जो अंजाम तक न पहुंचे अफसानों में होती है,जानता था
    उनके इस मानवीय पक्ष को,पर इतनी गहराई से नहीं।आभार ..

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  13. नेताजी के जीवन के इन अनजाने,किन्तु अत्यंत मानवीय मार्मिक पक्ष को उजागर कर आपने उनके प्रति गहन संवेदना जगा दी - आभार आपका !

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  14. .
    .
    .
    नेताजी के जीवन का यह पहलू अभी तक अनजाना सा था... आज आपके मार्फत जाना...

    बहुत बहुत आभार आपका !


    ...

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  15. thank you for your un knowing facts and deep love of subhash bose.he is the only leader of india.

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  16. नेता जी जैसे महानायक ने भी जीवन में प्रेम किया था, यह जानना रुचिकर रहा। धन्यवाद इसे साझा करने के लिये।

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  17. नेता जी जैसे महानायक की प्रेम गाथा को जानना रुचिकर रहा। कई बार अफसोस होता है कि नेता जी तथा उन जैसे दूसरे क्रान्तिकारी भारत को आजाद नहीं देख पाये जबकि दूसरे कई लोग जिनका इसमें न्यूनतम योगदान रहा, आज उनके वंशज उनके नाम पर मलाई चाट रहे हैं।

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  18. “कभी कभी तैरता हिमशैल भी पिघल जाता है, वैसा ही मेरे साथ हुआ है।...क्या इस प्यार का कोई लौकिक उपयोग है? हम जो कि दो अलग से देशों के वासी हैं, क्या कुछ भी हम दोनों में एक सा है? मेरा देश, मेरे लोग, मेरी परम्परायें, मेरी आदतें, रीति रिवाज, जलवायु ....असल में सबकुछ तुमसे और तुम्हारे परिवेश से अलग है। इस क्षण मैं वे सारे भेद भूल गया हूँ जो हमारे देशों को अलग बनाते हैं। मैंने तुम्हारे भीतर की स्त्री से प्रेम किया है, तुम्हारी आत्मा से प्रेम किया है।”
    Most unusual Find & thank you for sharing with a wider audience ....well done !

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